हारा हुआ आदमी (भाग17) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग17)

मोहन पत्नी की बाते सुन लेता तो उसे डांटता।उसे समझाता।पर व्यर्थ।दुर्गा पर पति की डांट या प्यार से समझाने का कोई असर नही पड़ता था।
देवेन चाची से दूर दूर रहने का ही प्रयास करता था।इसलिए स्कूल से आकर खाना खाने के बाद चाचा के पास दुकान पर चला जाता।
समय रुकता नही।समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहता है।देवेन साल दर साल अगली क्लास में चढ़ता गया।मोहन, िदेवेन के बारे में सोचने लगा।बारहवीं पास करने के बाद उसे क्या कराया जाए।
लेकिन मोहन सोचता उससे पहले हार्ट अटक से मोहन कज मौत हो गई।
चाचा की मौत से देवेन को गहरा धक्का लगा।चाचा की मौत के बाद देवेन ने प्रण किया।वह चाची का सहारा बनेगा।राम और दीप का ख्याल रखेगा।परिवार की परवरिश करेगा।
उसने सोचा था।वह मेहनत करके दुकान चलायेगा।लेकिन देवेन ने जैसा सोचा।वैसा कर नही पाया।
मोहन चाचा की मौत के बाद चाची और ज्यादा कर्कशा हो गई थी।चाची चाचा के सामने ही देवेन को उल्टा सीधा कहती रहती थी।अब तो उन्हें रोकने वाला भी नहीं रहा था।अब हर समय वह देवेन को कोसती।उसे देख कर कहती रहती,
"पहले माँ बाप को खा गया।अब मेरा सुहाग उजाड़ दिया।अभी न जाने क्या क्या गुल खिलायेगा।"
चाची की बाते देवेन के सीने में तीर सी चुभती।चाची ने न जाने अपने बेटों को क्या पट्टी पढ़ा दी थी।दोनो भाई देवेन से घृणा करने लगे और देवेन से बोलना छोड़ दिया।देवेन वंहा अपने को बेगाना सा मह्सुश करने लगा।वह समझ गया अब वहां रह नही पायेगा।चाची उसे बिल्कुल नही चाहती है।और उसने घर छोड़ दिया।
और दस साल बाद देवेन फिर दिल्ली लौट आया।दस साल का अंतराल कम नही होता।देवेन अब जवान हो चुका था।बीते दस सालों में दिल्ली भी बहुत बदल चुकी थी।
देवेन दिल्ली आया तब उसके पास पांच सौ रुपये थे।मोहन चाचा जो उसे पैसे देते थे।उन्हें वह जोड़ता रहता था।
पांच सौ रुपये में दिल्ली में कितने दिन गुज़ारे जा सकते थे।
दिल्ली में उसके रहने का कोई ठिकाना नही था।देवेन की पूरी जिंदगी का सवाल था।उसे अपने भविष्य के बारे में सोचना था।
दिल्ली में कोई तभी टिक सकता था जब उसके आस पैसा हो।पैसा कमाने के लिए रोजगार जरूरी था।इसलिए वह काम की तलाश में भटकने लगा।लेकिन उसे कम नही मिला।वह काम तलाश रहा था तभी उसकी नज़र एक लडके पर पड़ी।उसके हाथ मे अखबार थे।वह लड़का जोर जोर से आवाज लगा रहा था,"आज की ताजा खबर- - - -
उस लड़के के पास न जाने क्या जादू था कि उसके अखबार फटाफट बिक गए।
अखबार बेचकर वह पैसे गिनने लगा।देवेन की नज़र उस लड़के पर थी।देवेन को अपनी तरफ घूरता देखकर वह लड़का बोला,"क्या पैसे लेकर भागना है।"
"मै चोर नही हूँ।"उस लड़के की बात सुनकर देवेन तिलमिला गया।
"अगर चोर नही हो तो मुझे ऐसे क्यो देख रहे हो"।देवेन की बात सुनकर वह लड़का बोला।
"मै भी तुम्हारी तरह अखबार बेचना चाहता हूँ।"देवेन ने अपने दिल की इच्छा उस लड़के को बताई थी।
"क्यो?तुम अखबार क्यो बेचना चाहते हो?"देवेन की बात सुनकर वह लड़का उसे घूरते हुए बोला,"कंही तुम घर से भागकर तो नही आये हो?"
"तुम ठीक कह रहे हो।आया तो भागकर ही हूँ।"उस लड़के की बात सुनकर देवेन बेझिझक होकर बोला था।