परंतु लोगों के दिल छोटे हो गए रेखा पविया द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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परंतु लोगों के दिल छोटे हो गए

"घर तो बड़ा है परन्तु लोगों के दिल छोटे है"

मैं चाय पी रही थी तभी मोबाइल की घण्टी सुनाई दी । उठाया तो यह संजीव का फोन या उसने मुझसे पूछा "क्या तुम्हारे आस-पास किराये पर कोई मकान मिल जायेगा ?"
मैने पूछा "किसको चाहिये"
संजीव ने बताया "मुझे ही !"
मैंने कहा "तुम्हारा तो यहीं पैतृक घर है बहुत बड़ा है वह! लेकिन तुम यहाँ क्यों मकान ढूढं रहे?"
तो वे बोले "कोरोना काल में मुझे अपने शहर वापिस आना पड़ा,क्योंकि परदेश में घर में बन्द थे तो,घुटन हो रही थी। चूंकि वर्क क्रॉम होम की पद्धति पर फिलहाल काम हो रहा है मेरी कम्पनी का, बच्चों के स्कूल भी बंद है अनिश्चित काल तक।"
मैंने पूछा "तुम तो महाराष्ट्र में रह रहे थे ना।

बे बोले "हां,वहीं मेरा परिवार, पत्नि व दो बच्चे साथ रहते हैं , तो सोचा कि मुश्किल से छुट्टी मिली है, अपने गृहनगर चला जाऊ , इसी बहाने से घर वालों के साथ सुकून से रहेंगे , क्योंकि आपदा में जितने अपने हो आपदा उतनी ही कम कष्टप्रद होती है, साथ ही बच्चे भी दादा-दादी के साध रहेगें खेलेगें ।"
मैंने पूछा " तो अब क्या हुआ ?"
वह उदासी भरे स्वर में बोले "मेरी यह कल्पना मुझे मिथ्या प्रतीत होने लगी हैं मध्य प्रदेश के इस छोटे से कस्बे में पिताजी ने तब मकान बनवाया था जब वह नौकरी करते थे । बाद में मैं इंजीनियरिंग करके बाहर नागपुर चला गया, वहीं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। यहाँ इस घर में बड़े भैया-भाभी, भतीजा-भतीजी, माता-पिता रहते है।"

"भैया बाहर क्यू नहीं गये ?उन्होने भी तो (MBA) एवं मैनेजमेंट का कोर्स किया है।"

"भैया कुछ आलसी प्रवृत्ति के है और हमेशा सेफ जोन पसंद करने के कारण कभी बाहर निकलने का प्रयास नहीं किया। उनकी जीवनशैली में कोई खास सुधार हुआ।"

" तुम्हारे माता-पिता की क्या सोच है'

"माता-पिता मेरी जीवनशैली एवं तरक्की से बहुत खुश है ! हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते रहते है ! "
"अभी क्या हुआ?"
"अपने ही घर में 15 दिन ही तो ठीक से कट पाये, अगले दिन से ही मेरे परिवार की उपस्थिति से भैया-भाभी असहज होने लगे ।अप्रत्यक्ष विवाद होने लगे। भैया-भाभी पैतृक पर पर अधिकार जमा चके थे, थोड़ा बहुत रेनोवेशन भी करवा दिया तो मानी यह घर उनका अकेले निजी मकान है यह भाव उनमें आ गया। पूरे घर पर अब उनका अधिकार है।"

मैंने पूछा "मैं समझी नहीं!"

" मेरे आने पर भैया-भाभी को लगा मानो में अधिकार बॉटने आ गया,तो कलह होने लगी । घर से काम करना मुश्किल हो गया है , माहौल हमेशा बोझिल सा रहता है, जिसका सीधा असर मेरी कार्यशैली पर पड़ रहा है । सो पत्नी की रजामंदी से मैंने अब घर से अलग रहने का निर्णय लिया है' ।"
मैंने कहा " माता-पिता तो आपके भी है, घर भी आपका है। जहाँ आप पढ़े-लिखे खेले, बचपन बिताया फिर आपके साथ ऐसा क्यूँ ? वैसे घर छोटा पड़ रहा है क्या?"
"घर तो बड़ा है, परन्तु दिल छोटे हो गये हैँ। रोजी-रोटी और सुकून की चाहत में हम अपनों के लिये गैर हो गये है। " कह के उन्होंने लम्बी सांस ली फिर आगे कहने लगे कि " यदि यह कोरोना काल ना आया होता तो शायद इन रिश्तों की सच्चाई को हम कमी न देख पाते।"

मैं अवाक होकर उनकी यह बात सुनती रह गई।

रेखा पबिया
दतिया (म. प्र.)