चिड़ियाओं से दोस्ती -13
दूसरे दिन सुनयना सोकर उठी । चिड़ियों का रोज जैसा शोर न पाकर उसने खिड़की से बाहर देखा । पेड़ पर घोंसला न पाकर वह चौंक गई । उसने नीचे देखा तो पाया कि नीचे टूटा हुआ घोंसला पड़ा है तथा चिडिया के बच्चे भी वहीं नीचे पड़े हुये हैं । उनमें से तीन में कोई हलचल नहीं है जबकि एक थोड़ा हिल रहा है । दो चिडियायें उसके पास बैठी हैं । शायद उसके ममा-पापा होंगे, उसने मन में सोचा । तभी उसने देखा कि एक चिड़िया, शायद उसकी ममा उसे कुछ खिलाने का प्रयत्न कर रही है पर वह अपनी चोंच ही नहीं खोल रहा है ।
‘ ममा...इधर आओ । देखो इनको क्या हुआ ?’
‘ क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रही हो ? ’ ममा ने उसके पास आकर पूछा ।
‘ ममा वह देखो चिड़िया और उसके बच्चे...।’
‘ ओह ! लगता है किसी शैतान चील ने इसका घोंसला गिरा दिया है । बेचारे बच्चे असमय ही मर गये हैं ।’ ममा ने अफसोस जताते हुये कहा ।
‘ एक तो जिंदा है । मैं जाती हूँ...उस बच्चे को किसी सेफ जगह रख दूँगी तो शायद बच जाये ।’ कहते हुये सुनयना ने अपना स्कार्फ उठाया और बाहर भागी ।
‘ बेटा संभलकर...।’ ममा ने उसका आशय समझकर कहा ।
जैसे ही सुनयना ने नीचे पहुँचकर चिड़िया के बच्चे को उठाना चाहा । वे दोनों चिड़ियायें उस पर झपटीं । वह डरकर दूर हट गई । तभी उसे याद आया कि चिड़िया अनाज खातीं हैं अगर वह उनके लिये अनाज लाकर उनके सामने रख देगी तो वह उसे अपना दोस्त मान लेंगी तब वे उसके ऊपर नहीं झपटेंगी । वह अंदर आई । उसने ननकू से चावल माँगे । वह उसे दे रहा था कि उसे एक छोटी सी लकड़ी की बास्केट दिखाई दी । उसने उसे भी उठा लिया । ननकू की दिये चावल को उसने एक कटोरी में रखा तथा दूसरी कटोरी में पानी लिया तथा बाहर जाने लगी ।
‘ इन्हें लेकर बाहर कहाँ जा रही हो बिटिया ?’ ननकू ने कहा ।
‘ चिड़ियों को खिलाना है ।’ कहकर वह जैसे आई थी वैसे ही चली गई ।’
बाहर जाकर उसने चावल और पानी की कटोरी चिड़ियाओं के सामने रख दी तथा पेड़ के पीछे छिप गई । इतनी देर में उसने छोटी सी बास्केट में अपना स्कार्फ तथा स्कार्फ के ऊपर कुछ पत्तियाँ और घास बिछा दी जिससे वह घोंसले जैसा लगने लगा । पेड़ के पीछे खड़े-खड़े ही उसने देखा कि दोनों चिड़ियायें कटोरी के पास गईं । पहले वे चिड़ियाएँ पानी और अनाज की कटोरियों को देखतीं रहीं फिर एक चिड़िया पानी पीने लगी तथा दूसरी दाना चुगने लगी । उन्हें ऐसे पानी पीते तथा खाते देखकर सुनयना को लग रहा था जैसे वे बहुत भूखी हैं । वह घीरे-घीरे कदम बढ़ाते हुये चिड़िया के बच्चे के पास गई । उस बच्चे को वह जैसे उठाने लगी वे दोनों उसको मारने आईं । वह पीछे हट गई । उसे पीछे हटते देखकर वह उस बच्चे के पास ऐसे बैठ गईं जिससे कोई उसे छू न पाये । उनके शांत होने पर उसने अपना बनाया घोंसला दिखाते हुए इशारे से कहा, ‘ मैं इसको उसमें रखना चाहती हूँ ।’
पता नहीं वे सुनयना की बात समझीं या नहीं किन्तु इस बार सुनयना के आगे बढ़ने पर उन्होंने उस पर आक्रमण नहीं किया । उन्हें शांत बैठे देखकर उसने चिड़िया के बच्चे को उठाकर बास्केट में रख दिया तथा उस बास्केट को पेड़ के तने के पास रखकर नीचे पड़े पत्तों को उसके चारों ओर लगा दिया जिससे उसका धूप से बचाव हो सके । उसके हटते ही चिड़िया अपने बच्चे के पास गईं तथा उसे जाते हुये देखतीं रहीं । चिड़िया समझ गईं थीं कि वह उनकी शत्रु नहीं मित्र है ।
सुनयना के मन में जीव जंतुओं के लिये प्रेम देखकर खिड़की से झांकती उसकी ममा को उस पर गर्व होने लगा था ।
सुनयना अंदर जा ही रही थी कि ननकू एक टोकरी में कुछ लिए बाहर निकला । जिज्ञासावश उसने पूछा, ' अंकल इसमें क्या है ?'
' बिटिया इसमें सब्जी के छिलके हैं ।'
' इनका आप क्या करेंगे ?'
' बिटिया इसे हम इस गड्ढे में डालेंगे ।' ननकू ने एक गड्ढे के पास पहुँचकर सब्जी के छिलके उसमें डालते हुए कहा ।
' पर क्यों अंकल ?'
' भइया कहते हैं कि सब्जी के छिलके इस गड्ढे में डालते जाओ । जब यह भर जाए तो इसके ऊपर मिट्टी डालकर ढक दो ।'
' इससे क्या होगा अंकल ?'
' वह कहते हैं कि एक महीने बाद जब इस गड्ढे को खोलेंगे तो जो खाद बनेगी वह हमारे बगीचे के पेड़-पौधों के लिए अच्छी होगी । ' ननकू ने घर लौटते हुए कहा ।
' ओ.के. अंकल, जब यह गड्ढा भर जाएगा तो फिर सब्जी के झिलके कहाँ डालेंगे ?'
' एक दूसरा गड्ढा खोदकर उसमें डालेंगे ।'
' गाय के गोबर की खाद भी तो पेड़-पौधों में डाली जाती है ।'
' हाँ बिटिया ।'
' दीदी आप कहाँ थीं ? मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूँ । चलिए छत पर आज पतंग उड़ाते हैं ।'
' पतंग...चलो खूब मजा आएगा ।'
उस दिन पापा-चाचा के साथ पतंग उड़ाने में सुनयना को बहुत मजा आया ।
सुधा आदेश
क्रमशः