इंसानियत - एक धर्म - 17 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इंसानियत - एक धर्म - 17

वकिल राजन पंडित की दलीलें सुनकर दर्शकों में से कुछ हैरान तो कुछ उत्साहित हो रहे थे । लोगों में कानाफूसी शुरू हो चुकी थी । सुगबुगाहट की आवाज पर गौर करते हुए माननीय जज साहब एक बार फिर अपना लकड़ी का हथौड़ा घनघना बैठे ” आर्डर आर्डर ! ” और फिर पंडित जी से मुखातिब हुए ” now you may proceed advocate pandit please . ” वकिल राजन पंडित ने शालीनता से thank you my lord . कहते हुए आगे कहना जारी रखा ” योर ओनर ! जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं पुलिस के पास अब इस केस में सिवाय चार्ज शीट बनाने के और कोई काम नहीं बचा है क्योंकि विवेचनाधिकारी के मुताबिक यह केस शीशे की तरह साफ है । मेरा मुवक्किल मुल्जिम है मुजरिम नहीं । और जब तक वह मुजरिम साबित नहीं हो जाता जमानत पाना उसका संवैधानिक अधिकार है । मैं यहां जमानत प्रार्थी मुलजिम की अब तक के शानदार जीवन सफर पर भी अदालत का ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा । मुलजिम अपने सेवाभावी स्वभाव के कारण अपने क्षेत्र में काफी मशहूर रहा है । इतना ही नहीं पुलिस विभाग की अपनी नौकरी के दरम्यान भी वह अपने अफसरों का विश्वासपात्र रहा है । मुलजिम इंसानियत से लबरेज एक अच्छे चरित्र का इंसान भी है जिसकी जमानत आज मैं खुद लेने की पेशकश करता हूँ । मैं अदालत से दरख्वास्त करूँगा कि उपरोक्त सभी बातों का सहानुभूति पूर्वक विचार कर मेरे मुवक्किल की जमानत अर्जी मंजूर की जाए । मैं उसकी पुरी जिम्मेदारी लेते हुए अदालत को आश्वस्त करता हूँ कि मुलजिम इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान हमेशा मौजूद रहेगा और अदालत को पूर्ण व सकारात्मक सहयोग करेगा । that,s all my lord . Thank you . ,”
जज साहब अब सरकारी वकील महाजन से मुखातिब हुए ” एडवोकेट महाजन ! क्या आप कुछ कहना चाहेंगे ? “
” यस माय लॉर्ड ! ” महाजन ने कहना शुरू किया ” मैं यह मानता हूं कि पुलिस की कार्यवाही इस केस में लगभग समाप्त हो चुकी है लेकिन मुलजिम के अपराध की गंभीरता को देखते हुए अदालत से दरख्वास्त करूँगा की मुल्जिम की जमानत अर्जी को नामंजूर करते हुए मुलजिम को पुलिस के हवाले किया जाए या फिर उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया जाए और पुलिस को उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए चार्ज शीट तैयार करने के आदेश दिए जाएं । धन्यवाद श्रीमान ! “
वकिल महाजन के खामोश होते ही जज साहब एक कागज पर कुछ लिखने लगे । अब पत्रकारों के सक्रिय होने की बारी थी । अदालत के कक्ष से बाहर निकल कर पत्रकारों ने अपने अपने चैनलों को रिपोर्ट भेजी और कुछ ही देर बाद इस सबके फलस्वरूप स्थानीय समाचार चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाई जा रही थी ‘ आलम हत्याकांड में गिरफ्तार सिपाही असलम की जमानत के लिए अदालत में सरकारी वकील और बचाव पक्ष के वकील के बीच गर्मागर्म बहस जारी है । सूत्रों के हवाले से यह खबर आ रही है कि उस सिपाही की तरफ से मशहूर वकिल राजन पंडित दलीलें पेश कर रहे हैं । हम आपको बता दें कि यह वही मशहूर वकिल राजन पंडित हैं जिन्होंने आज तक एक भी मुकदमा नहीं हारा है । लेकिन लगभग हारा हुआ यह मुकदमा क्या वह जीत पाएंगे ? आज क्या वह मुलजिम की जमानत करा पाएंगे ? इन सवालों के जवाब के लिए देखते रहिए समाचार ……..”
