पाप का प्रायश्चित Gyaneshwar Anand Gyanesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पाप का प्रायश्चित

बात लगभग सन् 1991-92 की है। बम्बई के दादर स्टेशन पर यात्रियों की अत्यंत भीड़ थी "शाने पंजाब" रेलगाड़ी अमृतसर जाने के लिए स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नंबर 9 पर जैसे ही पहुँची तो यात्रियों में भगदड़ सी मचने लगी। गाड़ी धीरे धीरे आकर रुकने लगी तो यात्री अपने सामान के साथ अपनी-अपनी सीटों पर बैठने के लिए एक दूसरे को धक्का मुक्की करते गाड़ी में चढ़ने लगे। इसी बीच कुछ जेबकट भी भीड़ का फायदा उठाते हुए लोगों की जेब काटने निकल गये। लगभग २० मिनट बाद दो जेबकट आपस में वार्तालाप करते हैं कि
एक जेबकट दूसरे से- "यार आजकल लोगों की जेबों में कुछ माल ही नहीं मिलता।"
दूसरा "हां यार अपना धंधा बहुत ही घाटे में चल रहा है।"
पहला- "लगता है लोगों ने अपनी जेबों में माल रखना ही बंद कर दिया है।"
दूसरा "नहीं यह बात नहीं है,
हमारी सरकार ने जो सरकारी जुआ है यानी लाटरियाँ चला रखी है सभी लोग लाटरियों के टिकट लेकर जल्दी ही धनवान बनने का सपना देखते है।"
पहला- "यह ख्वाब तो हम भी देखते हैं परंतु क्या हम धनवान बन सके हैं नहीं ना।"
दूसरा "हमें जिस दिन माल ज्यादा मिल जाता है तो हम जुआ शराब या शायद बुरे कामों में वह धन खर्च कर देते हैं इसी तरह यह पब्लिक के लोग भी ऐसा ही करते होंगे।"
पहला "इसीलिए हमारा धंधा चौपट होता जा रहा है क्योंकि पब्लिक का पैसा सरकार ने लाटरी के जरिए उन की जेबों से खींच निकाला है लालची आदमी हर जगह मात खाता है। इसी बीच यात्री बड़ी तेजी से प्लेटफॉर्म की ओर दौड़े चले जा रहे हैं) यात्रियों का शोर बढ़ जाता है।
दोनों जेब कट अपने-अपने लक्ष्य की और जाने का एक दूसरे से वायदा करते हैं और........
यात्रियों की जेब काटकर जब दोनों जेब कतरे आपस में मिलते हैं तो पूछते हैं।
पहला- "आज तुम्हारा हाथ कैसा रहा?"
दूसरा मेरे हाथ तो यह सब आया है निकालकर दिखाता है इसमें मात्र ₹135 हैं।
दूसरा और तुम्हारे हाथ आज क्या माल लगा?
पहले अपनी जेब से माल निकलता है तो उसे क्या मिलता है गाड़ी का टिकट और ₹1625 और एक खत।
पहला जेबकट-" सिर्फ कागज ही है।"
दूसरा जेबकट- "इसे खोल कर देखो कहीं कुछ हो।"
पहला जेबकट- "कुछ कागज और एक लिफाफा है।"
दूसरा जेबकट- "देखना इसमें क्या लिखा है?"
पहला पत्र पड़ता है - "प्रिय जयपाल आपके भाई बहुत बीमार है। इलाज के लिए घर में फूटी कौड़ी भी नहीं है। सब कुछ उनकी बीमारी पर खर्च हो गया है और घर में दो जवान बेटियां बैठी हैं उनकी शादी भी तो नहीं हो पा रही है। हम बहुत परेशान हैं भगवान के लिए आप दस-पंद्रह हज़ार रुपए लेकर शीघ्र आ जाओ... अगर वक्त पर दवाइयां नहीं आई तो वे बिना इलाज के दम तोड़ देंगे और घर बर्बाद हो जाएगा मेरे बच्चों का भविष्य और मेरे सुहाग को जल्दी आकर बचा लो!
तुम्हारी भाभी
सुनंदा ।

