जिंदगी से मुलाकात - भाग 9 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी से मुलाकात - भाग 9

Sorry for delay exam coming.

रिया को डिस्चार्ज मिलते ही सोसाइटी वालों ने उस पर स्ट्रीक एक्शन लेने का फरमान निकाला,पर मिस्टर पुरोहित और मिस्टर जोशी जो कमेटी के सदस्य थे उनके समझाने पर रिया को 6 महीने की रहने की इजाजत दे दी गई।
"रिया ने इस 6 महीने के भीतर कुछ उल्टी-सीधी हरकत की तो उसे बिना नोटिस के उस सोसाइटी से बाहर निकाल दिया जाएगा।" ऐसा आदेश मिस्टर शिंदे ने जारी कर दिया।
उस पर सोसायटी के कुछ लोग काफी ख़ुश थे, लेकिन कुछ लोगों को ये नियमों का उल्लंघन लग रहा था। लेकिन अब रिया को इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वो सबकुछ तो खो चुकी थी अब क्या खोने का बाकी था।
"मुट्ठी में बंद पानी था, उसमें आंसू आकर गिर गए क्या पता चले जब उंगलियां थक गई तो छूटने वाला पानी था या आंसू।"
रिया पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती थी अगर FIR दर्ज की जाती, पर मिस्टर पाटिल ने रिया की हालत को देख FIR नहीं की उल्टा उसे साइकेट्रिस्ट के पास जाके खुद का इलाज करवाने की और जिंदगी में चैलेंज फेस करने के सिर्फ उपदेश दिये।
रिया को वो सिर्फ दिमाग के ऊपर से गए क्योंकि उसका मन खाली होने के बावजूद भी इतना भारी था, कि आंसू भी अब बह बहके थक चुके थे।
अब रिया में पहले जैसा कुछ नहीं बचा था खिड़की- दरवाजे बंद रख उसे खुद में खोए रहने की आदत सी हो गई थी।
उसने अपना अकेलापन दूर करने के लिए सोचा कि वो ऑफिस चली जाएगी और काम करेंगी तो अकेलापन अपने आप दूर हो जाएगा, पर कंपनी में तो सब कुछ बदल चुका था।
उससे उसकी मैनेजर की पोस्ट को छीन ली गई थी अब वह सिर्फ एक एंप्लॉय बन कर रह गई थी।
रिया को अपनी गलती की बहुत बड़ी सजा मिल चुकी थी।
वो अपने गलती के साथ रोज सजा काट रही थी सोसाइटी वालों का बर्ताव ही कुछ अलग सा हो गया था मुंह पर तो कोई कुछ नहीं बोलता पर पीठ पीछे चलने वाली कानाफूसी से रिया परेशान हो चुकी थी।
ऑफिस वालों ने उसे खुद में शामिल करना छोड़ दिया था, लंच की शान रहने वाली रिया अब खुद के टेबल पर ही खाना खा लेती थी। उसके रहने से ना रहने से किसी को परवाह नहीं थी।
डिप्रेशन में रहना और उस पर भी आत्महत्या जैसा कदम उठाना उसके लिए गुनाह हो चुका था।
उसने काफी बार जीवन को फोन लगाने की कोशिश की पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
हर एक दिन उसका मन उसे खाए जा रहा था। रिया अंधेरे में खुद को खोते जा रही थी पर इस घटना के बाद उसकी जीने की आशा और भी बढ़ गई थी।
फिलहाल वह खुद ही खूद से बातें कर खुद को बढ़ावा देती कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।
"तुम्हे आगे बढ़ना होगा रिया... तुम्हे आगे बढ़ना होगा।"
