गिर्दागिर्द Deepak sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गिर्दागिर्द

गिर्दागिर्द

अमला के अस्पताल में दाखिल होने का समाचार जिस समय सुभाष को दिया गया, वह अपने पड़ोसी को अपने बचपन का एक किस्सा सुना रहा था| जिस के अन्तिम छोर पर पहुँचते ही पड़ोसी, गिरीश और उसे खूब ठहाके लगाने थे|

मगर फ़ोन सुनते ही वह बहुत गम्भीर हो गया, “अमला एमरजेन्सी वार्ड में भरती है.....” “ओह!” गिरीश हैरान था, “कैसे?”

“क्या हुआ? पापा?” अन्दर खेल रहे विवेक और नमित भी बरामदे में चले आए| उस दिन उनके स्कूल में खेल-दिवस मनाया जा रहा था और उन्हें स्कूल डेढ़ बजे पहुँचना था|

“आज रिसेस के समय मम्मी के स्कूल में किसी शरारती बच्चे ने पेड़ पर लगे शहद के एक बड़े छत्ते पर पत्थर दे मारा| इस पर शहद की मक्खियों ने उस कोने में खेल रहे बच्चों को घेर लिया| उन्हें बचाने की खातिर जब तुम्हारी मम्मी वहाँ गईं तो वह भी उन मक्खियों की चपेट में आ गयीं| मक्खियों के डंक उनके शरीर में धँस गए हैं, इसलिए उन्हें अस्पताल ले जाया गया है.....”

“हौरिबल, पापा,” विवेक गुस्से से भर उठा, “मम्मी ने कहा था वह आती बार शू व्हाइटनर लेती आएँगी| अब अगर मम्मी को आने में देर हो गयी तो मेरे स्पोर्ट्स शूज़ सूखेंगे कैसे?”

“मम्मी देर से आएँगी तो मुझे तैयार कौन करेगा? आज तो मुझे रिस्ट-बैंड्ज़ भी लगाने हैं.....”  छोटा नमित रोने लगा|

अमला सरकारी म्युनिसिपल स्कूल की चौथी जमात की क्लास टीचर थी तथा वहाँ सुबह के आठ से बारह बजे तक काम करती थी|

“अभी तुम दोनों यहीं खेलो| मैं अस्पताल से तुम्हारी मम्मी को ले कर आता हूँ,” सुभाष ने बच्चों को टाल दिया|

“आओ,” विवेक नमित को ले कर अन्दर चला गया|

“मैं एक सफल और बहादुर गर्ल-गाइड का पति हूँ, यह मुझे आज पता चला,” सुभाष ने गिरीश को गुदगुदाना चाहा| हँसी-ठिठोली उसे उन्माद की सीमा तक पसन्द थी| कई बार उसके तीर बेमौके भी चल जाते पर उसकी हँसी फिर भी सँभाले न सँभलती|

“तुम्हें अस्पताल जल्दी पहुँच जाना चाहिए,” गिरीश ने सुभाष के परिहास में भाग न लिया और उठ खड़ा हुआ|

“अमला ने यह क्या कर डाला?” उसे छोड़ने सुभाष जब गेट पर पहुँचा तो अपनी खीझ प्रकट किए बिना रह न पाया|

“हाँ, अमला को यह क्या सूझी?” गिरीश भी परेशान हो उठा, “स्कूल में इतने चपरासी और चौकीदार रहे होंगे, उन में किसी को भी बच्चों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए था| बच्चों की सुरक्षा का ज़िम्मा अमला के कन्धों पर कैसे आन पड़ा?”

“अमला में सब से बड़ी कमजोरी यही है,” सुभाष बोला, “वह हर किसी के सामने हमेशा यह सिद्ध करना चाहती है वह सबसे श्रेष्ठ है, सब से अलग है| आज भी अपने लिए प्रशंसा बटोरने की खातिर वह मक्खियों से भिड़ने अकेली चल दी होगी| कई बार तो मुझे सन्देह होता है मुझ से शादी भी उस ने किसी ऐसे ही जुनून के तहत कर डाली, वरना हम दोनों ही के परिवार इस शादी के सख्त ख़िलाफ़ थे.....”

