इंसानियत - एक धर्म - 19 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इंसानियत - एक धर्म - 19

वकिल राजन पंडित अपने दफ्तर में पहुंच चुके थे । उनकी सहायक रश्मि उन्हें आज के दूसरे मुकदमों की जानकारी दे रही थी जिसके लिए उन्हें बहस करनी थी । अपनी कुर्सी पर बैठे वकिल पंडित जी संबंधित मुकदमे का अध्ययन कर रहे थे लेकिन उनके दिमाग में अभी भी असलम का ही चेहरा घूम रहा था । न जाने क्यों उन्हें लग रहा था कि इतनी भोली सी सूरत वाला सीधा सादा सा दिखने वाला यह इंसान इतना क्रूर कैसे हो सकता है कि किसी इंसान को ही पिट पिट कर मार डाले । यह तो किसी वहशी दरिंदे का कृत्य हो सकता है जिसे कृत्य न कहकर कुकृत्य ही कहना बेहतर है । माना कि दरोगा अब्बास अपनी मनमानी पर उतर आया था लेकिन उसका मातहत होकर भी असलम ने जो किया क्या वह उचित था ?
अपने दिमाग को झटक कर पंडित जी फाइलों में खो गए ।
इधर पंडितजी के अदालत कक्ष से बाहर निकलते ही राखी बड़ी तेजी से रजिया की तरफ बढ़ी । रजिया के चेहरे पर अभी भी उदासी की परत फैली हुई थी । राखी के आश्वासन के बावजूद अभी भी वह आश्वस्त नहीं हुई थी । राखी के चेहरे पर भी कुछ दुविधा की स्थिति अब साफ नजर आ रही थी । उसके सामने सबसे बड़ी तात्कालिक समस्या आर्थिक थी । जज साहब के आदेश के अनुसार उसे तत्काल असलम की जमानत के लिए पच्चीस हजार रुपये नगद अदालत में ही जमा कराने थे । पैसे जमा कराने की रसीद दिखाकर ही असलम को थाने से छुड़वाया जा सकता था । फिलहाल पैसे उसके खुद के पास भी नहीं थे । जो भी नगदी रमेश ने निकाली थी वह खरीददारी के लिए ही पर्याप्त थी जो अब खर्च हो चुके थे । अब वह क्या करे ? क्या अपने सास ससुर को फोन करे ? लेकिन तभी उसे उनकी नाराजगी का ख्याल आया गया । उसकी सास अपने पति की मर्जी के खिलाफ उसकी मदद करने से रही । अपने पापा को कहती तो वह तुरंत ही उसे मुंहमांगी रकम दे देते । एक क्षण का भी विलंब नहीं करते लेकिन उसका दुर्भाग्य ही था उसका मायका यहां से लगभग सौ किलोमीटर दूर था । लाख प्रयत्न करके भी उसके पापा अदालत का समय समाप्त होने से पहले अदालत नहीं पहुंच पाते । अचानक उसके मस्तिष्क में एक बिजली सी कौंधी । रमेश का ख्याल उसे हर्षित कर गया । माना कि उसके पास नगदी सारे खर्च हो चुके होंगे लेकिन उसके खाते में तो अवश्य रकम होगी जिसे ए टी एम से निकलवाया जा सकता है । यह विचार मन में आते ही राखी के चेहरे और दिमाग से दुविधा की स्थिति एकदम गधे के सिर से सिंग की तरह गायब हो गयी थी लेकिन इधर अपनी तरफ आती राखी के चेहरे पर परेशानी के बादल देखकर शायद रजिया उसकी परेशानी भांप गयी थी । अपने पर्स में से पांच सौ के नोटों की शक्ल में उसने कुछ पैसे निकाले और तब तक उसके पास पहुंच चुकी राखी के हाथों में वह पैसे थमा दिए । पैसे देखकर राखी के चेहरे की चमक असाधारण रूप से बढ़ गयी थी । रजिया ने पैसे देते हुए कहा था ” बहना ! तुम अकेले क्यों परेशान हो रही हो ? मेरे पास जो कुछ भी है सब उन्हीं का तो है । उनके बिना यह रकम किस काम की ? अभी दो दिन पहले ही तो उन्होंने मुझे अपना वेतन बैंक से निकालकर दिया था । देखो ! कितनी है ? अगर कम हो तो शायद इससे पूरा हो जाये । ” कहते हुए उसने अपनी उंगली से अंगूठी निकालकर राखी के हाथ पर धर दिया । उसी तेजी से राखी ने अंगूठी पुनः उसकी उंगलि में पहनाते हुए चेहरे पर नागवारी के भाव लाते हुए बोली ” ये क्या भाभी ? जुबान से तो अपनी बहना कह रही हो लेकिन हमसे व्यवहार बेगानों जैसा कर रही हो । अभी तो शायद मैं तुमसे यह रकम ले भी लूं क्योंकि मैं भी घर से दूर हूँ लेकिन इतनी भी मजबूरी नहीं कि तुमसे अंगूठी ले लूं । मैं अभी इतनी रकम का प्रबंध कर सकती हूँ । “

