bachpan ki baarish aur kagaz ki naav books and stories free download online pdf in Hindi

बचपन की बारिश और काग़ज की नाव


सेवासदन वृद्धाश्रम__
अरे,किशन!आज तूने पोहा तो बहुत अच्छा बनाया हैं, मिस्टर गुप्ता बोले।।
चलिए गुप्ता अंकल आपको कुछ तो पसंद आया मेरे हाथ का,किशन बोला।।
हाँ...हाँ...रोज से तो आज का नाश्ता थोड़ी ठीक है, मिसेज नवलानी बोलीं।।
नवलानी आंटी! आपको तो कभी भी मेरे हाथों का कुछ पसंद ही नहीं आता,आप खुद इतना अच्छा खाना जो बनातीं हैं, उस दिन जो आपने दमआलू बनाया था ना,आज तक जुबान पर स्वाद है किशन बोला।।
इस वृद्धाश्रम में ऐसे ही बातें चलती रहतीं हैं, ज्यादा लोग तो नहीं रहते मुश्किल से सात आठ पुरूष होगें और चार पाँच महिलाएं,आपस मे सभी में सामजंस्य हैं क्योंकि सब एक जैसे है,मतलब सब अकेले हैं,सब बहुत अमीर घरानों से ताल्लुकात रखते हैं लेकिन इन सबके लिए,इनके बच्चों के ना तो घर में जगह है और ना ही दिल में और इन सब ने यहाँ आकर एक दूसरे से अपना नाता जोड़ लिया हैं।।
तभी मिसेज शर्मा आईं और उन्होंने कहा कि कल मुझसे मिस्टर साहनी कह रहें थें कि दसवें नम्बर वालें कमरें की सफाई करवा दीजिएगा, कल कोई नए मेहमान यहाँ हम सब के बीच आने वाले हैं, इसलिए किशन से कहने आईं थी।।
इस सावन के मौसम में फिर कोई अपने घर से बेघर हो गया,किशन बोला।।
अपना अपना भाग्य है और हम तो अभागें लोग हैं कि हमारे बच्चों के पास हमारे लिए समय ही नहीं हैं, इतना कमा कमा कर रख रहें हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि उनकी असली पूँजी तो हम घर के बुजुर्ग होतें हैं, नाती पोते भी अपनी ही दुनिया में मस्त हैं, हम बुढ्ढों का किसी को ख्याल कहाँ, मिसेज शर्मा बोली।।
रहने दीजिए ना, मिसेज शर्मा! क्यों सावन के महीनें को रोकर खराब करना चाहतीं हैं, जो चीजें हो चुकी हैं, वो शायद अब कभी ना बदलें, हम सब ही अब एक दूसरें के रिश्तेदार हैं, इसलिए खुश रहिए,नाहक परेशान ना हुआ कीजिए, मिस्टर गुप्ता बोले।।
ये बात तो आपकी बिल्कुल सही है, गुप्ता जी! लेकिन क्या करूँ? माँ हूँ ना बच्चों का मोह छूटता ही नहीं।।
तभी मिसेज नवलानी बोली____
देखों तो कैसे काले काले बादल घिरें हैं और फुहार पड़ रही हैं, मैं आप सबके लिए पकौड़े बनाकर लातीं हूँ।।
हाँ..हाँ..चलिए मैं आपकी मदद करता हूँ, किशन बोला।।
नहीं, पहले कमरा साफ कर दे,वो सज्जन आने वाले हैं,पकौड़े बाद मे, मिसेज शर्मा बोलीं।।
ठीक है, शर्मा आंटी और इतना कहकर किशन कमरा साफ करने चला गया।।
ऐसी हल्की बारिश में तो मेरी पत्नी सुमन बनाया करती थी, मूँगदाल के पकौड़े और वो जबसे गई है तब से शायद मैने मूँगदाल पकौड़े ही नहीं खाएं, मिस्टर गुप्ता बोले।।
कोई बात नहीं गुप्ता भाईसाहब, मैं कल आपको मूँगदाल पकौड़े बनाकर जरूर खिलाऊँगी, मिसेज नवलानी बोली।।
