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माधुरी को सम्पूर्ण प्रकरण की जानकारी थी । मगर इस तरह के हल्के-फुल्के मामलेां की वो जरा भी परवाह नही करती थी । वैसे भी संस्था के विभिन्न दैनिक कार्यक्रमों में वो दखल नही देती थी । अनुशासन के नाम पर तानाशाही चलती थी मगर वो मजबूर थी । माधुरी अपना ज्यादा ध्यान विश्वविधालय में लगाती थी । विश्वविधालय तथा इससे सम्बन्धित महाविधालयों की राजनीति ही उसे रास आती थी । नेताजी का सूर्य अस्त हेाने के बाद उसने कल्लूपुत्र को साधने के लिए कल्लू मोची को विश्वविधालय की प्रबन्धन -समिति में अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि के रूप में ष्शामिल कर लिया था । कल्लू मोची कभी किसी उपवेशन में नही आया था, मगर बैठक भत्ता, यात्रा व्यय, लंच आदि के रूप में एक निश्चित राशि भेजने की परम्परा का निर्वहन किया जाने लगा था । बड़े बड़े बुद्धिजीवी प्रोफेसर, डीन, प्राचार्य, निर्देशक किस्म के प्राणी उसकी चौखट पर आ कर हाजरी देते थे । जो नही आते उन्हे दूसरे लिवा लाते थे । कल्लू पुत्र जो अब एम.एल.ए. साहब थे इस प्रक्रिया से परम प्रसन्न थे । वे स्वयं भी अमचो, चमचो से गिरे रहते थे, उनकी बैठक अरजी, गरजी और दरजी किस्म के लोगों से भरी रहती थी । आप पूछोंगे ये अरजी, गरजी,दरजी, क्या बला है तो उत्तर सीधा सपाट है श्री मान् जो अरज करे सो अरजी, गरज करे सो गरजी और पैबन्द लगाये, सिलाई करे, चुगली खाये वो दरजी ।
अभी भी एम.एल.ए. साहब अरजी-गरजी-दरजी किस्म के लोगों से गिरे हुए थे ।
ये लोग हर नेता, अभिनेता, मंत्री, संत्री की चौखट चूमते रहते थे । अपना काम करवा लेना ही इनका सिद्धान्त था । एम.एल.ए. साहब भी यह सब समझते थे । आज के दरबार में उपस्थित एक मंुह लगे चमचे ने कहा
‘ सर अपने इलाके में एस.पी. एक महिला को लगा या जा रहा है ।
‘ हां तो ठीक है महिलाओं के सशक्तीकरण का दौर है ।
‘ लेकिन सर ! कानून-व्यवस्था का क्या होगा ।’
‘ कानून-प्रशासन नर-मादा में भेद नही करता । ’ फिर एस.पी. साहब को कौन सा क्षेत्र में जाना है, उनका मुख्य काम प्रशासनिक है । ’
‘ वो तो ठीक है पर ....सर ! अगले चुनाव में हमारे गुट को परेशानी हो सकती है । सुना है बहुत कठोर है ।
अभी चुनाव बहुत दूर है । उसे गृह मंत्रालय ने एक विशेप काम से भेजा है । प्रदेश में हमारी सरकार है और मुख्य मंत्री चाहते है कि इस क्षेत्र में कानुन-व्यवस्था का कठोरता से पालन हो ।
‘ लेकिन सर यदि ऐसा हुआ तो हमारे अपराधी मित्रों का क्या होगा ? ’
‘ वे सब बच जायेगें इसलिए तो इन्हे लगाया गया है भाई । ’ जरा समझा करेा ।
‘ ठीक है सर !’