उसमें उसका साथ दिया मिसेस जोशी ने जब रिया को अंधेरे की आदत सी हो गई थी तब मिसेस जोशी उसके साथ खड़ी हुई। रिया को भरोसा दिलाया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और सब कुछ ठीक है, अपना खाली समय मिसेस जोशी रिया के साथ बिताती। रिया अभी धीरे-धीरे दुख को पीछे छोड़ आगे बढ़ती जा रही थी।
संडे के दिन शॉपिंग करने जाना, कई बार खाना खाने जाना, मिस्टर और मिसेज जोशी के साथ मिलकर कॉमेडी शो इंजॉय करना।
वह खुद से ही बातें कर खुद को हल्का महसूस करवाती थी। अपने आप से ही सवाल कर उसे कहीं सवालों के जवाब मिल जाते। सुबह उठकर योगा और ध्यान में बैठ उसे एक अजीब शांति मिलती, इससे उसकी परेशानियां कम नहीं होती पर उसको ताकत मिलती आगे बढ़ने की।
ऐसे ही बातचीत बढ़ाते बढ़ाते रिया ने मिसेस जोशी को बताया कि किस प्रकार वह अपने ऑफिस के दोस्तों से दूर हो चुकी है। अब उससे कुछ खासा बातें नहीं करते बस काम कि ही बातें।
मिसेस जोशी ने सलाह दी "जब एक चिड़िया का बच्चा खुद अपने पंख फैला कर उड़ नहीं सकता, खुद के लिए खाना खोज नहीं सकता तो माँ उसके लिए खाना खोज लाती है, तब वह अपने पेट भरने का विचार नहीं करती उसे सिर्फ एक सोच जिंदा रखती है, की वो अपने बच्चे को आकाश में दूर उड़ते हुए देखना चाहती है।"
"उसी तरह तुम भी यह भूल जाओ तुम्हारे साथ क्या हुआ, यह भूल जाओ वो लोग क्या सोचेंगे, पहले कदम तुम बढ़ाओ। तुम बातचीत चालू करो। तुम नजदीकीया बढ़ाओ।"
"तुम भी जिंदगी की तरफ एक कदम बढ़ाओ रिया बाकी सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। जब तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है तो क्यों डरना?"
आखिरकार रिया ने ठान लिया कि वह दोस्तों से खुद बातचीत बढ़ायेगी। मिसेंस जोशी की मदद से बनाए गए कुछ पकवान वो टिफिन लेकर जाती थी।
"Hi Guys ! Can I Join You?"
" हां..हां.." वो उसे ना भी बोल नहीं सकते थे।
उसके साथ बैठकर खामोश हो जाते। रिया को यह खामोशी चुभती। बस इधर-उधर की बातों में रिया हा.. ना.. या कुछ बोलने की कोशिश करती पर सब उसकी बातों को सुना-अनसुना कर देते।
लेकिन रिया ने तभीभी हार नहीं मानी, कभी कुछ पकवान तो कुछ बातें लेकर ठीक समय पर कैंटीन के उस टेबल पर बैठ जाती जहां कभी उसका ग्रुप साथ मिलकर खाना खाते गप्पे लड़ाते।
धीरे-धीरे अब लोगों को उसकी आदत हो गई थी, लेट नाइट पार्टी या मूवीज के लिए पूछने लगे थे। रिया हँस के हा मैं जवाब देती।
उसकी लाइफ काफी कुछ बदल गई थी। उसके काफी दोस्त बनने लगे थे।
जिस बच्चे ने उसे आखिरी बार देखा था। वह उससे अभी भी डरता था। एक दिन जब रिया के घर बोला कर गिरा तो रिया गुस्से से आगबबूला हो गई। दोस्तों के काफी समझाने के बाद वह बच्चा बोल लेने गया, उस बच्चे को देख रिया सुन रह गई।
रिया के मुंह से शब्द नहीं फुटे और उस बच्चे के चेहरे से पसीना छूट रहा था। "आंटी बॉल.."