और तभी बारिश की हल्की फुहार के बीच सेवासदन वृद्धाश्रम के गेट के सामने एक टैक्सी आ कर रूकी, एक वृद्ध टैक्सी से उतरे,मिसेज शर्मा ने खिड़की से देखा तो प्यून को आवाज दी,प्यून आया और वो उन वृद्ध का सामान उठाकर अंदर लाया।।
तभी मिसेज शर्मा उन वृद्ध से बोली__
आइए आपका स्वागत है।।
लेकिन उन वृद्ध सज्जन को करीब से और गौर से देखने के बाद मिसेज शर्मा को वो चेहरा जाना पहचाना सा लगा, मिसेज शर्मा को देखकर वो सज्जन भी असमंजस में पड़ गए।।
तभी उन सज्जन ने सबसे नमस्कार की और अपना परिचय दिया___
जी,मैं मधुर त्रिपाठी।।
जहाँ उन्होंने कहा कि मैं मधुर त्रिपाठी, उसी समय मिसेज शर्मा को भी बहुत कुछ पुराना याद आ गया, इसके बाद और सबने भी अपना परिचय दिया, सबसे अंत में मिसेज शर्मा बोली,मैं स्नेहलता शर्मा, ये नाम सुनकर मधुर त्रिपाठी जी को यकीन हो गया कि ये वही है, लेकिन सबके सामने कुछ नहीं बोले।।
तभी मिसेज शर्मा ने किशन से कहा कि त्रिपाठी जी को उनके कमरें में पहुंचा आएं__
ठीक है, आंटी,किशन बोला।।
मधुर जी का सामान किशन ने कमरें में पहुँचा दिया और पूछा कि___
अंकल! आप कुछ चाय नाश्ता वगैरह लेंगे।।
नहीं ,अभी तो कुछ नहीं चाहिए, मुझे जरूरत होगी तो मैं खुद ही बाहर आकर कह दूँगा,अभी मैं थोड़ा आराम कर लेता हूँ, त्रिपाठी जी बोले।।
ठीक है अंकल और इतना कहकर किशन अपना काम करने चला गया।।
और त्रिपाठी जी ने कपड़े बदले,बाथरूम जाकर हाथ मुँह धोए और तौलिए से पोंछकर,एक किताब उठाई और बिस्तर पर लेट गए, खिड़की से देखा तो अभी भी काले बादल छाए थे और फुहार पड़ रही थीं और वो ऐसे ही अपने अतीत की यादों में खो गए।।
ऐसी ही तो रिमझिम बरसात हुआ करती थीं जब वो और लता,गलियों में खुदें हुए गढ्ढों में भरें पानी में अपनी अपनी नाव चलाया करते थे,जब तक कागज गलता नहीं था तो नाव तैरती रहती थी और कागज गल जाने पर नाँव डूब जाती थीं, दोनों में से अगर किसी की नाँव डूब गई तो ठीक वाली नाँव को अपना बताकर झगड़ा होने लगता था और बात मारपीट तक पहुँच जाती थीं।।
एक बार तो लता ने मधुर को जो धक्का दिया कि वो सीधा कीचड़ से भरे गढ्ढे में गिर गया,गढ्ढा थोड़ा गहरा था,अब तो जैसे मधुर डूबने लगा,मधुर को डूबता देख लता ने बचाओ बचाओ चिल्लाया, कुछ भले लोगों ने मधुर को निकालकर उसे घर पहुँचाया, उसके पेट का पानी निकाला गया,उसकी मामी तो जैसे डर ही गई थी उस दिन,अनाथ था बेचारा, इसलिए मामा ने अपने घर में आसरा दे दिया था और मामी भी माँ की तरह ही प्यार करती थी।।
उस दिन लता को खुद पर बहुत गुस्सा आया कि अगर मधुर को कुछ हो जाता तो और आज के बाद वो ऐसी गलती कभी नहीं करेंगी ,मधुर भी उससे नाराज था और सारे दिन उसने उससे कोई भी बात नहीं की,लेकिन दूसरे दिन मधुर फिर सब कुछ भूलकर लता के साथ खेलने लगा।।
