जिंदगी से मुलाकात - भाग 10 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी से मुलाकात - भाग 10

मैं जिंदगी के उस दोहराएं पर खड़ी थी जिस दौर है पर मुझे सिर्फ एक को चुनना था जीवन या फिर मां।
जीवन को चुनती तो वहा उसके साथ बहुत खुश रहती और अगर मां को चुनौती तो जीवन को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जाना पड़ता।
मैंने काफी सोचा मैं हैदराबाद में ना जाऊ पर मैं यहां सब कुछ छोड़ कर अपना सपना ही तो पूरा करने आई थी। अपना सब कुछ छोड़ एक अनजान शहर में इतना सब कुछ सहन करने के बाद मैं पीछे कैसे हट सकती थी।
मां को कीमोथेरेपी के लिए पैसा चाहिए था, भाई की एडमिशन के लिए पैसा चाहिए था।
जीवन देहरादून से 16 नवंबर को वापस आने वाला था, 17 को मेरा जन्मदिन था। अचानक रिया की आंखें चमक उठी।
मैंने इतना खुश जीवन को पहले कभी नहीं देखा था। जीवन ने देहरादून के बारे में अपने मां बाप के बारे में बहुत कुछ बातें बताई।
बातों ही बातों में उसने यह भी बताया उसके माता-पिता ने शादी के लिए इजाजत दे दी है। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
मुझे सब कुछ मिल गया मुझे था जिंदगी मे पर मैं ही उसे समेट नहीं सकती थी।
अचानक रिया रोने लगी अपनी किस्मत पर रो रही थी, या अपने गुस्ताखी पर उसे खुद समझ नही आ रहा था।
मिसेस जोशी रिया को संभालते हुए, "आगे क्या हुआ?"
रिया यादों के कोहरे में कहीं खो गई।
"क्या हुआ रिया, तुम रो क्यों रही हो?"
"जीवन I can't,मैं यह शादी नहीं कर सकती।"
रिया का दिल जोर जोर से धड़क रहा था, उसकी जबा और आंखें दोनों अलग-अलग बातें बयां कर रही थी।
जीवन बेशर्मी से हंसते हुए-"तुम मजाक करी हो ना? सुबह से कोई मिला नही क्या?"
जीवन रिया के मजाकिया स्वभाव से वाकिफ था।
हात मुठी में बंद चुके थे, गला भर चुका था, शरीर रो रो के गर्म हो रहा था पर तभी भी भावशून्य होकर वह बोली-"मुझे यह शादी नहीं करनी जीवन मेरी भी कुछ ड्रीम्स है मेरे भी कुछ रिस्पांसिबिलिटीज है।"
जीवन को समझ नहीं आ रहा था वह क्या कहे, यह क्या चल रहा था?
"क्या रिया मेरे साथ खुश नहीं है? क्या मैं उसे वह खुशियां नहीं दे सकता,जिसकी उसे तलाश है?"
जीवन की आंखों में पानी भर चुका था पर तभी भी उसे लग रहा था कि रिया उसके साथ मजाक कर रही है।
जीवन पीछे मुड़ा- "रिया तुम मजाक बंद करो देखो तुम्हारी जो कुछ भी रिस्पांसिबिलिटीज है वो तुम शादी के बाद भी पूरी कर सकती हो।"
रिया सिर नीचे करके खड़ी थी। जैसे उससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
यह देखकर जीवन आग बबूला हो गया- "मैं हूं ना, तुम मेरे घर में रहोगी मेरे साथ तो मेरी जिम्मेदारियां अगर तुम संभाल सकती हो तो, मैं क्यों नहीं?पत्नी का धर्म होता है घर में बैठकर घर संभालना ना कि बाहर जाकर काम करके अपने ससुराल वालों पर अपने पैसे और जिम्मेदारियों का ढौस जमाना।"
जीवन के बातों से साफ-साफ झलक रहा था कि रिया की बातें उसे अंदर से कितना चिड़चिड़ा बना रही थी उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि पाच साल के रिश्ते से रिया दो मिनिट में पल्लु झाड़ रही थी।
"जीवन!" रिया चिल्लाई
रिया को दूसरों से ज्यादा खुद पर आत्मविश्वास था इसी के दम पर तो वह मुंबई भाग कर आई थी।
आज कोई आकर उसे दूसरों पर निर्भर रहने के लिए कह रहा था यह उसके अभिमान को चोट पहुंचाने जैसा था।
"मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ जीवन बीवी नहीं, जो तुम मुझसे ऐसी बाते कर रहे हो। मुझे मेरे खुद के चॉइसेज डिसीजन है या नहीं?"