उसकी बात सुनकर रजिया के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी । बोली ” मेरी प्यारी बहना ! नाराज न हो ! मैं क्या नहीं जानती कि तुम सब कुछ कर सकती हो और ये जो तुम कर रही हो वह क्या कम है ? मैं शर्त लगाकर कह सकती हूं कि जो तुम कर रही हो वह किसी सामान्य लड़की के बस की बात बिल्कुल भी नहीं है । दुख की इस घड़ी में किसी की परवाह किये बिना तुम हर तरह से मेरे साथ खड़ी हो क्या मेरे लिए यह कम है ? तुम्हारे इस त्याग और इंसानियत के जज्बे के सामने मेरे दिए हुए इस छोटी सी रकम का क्या मोल है ? मेरी प्यारी बहना ! जहां तक मैं समझ रही हूँ हमारे पास वक्त बहुत कम है । आपस में एक दूसरे को समझाने के बजाय हमें फटाफट अपने काम में लग जाना चाहिए । बहना ! अब देर करना मुनासिब नहीं फटाफट पैसे गिन लो । देखो कितने कम हैं ? “

किंकर्तव्यविमूढ़ सी अवस्था में आ चुकी राखी निशब्द सी उसकी तरफ देखते हुए मौके की नजाकत को देखते हुए हाथ में थामा हुआ नोट गिनने लगी ।
वह पूरे तेइस हजार की रकम थी । असलम की जमानत के लिए अभी भी दो हजार रुपये कम थे ।
राखी ने अपना पर्स खंगाल डाला और खुशकिस्मती से एक दो हजार का नोट पाकर उसका मन मयूर नाच उठा । यह नोट पर्स की भीतरी तह में रखा हुआ था जिसे शायद राखी ही छिपाकर भूल गयी थी । बहरहाल वह नोट आज उसके लिए बड़ा कीमती साबित होने जा रहा था ।

पैसे लेकर वह अदालत में पैसे जमा कराने जाने ही वाली थी कि अचानक उसे याद आया कि वकिल साहब ने उसे जज के आदेश की प्रति तो दिया नहीं फिर वह पैसा कैसे जमा करा पाएगी ?
रजिया को वहीं रुकने का इशारा करके राखी तेज कदमों से वकिल साहब के दफ्तर की तरफ बढ़ गयी ।
दफ्तर में प्रवेश करते ही उसकी आहट पाकर पंडित जी ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया ” आओ बेटा ! बैठो ! ”
उनके सामने की कुर्सी पर बैठते हुए राखी ने हाथ में पकड़ी हुई रकम वकील साहब की ओर बढ़ा दिया ।
उसके हाथ में पकड़े हुए नोटों पर सरसरी नजर डालते हुए वकिल साहब मंद मंद मुस्काते हुए बोले ” बेटा ! मैं सिर्फ यह देखना चाहता था कि रजिया अपने पति को बचाने के लिए क्या कर सकती है ? किस हद तक जा सकती है ? और मुझे खुशी है कि वह हमारी उम्मीद पर खरी उतरी है । मुझे पता है ये पैसे तुम्हारे नहीं हैं और उस बदनशिब से पैसे लेने का मेरा दिल इजाजत नहीं दे रहा । ये पैसे रख लो और रजिया को वापस लौटा दो ….”
उनकी बात पुरी होने से पहले ही राखी ने अपना सवाल दाग दिया था ” लेकिन अंकल ! हमें असलम के जमानत की रकम अदालत में जमा भी करानी है । वह कैसे होगा ? “