जीवन की आपाधापी में वो कहां गया, वो किधर गया ।
वो सखा बचपन का था वो कहां गया,वो किधर गया ।।
वो साथ ही मेरे हंसता था ।
वो चेहरा था अनमोल न जाने कहां गया,
वो साथ ही लड़ता रहता था ।
वो छीन के मुझसे खाता था ।
वो पेट की आग बुझाने को न जाने कहां गया,
वो चोर तो मैं सिपाही बन जाता ।
वो राजा तो मैं मंत्री कहलाता ।
वो मेरे कंचें तोड़ा करता था ।
वो मेरे भौरे फोड़ा करता था ।
वो खेलों की मस्त ड़गर छोड़ न जाने कहां गया,
वो किधर गया ।।
वो बेरियों में कांटों सा ।
वो कटहल की भीनी खुशबू सा ।
वो चार की दोहरी परतों सा ।
वो हम चोरों के इस उपवन को छोड़ न जाने कहां गया, वो किधर गया ।।
वो मिला अचानक चौराहे पर ।
वो खुशबू खुली छोड़ गया था ।
वो यादें ताजा कर गया था ।
वो यादों के समंदर में छोड़ न जाने कहां गया,
जीवन की आपाधापी में वो कहां गया,
वो किधर गया ।
वो सखा बचपन का था वो कहां गया,
. वो किधर गया ।।
आलोक मिश्रा
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...
तेरे रक्त ने मुझको सींचा है ।
तेरी कोख ने मुझको भींचा है ।
तेरे प्रेम की छाया मुझे भी है प्यारी ।
पर तेरी है ये कैसी लाचारी ।
जो मुझे अजन्मे का क्यों दण्ड दिया है ?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?
तू मेरी प्यारी - प्यारी महतारी है ।
ये तेरी शापित अजन्मी बिटिया प्यारी है ।
मैं तेरे मन उपवन को महकाउँगी ।
खुशबू बन सब पर छा जाउँगी ।
पर तूने मुझे क्यों त्याग दिया है ?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?
तू मेरी मुझ में तेरा ही अंश है ।
बापू से कहना ये भी तेरा वंश है ।
बचा ले मुझको मैं तेरी हो जाउँगी ।
बैठ तेरे संग बन्ना मैं गाउँगी ।
फिर तूने क्यों लाचारी का पैगाम दिया है?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?
तेरा वजूद तेरी माँ का है ।
तुझ पर एहसान नानी माँ का है ।
तू एहसान उतारेगी मैं मुस्काउँगी ।
तेरी गोद में किलकारी भर पाउँगी ।
पर तूने क्यों नानीमाँ को भुला दिया ?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?
आलोक मिश्रा
mishraalokok@gmail.com
यादों की रौनक अभी बाकी है ..
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
वो तेरी महक , चूड़ीयों की खनक बाकी है ।
वो तेरे चेहरे की रंगत ,फुसफुसाती चहक बाकी है।
कई साल हुए , गुज़रे चुके है यादों के जलसे ।
वक्त, के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
वो दीवर की ओट से झांकता चेहरा ।
वो शर्म ओ हया से लाल सा चेहरा ।
आईने पे तेरे लबों की लाली अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
वो दीदार के इंतजार को तरसती आंखे ।
मिलने पर शर्म से झुकी और मुंदी आंखे
मेरे कुर्ते पर तेरे सूरमे के निशां अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
कमबक्खत वक्त ने दूर किया था जब हमें ।
फिर मिला देने का झांसा दिया था जब हमें ।
उस बुरे वक्ता की पीर अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
ये तस्सेबुर कि मिले थे हम कभी ।
महका जाता है मेरी शामों को आज भी ।
तू नही , तेरी यादों के सहारे अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्तु के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
वो वादे इरादे , वो आंसूओं की झड़ी ।
टूट के बिखरती हुई वो बेनी की लड़ी ।
किताबों के सूखे फूलों में महक अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्तु के पैरों के निशां अभी बाकी है ।