“अरे, छोड़ो,” गिरीश उस समय सुभाष की शादी वाला किस्सा कतई नहीं सुनना चाहता था| सुभाष उसे ही नहीं, अपितु लगभग अपने सभी परिचितों को कई-कई बार विस्तार से बता चुका था कि विजातीय विवाह होने के कारण उन्हें कचहरी में कोर्ट-मैरिज के लिए उस अध्यापक-मित्र की प्रतीक्षा में चार घंटे और केवल इस लिए बिताने पड़े थे क्योंकि रास्ते में अपनी पंक्चर स्कूटी को ठीक करवाने के लिए उसे दो बार रुकना पड़ा था और वह उनका तीसरा गवाह रहा था|

“अमला का काम मुश्किल ही नहीं, वरन् टेढ़ा भी रहा होगा,” गिरीश ने सुभाष को उलझाना चाहा, “मधु तो ऐसा जोखिम कभी मोल न लेती| निजी सुरक्षा और हाईजीन को ले कर वह इतनी चौकस रहती है कि बस पूछो मत| अभी कल की बात है| हमारा छोटा बंटू पाखाना करते समय गिर गया| मधु अपने कमरे से अर्दली को डाँट पिलाती रही और बंटू को दिलासा देती रही कि रोओ नहीं, अभी अर्दली तुम्हें साफ़ करके यहाँ ले आएगा तो मैं देख लूँगी तुम्हें कितनी चोट लगी है और मुझे क्या करना होगा.....”

“मधु और अमला में ज़मीन-आसमान का अन्तर है,” सुभाष शुरू ही से मधु का राजसी रूपवर्ण और रंग-ढंग से विस्मित रहा था, “अमला मज़दूर वर्ग से आयी है, स्कूल के एक पी.टी. मास्टर की बेटी है, मज़बूत हाज़मा रखती है और मधु हाई कोर्ट के जज की बेटी है, अभिजात वर्ग की सुकुमार और कोमल कन्या है.....”

“पत्नी कैसी भी हो,” गिरीश नहीं चाहता था कि सुभाष मधु के दिखाव-बनाव पर कोई और टिप्पणी करे, “उसे स्वीकार कर लेने में ही समझदारी है.....”

(२)

जैसे ही सुभाष ने अस्पताल के एमरजेन्सी वार्ड में कदम रखा, स्कूल की अधेड़ प्रधानाध्यापिका उस की ओर लपक ली, “आपकी पत्नी तो गज़ब की दर्दमन्द औरत निकली| आज के इस स्वार्थ-परायण युग में वरना कौन किसी के फटे में पाँव रखता है?”

“तो क्या मक्खियों के बीच उसे आपने भेजा था?” सुभाष का माथा ठनका, “भूल गयीं वह एक न्यायिक अफ़सर की पत्नी हैं? उस के दो बेटों की माँ हैं? उस की बड़ी ज़िम्मेदारियाँ हैं?”

स्त्रियों के विषय में सुभाष रूढ़िगत विचार तो रखता ही था, साथ ही उसे अपने राजकीय न्यायिक सेवा का सदस्य होने पर अभिमान था| अमला का सामाजिक मामलों में रूचि लेना उसे हास्यास्पद लगता था और उसकी संवेदनशीलता कृत्रिम एवं अनर्गल|

“जब तक मैं वहाँ पहुँची,” प्रिंसीपल ने उसकी आपत्ति पर कान न धरा, “अमला बेहोश हो चुकी थी| उसकी बेहोशी की सूचना और मधुमक्खियों के हमले की खबर मुझे एक साथ चपरासी ने मेरे कमरे में आ कर दी| उस समय यह आई.जी. साहब मेरे पास ही बैठे थे| उन्हीं के संग मैं अमला के पास भागी गयी| और इन्हीं की गाड़ी में हम उसे अस्पताल लिवा लाए.....”

“मैं आई.जी. हूँ, आई.जी. निझावन,” तभी एक बहुत लम्बे आदमी ने सुभाष की पीठ पर अपना हाथ आन धरा, “आपकी पत्नी बहुत भाग्यशाली रहीं जो उस समय मैं अपने पोते के एडमिशन के सिलसिले में उनके स्कूल में आया-बैठा था.....”