रिया ने सोफे के पास गिरे बॉल को उठाया।
अचानक बॉल उठाते ही उसके मन में क्या आया वह फ्रिज की तरफ दौड़ी और अपने साथ एक डिब्बा हाथ में लेकर लौटी, बच्चा अभी भी घबराया हुआ था। एक बार फिर से रिया को देख वह पीछे पीछे जाने लगा, रिया ने कुछ ना बोलते हुए चॉकलेट का डिब्बा सामने कर दिया जुबान से सिर्फ एक शब्द बोला "सॉरी प्लीज ये ले लो।"
बच्चे ने घबराते हुए चॉकलेट और बॉल दोनों को लेकर वहां से भाग कर चला गया।
रिया के लाइफ में अभी सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह जीवन को फोन करके सब कुछ बता दे। अभी भी रिया जीवन को मिस करती थी लेकिन अब रिया काफी बदल चुकी थी।
अब रिया के काफी घुलने मिलने के बाद ठीक होने के बाद एक दिन मिसेस जोशी ने मौका देख रिया को उसके डिप्रेशन की असली वजह पूछी। तुमने आत्महत्या करने की कोशिश क्यों की? अचानक रिया की आंखें बड़ी हो गई, हाथ अपने आप बंधने लगे। वो..वो.. अचानक बात को बदलते हुए- "वाव आप स्वेटर अच्छा बुनती है।" स्वेटर की तरफ इशारा देते हुए।
"Don't Change A Topic" मिसेस जोशी की आंखों मे जिज्ञासा और अब तक रिया ने सच छुपाया उसका गुस्सा साफ साफ झलक रहा था।
रिया ने भाप लिया कि अब वह ज्यादा देर तक सच नहीं छुपा सकती।
आंखों में अपने आप आंसू भर आए आँसू को अपनी उंगलियों से पोछने की हर एक कोशिश नाकाम थी।
मिसेस जोशी ने उसकी पीठ को सहलाते हुए, "बताओ बेटा..क्या है बोल दो।"
"जीवन..." रिया के जबान से शब्द फूटा।
"जीवन!?" मिसेस जोशी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
मैं अपने सपने पूरे करने के लिए घर छोड़ मुंबई चली आई। इन्फोटेक में मैं एँज इंटर्न जॉइन हुई थी।
तब मेरे पास जॉब थी पर वह भी टेंपरेरी रहने के लिए कोई घर नहीं था इसलिए मैंने अपने दोस्त जोत्सना से मदद मांगी। पहले तो उसने मना कर दिया, फिर मेरी हालत देखने और समझने के बाद वह मान गई। हम दोनों मिलकर उसकी किराए वाले मकान में रहने लगे। उसके घर मालकिन से छुपकर मेरी एँज इंटर्न अच्छी प्रोग्रेस हो रही थी। अब कुछ ही महीने बचे थे रिजल्ट आने में। अगर रिजल्ट मेरे फेवर में आता तो ही मैं उस कंपनी में अपनी जगह बना पाती वरना मुझे वापस गांव जाकर शादी करनी पड़ती इसी डर से मैं अपना रोज बेस्ट देती गई,
पर एक दिन...
"पर एक दिन...?" मिसेस जोशी में और अधिक जानने की जिज्ञासा जाग उठी।
रिया कुछ वक्त के लिए खामोश हो गई लेकिन फिर धीरे से बोल उठी।
एक दिन पता चल गया।
"किसे? क्या पता चल गया?" मिसेस जोशी अब जिज्ञासा से झिलमिला उठी।
घर मालकिन को पता चल गया घर में एक नहीं दो लोग रहते हैं।
"मुझे पहले से ही शक था, कुछ तो गड़बड़ है यहां एक नहीं दो लोग रहते हैं। फिर भी मेरा दिल इतना बड़ा है कि मैंने तुम्हें अब तक घर में रहने दिया।"
जोत्सना की घर मालकिन जो शरीर से फलीफूली गोरी त्वचा की व्यक्ति थी, साड़ी में भी उसका भरा पूरा शरीर निखर के बाहर आता था।
उसे उसका पति भी काफी डर जाता। पहले तो हड्डी पहलवान ऊपर से धन दौलत से भी गरीब लड़की बड़े घराने की थी इसलिए जबरदस्ती मां बाप ने शादी करवा दी वरना कद से छोटे लकड़ी पहलवान को कोन देखता लड़की? जिस घर जोस्तना और रिया छुप छूप के रह रहे थे वह घर उस औरत के नाम पर ही था। शक्ल से सीधी साधी और भोली भाली दिखने वाली औरत ने बड़े चालाकी से दोनों को घर से बाहर फिकवा दिया।
"निकल जाओ मेरे घर से यहां कोई धर्मशाला नहीं है लड़की समझकर घर में रखा तो सर पर चढ़ गई।
"नहीं आंटी..."
"आंटी!?"
