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जुगाड़

दिन ढला। सूरज छिपा। रात का साया गहराने लगा। सोनू का बापू अभी तक खेत से नहीं लौटा। सोनू की मां रामदेई सोचने लगी - माना धान की रोपाई चल रही है, लेकिन इस वक्त तक सोनू के बापू का न आना.....? सोनू शाम को मां से कहकर गया था कि वह अपने दोस्त भोले के घर जा रहा है। दो दिन से रोपाई के कारण वह स्कूल नहीं जा सका था, इसलिये आज बापू से शाम होने से पहले ही आज्ञा लेकर भोले से दो दिन की पढ़ाई के बारे पूछने गया था। जैसे-जैसे घड़ी की सूइयां आगे बढ़ रही थीं, उसी अनुपात में रामदेई की चिंता भी बढ़ रही थी। चिंता इसलिये भी बढ़ रही थी कि उसकी दाहिनी आंख फड़क रही थी। किसी अशुभ की आशंका मन को व्यथित कर रही थी। मन की अवस्था ठीक न होने पर भी रामदेई ने यह सोचकर कि बापू-बेटा थके-मांदे आयेंगे, दाल-रोटी बनाकर काढ़नी में दही के लिये दूध हल्की आंच पर रख दिया था। मां-मां करते सोनू ने जैसे ही घर में पांव रखे और खाना मांगा तो रामदेई ने कहा - 'बेटे, तेरा बापू अभी तक खेत से नहीं आया। तू जाकर देख, क्या बात है?' 'मां, बहुत भूख लगी है। पहले रोटी दे, फिर बापू का पता कर आऊंगा।'

'मेरा प्यारा बेटा, एक बार खेत चला जा। इतनी देर तो तेरे बापू ने कभी नहीं की। मुझे बड़ी चिंता हो रही है।'

मांं की बेबसी भरी आवाज ने सोनू की भूख को एकबारगी पीछे धकेल दिया और उसने कदम ड्योढ़ी की तरफ बढ़ा दिये। उसे बाहर की ओर जाते देखकर रामदेई ने कहा - 'बेटा, अमावस की रात है, बैटरी लेता जा।'

आज्ञाकारी सोनू के कदम वहीं रुक गये। रामदेई ने बैटरी उसे पकड़ाने से पहले जलाकर देखी। एक दिन पूर्व हुई बरसात की वजह से फिरनी से आगे पगडंडी दलदल बनी हुई थी। सोनू सोचने लगा, मां कितनी अच्छी है! यदि मैं बिना बैटरी के आ जाता तो घुप्प अंधेरे में दलदल बना रास्ता नापने में कितनी कठिनाई होती!

खेत पर पहुंचते ही सोनू ने बैटरी की रोशनी चारों तरफ घुमायी और साथ ही जोर से पुकारा - 'बापू-बापू, कहां हो?'

लेकिन सन्नाटे में उसकी आवाज की प्रतिध्वनि तो गूंजी, किन्तु कोई उत्तर नहीं आया। जब दो-तीन बार पुकारने पर भी कोई उत्तर नहीं आया तो पानी से भरे खेत में से होते हुए बैटरी की रोशनी के सहारे सोनू खेत में बनी झोंपड़ी तक पहुंचा। चारपाई तिरछी खड़ी थी, किन्तु बापू कहीं नहीं। अब तो उसे घबराहट होने लगी। फिर भी उसने हिम्मत रखी और बाहर निकलकर मुंडेर के साथ लगे दरख्तों पर बैटरी का फोकस किया। दूर के एक दरख्त की टहनी से मटमैले कपड़े में कुछ लटकता-सा दिखायी दिया। सोनू उधर को ही लपका। नजदीक गया तो उसकी चीख निकल गयी।

सामनेे उसका बापू गले में फंदा लगाये लटक रहा था। बदहवासी में वह रोता-बिलखता घर की ओर भागा। अंधेरी रात होने की वजह से रास्ते में तो कोई नहीं मिला, किन्तु मां घर की दहलीज पर प्रतीक्षा में खड़ी थी। सोनू दौड़कर मां के गले से लिपट गया और रोते हुए बोला - 'मां, बापू....?'

सोनूू की दशा देखकर ही रामदेई आशंकित हो उठी थी, फिर भी उसने पूछा - 'क्या हुआ, तेरा बापू कहां है?'

सोनूू ने हिचकियां लेते हुए कहा - 'मां, बापू हमें छोड़ गया। ...... बापू ने फंदा लगा लिया।'               इतना सुनते ही रामदेई दहाड़ मारकर जमीन पर गिर पड़ी। उसकी चीख-चिल्लाहट सुनकर पड़ोसी गंगाराम बाहर निकला। उसके पीछे उसकी घरवाली सन्तो भी आ पहुंची। सन्तो रामदेई को सम्भालने लगी तो गंगाराम ने सोनू के कंधे को थपथपाते हुए पूछा - 'सोनू , क्या हुआ बेटे?'