“आपका कोटि-कोटि धन्यवाद,” सुभाष गद्गद् हो उठा| यह पहला अवसर था जब किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने उस के साथ अनौपचारिक बरताव दिखाया था| उस के पिता एक निजी संस्था में क्लर्क थे और अमला के परिवार की भांति उस के परिवार में भी एक ऐसा न था जिसका किसी सरकारी अथवा अर्ध-सरकारी क्षेत्र में कभी भी कोई दख़ल रहा हो| सुभाष यह सोच कर झेंप गया कि उस ने सुबह से दाढ़ी नहीं बनायी थी| उस के पाज़ामे-कुरते में सोने के कारण पड़ी सलवटें भी साफ़ दिखायी दे रही थीं| शनिवार की छुट्टी होने के कारण वह पूरी तरह सुस्ताने के मूड में रहा था और अस्पताल उसी अवस्था में चला आया था|

“मुझे देखते ही सभी डॉक्टर भागे आए,” आई.जी. की गरदन ने एक लहरदार घुमाव के साथ बल खाया, “गृह-सचिव से मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं और वह चिकित्सा-सचिव के बैच-मेट हैं| चिकित्सा-सचिव चुटकी बजाते ही शहर के सारे अस्पतालों के सीनियर डॉक्टर यहाँ जमा कर सकते हैं.....”

“फिर तो आप न्याय-सचिव को भी जानते होंगे, सुभाष की बाँछें खिल उठीं, “वास्तव में मैं प्रादेशिक न्यायिक सेवा में हूँ और बेहतर पोस्टिंग के लिए उन से निवेदन करना चाहता हूँ.....”

“हाँ, क्यों नहीं?” आई.जी. की मुखाकृति एक संरक्षक के सौजन्य से चिकना गयी, “मैं उन से ज़रूर कह दूँगा| आप को अपॉइन्टमेन्ट दें, आप की बात सुनें और उस पर आदेश जारी करवाएँ.....”

जभी सुभाष की दृष्टि कोने वाले बिस्तर पर तड़फड़ा रही अमला पर पड़ी|

दौड़ कर वह उस के पास पहुँच लिया| अमला ने अस्पताल का एक ढीला चोंगा पहना हुआ था और उस के सुबह वाले कपड़े एक मेज़ पर तहाए रखे थे|

तीन नर्सों और दो डॉक्टरों की पलटन उस की परिचर्या में व्यस्त थीं|

नर्सें उस के अंग जब-जब उमेठतीं व मरोड़तीं और डॉक्टरों के यन्त्र उन पर थिरकते, अमला की समूची देह मुड़ने की, घूमने की, उलटने की, पलटने की, तड़पने की चेष्टा में अनावृत्त हो उठती|

“अपनी कलाबाज़ी बन्द करो,” सुभाष झल्लाया और आई.जी. से अपनी पीठ छुड़ा कर अमला के हाथों पर झपट लिया|

अमला ने शायद सुन लिया| उसका सूजा हुआ चेहरा खिंच गया, उसकी नाक सिकुड़ ली, गाल फैल कर तन गए और होंठ बुदबुदाए, “फ़िफ़्टी फ़ाइव, फ़िफ़्टी सिक्स.....”

सुभाष को याद आया इधर कुछ दिनों से नमित जब जब बचकानी अपनी ड्रिबल, गेदन्दाज़ी के अन्तर्गत अपनी बड़ी गेंद को टप्पे खिलाता था, अमला उन की गिनती करने बैठ जाती रही थी| साथ में यह कहती हुई, कि उसे सौ टप्पे तो बिना रुके उसे खिलाने का लक्ष्य सामने रखना ही चाहिए| जभी नमित उत्साहित हो कर अपनी गेंद को फिर से उछाल दिलाने लगता और जैसे ही वह ज़मीन के तल से टकरा कर उस के पास लौटती, वह उसे अगला टप्पा खिलाने के लिए उसे पुनः उछाल दिलाने हेतु लपक लेता| और अमला की गिनती दोबारा शुरू हो लेती|

“उधर नमित और विवेक तुम्हारी राह देख रहे हैं| उठो, घर चलो.....” सुभाष का चित्त अस्थिर हो उठा|

“आप आवेश में मत आइए,” नाटे कर के एक डॉक्टर ने सुभाष के हाथ परे धकेलने चाहे, “आपकी पत्नी को हमारी सेवाओं की सख़्त ज़रुरत है| बीसियों डंक उन के शरीर में तेज़ी से ज़हर फैला रहे हैं और उन्हें तत्काल निकालना बहुत ज़रूरी है वरना एनाफ़िलैक्सिस का केस बन सकता है.....”

