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अमर शहीद

सुबह 5:00 बजे रेलवे स्टेशन पर -

"मैं जानता हूँ बरखा इस बार बहुत रिस्क है , लेकिन ये रास्ता मैंने खुद ही चुना है । मैं एक सोल्जर हूँ , और अपने परिवार के साथ - साथ मुझे इस देश की भी रक्षा करनी है ।" रजत ने अपनी छोटीे बहन बरखा को समझाते हुए कहा ।
बरखा सिसकते हुए - " लेकिन भैया आपको अगर कुछ हो गया तो मैं कैसे रहूँगी , आपने तो शादी भी नहीं की , कि आपके बाद मैं अपनी भाभी के सहारे रह सकूँ ।"
रजत , बरखा को चपत लगाते हुए - पागल! इसीलिए तो नहीं की शादी जिससे किसी भी लड़की को मेरे लिए रोना न पड़े । माँ - पापा तो बचपन में ही छोड़ के चले गए , तेरे अलावा मेरा कोई था ही नहीं और पृथ्वी से तेरी शादी करा कर मुझे तेरी चिंता करने की भी अब जरूरत नहीं है। तो अब मैं सारी जिम्मेदारियों से फ्री होकर देश की जिम्मेदारी बिना किसी परेशानी के उठा सकता हूँ । है ना पृथ्वी?"
पृथ्वी - मैं अपनी तरफ से आपको शिकायत का मौका नही दूंगा भैया , लेकिन आपकी जगह मैं नहीं ले सकता । आप जाने से पहले एक बार और सोच लीजिये ।
रजत - तुम दोनो चिंता मत करो यदि मैं सही सलामत नहीं आया तो झंडे में लिपटा मेरा शरीर शान से तुम लोगों के पास आएगा । और तू गर्व से कह सकेगी कि 'रजत त्रिपाठी ' तेरा भाई था ।
बरखा - 'था' नहीं 'है' और हमेशा आप मेरे साथ ही रहोगे ।
'भैया जल्दी आओगेना " - बरखा ने भावुक होते हुए पूछा । उसकी आँखों में नमी साफ दिख रही थी।
रजत ने उसे अपने सीने से लगा लिया और हां में अपनी गर्दन हिला दी।
पीछे से ट्रेन का हॉर्न सुनाई देने पर रजत ने पृथ्वी से बरखा को संभालने का इशारा किया और अलविदा कह के चला गया। उसके जाने के बाद बरखा अपने आँसू रोक नहीं पाई और रो पड़ी । पृथ्वी उसे शांत कराने की कोशिश कर रहा था लेकिन बरखा रोते हुए बड़बड़ाये जा रही थी- सोच था भैया को रोक लूँगी , इसीलिए स्टेशन तक आ गयी पर मैं नहीं रोक पाई।
ये आखिरी बार है , इसके बाद मैं उन्हें कहीं नही जाने दूँगी।
आखिरकार पृथ्वी उसे शांत करा कर घर ले गया।

रजत को गए पूरे एक महीने हो चुके थे , इस बीच उसने कई बार बरखा से फोन पर बात भी की थी ।
बरखा रजत को जी भर के हिदायतें देती , और रजत उसकी बातों पर हँस के रह जाता ।
एक दिन बरखा ने रजत से बात करते हुए महसूस किया कि रजत की आवाज भारी हो रही है ।बरखा ने परेशान होते हुए पूछा - भैया! आप रोये हो क्या । आपकी आवाज काँप रही है।
रजत ने अपने आप को संभालते हुए उत्तर दिया - अरे नही पागल मैं क्यों रोऊंगा , ठंडा पानी पी लिया था तो गला बैठ गया है और मौसम भी खराब है तो नेटवर्क भी सही नहीं है बस इसीलिए ।
बरखा उदास होते हुए- भैया आपसे मिलना है , कब आएँगे । सारी लड़किया अपने मायके जाती है मैं कहाँ जाऊँ मेरे मायके में तो कोई है ही नही।
रजत ने उसे दिलासा देते हुए अगले हफ्ते आने की बात कही , हालाँकि वह जानता था कि अगले दिन होने वाले अटैक में उसकी जान को खतरा है पर वो चाह कर भी बरखा से ये नही बोल सकता था। उसे पता था अगर उसने कुछ भी ऐसा कहा तो बरखा न जाने क्या कर बैठेगी ।
बरखा से इधर उधर की बात कर रजत ने फ़ोन काट दिया।अब वो और झूठ नही बोल सकता था और वैसे भी बरखा एक बार उसके रोने को लेकर शक कर चुकी थी । अगली बार उसे यकीन हो जाता ।

