भद्र-लोक Deepak sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भद्र-लोक

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सुजाता मुखर्जी हमेशा की तरह कॉलेज से पैदल अपने घर की ओर बढ़ रही थी कि एक गाड़ी उसके पास आकर रुकी|

“मिसिज मुखर्जी, आइए मैं आपको ले चलती हूँ,” मिसिज भसीन ने कार की अगली सीट का बाँया दरवाज़ा खोलते हुए कहा|

मिसिज भसीन सुजाता मुखर्जी के कॉलेज में पिछले दस सालों से समाजशास्त्र पढ़ा रही थीं| उन्हें उसी दिन पता चला था कि पिछले साल आई सुजाता मुखर्जी के पति मिसिज भसीन के बेटों के स्कूल में गणित पढ़ाते थे, और उनका बड़ा बेटा, विनोद, बहुत दिनों से गणित में सहायता चाह रहा था| पर अपने बेटे के लिए नये सिरे से गणित सीखने के लिए मिसिज भसीन के पास समय बिल्कुल नहीं रहता था| इसीलिए उस दिन मिसिज भसीन ने सोचा कि वे सुजाता मुखर्जी को उसके घर तक छोड़ आने के बहाने उसका घर देख आएँगी और फिर दो-तीन दिनों के बाद अपने बेटे को उसके घर ले जाएँगी और उसे सुजाता मुखर्जी के पति के हवाले करती आएँगी|

“आपकी बड़ी कृपा है,” सुजाता मुखर्जी गद्गद हो उठीं और मिसिज भसीन की बगल में जा बैठीं|

“आप कहाँ रहती हैं?” मिसिज भसीन ने कार चलाते हुए कहा|

“आपके घर के पीछे जो मुहल्ला पड़ता है, उसी के छठे मकान में,” सुजाता मुखर्जी अव्यवस्थित-सी हो उठीं|

“अरे, आपको कैसे मालूम है कि मैं कहाँ रहती हूँ?” मिसिज भसीन ने हैरान दिखाई देने की भरसक चेष्टा करते हुए कहा|

“क्यों, डॉक्टर भसीन को तो हम क्या, सारा शहर जानता है| मेरे पति तो अक्सर बताते रहते हैं कि वे उन गिने-चुने ‘ऑर्थोपैडिस्ट्स’ में से एक हैं, जिनका नाम भारत-भर में प्रसिद्ध है|”

“आपके पति क्या करते हैं?” मिसिज भसीन जान-बूझकर अनजान बन गईं|

“वे एक स्कूल में पढ़ाते हैं|”

“कौन-से स्कूल में?” मिसिज भसीन ने पूछा|

“जिस स्कूल में आपके दोनों बेटे पढ़ते हैं,” सुजाता मुखर्जी हँसीं तो मिसिज भसीन की भी हँसी छूट गई|

“आपके बच्चे भी उसी स्कूल में पढ़ते होंगे,” मिसिज भसीन ने कहा|

“बेटा तो उसी में पढ़ता है पर दोनों बेटियाँ घर के सामने वाली पाठशाला में जाती हैं|”

“अरे, वह पाठशाला तो बड़ी मामूली है| आपने उन्हें किसी बढ़िया स्कूल में दाखिल क्यों नहीं करवाया?”

“बेटे की फीस तो उसके पापा के उसी स्कूल में अध्यापक होने के कारण मुआफ रहती है, पर बेटियों को किसी महँगे स्कूल में हम लोग कैसे डाल सकते थे? मुझे तो कुल चार हज़ार रूपया मिलता है, और कोई भी बस मेरे कॉलेज जाने के समय से मेल नहीं खाती है..... और इसीलिए रिक्शा में ही काफी पैसा निकल जाता है|”

मिसिज भसीन जानती थीं कि सुजाता मुखर्जी ने रिक्शेवाली बात झूठ कही थी| वह बहुत बार उसे पैदल जाते–आते देख चुकी थीं और कई बार हैरान होने के साथ-साथ दया से भी भर आती रही थीं, कि कैसे यह महिला एक दिन में छः मील का रास्ता पैदल तय किया करती है|

“कॉलेज को आपकी तनख्वाह बढ़ानी चाहिए| चार हज़ार रुपये में तो आजकल घर के लिए नौकर तक नहीं मिलता,” मिसिज भसीन ने अपने स्वर में ढेर-सी सहानुभूति उमड़ आने दी, “और फिर आप तो अपने विषय में एम.ए. भी होंगी|”