दोनों पड़ोसी थे ,लता की माँ और मधुर की मामी में गहरा प्रेम था,एकदूसरे के घर खाना खिलाना,सुख दुख में साथ देना,दोनों परिवार एकदूसरे के साथ घुल मिलकर रहतें थें।।
पाँच साल की उम्र में ही मधुर अपने मामा मामी के पास रहने आ गया था और तभी से वो लता के साथ खेलने लगा था और लता मधुर से तीन साल बड़ी थी इसलिए हमेशा मधुर पर धौंस जमाती रहती,दोनों ऐसे ही हर साल बारिशों में नाव बनाकर तैराते,लेकिन जब लता बारह साल की हो गई तो उसकी माँ उसे बाहर जाने से मना करने लगीं, कहती कि तू अब बड़ी हो गई हैं लेकिन जब मधुर बुलाने आ जाता तो कैसे भी चोरी छिपे घर से भागकर बारिश में नाव बनाकर खेलने चली जाती,दोनों एक साथ स्कूल जाते,दोनों का स्कूल एक था लेकिन कक्षाएँ अलग अलग थीं क्योंकि लता तो तीन कक्षा आगें थी मधुर से।।
ऐसे ही दिन बीतते गए अब लता सोलह की हो रही थीं और मधुर तेरह साल का,लेकिन तब भी मधुर जिद करता लता के साथ खेलने की और अब लता को उसके साथ खेलने में अच्छा ना लगता वो कहती कि मैं अब बड़ी हो गई हूँ, तो मधुर कहता कहाँ बड़ी हैं तू,देख मैं तुझसे लम्बाई में बड़ा हूँ, लेकिन लता उसे समझा नहीं पाती कि वो अब तन और मन दोनों से बड़ी हो गई हैं।।
अब स्नेहलता अठारह साल की हो गई थी और उसने बाहरवीं पास कर ली,उसने काँलेज जाने के लिए कहा तो उसकी दादी ने उसके पिता से कहा कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने का कोई मतलब नहीं हैं आखिर अन्त में उन्हें करना तो चूल्हा चौका ही पड़ता है, इसलिए कोई अच्छा सा घर देखकर जल्दी से इसके हाथ पीले कर दो,जितनी जल्दी अपने घर की हो जाए तो अच्छा।।
अब मधुर पन्द्रह का था और स्नेहलता अठारह की,तब भी दोनों की दोस्ती में कोई कमी नहीं आई थी और ज्यादा पीछे पड़ने पर कभी कभी तो स्नेहलता कह देती कि तू मुझसे छोटा हैं,मेरा पीछा छोड़ दे , मैं तो अपनी बराबरी वालें लोगों से दोस्ती करूँगी,तब मधुर कहता कि___
तो क्या हुआ? राधा भी तो कान्हा से बड़ी थीं लेकिन उनकी मित्रता को तो लोग आज भी पूजते हैं, आज भी लोग राधा-कृष्ण जपते हैं, मित्रता का रिश्ता तो बहुत पवित्र होता हैं, जो कि सिर्फ़ त्याग की बोली बोलता हैं, अगर मित्रता करके मैं तुमसे कुछ पाना चाहूँ तो कैसी मित्रता? कृष्ण चाहते तो राधा से विवाह कर सकते थे लेकिन उन्होंने मित्रता के रिश्ते को कलंकित नहीं किया, हमेशा पवित्र रखा ,जिसे संसार आज भी पूजता है,कृष्ण की रानियों को वो स्थान नहीं मिला जो राधा को मिला,राधा ने संसार की भलाई के लिए कृष्ण का त्याग किया, उन्हें उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने को कहा,तो मित्रता कभी छोटी या बड़ी नहीं होती,वो तो केवल पवित्र और त्यागमयी होती है, अब बोलो हैं कोई जवाब, मधुर ने स्नेहलता से पूछा।।
हाँ...हाँ..तू बड़ा ज्ञानी है, अब जा और मुझे परेशान मत कर,लता बोली।।
चल ना थोड़ी देर खेलते हैं, मधुर ने कहा।।