दर्शकों के बीच बैठी राखी और उसके साथ ही बैठी रजिया ने महाजन को हथियार डालनेवाले अंदाज में बोलते हुए देखकर चैन की सांस ली । उनकी निगाहें बड़ी हसरत से जज साहब को निहार रही थीं और कान उनकी आवाज सुनने के लिए सतर्क हो गयी थीं । और थोड़ी देर की खामोशी के बाद ही अदालत कक्ष के सन्नाटे को भेदती जज रमाकांत दुबे की धीर गंभीर आवाज वातावरण में गूंजने लगी ” तमाम दलीलों पर गौर करने और साथ ही तथ्यों को जांचने व परखने के बाद यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मुलजिम असलम के इकबालिया बयान और मुकदमे से संबंधित सभी साक्ष्यों व तकनीकी जरूरतों के पूरी हो जाने के पीछे रामपुर पुलिस की तत्परता और सूझ बूझ का बड़ा हाथ है । यह अदालत रामपुर पुलिस की तत्परता ,सूझबूझ और कर्तव्यपरायणता की भूरी भूरी प्रशंसा करती है । वारदात के चंद घंटों के अंदर ही अपराधी को गिरफ्तार कर लेना तथा उसे अदालत के समक्ष खड़ा करने से जनता में कानून के प्रति एक सम्मान का संदेश जाएगा और कानून की विश्वसनीयता बढ़ेगी ।
लेकिन रामपुर पुलिस की इसी तत्परता और सूझबूझ की वजह से मुझे ऐसा लग रहा है कि इस मुकदमे से संबंधित चार्ज शीट बनाने में रामपुर का पुलिस प्रशासन सक्षम है जिसमें मुलजिम से किसी किस्म की जानकारी अपेक्षित नहीं है । अतः मुलजिम का रिमांड पुलिस को देने की अर्जी खारिज की जाती है और उसे ताकीद की जाती है कि जल्द से जल्द इस मुकदमे की चार्ज शीट तैयार करे और मुकदमा अदालत में पेश करे ।
जैसा कि वरिष्ठ वकिल श्री राजन पंडित ने अपनी दलील में भारतीय कानून का घोषवाक्य बताया हम सभी कानून के नुमाइंदे हमेशा उस वाक्य के अनुरूप ही आचरण करने का प्रयास करते हैं क्योंकि हम मानते हैं कि लोगों को इस बात का अहसास हो और लोग समझें कि लोग कानून के लिए नहीं बल्कि कानून लोगों के लिए बना है । कानून हर सदाचारी ईमानदार और अच्छे नागरिक का मित्र बनता दिखे हमारी यही कोशिश है लेकिन साथ ही दुराचारियों अपराधियों व बेईमानों में कानून का खौफ कायम हो यह भी आवश्यक है और यह संभव है सिर्फ और सिर्फ कानून और जनता की ताकत के गठजोड़ से । यदि लोग बेखौफ होकर कानून की मदद करना शुरू कर दें आप लोग देखिएगा वह दिन दूर नहीं होगा जब अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा , बेईमान बेईमानी करने से पहले सौ बार सोचेगा । और इसी सोच को आगे रखते हुए हमारा कानून यह कोशिश करता है कि किसी भी बेगुनाह को कोई तकलीफ न हो पाए । मुलजिम के बेगुनाह या गुनाहगार होने का फैसला तो मुकदमे की सुनवाई पूरी होने के बाद होगा लेकिन सिर्फ इसीलिए कि कोई मुलजिम भविष्य में मुजरिम भी साबित हो सकता है उसकी जमानत अर्जी को नकार कर उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता ।
जैसा कि सरकारी वकिल महाजन जी ने अब तक कि परंपराओं का हवाला देते हुए बताया कि ‘ भारतीय अदालतों के इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब हत्या के अभियुक्त को अपनी पहली ही पेशी में जमानत मिल जाये ‘उनकी बात सत्य हो सकती है लेकिन क्या हमें सिर्फ इस लिए मुलजिम की जमानत अर्जी खारिज कर देनी चाहिए क्योंकि ऐसी परंपरा नहीं रही है तो मैं उनको बताना चाहूंगा कि अदालतें अपना फैसला पिछली परंपराओं को याद करते हुए नहीं करतीं बल्कि तात्कालिक परस्थितियों ,गवाहों व हालातों का विश्लेषण करते हुए तर्कपूर्ण फैसला करती हैं ।
मुलजिम के पिछले बेदाग जीवन , लोगों में उसकी विश्वसनीयता के दावे पर विचार करते हुए प्रतिष्ठित वकिल का स्वयं मुलजिम के जमानत की पेशकश को देखते हुए यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मुलजिम को सशर्त जमानत दिए जाने में कोई हर्ज नहीं है ।
जमानत की शर्त के मुताबिक मुलजिम को प्रतिदिन सुबह ग्यारह बजे तक या उससे पहले अपने घर से निकटतम पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी और मुकदमे की सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहना होगा । मुकदमे से संबंधित किसी भी व्यक्ति या साक्ष्य को प्रभावित करने की कोशिश जमानत की शर्तों का उल्लंघन माना जायेगा और तत्काल प्रभाव से जमानत निरस्त कर दिया जाएगा । ” फैसला सुनाने के बाद जज साहब उठ खड़े हुए और बोले ” अगले मुकदमे की सुनवाई से पहले अदालत एक घंटे के लिए मुल्तवी की जाती है । ” और फिर मुडकर पीछे अपने चैम्बर में चले गए ।
यह अदालत मुलजिम असलम शेख पुत्र बुरहान शेख को पच्चीस हजार रुपये के निजी मुचलके पर सशर्त जमानत देने का आदेश सुनाती है ।