दो दिन बाद -

बरखा परेशान होते हुए - पृथ्वी देखो न भइया का फोन नॉट reachable आ रहा है।तुम एक बार अपने फ़ोन से कॉल करो।
पृथ्वी - मैने भी सुबह ट्राय किया था पर नही लगा
इतने में बरखा के फोन पर unknown no से फ़ोन आने लगा । बरखा रजत के लिए परेशान थी और बार बार उसे कॉल कर रही थी इसलिए उस unknown no को रिजेक्ट कर रही थी ।आखिरकार उसने परेशान हो कर फ़ोन उठाया और झल्लाकर बोली - क्यों बार बार फ़ोन कर रहे हैं ? क्या काम....
बरखा इतना ही बोल पाई कि उधर से आवाज आई - आप रजत त्रिपाठी की फैमिली से बोल रही हैं ।

बरखा ने तुरन्त हा में जवाब दिया , उधर से आवाज आई - हमे दुख है कि हमने अपना एक काबिल सिपाही खो दिया है । इतना कहते ही बरखा के हाथ से फ़ोन छूट गया । पृथ्वी ने फ़ोन और बरखा को संभालते हुए फ़ोन को कान से लगाया तो फिर वही आवाज आई - रजत त्रिपाठी आज सुबह 5 :00 बजे हुए हमले में टीम का नेतृत्व करते हुए शहीद हो गए।हम उनके पार्थिव शरीर को लेकर 10 मिनट में उनके घर पहुंच रहे हैं ।
ये सुनते ही पृथ्वी 2 मिनट के लिए सुन्न पड़ गया , कुछ देर बाद जब उसे बरखा का ध्यान आया तो उसने पीछे पलट कर देखा जहां बरखा बिना किसी भाव के जमीन पर बैठी थी । पृथ्वी के आँसू खुद ब खुद निकलने लगे । वो भी वहीं पर रोते बैठ गया ,2-3 मिनट की खामोशी के बाद बरखा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा - घर मतलब मेरा और भैया का घर , हमें वहाँ चलना है पृथ्वी, चलो! ,भैया वहीं आएँगे।
पृथ्वी ने झट्ट से खुद को संभाला और बरखा को लेकर उसके घर पहुँच गया जहां रजत को पहले ही ले आया जा चुका था ।
रजत के घर के बाहर एक लंबी भीड़ जमा थी , सब को रजत के शहीद होने की खबर मिल चुकी थी , सभी की आँखें नम थीं ।
पृथ्वी और बरखा वहाँ पहुँच चुके थे , पृथ्वी ने जाकर बरखा के पास से घर की डुप्लीकेट चाबी ली और घर का दरवाजा खोल दिया । तब तक बरखा गाड़ी के पास ही खड़ी रही , उसकी हिम्मत ही नही हो रही थी रजत को उस हालत में देख पाने की।पृथ्वी ने रजत को लेकर आने वाले ऑफिसर्स से बात की और रजत को घर के अंदर ले जाया गया।
घर के अंदर ले जाने के बाद पृथ्वी बरखा को ढूढ़ने लगा , उसे बरखा दिख गयी जो अभी भी गाड़ी के पास ही बुत बनी खड़ी थी ।
पृथ्वी जबरदस्ती उसे अंदर ले गया । बरखा काँपते पैरों से रजत की ओर बढ़ रही थी और उसके पास पहुँच कर चुप-चाप बैठ गयी । बरखा केवल रजत का चेहरा निहारे जा रही थी । सभी की आँखों में आँसू थे सिवाय बरखा के ।
एक अफसर ने पृथ्वी से सहानुभूतिवस पूँछा - आपके भाई थे ।
बरखा के कान में 'थे' शब्द पड़ते ही , उसने बेरुखी से उत्तर दिया - थे नहीं हैं और हमेशा मेरे भाई मेरे साथ ही रहेंगे ।
सब ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा तो पाया कि उसकी आँखों में आँसू का एक कतरा भी नही था ।
बरखा ने फिर कहा - भाई हमेशा मेरे साथ हैं तो मैं क्यों आँसू बहाऊँ । और पृथ्वी भूल गए तुम भाई ने कहा था कि " झंडे से लिपटा मेरा शरीर जब आएगा तो गर्व से कहना रजत त्रिपाठी तेरा भाई है "- बरखा ने रजत की ही तरह रौबदार आवाज में कहा ।
मेरे भाई कहीं जा ही नहीं सकते क्योंकि वो अमर शहीद हैं ।
वहां पर खड़ा प्रत्येक व्यक्ति बरखा की बातों से प्रभावित हुए बिना नही रह सका ।
पृथ्वी तो सोच भी नही सकता था कि छोटी छोटी बातों पर बरसने वाली बरखा आज इतनी गहरी बात समझा देगी।

जय हिंद !


पर्णिता द्विवेदी


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