“वह क्या बाला है?” अमला के हाथों को एक ज़ोरदार हल्लन दे कर सुभाष ने अपने हाथ वहाँ से हटा लिए|

“फ़िफ़्टी नाइन, सिक्सटी,” अमला पीड़ा से छटपटा उठी|

“यह अपनी क्लास को गिनती सिखा रही मालूम देती हैं,” परिचर्या कर रहे दूसरे डॉक्टर ने गुदगुदाहट-भरी मुद्रा में आई.जी. की ओर देख कर एक तिरछी मुस्कान छोड़ी|

“या शायद यह उन मक्खियों को गिन रही हैं, जिन्होंने इसे डसा और कर डाला,” आई.जी. ने उस डॉक्टर को अपनी प्रशस्त अन्तरंगता का परिचय देते हुए गहरी एक निहुराई दे डाली, “यह तो इस दम्पत्ति का सौभाग्य है जो इस समय आप जैसे योग्य डॉक्टर यहाँ मौजूद रहे| इन लोग को शायद मालूम नहीं आप के हाथ में कैसी शफ़ा है.....”

“आप कहते हैं तो ज़रूर होगी,” प्रधानाध्यापिका उन के वार्तालाप में आन कूदी|

यह डॉ. आनन्द हैं,” आई.जी. ने सुभाष की पीठ पर दोबारा हाथ आन जमाए, “इन्होंने हमारे बहुत से गम्भीर केस हाथ में लिए हैं| जिस कौशल से यह शरीर में धँसी गोली बाहर निकाल लाते हैं.....”

“क्या अमला को अस्पताल में देर तक रहना पड़ेगा?” सुभाष की अधीरता बढ़ ली| जिस संकटबिन्दु पर अमला ने स्वयं को ला पटका था, वह वास्तव ही में उस के धैर्य की सीमा के बाहर जाने लगा था|

“आप एनाफ़िलैक्सिस के बारे में जानना चाह रहे थे?” नाट कद के डॉक्टर ने सुभाष को उस उद्विग्नता के मण्डल से बाहर लाने की चेष्टा की, “यह वह जानलेवा स्थिति है जिस से मरीज़ मधुमक्खियों के डंक से पैदा हुए एलर्जिक रिएक्शन का शिकार बन जाता है.....”

“मेरे रहते आपको चिन्ता करने की कोई ज़रुरत नहीं,” आई.जी. ने सुभाष का कंधा थपथपाया, “आप की पत्नी को हम अच्छे समय पर अस्पताल ला सकते हैं तो फिर बाकी प्रबन्ध भी तो कर सकते हैं| पूछिए इन से, आते ही मैंने डॉ. आनन्द को इधर बुलवाया, ऑक्सीजन का पता लगवाया, और जब मुझे पता चला यहाँ ऑक्सीजन नहीं है तो तुरन्त दो डॉक्टरों को उसे लिवाने दौड़ा दिया| कहा, जब तक ऑक्सीजन नहीं मिलती, मुझे शक्ल मत दिखाइए.....”

सुभाष का मन हुआ वह झपट कर आई.जी. का मुँह नोच ले और उस का हाथ नीचे झटक दे मगर वह मुस्कुराया और बोला, “मैं जीवन-भर आपका ऋणी रहूँगा.....”

“मैं समझ सकता हूँ आपकी चिन्ता कितनी गहरी है,” आई.जी. ने उदार मुस्कान से कहा, “पति-पत्नी का रिश्ता है ही इतना गहरा, इतना आत्मीय| पर आप हौसला रखिए| आपकी पत्नी के साहस की चर्चा मैं आज ही मुख्यमन्त्री से करूँगा| मेरी कोई भी बात वह टाल नहीं सकते| आपकी पत्नी की बहादुरी व्यर्थ नहीं जाएगी.....”