“बिल्कुल, बंगला-साहित्य में एम.ए. किए मुझे दस साल हो चले हैं, पर चूँकि यह विषय इस प्रदेश में कहीं-कहीं ही पढ़ाया जाता है, इसीलिए इतने साल घर बैठे बिता दिए| पिछले साल जब हिन्दी में एम.ए. करने की सोची, तो किसी ने बताया कि इस कॉलेज में बँगला के लिए पार्टटाइम टीचर की आवश्यकता है, तो यह सोचकर यहीं नौकरी कर ली कि कम-से-कम मेरी फीस और पुस्तकों का खर्चा ही निकल आएगा पर वह भी रिक्शा.....” सुजाता मुखर्जी अपनी परिश्रम करने की योग्यता पर गर्व करने की अपेक्षा लज्जा महसूस करने लगीं|

“अरे, आप रिक्शा-विक्शा का चक्कर छोड़िए| आप मेरे घर के पास ही तो रहती हैं न! बस, मेरे साथ ही कॉलेज चली आया करिए|” और मिसिज भसीन ने सुजाता मुखर्जी का दायाँ हाथ हल्के से थपथपा दिया|

“काश, मैं ऐसा कर सकती,” सुजाता मुखर्जी कृतज्ञ भाव से डोलने लगी, “पर आपकी क्लास साढ़े आठ बजे ही शुरू हो जाती है और मुझे कॉलेज दस बजे तक पहुँचना होता है|”

“ओफ्फो कैसी बेहूदगी है,” मिसिज भसीन कहने लगीं, “हमारे पीरियड्स एक साथ लगे होते, तो कितना अच्छा रहता| आपका साथ मेरे लिए कितना सुखद अनुभव है, यह मैं आपको समझा नहीं सकती|”

“आप कितनी अच्छी हैं! आप मेरी सहायता करना चाहती हैं| आजकल तो आप जैसे लोग विरले ही होते हैं| नहीं तो साधारणतया, सभी लोग इतने व्यस्त और स्वार्थी हैं कि उनके मन में किसी के लिए भी कोई संवेदना नहीं बची है| मिस मेहता को ही देखिए| हजार बार मेरे पास से रिक्शा पर गुजर जाती है, पर कभी भी रूककर अपने पास बैठने के लिए नहीं कहतीं,” तभी सुजाता मुखर्जी नापनी जुबान मुँह में खींच ली| अपने पैदल जाने-आने की बात को तो वह गुप्त रखना चाहती थी न!

“मिस मेहता की बात आप जाने दीजिए| उनके बारे में फिर कभी आपको विस्तार से बताऊँगी, बेचारी कैसे परेशान रहती हैं..... शादी की उम्र बीत चली है, पर शादी कर नहीं सकतीं..... अपने तीनों बहन-भाइयों की पढ़ाई का बोझ उन्हीं के कंधों पर है| अपनी माँ के इलाज का जिम्मा भी उन्हीं का है, क्योंकि उनके पिता पिछले साल से रिटायर हो गए हैं और आजकल काम की तलाश में मारे-मारे फिरते हैं.....”

“मिस मेहता को आप क्या काफी पहले से जानती हैं?”

“हाँ, जब से इस कॉलेज में मैंने पढ़ाना शुरू किया है, मिस मेहता भी मेरे विभाग में जमी हुई हैं| पिछले दो साल तो मेरे घर भी खूब आती-जाती रहीं| मेरे विभाग की अध्यक्ष हैं तो मैंने भी इन्हें अपने पति तथा बच्चों से घुलने-मिलने दिया| पर जब ये जान गईं कि वे मेरी जड़ें घर तो क्या, कॉलेज से भी नहीं उखाड़ पाएँगी, तो एकाएक आना बन्द कर दिया.....|”

“आपको देखकर जरूर जलती होंगी,” सुजाता मुखर्जी जान गई लगती थीं कि मिस मेहता ने मिसिज भसीन को कोई गहरी चोट पहुँचाई थी, “आप सरीखी, सुन्दर, संभ्रान्त, विनयशील, सुसंस्कृत, सुरुचिपूर्ण तथा दूसरों की सहायता को तत्पर.....|”

“अजी, टाल जाइए,” मिसिज भसीन अपनी प्रशंसा पसंद जरूर करती थीं, पर प्रशंसा करने वाले के प्रति अधिक सतर्क भी अवश्य हो जाया करती थीं, “आप बताइए आपका घर किस ओर पड़ेगा?”