सोनूू ने सारी घटना, दुर्घटना कहना अधिक उचित होगा, सुबकते-सुबकते कह सुनायी। गंगाराम ने सन्तो को सम्बोधित करते हुए कहा - 'भागवाने, तू बहू और सोनू को सम्भाल।' फिर रामदेई को कहा - 'बहू, जो होना था, उसको तो लौटाया नहीं जा सकता। हिम्मत जुटा।..... यह तो आत्महत्या का मामला है। लाश को सीधे घर लाना ठीक नहीं होगा। मैं सरपंच को जाकर बताता हूं। आगे जैसा सरपंच कहेगा, वैसा ही करना पड़ेगा।'

गंगाराम से सारी बात सुनकर सरपंच भी गमगीन हो गया। उसने कहा - 'अच्छा भला था तुलसी। छोरी के विवाह के बाद तो हमेशा खुश ही दिखायी देता था। पता नहीं, किस बात पर इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हुआ होगा? ..... मैं चौकी में फोन करता हूं।'

चौकी साथ के गांव में होने के कारण पन्द्रह-बीस मिनट में ही पुलिस की जीप आ गयी। हवलदार ने सरपंच और गंगाराम को बिठाया और जीप चल पड़ी। सरपंच के कहने पर रास्ते में से सोनू को भी साथ ले लिया। हवलदार ने लटकती लाश देखकर कहा - 'सरपंच साहब, लाश का पोस्टमार्टम जरूरी है। किसी गाड़ी का इंतजाम करो। लाश को सिविल अस्पताल ले जाना होगा।'

गंगारामम - 'जनाब, मेरे पास जीप है। मैं घर से ले आता हूं और सोनू की मां को भी बता देता हूं।'

'हांं, तुम जल्दी से जीप ले आओ। लाश को पोस्टमार्टम के लिये ले जाने से पहले पंचनामा भी तैयार करना होगा, क्योंकि ऐसे मामलों में सरकारी मदद भी तभी मिलती है जब कागजी कार्रवाई पूरी हो। मैं नहीं चाहता कि मरने वाले के परिवार को सरकारी मदद से वंचित होना पड़े।' सरपंच - 'जनाब हवलदार साहब, वह सब मेरे घर पर तैयार कर लेते हैं। कुछ चाय-वाय भी ले लेना। बेवक्त आपको आना पड़ा।'

'सरपंच साहब, यह तो हमारी ड्यूटी है। रात-बिरात कभी भी, कहीं भी जाना पड़ सकता है। ..... खैर, लिखा-पढ़ी आपके यहां कर लेंगे।'

........

तुलसी की लाश दूसरे दिन दोपहर बाद उसके परिवार वालों को मिली। इस बीच रामदेई के मायके वाले तथा अन्य सगे-सम्बन्धी भी पहुंच गये थे। रिश्तेदार तो अंतिम संस्कार करवाकर विदा हुए। गंगाराम ने सन्तो को कल की तरह रामदेई के घर ही रहने को कहा। अगले दिन सुबह जब सन्तो नहाने-धोने के लिये अपने घर गयी और रामदेई तथा सोनू अकेले रह गये तो सोनू ने पूछा - 'मां, बापू को क्या परेशानी थी जो उन्होंने अपनी जान दे दी?'

'बेटेे, तीन दिन पहले जब तू स्कूल गया हुआ था तो बैंक वाले आये थे। लाडो के ब्याह के बाद से तेरा बापू ट्रेक्टर की किश्तें जमा नहीं करवा सका था। बैंक वाले ट्रेक्टर लेने आये थे। लेकिन ट्रेक्टर होता तो ही वो ले जाते। उन्होंने पूछा, ट्रेक्टर कहां है तो तेरे बापू ने झट से कह दिया, साब जी, ट्रेक्टर तो मुझे लड़की के ब्याह में देना पड़ गया। इसपर उन्होंने खरी-खोटी सुनायी और कर्ज वसूली की चिट्ठी दे गये। तब से ही तेरा बापू परेशान था। उस रात उसने मेरे से कही - सोनू की मां, इस चिट्ठी के बारे जब गांव वालों को पता लगेगा तो हमारी तो नाक कट जायेगी, किस तरह गांव में रह पायेंगे? मैंने बथेरा समझाया कि जो हो गया, सो हो गया। मैं अपना एक-आध गहना दे दूंगी, उसे बेच के ट्रेक्टर की किश्तें भर देना तो कहने लगे, ना सोनू की मां ना, मैं ऐसा नहीं कर सकता। तेरे पास एक-आध तो गहना बचा है, वो मैं नहीं बेचने का। मैं कोई और जुगाड़ भिड़ाने की जुगत करूंगा। ..... मेरे तो करम ही फूट गये। मुझे क्या पता था कि वो ऐसा जुगाड़ भिड़ायेगा!' इतना कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगी और सोनू शून्य में टुकुर-टुकुर झांकने लगा।

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