'तुम्हारे माता-पिता चाहते हैं मैं सबकुछ छोड़कर शादी करके गांव में सेटल हो जाऊ। उसके बाद क्या रोज तिल तील मर कर यह देखती रहूं कि तुम मेरे परिवार को कैसे संभाल रहे हो।" रिया गुस्से से तमतमा उठी
उसका कारण उसका अभिमान {ego} था या उसकी निर्भरता {dependency}??
रिया के पिता जब रिया नवी कक्षा में थी तभी चल बसे। उसके पिता के जाने के बाद उसके लिए जिंदगी एक निर्भरता का ही खेल था
अल्लड होने के कारण छोटी-छोटी बातों के लिए बड़े बुजुर्गों पर निर्भर रहना पड़ता था और उनकी मदत लेते ही सीना ताने वह अपने उपकार जताते - "अगर हम मदद नहीं करते दीदी तो रिया इतने अच्छे मार्क्स मिला के कभी इंजीनियरिंग कॉलेज में नहीं जा पाती।"( यह शब्द रिया के चाची के थे।)
और भी ऐसे कई शब्द उसके दिल को छलनी कर उसे दिन ब दिन नासूर बना चुके थे।
"आज तुम मदद करोगे फिर छोटी सी मदद के लिए तुम बार-बार हमें यह याद दिलाओगे कि हम तुम पर डिपेंड है।" जीवन सुन्न पड चुका था। उसने सब कुछ दिल से तो नहीं कहा था फिर भी रिया ने इतना दिल पर क्यों लगा लिया?
रिया पर अपने अपने मांँ का इलाज, भाई की पढ़ाई सारे ख्यालों का भूत सवार हो चुका था। वो ऑलमोस्ट पागल हो चुकी थी। उस पर भी जीवन का यह कहना कि-
"उसके मां-बाप शादी के लिए मान गए हैं पर शादी के बाद लड़की काम नहीं करेगी।" यह बात सुनकर दिल में भडक यही ज्वालामुखी को बुलावा दे चुकी थी।
जीवन रिया की हालत को समझ रहा था उसके दोनों कंधे पर हाथ रखते हुए -"रिया शांत हो जाओ।"
"तुम मुझसे अभी शादी नहीं करना चाहती मैं तुम्हें कोई जोर जबरदस्ती नहीं करूंगा। next year or next two years?"
एक मिनिट के लिए रिया सोच में पड़ गई थी।
उसे अपनी आंखों के सामने खुद की और जीवन की शादी होती हुई दिखाई दे रही थी। फिर अपने परिवार का ख्याल आते ही उसने दोनों हाथ अपने कंधे से झटक दिए
"मुझे शादी नहीं करनी बस्स..."
पूरे घर में शांति फैल गई।
जीवन ने रिया को रोकने की बहुत कोशिश की पर उसे वह रोक नहीं पाया। रिया बेडरूम से बाहर आयी अपना सूट के हाथ में लेकर ।
जीवन की आंखें फटी की फटी रह गई वो बौखलाया, रिया के पास दौड़ते हुए गया।
"आई एम सॉरी रिया प्लीज..."
"I can't जीवन.. मुझसे और अब यह सहन नहीं होता।"
"हम बात करते हैं रिया प्लीज।"
"नहीं मुझे जाना है।"
"तुम कहां जाओगे अकेले?"