उधर जयपाल जेब कटने पर मायूस होकर इस प्रकार बेचैन हो जाता है जैसे कि एक मछली को तालाब से बाहर निकालने पर मछली छटपटाती है।
अब उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?
जयपाल जेब कटने पर मायूस होकर सोचने लगा कि अब मैं भाभी को क्या मुंह दिखाऊंगा, कैसे कहूंगा कि भाभी किसी ने मेरी जेब काट ली।
दूसरी जेब में कुछ ख़र्चे के पैसों में से जो बचे थे उनके द्वारा वह अपने घर पहुंचा। घर पहुंचकर उसने अपनी जेब कटने का समाचार आपबीती अपनी भाभी को सुनाया तो उसका बीमार भाई यह सुन रहा था जयपाल की बात सुनकर उसे भविष्य अंधकारमय नज़र आने लगा और उसने छटपटाते हुए कहा जयपाल!!..... और बिना दवाई के ही बेचारे ने दम तोड़ दिया।

पहले जेबकट ने जब पत्र पढ़ा तो पत्र पढ़कर उसकी अंतरात्मा ने उसके मन को झकझोर कर रख दिया और वह झटपटाने लगा तू कितना कमीना है कितना बेदर्द और स्वार्थी है रे! तूने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर यह भी न सोचा कि कोई किस मुसीबत में होगा?
यह विचार कर वह अपने दूसरे साथी से अलग होकर उस पत्र में लिखे पते पर पहुंचा तो वहां क्या देखता है? कि वहां वह बीमार आदमी दम तोड़ चुका था उसकी अर्थी की तैयारी का सामान उठाए हुए ले जा रहे थे उसकी दो लड़कियां बिना शादी के ही रह गई और वह फूट-फूटकर रो रही थी और कह रही थी.....कि पापा जी आप हमें बेसहारा छोड़ कर नहीं जा सकते बोलो ना पापा जी आप बोलते क्यों नहीं?
सारे घर में कोहराम मचा हुआ था गांव की एक महिला- "ऐरी गुड्डी की मां, देखा उस बेचारी का तो घर का घर लुट गया और सिर का सर पिट गया।
दूसरी महिला- "किसका घर लुट गया?
पहली महिला- "मंजू की मां है ना जमुना बेचारी सिर पटक कर रह गई वह अभागिन! अभी तो उसकी 2 जवान बेटियां भी कुंवारी ही बैठी हैं।
दूसरी महिला- " बेचारियों के सर से बाप का साया ही चला गया।
किसके साये में रहेंगी अब कौन करेगा उनकी शादी! क्या बीमारी थी उसे? इसी तरह की बातें करने लगी।
पहली महिला- "सुना है निमोनिया बिगड़ गया था।"
दूसरी महिला यह जीवन कितना अजीब है एक सांस ली दूसरे का भरोसा नहीं होता फिर भी मनुष्य ना जाने कितने सपने संजोए रहता है कैसी विडंबना है। पल की खबर नहीं और सामान सौ बरस का।

पहले जेबकट को यह दृश्य देखकर बड़ा एहसास हुआ और उसने सोचा कि मेरे ही कारण इस आदमी की जान गई है। मैं हत्यारा हूं मैं बेदर्द हूँ भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेगा! कभी माफ नहीं करेगा। क्योंकि मैंने "वह एक गुनाह" किया है जिसका प्रायश्चित करने से कुछ नहीं होगा। कहकर रुवांसा हो जाता है और आंखों से पश्चाताप के आंसू बह निकलते हैं।

इस घटना ने मानो उसके दिल को झकझोर दिया। उसने अपने से हुए पाप का प्रायश्चित करने का फैसला कर लिया। और वह वहां से जाने से पहले मृतक की पत्नी सुनंदा से उसकी पुत्री की शादी की बात पूछी तो वह फूट-फूटकर रोने लगी और रह-रहकर उसी जेबकट को कोस रही थी जिसके कारण आज वह विधवा हो गई है।
विधि का विधान कौन टाल सकता है? भाग्य का लिखा कोई नहीं बदल सकता। भगवान बड़ा कारसाज है दुष्ट व्यक्ति के हृदय में भी परिवर्तन ला सकता है।
वह जेबकट मन में बोझ लेकर उस समय वहां से चला जाता है।
घर पहुंच कर वह इस कदर मायूस हो जाता है कि अब वह क्या करे और क्या न करे।
दिल पर जब किसी बात का बोझ रहता है तो वह व्यक्ति न ठीक से कुछ खाता है और न ठीक से होता है।
उस रात वह सो न सका और अपने द्वारा किये पाप का भागी स्वयं को मानते हुए पाप का प्रायश्चित करने का उपाय सोचने लगा।
उसे एक उपाय सूझा कि यदि वह उस मृतक की पुत्री की शादी में अपनी कड़ी मेहनत के पैसों से मदद कर दे तो यह उसके "पाप का प्रायश्चित" होगा।