नहीं रे! माँ देखेंगी तो बहुत डाँटेगी स्नेहलता बोली।।
और ऐसी कहा सुनी रोजाना ही होती दोनों के बीच में और कुछ दिनों में आठवीं पास होते ही मधुर के मामा ने मधुर का शहर के स्कूल में नौवीं में एडमिशन करा दिया और वो वहीं हाँस्टल में रहने लगा और इधर स्नेहलता की भी शादी तय हो गई।।
और अपने मन की बात बताने के लिए उस समय मधुर उसके पास मौजूद नहीं था,सावन भी लग चुका था और इस बार बारिश के पानी में नाव के साथ खेलने के लिए उसका साथी मधुर नहीं था,वो उसे बहुत याद करती, कहते हैं कि जब इंसान दूर चला जाता है तब उसकी अहमियत का पता चलता है लेकिन मधुर दो दिन के लिए गांव आया राखी की छुट्टी पर लेकिन लता उससे ना मिल पाई और जब तीसरे दिन वो वापस शहर जा रहा था तब नाव बनाकर लाया और लता से बोला आज दोपहर मैं वापस चला जाऊंगा और जब वापस शहर से लौटूंगा तो तुम ब्याह करके ससुराल चली जाओगी इसलिए ये नाव बनाकर लाया था कि आज आखिरी बार हम ये कश्तियां पानी में तैराएगे फिर कभी मौका मिले ना मिले, इतना कहते-कहते मधुर की आंखें भर आईं और उसने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया, इतना सुनकर लता,मधुर के गले से लगकर रो पड़ी,अब तो मधुर खुद को सम्भाल ना पाया और फूट फूटकर रो पड़ा , दोनों ने एक-दूसरे से कुछ भी नहीं कहा बस रोते रहे ...बस रोते रहें और तभी झमाझम बारिश शुरू हो गई ,दोनों एक-दूसरे से अलग हुए और दोनों ने रोते रोते पानी में नाव तैराई,तभी मामा, मधुर को बुलाने आ पहुंचे और मधुर चला गया और फिर उस दिन के बाद दोनों की कभी मुलाकात नहीं हुई क्योंकि मधुर पढ़ाई में उलझ गया और स्नेहलता ससुराल में और जब भी स्नेहलता ससुराल से आती तो मधुर शहर से ना पाता,इसके बाद स्नेहलता अपने पति के साथ चली गई जहां वो नौकरी करता था,इसके बाद लता की मां भी नहीं रही तो मायका जैसे छूट सा गया।
लेकिन आज लता अचानक से मधुर के सामने आ जाएगी इसका त्रिपाठी जी को विश्वास नहीं हो रहा था और उधर मिसेज स्नेहलता शर्मा भी यही सोच रही थीं।।
शाम का समय था,किशन सबके लिए सैण्डविच और चाय लेकर आया,
त्रिपाठी जी बोले__
किशन में मेरे लिए कुछ रद्दी पेपर ला सकता है।।
हां.. हां.. क्यों नहीं अंकल! लेकिन किसलिए किशन ने पूछा।।
अरे बग़ीचे में में मैंने देखा है कि गढ्ढो में पानी भरा है, वहां नाव बनाकर तैराऊंगा,क्या आप में से और कोई इसका आनन्द उठाना चाहेगा।।
सभी बोले,क्यो नही।।
और सब अपनी अपनी नाव बनाकर बग़ीचे में पहुंचे,साथ में लता भी,लता ने मधुर से कहा___
तुम अब भी नहीं भूले, बचपन की बारिश,कागज की नाव...
मधुर बोला__
तुम चली गई थी तो सब भूल गया था, लेकिन आज तुम्हें देखकर फिर से याद आ गई....
वो बचपन की बारिश़,कागज की नाव....

समाप्त__
सरोज वर्मा__





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