"नहीं दीदी, ऐसा मत कीजिए हम दोनों कहां जाएंगे?"
"मुझे कुछ नहीं करना निकलो यहां से बाहर।"

रिया.. रि..या अचानक रिया का ध्यान टुटा।
"किस खोज में डूबी हो घर मालकिन को पता चलने के बाद क्या हुआ?"
मिसेज जोशी के सवालों पर रिया बौखलाई फिर एक लंबी सांस भरते हुए बातचीत फिर शुरू की।
जब हमें घर से बाहर निकाल गया तो हमने दो-तीन दिन लॉज में रहने का फैसला किया, बहुत कोशिश कि हमने जगह ढूंढने की पर हम एक अच्छी जगह नहीं ढूंढ पाए आखिरकार हमें जोत्सना के बॉयफ्रेंड प्रीतम का सहारा लेना पड़ा।
जब मैं जोत्सना के साथ उसके घर रहती थी तब मेरी मुलाकात प्रीतम से हुई थी इसलिए मैं प्रीतम को थोड़ा बहुत जानती थी। प्रीतम और जोत्सना मैं इस बात पर झगड़ा भी हुआ कि विदाउट परमिशन के उसने मुझे घर क्यों रहने दिया फिर जोत्सना के काफी समझाने रुठने के बाद प्रीतम मान गया।
प्रीतम के पास कोई दूसरी जगह नहीं थी वह अपने मामा के फ्लॅट में रहता था जो काम के लिए आधा समय देश-विदेश घूमते रहते।
उसने भी छुपते छुपाते हमें घर पर रख लिया जोत्सना और प्रीतम पति पत्नी और मैं जोत्सना की बहन उन दोनों के बीच में मेरी मुलाकात हुई थी जीवन से जो प्रीतम का फ्रेंड और 𝐏𝐚𝐲𝐢𝐧𝐠 𝐠𝐮𝐞𝐬𝐭 था।
जीवन को यह आईडिया खासा पसंद नहीं आया पर जोत्सना ने प्रीतम के हाथ शायद बांध रखे थे कि वो जीवन की बात को अनसुना कर दे।
"यह आईडीया अच्छा नहीं है प्रीतम अगर किसी को पता चल गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे दोनों भी लड़कियां है।"
"मैं क्या करूं यार?मैं भी मजबूर हूं ।" प्रीतम जीवन को समझाते हुए।
प्रीतम और जीवन अंदर बैठकर जोत्सना और रिया के प्रकरण पर चर्चा कर रहे थे।
दूसरी तरफ जोत्सना आगबबूला हो प्रीतम का बाहर आने का इंतजार कर रही थी।
लेकिन जोत्सना को तो अपनी बात मनवानी थी इसलिए उसने प्रीतम को आवाज लगाया।
"प्रीतम.. प्रीत डार्लिंग.." प्रीतम अचानक घबरा गया।
जीवन प्रीतम की हालत में मुंह बनाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था दोनों बाहर आए।
प्रीतम की घबराहट और और जीवन की नाक पर गुस्सा देख रिया हँस पडी। यह देख पहली बार उसकी नजर रिया पर गई।
रिया उसके शक्ल का गुस्सा याद कर जोर जोर से हंसने लगी। "क्या हुआ? हंँस क्यों रही हो?" मिसेस जोशी ने रिया के एकाएक हंसी का राज जानने की कोशिश करनी चाही।
"कुछ नहीं प्रीतम और जीवन की हालत पर हंसी आ गयी। बेचारा प्रीतम..."