“आप मुझे यहीं चौराहे पर छोड़ दीजिए| मैं अपने घर तक अब आसानी से पहुँच जाऊँगी,” सुजाता मुखर्जी मिसिज भसीन को अपने मामूली घर पर नहीं ले जाना चाहती थीं|

“और यदि मैं कहूँ कि मैं आपके घर जाना चाहती हूँ,” मिसिज भसीन ने जानबूझ कर सुजाता मुखर्जी को छेड़ना चाहा|

“तो आइए, मेरा सौभाग्य होगा,” सुजाता मुखर्जी थूक निगलने लगीं|

“अगली बार आऊँगी|” मिसिज भसीन ने गाड़ी रोकी और सुजाता मुखर्जी को वहीं उतार दिया, “आपके पति को मेरे बेटे अक्सर याद करते रहते हैं|”

“तो हमीं लोग आज शाम को आपके घर आ जायेंगे,” सुजाता मुखर्जी ने कहा|

“आज तो मत आइएगा| आज मेरे घर में बहुत भीड़ होने वाली है| मेरी सास ने कुछ लोगों को चाय पर बुला रखा है| कल-परसों तक मैं स्वयं ही आप लोगों को बुलवा भेजूँगी,” मिसिज भसीन अपनी विजय पर मुस्कुराईं और कार अपने घर की ओर बढ़ा ले गयीं|

अगले तीन महीने मिसिज भसीन तथा सुजाता मुखर्जी को एक-दूसरे के और निकट ले आए| सुजाता मुखर्जी के पति मिसिज भसीन के बेटों को सप्ताह में तीन दिन नियमित रूप से पढ़ाने लगे| मिसिज भसीन के अस्थि-विशेषज्ञ पति सुजाता मुखर्जी को देखते ही विनम्र भाव से भरने लगे| और जब सुजाता मुखर्जी ने अपने हाथों से मछली बनाकर भसीन परिवार के घर पाँच बार भेजीं, तो मिसिज भसीन ने भी अपनी रसोई के सारे पुराने अचार फेंक दी जाने वाली बोतलों को साफ करवा कर मुखर्जी परिवार के घर पर गाड़ी के ड्राइवर के हाथ भिजवा दिए|

जब कभी मिसिज भसीन के घर पर कोई भारी दावत रहती, तो मिसिज भसीन सुजाता मुखर्जी से बँगला ढंग की मछली और आलू की तरकारी बनवाना न भूलतीं| बदले में दावत के बचे हुए खाने में से एक छोटा टिफिन मुखर्जी परिवार के लिए अवश्य भर छोड़तीं| सुजाता मुखर्जी भी जब-तब मिसिज भसीन के फ्रिज की बर्फ, मिसिज भसीन के रसोई-उद्यान के पक रहे करेले तथा गोभी के फूल और मटर-टमाटर अपने घर के प्रयोग के लिए ले जाने लगीं|

ऐसा शायद तब तक चलता रहता, जब तक मिसिज भसीन के दोनों बेटे सुजाता मुखर्जी के पति के स्कूल में पढ़ते रहते| पर एक सुबह अचानक सुजाता मुखर्जी के पति घर की सीढ़ियों से फिसल गए और उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह से चकनाचूर हो गई|

उन्हें बेहोश होते देखकर सुजाता मुखर्जी के हाथों के तोते जैसे ही उड़ने लगे, उसे मिसिज भसीन और उनके हड्डी-विशेषज्ञ पति का ध्यान हो आया| वह मिसिज भसीन के घर भाग लीं|

सौभाग्यवश मिसिज भसीन और उनके हड्डी-विशेषज्ञ पति ड्राइंग रूम में चाय पीते मिल गए|

“आइए, सुजाता जी, आइए,” मिसिज भसीन के हड्डी विशेषज्ञ पति स्वागत-मुद्रा में अपने सोफे पर से उठ खड़े हुए|

“चाय पियो,” मिसिज भसीन ने एक खाली प्याला मँगवाने के लिए रसोई की घंटी बजाई|

“नहीं, मैं चाय नहीं पी सकती| मेरे पति की पीठ में बहुत तगड़ी चोट आई है| वे घर पर बेहोश पड़े हैं| अगर आप उन्हें अपनी कार में यहाँ लिवा लाएँ और उनके एक्स-रे वगैरह जल्द से जल्द ले लें तो बड़ी मेहरबानी होगी,” सुजाता मुखर्जी एक ही साँस में सब कह गईं|

