हारा हुआ आदमी (भाग 18) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग 18)

"लौट जाओ।वापस अपने घर चले जाओ।सब परेशान होंगे घर मे" उस लडजे ने देवेन को समझाया था,"तुम्हारे पिता तुम्हे ढूंढ रहे होंगे।माँ ने रो रोकर बुरा हाल कर रखा होगा।तुम माँ बाप की पीड़ा का अंदाज नही लगा सकते।"
उस लड़के की बात सुनकर देवेन रोने लगा।देवेन को रोता देखकर वह लड़का उसे चुप कराते हुए बोला,"क्या बात है?तुम रो क्यो रहे हो?"
उस लड़के की बात सुनकर देवेन अपने अतीत को याद करते हुए बोला,
"मेरे माँ बाप को गुजरे हुए सालो हो गए।उनके गुजरने के बाद रिश्ते के चाचा ने मुझे सहारा दिया।चाची को मैं बिल्कुल पसंद नही था।वह मुझे नही रखना चाहती थी।लेकिन चाचा के आगे बेबस थी।पर उनके मरने के बाद चाची ने एक दिन भी चेन नही लेने दिया।इसलिए मुझे वहाँ से भागना पड़ा।इस दुनिया मे न मेरा कोई घर है।न ही अपना कोई।मेरे लिए कोई परेशान होने वाला नही है।"
"तेरी कहानी मेरी कहानी से बिल्कुल मिलती है।मैं भी पांच साल पहले चाची के जुल्म अत्याचार से तंग आकर दिल्ली भाग आया था।मैं तेरे दर्द को अच्छी तरह समझ सकता हूं।चिंता मत कर आज से तू मेरा दोस्त है।"वह लड़का प्यार से देवेन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,"मेरे साथ चल।"
घर से भागने से पहले देवेन सोच रहा था।दिल्ली में कहा रहेगा?क्या करेगा?लेकिन ईश्वर ने उसे दोस्त दे दिया था।उस लड़के का नाम रघु था।
रघु ने देवेन को अपने साथ रख लिया।अगले दिन रघु ने देवेन का परिचय न्यूज़ पेपर एजेंट से कराया और उसे अखबार दिलवाए थे।और धीरे धीरे देवेन अखबार बेचना सीख गया।रघु को सिगरेट और गुटके का शौक था।रघु ने उसे भी सिखाना चाहा लेकिन देवेन ने अपने को इस बुराई से दूर रखा।
रघु शाम को घर से निकलता तो देर रात लौटता।देवेन ने कई बार पूछा था।वह कहां जाता है।लेकिन रघु ने कोई जवाब नही दिया।लेकिन एक दिन बोला,"चल आज बताता हूँ,मैं कहां जाता हूँ।"
रघु देवेन को लेकर जी बी रॉड पहुचाँ था।वह उसे एक मकान में ले गया।उस मकान में एक मोटी सी औरत बोली,"आज किसे साथ ले आये?"
"मेरा दोस्त।अभी नया आया है।"
रघु ,देवेन को अंदर ले गया।वहाँ हर उम्र की औरत सजी सँवरी बैठी थी।वे औरते रघु से ऐसे बाते कर रही थी।मानो उसकी दोस्त हो।रघु एक कम उम्र की औरत से बोला,"रूपा तुम इसे ऊपर ले जाओ।"
रघु के कहने पर उस औरत ने देवेन का हाथ पकड़ लिया और उसे अपने साथ ले गई।छोटी सी तंग कोठरी में लेजाकर वह औरत देवेन से छेड़छाड़ करने लगी।तब देवेन समझ गया रघु रोज कहाँ जाता है और उसे कहाँ ले आया है।उसे अपने दोस्त से ऐसी उम्मीद नही थी।वह जैसे तैसे उस औरत के चुंगल से बचकर निकल आया।
रात को रघु झूमता हुआ कमरे पर लौटा था।वह देवेन से बोला,"तू भाग क्यो आया।"
"मुझे मालूम होता तू ऐसी जगह ले जायेगा तो मैं हरगिज नही जाता।यह अच्छी आदत नही है।तू इन गन्दी आदतों को छोड़ दे।"देवेन ने रघु को समझाया था।
"चार दिन की जिंदगी है।खाओ,पीओ और मौज करो।"
देवेन ने रघु को सुधारने का बहुत प्रयास किया लेकिन व्यर्थ।
रघु ने देवेन को अपने रंग में रंगने का प्रयास किया था।लेकिन जब देवेन को वह अपने रंग में नही रंग सका तो उसने उसके लिए अलग कमरा ढूंढ लिया।जब देवेन ने इसका कारण पूछा तो वह बोला,"मैं नही चाहता मेरी सोहबत का तुझ पर बुरा असर पड़े।"
इस शहर में रघु ने उसे सहारा दिया था।वह रघु को नही छोड़ना चाहता था लेकिन उसके समझाने पर मान गया।
देवेन महत्वाकांक्षी था।वह जीवन मे कुछ बनना चाहता था।रघु से अलग होने के बाद उसने आगे की पढाई शुरू कर दी। मेहनत कभी बेकार नही जाती।धीरे धीरे साल दर साल आगे बढ़कर उसने बी एस सी पास कर ली।