इतने महीनों में पहली बार रिया इतना खिलकर हंस रही थी उसका कारण था जीवन...जीवन की यादें।

"तुम पर हंसी खूब जचती है।
क्या करें तेरे मुस्कुराहट के दीवाने हैं।
वरना दिल तो सिर्फ सांस के लिए तरसता हैं।
ऐसा तो कुछ नहीं है।"

यह क्या है आंटी रिया ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"मिस्टर जोशी की शायरी।"
दोनों खिलखिला कर हंस पडे।
"फिर आगे.." मिसेस जोशी ने पूरी बात जाने की जिज्ञासा से पूछा।
कुछ नहीं आखिरकार जीवन को हम तीनों के साथ ऍडजस्ट करना पड़ा। प्रीतम और जोत्सना कभी शॉपिंग या मूवी के लिए जाते तो हम दोनों को भी साथ लेकर चलते। जीवन और मेरे लिए अलग टेबल खुद के लिए अलग, हमारे लिए बालकनी खुद के लिए बँक रो। मुझे उन तीनों के साथ एक रूम शेयर करना हर पल मुश्किल हो रहा था। पर जब मुझे पता चला कि जिस कंपनी में मैं इंटर्न काम करती थी, उस कंपनी में जीवन एक सॉफ्टवेयर डेवलपर है तो मैं जीवन से और भी ज्यादा attach होने लगी।
कभी प्रीतम और जोस्तना का झगड़ा हो जाता तो उन्हें मनाने ही मिलाने की प्लानिंग में हम कितने पास आ गए हमें पता ही नहीं चला।
रिया के चेहरे पर अजीब सी खुशी झलक रही थी।
"अच्छी यादें हमे सच में सुखद आनंद के अनुभूती करवाती है।"
प्रीतम और जोस्तना का फेक रिलेशनशिप ज्यादा देर तक नहीं चला। जब उसके मामा दुबई से वापस आए तो बवाल मच गया। जोस्तना और प्रीतम को सच में शादी करनी पड़ी, और मुझे और जीवन को घर से बाहर निकाल दिया गया। तब तक मेरी जॉब परमनेंट हो चुकी थी इसलिए मुंबई में मैंने और जीवन ने मिलके एक साथ एक ही फ्लैट खरीद लिया। अचानक रिया बोलते बोलते रुक गई आखें झुक गई। आंखों में आंसू और आवाज पहले से ही काफी धीमी हो गयी। फ्रेंडशिप कब एक रिश्ते में बदल गई हमें पता ही नहीं चला।
"Friendship, jealousy, intimacy it's all about the goal of our relationship."
जीवन मेरे लाइफ को वह जरिया बन गया था। जिसके साथ में जी सकती, हंस सकती थी पर मैंने ही...
अचानक रिया रो पड़ी उसके आंसू उसके आंखों से छूट मुट्ठी में बँधे हुए हथेलियों पर आकर गिरने लगे। मिसेस जोशी रिया के पास सोफे पर जाकर बैठ गई। पीठ पर हाथ थपथपाते हुए- "हो जाती है इंसान से गलती।"
"मेरी कोई गलती नहीं थी।"
अचानक सिर उठा कर रिया चिल्ला उठी।
एक वक्त के लिए मिसेस जोशी की आंखें फटी की फटी रह गई। फिर अपनी गलती पर शर्मिंदा हो , गलती सारी हालात की थी। मैं और जीवन अपने रिश्ते मैं काफी खुश थे। जीवन खुद अपने पैरंट्स से हमारे बार में बात करने वाला था। जीवन हर साल दिवाली पर अपने पैरंट्स के यहां देहरादून जाता था। उसके पिता एक व्यापारी थे माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी इसलिए उन दोनों को हमारे बारे में रिश्ते के बारे में समझना ऑलमोस्ट इमपॉसिबल था।
जीवन और उसके माता-पिता के बीच जो लड़ाई झगड़ा चल रहा था उसी बीच मेरे जिंदगी में भी एक तूफान आया। शिवम ने मुझे फोन कर बताया कि माँ को खून की उल्टियां होने लगी हैं। मां का सिर दुखना, खाना ना खाना उससे साधारण लगता था। पर जब बात सीरियस हो गई तो उसने मुझे फोन लगाया। हम माँ को मुंबई लेकर आए प्रीतम ने ही सारा बंदोबस्त किया। मां की जांच करवाने के बाद पता चला कि माँ को ब्लड कैंसर है। मुझे अपने फैसले पर गौर करना पड़ा।
"कौन सा फैसला?"
मिसेस जोशी ने पीठ पर हाथ फैलाते हुए पूछा- "हैदराबाद में मैनेजर की पोस्ट का।" जीवन के देहरादून जाने के एक महीने पहले ही मुझे यह खबर मिल गई थी।