रिया के साँस 2 मिनट के लिए रूक गई।अपनी सारी हिम्मत इकट्ठा कर- "मैं हैदराबाद जा रही हूं जीवन,वहां मेरी ब्रांच मैनेजर की जगह पोस्टिंग हुई है।"
जीवन के दांत गुस्से से अपने आप ही पिसने लगे, मुट्ठी अपने आप बंद हो चुकी थी।
"ओ.. तो तुम मैनेजर के पोस्ट के लिए मुझे छोड़ कर जा रही हूं।"
जीवन अपना सारा धीरज खो चुका था। एक व्यंगात्मक हंसी हंसते हुए- "मुझे तभी समझ जाना चाहिए था जब तुम सब कुछ छोड़कर जोत्सना के घर रहने चली आयी, तभी समझ जाना चाहिए था जब तुम प्रीतम और मेरे साथ उसके फ्लैट में इतने महीने बिना किसी झगड़े के रही। यह सब तुम्हारे ड्रीम्स के लिए।"
"राइट!?"जीवन चिल्लाया
"ऐसा तो नहीं कि मैं भी तुम्हारे लिए एक सपना पाने की सीडी था काम खत्म चलती बनो।"
रिया स्तब्ध होकर सब सुन रही थी। ऐसा लग रहा था मानो उस पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो, पर उसके दिल में जीवन के शब्द तीर बन कर अंदर तक घुसते चले जा रहे थे।
आंखें भर आयी थी, गला कंठ को छू रहा था, भावशून्य निस्तेज त्वचा, रिया बुदबुदाई- "हां जीवन तुम मेरे लिए एक सपना पूरा करने की एक सीड़ी ही थे।"

पिछले दो सालों में जीवन नहीं रिया को जितना जाना था उतना शायद ही किसी ने जाना हो।
उसे पता था कहीं तो कुछ गलत हो रहा है वो अपना सारा गुस्सा एक ही मिनट में भूल गया।
"आई एम सॉरी रिया, देखो मैं ऐसा कुछ नहीं कहना चाहता था, तुम तो जानती हो ना, मैं गुस्सा हो जाता हूं तो..."
"तुम पहले ही सब कुछ बोल चुके हो जीवन यह रिश्ता मेरे लिए एक बोझ के अलावा और कुछ नहीं है।"
जीवन को समझ नहीं आ रहा था क्यों कैसे बात को ठीक करें वह बड़े ही सलीके से रिया को बोला-
"रिया मैं तुमसे कह रहा हूं यह ट्रांसफर रुकवा दो, मेरी ऑलरेडी नौकरी है तुम यहां एंप्लॉय बन कर अच्छा कमा लेती हो।"
(मुझे यह रिश्ता यहीं खत्म करना होगा यही मेरे लिए पूछा है। रिया के मन के विचार)
"देखो जीवन यह मेरे लिए बहुत बड़ी अपॉर्चुनिटी है कंपनी ने मुझे एस अ ब्रांच मैनेजर चुना है।"
"तो क्या हुआ?" जीवन भड़क उठा।
"तो क्या हुआ? मेरे पास साल की मेहनत दांव पर लगी है। हमारे दो पल के रिश्ते के लिए मैं अपनी पाच साल की मेहनत दांव पर नहीं लगा सकती।"
"दो पल का रिश्ता!?"जीवन को यह सुनकर झटका लगा।
जीवन की हालत रिया से देखी नहीं जा रही थी उसे लग रहा था, उसे बता दे की माँ की हालत अच्छी नहीं है शिवम की एम.बी.ए के एडमिशन रुकी हुई है।
पर वह पहले ही लोगों के एहसान लेकर उसके नीचे दब चुकी थी अब वह अपने परिवार के लिए खुद कुछ करना चाहती थी।
"तुम कुछ बोल क्यो नही रही हो आगे क्या हुआ?" मिसेस जोशी ने रिया को यादो के घेरे से बाहर निकाला।
जीवन के माता पिता चाहते थे कि शादी करने के बाद बहु काम नही करेगी। इसलिए मैंने जीवन से सारे रिश्ते तोड़ दिए।
और जोत्सना के मदत से बिना प्रीतम को इन्वॉल्व किये हैदराबाद भागके आयी।
जिंदगी भर भागती ही आयी हु। पहले खुदके घर से फिर मुंबई से। किस के लिए सिर्फ एक सपने के लिए आज जब सपना पूरा हो गया तो उसे भी संभाल कर रख पायी।
I am just looser... मैं किसी के प्यार के लायक नही हु।
"नही रिया तुम बहुत स्ट्रांग लड़की हो।तुमने अपने परिवार के लिए जो कुछ भी किया है वो एक साधारण लड़की कभी नही कर पाती। गलती इंसान से ही होती है।"
रिया मिसेस जोशी की छाती से लिपट गयी। अब तक का सारा गुब्बार मन से निकल जाने के बाद उसका मन पूरी तरह खाली था।
मिसेस जोशी पीठ थपथपाते हुए बोली-
"तुम्हे जीवन को अब सबकुछ बता देना चाहिए।"