इतनी ही देर में एक ग्रामीण अध्यापिका एम.एल.ए. साहब से डिजायर लिखवाने हेतु एक प्रार्थनापत्र लेकर आई । एम.एल.ए. साहब ने उसे सिर से पैर तक देखा-पढ़ा-समझा । कागज देखे । कागजों के मध्य में एक लिफाफा था । लिफाफे में पांच सौ का एक नोट था, नेताजी ने तुरन्त डिजायर लिखकर दे दी । लिफाफा रख लिया । महिला अध्यापिका धन्यवाद देकर चली गई । लेकिन एम.एल.ए. साहब ने उसे वापस बुलाया ।
बहिन जी स्थानन्तरण की अर्जी पर मैंने डिजायर लिख दी है यदि आप वास्तव में काम करना चाहती है तो राजधानी चली जाईये । अभी स्थानान्तरण खुले हुए है पता नहीं कब बन्द हो जाये ।
‘ बहिनजी रूक गई । एम.एल.ए. साहब को ध्यान से देखा फिर धीरे से बोली
‘ सर ! क्या ये काम आप नहीं करवा सकते । आखिर मैं आपके क्षेत्र की मतदाता हूं ।
‘ हां हां क्यों नही मगर मेरी फीस है । राजधानी आने - जाने का खर्चा, वहां का व्यय सब कुछ आप लोगों को ही वहन करना पड़ेगां ।’
‘ कितना ! महिला अध्यापिका ने स्पप्ट पूछा ।
‘ अब ये तो काम पर निर्भर है । वैसे आप कोई रिक्त स्थान पर स्थानान्तरण करा ले तो व्यय कम आयेगा । किसी को हटाने में खतरे बहुत है ।
हटाना तो मैं भी नही चाहती । पर यदि जिला मुख्यालय के आस पास स्थानान्तरण हो जाये तो बच्चेां की पढ़ाई ठीक से हो जाये । पति भी यहीं काम करते है । ’
तेा ठीक है आप मेरे बाबू से बात करले । आपकी परेशानी मेरी परेशानी । सब ठीक हो जायेगा ।
‘ सब राशी अग्रिम लगेगी । बहिनजी ने फिर पूछा ।
‘ अब ये तो सब आप भी समझती है काम होने के बाद कौन फीस देता है । ’
‘ फिर फीस जमा करा दूं । ’
‘ हां हां अगले सप्ताह में मैं जा रहा हूॅं । आप कागज मेरे लिपिक को दे दे । सब हो जायेगा ।
म्हिला अध्यापिका ने अपने स्थानान्तरण के कागज और एक वजनी लिफाफा लिपिक को थमा दिया ।
एक अन्य दरजी नुमा व्यक्ति भी खड़ा था । महिला के जाने के बाद बोला -
‘ ‘सर ये बड़ी वो .....है । पिछले कई दिनो से विरोधियों के यहां चक्कर लगा रही थी ।
‘ होगा उससे अपने को क्या ? अपने देवरे में भेंट चढ़ा दी है तो काम करना अपना धर्म है । भेंट - पूजा मिलने के बाद तो देवता भी प्रसन्न हो जाते है । ’
‘ हां सर ये तो है । सभी अरजी - गरजी -दरजी हंस पड़े । ’
एम.एल.ए. साहब ने लिपिक को बुलाया ।
‘ आज के लिफाफे खोले गये । कुल मिलाकर दस स्थानान्तरण के काम थे । राशि भी अच्छी खासी एकत्रित हो गई थी ।
प्रसाद बाटंने के बाद एम.एल.ए. साहब को एक पेटी माल मिल गया था । वे इसी दर से भविप्य के सपने बुनने लग गये । जैसे उनके दिन फिरे वैसे सबके फिरे ।
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और अन्त में !
र्धम का गठबन्धन !
गठबन्धन का र्धम !
गठबन्धन का कर्म !
सी. डी. नाम सत्य है।
आतकवाद नाम सत्य है।
चुनाव मे अश्वेत राप्टपति का बनना भी राजनीति में एक इतिहास हैं।
काशी हो या काबा, कविता हो या शायरी।
हिन्दी में साहित्य-कविता से रोटी। क्यों मजाक करते हो भाई ।
मसिजीवी की चर्चा । मुगालतें में मत करना । भूखोंमर जाओगे । साहित्य की सीढी पर चढ़कर किसी कुर्सी पर बैठ जाओं या फिर एक छोटी-मोटी नौकरी पकड लो । भव सागर तर जा ओगे ।
इस लेस्वियन मौसम में कुछ भी ठीक-ठाक नहीं है। सीडी देखे गत है।
सब तरफ छा गये है । उटपटांग नजारे । उटपटांग किस्से। उटपटंाग गप्पे । उटपटांग अफवाहे । अफवाहों को समाचार बनते क्या देर लगती है। और छपने-प्रसारित होने वाले अधिकोश समाचार अफवाहे ही तो है।
कुत्तो, गधो, मुर्गो, मतदाताओं के दिन । कब तक चलेगे । आखिर तो सरकार ही चलेगी । गठबन्धन की सरकार । धमाधम । धडा़म । जोर से हुई आवाज । कौन बनेगा मंत्री । कौन बनेगा संत्री । सब तरफ बस त्राहि त्राहि ।
जीतने वाले भी हारे और हारने वाले भी जीते ।
ऐसे अजीबो गरीब माहोल में मित्रों इस व्यंग्य उपन्यास का यह अन्तिम अध्याय अन्तिम सांसे ले रहा है।