हृदय परिवर्तन के कारण वह जेबकट अगले साल बीमार व्यक्ति की पुत्री की शादी में 20 हजार रुपए लेकर पहुंच गया और एक लिफाफा मृतक की पत्नी सुनंदा की ओर बढ़ाते हुए कहा- "लो बहन!
सुनंदा "आप कौन हो भाई?
जेबकट- "मैं बहुत अभागा हूं मैंने सर्वार्थ सिद्धिकारक एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या का दोषी हूँ।
सुनंदा- न समझने के भाव में- "मैं समझी नहीं!
जेबकट- "बहन, मेरे ही कारण...... कहते कहते सहसा वह रुक जाता है
सुनंदा- "भाई क्या हुआ आपके कारण?
जेबकट- "आपकी मांग का सिंदूर उजड़ा है।
सुनंदा- "वो कैसे?
जेबकट- "आपके देवर की जेब काटने वाला मैं ही हूँ।
इतना सुनते ही सुनंदा आग बबूला हो गई और उसे बहुत भला बुरा कहती रही।
शादी में आए लोगों भी वहां जमा हो गए।

सुनंदा का गुस्सा जायज था। यदि वह उसके देवर की जेब न काटता तो शायद उसका पति बच गया होता!
जेबकट- "मैं उस दिन भी यहां आया था काटी गई जेब के पैसे लेकर। जब आपके पति की मृत्यु हुई थी। परन्तु यहां का मंजर देखकर मुझे मजबूर हो कर वापस जाना पड़ा।
सुनंदा- "तो मेरे पति के क़ातिल आप हैं?
जेबकट- "मुझे माफ़ कर दो बहन! मैं मानता हूं कि मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है। परन्तु उस दिन से मैंने सभी बुरे काम छोड़कर मेहनत से काम करने का फैसला कर लिया है और आज मैं जो तुम्हें यह तुच्छ भेंट देने आया हूं मेरी कड़ी मेहनत की कमाई है।
सुनंदा- "इसने मेरी मांग का सिंदूर पोंछ कर मेरे सामने आने का दुस्साहस कैसे किया।
भीड़ के बीच से आवाज आई कि मंजू की मां बेचारा आज यह सचमुच बदल गया है। इसकी बात सच लगती है। अगर इसके दिल में कोई खोट होता तो यह यहां तक नहीं पहुंच पाता।

सुनंदा- "जिस की वजह से मेरा घर बर्बाद हो गया, मैं उससे कैसे समझौता कर लूं। यदि यह उनकी जेब नहीं काटता तो क्या वे हमें छोड़कर चले गए होते।
जेबकट- "बहन मैं आपसे इसी ग़तती की तो माफी मांग रहा हूं। और वह भी सच्चे मन से। बहन जी आप मुझे एक बार माफ़ कर के तो देखो।
सुनंदा- "आप जैसे लोगों को अपने आमोद-प्रमोद के आगे कुछ नहीं सूझता। किसी की जान जाये या उसके बच्चे भूखे रहें।
जेबकट- "बहन जी, मैंने उसी दिन से सभी ग़लत काम छोड़कर मेहनत करके पैसा कमाना शुरू कर दिया है। इस बात की पुष्टि आप मेरे गांव के लोगों से पूछताछ कर सकती हैं।
शादी में आए मेहमानों को भी जेबकट की बातें सच लगने लगी तो उन्होंने सुनंदा को समझाया कि अब तेरा पति वापस तो आ नहीं सकता।
यह अपनी गलती के लिए माफी मांगने तेरे घर चलकर आया है यदि इसके दिल में कोई खोट होता तो ढ़ूडता हुआ यहां तक नहीं आया होता।
सुनंदा को भी उसकी बातों में सच्चाई लगी।
तो उस जेबकट को दिल से माफ कर देती है।
जेबकट ने अपनी जेब से लिफाफा निकाल कर सुनंदा की ओर बढ़ाते हुए कहा - "बहन जी मेरी यह तुच्छ भेंट बेटी की शादी हेतु स्वीकार कर लो तो मुझसे हुए पाप का प्रायश्चित हो जायेगा।
जब सुनंदा ने लिफाफा पकड़ लिया तो तब जाकर जेबकट के दिल से बहुत बड़ा बोझ उतरा।
फिर खुशी खुशी बेटी को विदा करके सुनंदा और उसके परिवार वाले बहुत खुश थे।

कहानीकार
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश
किरतपुर (बिजनौर)
(पूर्णतः काल्पनिक एवं मौलिक रचना)
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