“सिक्सटी फ़ाइव, सिक्सटी सिक्स,” अमला बुदबुदायी|

“आपकी पत्नी सचमुच महान हैं,” प्रधानाध्यापिका बोलीं, “अमला के शौर्य की आँच हमारे पूरे स्कूल को बल देगी, उत्साह देगी.....”

सुभाष ने अब आव देखा न ताव, पलट कर प्रधानाध्यापिका की गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा दे मारा|

तत्क्षण डॉक्टरों ने अपने यन्त्र खींच लिए|

नर्सों ने भी तत्काल अपने हाथ पीछे हटा लिए|

“आप बखेड़ा खड़ा करना चाहते हैं तो यही सही,” प्रधानाध्यापिका ज़ोर से चिल्लायी, “मैं आपको छोडूँगी नहीं| आपकी इन्हीं हरकतों की वजह से अमला ने अपने आपको मौत के मुँह में धकेला होगा.....”

“यदि अमला को कुछ हो गया तो मैं आप पर मुकदमा दायर कर दूँगा| आपके स्कूल से पूरा हरजाना लूँगा,” सुभाष भी चिल्लाया|

“आप दोनों बाहर जाइए,” दूसरे कोनों में उपचार कर रहे अन्य डॉक्टर भी वहाँ आ गए, “यहाँ एमरजेन्सी वार्ड में सभी मरीज़ ज़िन्दग़ी और मौत के बीच लटक रहे हैं| हम इनके इलाज में कोई बाधा नहीं आने दे सकते.....”

“आप चुप रहिए,” सुभाष अब डॉक्टरों पर चिल्लाया, “मेरी पत्नी यहाँ है, मैं यहीं रहूँगा.....”

“आप पुलिस के बड़े अफ़सर हैं,” प्रधानाध्यापिका आई.जी. के कान में फुसफुसायीं, “इस आदमी को यहाँ से भगा दीजिए| आप तो इसकी बदली भी करवाने की क्षमता रखते होंगे| इसे दूर पहाड़ों या जंगलों पर ज़िन्दग़ी भर के लिए फिंकवा दीजिए.....”

“विपत्ति में हर कोई विक्षिप्त हो सकता है,” आई.जी. अपनी उदारता पर इतरा उठा, “इस आदमी को गहरा धक्का पहुँचा है.....”

“आप बाहर जाइए,” नाटे कद वाले डॉक्टर ने सुभाष से आग्रह किया, “यहाँ बने रहने से आप अपने लिए तो आफ़त मोल लेंगे ही, साथ में पत्नी को भी संकट में डाल देंगे.....”

“सिक्सटी सेवन, सिक्सटी एट,” अमला की गिनती फिर शुरू हो ली|

“होश में आओ, अमला,” सुभाष चीखा, “बच्चों का स्पोर्ट्स डे है| उन्हें तुम्हीं ने तैयार करना है.....”

“सिक्सटी नाइन, सेवनटी.....” अमला बुदबुदायी|

“आप थोड़ी देर बाहर टहल आइए,” आई.जी. ने सुभाष का कन्धा फिर थपथपा दिया, “यदि कोई ज़रुरत पड़ी तो हम आपको बुलवा लेंगे.....”

“बहुत अच्छा, सर,” सुभाष ने सिर झुका कर आई.जी. का आदेश ग्रहण किया, “आप बहुत दयालू हैं, सर.....”

क्रोध में बिफ़री प्रधानाध्यापिका पैर पटकने लगी|

सुभाष यह सोच कर झूम उठा कि आई.जी. कभी भी यह जान नहीं पाएगा कि प्रधानाध्यापिका के चेहरे पर पड़ा रहा वह ज़ोरदार तमाचा वास्तव में आई.जी. की ओर निर्दिष्ट रहा था, प्रधानाध्यापिका तो केवल संयोगवश एक माध्यम बन गयी थी|

सुभाष को बाहर जाते सभी ने देखा|

भीड़ तुरन्त छँट ली|

“सेवनटी वन, सेवनटी टू,” अमला फिर से गिनने लगी|

डंक निकालने की प्रक्रिया ने उसकी निष्क्रियता शायद फिर तोड़ दी थी|