न सत्य है, न शिव है और न सुन्दर है ।
गान्धी से चले । गान्धी तक पहुॅचे । अहिंसा से चला देश आंतकवाद तक पहुॅचा । आंतकवाद से कहॉ जायेगे । कोई नहीं जानता । सच पूछो तो हम कहां जा रहे है ये कोई नहीं जानता ।
किस्सा तोता मैना की तरह हर तरफ अजीबो गरीब किस्से, गप्पे,अफवाहे । समाचार, विचार बस सब तरफ लतरांनी ही लतरांनी । लफफाजी ही लफफाजी ।
सरकारांे का क्या है ? उनका चरित्र एक जैसा होता है। उनके मुखौटे बदलते रहते है । कभी किसी का मुखौटा कभी किसी का ।
अपने स्वार्थ के लिए किसी की भी राजनैतिक हत्या को तैयार बड़े नेता । साहित्यक हत्या को आतुर आलोचक महाराज सामाजिक हत्या को निपटाते समाज के ठेके दार । धार्मिक हत्या को अंजाम देते धार्मिक साधु, सन्त, सन्यासी, ऋपि, मुनि, आचार्य, पूज्यपाद आदि ।
इन्हीं सब तानो बानो में फंसी कविता, कहानी, उपन्यास । एक फतवा जारी हुआ उपन्यास की मौत का । दूसरा फतवा जारी हुआ कविता की वापसी का । तीसरा फतवा जारी हुआ व्यंग्य साहित्य का पत्रकारिता बन जाने का । यारो साहित्य एक ललित कला है और पत्रकारिता एक व्यंवसाय । कला में वयवसाय तो ठीक है मगर कला को व्यवसाय घोपित करना अपने आप में व्यंग्य है ।
खबरिया चैनल तक समाचारों के लिए तरस रहे है । राजनीतिक समाचारों के अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा है सब तरफ अन्धकार । अन्धकार में एक प्रकाश, एक किरण की तलाश है साहित्य, कला, संस्कृति ।
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एम. एल. ऐ. साहब का दरबार लगा हुआ है । बडे़ बड़े भूतपूर्व महारथी इस दरबार में हाजरी दे रहे है । नये चुनावों में जीति एक निर्दलीय महिला पार्टी में ष्शामिल होना चाहती है कारण ये कि जिस जाति प्रमाणपत्र के सहारे जीत कर आई थी विवादास्पद हो गया । वह जन जाति में है या अनुसूचित जनजाति में यह बहस मीडिया ने ष्शुरू कर दी । हवा दी हारे हुए उम्मीदवारों ने । बात बढ़ गई । अब रास्ता ये निकला कि विजयी महिला किसी बड़ी पार्टी में मिल जाये तो बेड़ा पार हो जाये । विजयी पार्टी को भी ऐसे चेहरेा की आवश्यकता रहती हैं । सो विजयी जनजाति की महिला ने पार्टी सदस्यता हेतु के दरबार में हाजरी दी । नेताजी ने पूछा
क्यो क्या बात हो गई ?
मैंने जाति प्रमाण पत्र में पिताजी की जाति लिखी ।
तो क्या हुआ ?
उसे मान लिया गया ।
फिर ।
मैं चुनाव जीत गई । तो विपक्षी चिल्लाने लगे ।
‘ अब क्या । ’
अब मुझे पार्टी की शरण में ले लीजिये । वैसे भी पार्टी को जरूरत है ।
‘ हां जरूरत तो है । ’
ठीक है तुम्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दे देते है । कोई पद नहीं मिलेगा ।
पद तो मेरे पास विधायक का है ं बस सदस्यता चाहिये ।
ठीक है । महिला ने पार्टी का फार्म भरा । और विरोध दब गया । सरकार बन गई । महिला मंत्री पद पा गई ।
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कल्लू मोची के दरबार में अविनाश, कुलदीपक, सब आये हुए थे ं सब इस दरबार में नियमित हाजरी बजाते थे ।
इन सब लोगों के अपने अपने दुख । अपने अपने सुख । अपने अपने सपने । और सपनो को हकीकत में बदलने के अपने अपने तौरतरिके । देखते देखते खादी, की राजनीति, चमड़ी और दमड़ी की राजनीति बन गई । समाज का सोच आर्थिक बन गया । एक खोके से कम में चुनाव जीतना एक सपना बन गया । निर्दलीय हो या दलीय सब खोके पर बैठ कर वैतरणीय पार करने में लग गये ।
कुलदीपक बोला -
‘ कल्लू जी इस बार मैंने करीब चालीस-पचास क्षेत्रो का दोरा किया । हर तरफ पैसा पानी की तरह बह रहा था । दलों ने भी खूब पैसा बहाया । हर क्षेत्र मे स्थानीय नेता ओर जाति वाद हावी था ।
जातिवाद हर युग में रहा है । गरीबी हर युग में रहीं है । अविनाश ने कहा ।
लेकिन मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक जाति के आधार पर बनेगे तो प्रजातन्त्र का क्या होगा ?