“ओह,” मिसिज भसीन के हड्डी-विशेषज्ञ पति के चेहरे की मुस्कान तथा विनयशीलता एकदम लुप्त होने लगी, “कैसी बुरी स्थिति है| कल ही मेरी एक्स-रे मशीन में खराबी आ गई, और मैंने उसे बन्द कर दिया| अब देहली से मैकेनिक बुलवाना पड़ेगा, तब कहीं जाकर वह फिर से ठीक रिपोर्ट दे पाएगी| और मुखर्जी साहब कीमती व्यक्ति हैं-उनके साथ मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता| इसीलिए मैं अपने विभाग के किशोर के नाम एक पत्र लिख देता हूँ| वह सब सँभाल लेगा| अगर मुखर्जी साहब को अस्पताल में दाखिल भी करवाना पड़ा, तो किशोर एक बेड की व्यवस्था अवश्य करवा देगा| आप मुखर्जी साहब को किसी टाँगे या टैक्सी में लिटाकर अस्पताल ले जाइए, क्योंकि आज हमारी गाड़ी सर्विसिंग के लिए जा रही है.....”

“अगर आप किसी ‘एम्बुलेंस’ को ही बुलवा सकते.....” सुजाता मुखर्जी का दिल डूबने लगा|

“तुम सोच नहीं सकतीं, सुजाता, मुझे कितना बुरा लग रहा है,” मिसिज भसीन के चेहरे पर भी तनाव की कई रेखाएँ खिंच आईं, “मैं बहुत चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे साथ अस्पताल तक चल सकती और मुखर्जी साहब की देखभाल का पूरा जिम्मा अपने पर ले सकती, पर क्या बताऊँ, आज मेरी सास की साँस बहुत फूल रही है और वे मुझे एक पल के लिए भी छोड़ना नहीं चाहतीं| हो सकता है, आज मैं कॉलेज भी न जा पाऊँ.....”

चाय के लिए खाली प्याला तुरन्त लाओ,” अन्दर आ रहे नौकर से मिसिज भसीन ने कहा|

“नहीं, धन्यवाद,” सुजाता मुखर्जी ने बहुत धीरे से कहा हालाँकि वह चिल्लाना चाहती थीं| चाय का प्याला मिसिज भसीन के संयत चेहरे पर उलट देना चाहती थीं, पूरी की पूरी ट्रे को ठोकर मारकर ड्राइंगरूम की सुव्यवस्था को तितर-बितर कर चिल्लाना चाहती थीं, “आपकी शालीन मुस्कुराहटों से मुझे सख्त घृणा है| आपके मीठे बोल मेरे लिए विष के समान हैं.....” पर वह जानती थीं कि ऐसा करना असंभव था|

“मैं बहुत जल्दी में हूँ| मेरे लिए चाय मत बनाइए| हो सके, तो किसी एम्बुलेंस को बुलवा दीजिए,” सुजाता मुखर्जी ने दुहराया|

“आप तो जानती ही हैं कि वैन पहुँचने में बहुत देर लगा सकती है और आपके लिए हर पल कीमती है| आपको मैं पत्र लिखे दे रहा हूँ,” मिसिज भसीन के हड्डी-विशेषज्ञ पति ने पत्र लिखना शुरू कर दिया|

“मेरी प्यारी, बहादुर और मीठी सुजाता,” मिसिज भसीन ने सुजाता मुखर्जी का कंधा थपथपाया, “तुम नहीं जानती मुझे कितनी चिंता हो रही है, मेरा दिल कैसे जोर से धड़कने लगा है.....”

“मैं बहुत जल्दी में हूँ,” सुजाता मुखर्जी हकलाने लगीं, “मेरे पति बेहोश पड़े हैं..... मेरे बच्चे रो रहे हैं..... मैं घर पर नहीं हूँ|”

“अस्पताल में की मुश्किल आन पड़े तो मुझे तुरन्त खबर करिएगा| मैं फोन से बात कर लूँगा,” मिसिज भसीन के हड्डी-विशेषज्ञ पति ने कागज की एक पर्ची सुजाता मुखर्जी की ओर बढ़ाते हुए कहा|

“धन्यवाद,” सुजाता मुखर्जी ने तुरन्त अपने आपको सँभाला और अत्यन्त नम्र तथा दीन भाव से कागज की पर्ची ली, नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े और तेज कदमों से अपने घर की ओर लपक लीं|