प्रजातन्त्र का कुछ नहीं होगा वो तुम्हारे भरोसे नही है । एक छुटभैये नेता ने कहा ।
‘ तो क्या जातिवाद प्रजातन्त्र पर हावी हो जायेगा । ’
‘ नहीं ऐसा नहीं होगा मगर जिताउ उम्मीदवार तय करते समय ये सब देखना पड़ता है । कल्लू बोला । ’
‘ ठीक हे । हार जीत चुनावों में चलती रहती है । ’
और सुनाओ, तुम्हारे विश्वविधालय में क्या हो रहा है ।
‘ सब ठीक चल रहा है ।, माधुरी विश्वविधालय में एक बडी गैर सरकारी संस्था एक बडा आयोजन करना चाहती है । करोड़ो का बजट है । ’
‘ अच्छा फिर । ’
बस छोरो ने फच्चर फंसा दिया है ।
क्या किया ?
वे अपना वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे है ।
तेा फिर ।
प्रिन्सिपल ने मना कर दिया ।
लड़कों ने हड़ताल कर दी । अखबारों में प्रिन्सिपल, विश्वविधालय के खिलाफ चिल्लाने लगे । दिल्ली से भी अफसर आ गये है ।
‘ अच्छा मामला इतना आगे बढ़ गया है । ’
‘ हां नही ंतो क्या । हो सकता सेमिनार रूक जाये या स्थगित हो जाये । या डीन-एकेडेमिक को हटाना पडे । ’
बेचारा डीन क्या करे । उसके हाथ में क्या है ।
आखिर किसी की तो बली लेनी ही पडती है न । हडताल भवानी का अवतार है बिना बली लिए मानेगी नहीं ।
और क्या क्या हुआ ।
छात्र तोड़ फोड़ पर उतर आये । गाली - गलोच तो नियमित त्रिकाल संध्या की तरह होता है ।
अच्छा । ये तो ठीक नहीं है ।
अधिकारियों की कारों को नुकसान । कार्यालय को नुकसान कुल मिलाकर प्रिन्सिपल का धन्धा चौपट ।
माधुरी क्या कर रही हे । कल्लू ने पूछा ।
माधुरी मामले केा दूर से देख रही है । मजे ले रही है । यदि आवश्यक हुआ तो कार्यवाही करेगी ।
कब करेगी कार्यवाही ।
यह तो वो ही जाने ।
नई सरकार का निजि विश्वविधालयों में कोई हस्तक्षेप नहीं है ।
तो फिर ।
बस माधुरी सर्वेसर्वा है ।
सेमिनार का सचिव बदल दो ।
सब गड़बड़ हो जायेगा । करोड़ो का बजट-खाने-पीने की सुविधा-सब गुड़ गोबर हो जायेगा ।
‘ तो फिर कैसे चलेगा । ’
प्रजातन्त्र तो ऐसे ही चलेगा । हम सब कहां जा रहे है ?
हम सब जहन्नुम में जा रहे है ।
कोई रोक सके तो रोक कर दिखाये ।
हर कोेेेेेई मदारी है ै हर कोई बन्दर है । हर कोई डुगडुगी बजा रहा है । हर कोई भोंक रहा है हर कोई बारा मन की धोबन को देख रहा है । हर कोई हाथी दांत की मीनार पर चढ़ा हुआ है । हर कोई भाग रहा है । कहीं न कहीं जा रहा है । मगर दिशाहीन भागना भी क्या और दौड़ना भी क्या ।
ऐसी विकट परिस्थिति में कुत्ते ने मुर्गे से पूछा इस देश का क्या होगा यार ।
देश की चिन्ता छोड़ो । खुद की चिन्ता करो । घूरे पर दाने बीनों, यही तुम्हारी नियति है।
मगर मैं बुद्धिजीवी हूॅ ।
तो क्या भूखो मर सकते हो ।
नहीं ।
तो फिर जाओं कहीं से हड्डी लाओ । हर कुर्सी एक हड्डी है । चूसो और फेंक दो ।
यार मंहगाई से चले मंदी तक पहुॅचे । ष्शेयर - सेन्सेक्स धडाम ।
ब्याज दरे धडाम ।
रूपया धडाम ।
बड़े मॉल धड़ाम ।
बड़े उधोग धड़ाम ।
बस धड़ाम ही धड़ाम ।
पत्रकारिता धड़ाम । राजनीति धड़ाम । कूटनीति धड़ाम ।
सत्य । धड़ाम ।
शिवम् धड़ाम।
सुन्दरम् । धड़ाम ।
कलयुग शरणम् गच्छामि । चलो प्रजातन्त्र बचाने की कसमे खाते है।
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