बेगम पुल की बेगम उर्फ़ - 6 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेगम पुल की बेगम उर्फ़ - 6

6 --

अगले दिन शाम के समय सारे बच्चे स्टैला के पीछे पड़ गए कि उसे उनके साथ घूमने चलना ही होगा |दादी जी तो पहले ही प्रबोध से उसे ले जाने के लिए कह चुकी थीं | इस समय सब बेग़म -पुल से होकर गुज़र रहे थे |

"एक अजीब सी फ़ीलिंग क्यों होती है यहाँ पर आकर ---" प्रबोध धीरे से जैसे स्वयं से बोल पड़ा |

" घटनाओं का वातावरण पर प्रभाव पड़ता ही है | आप इस जगह के बारे में नहीं जानते ---?" स्टैला ने अचानक आश्चर्य से पूछा |

"क्या--कुछ हुआ है क्या ?" प्रबोध और स्टैला की अब ख़ासी पटने लगी थी |

" उन दिनों मैं अपनी माँ के साथ यहीं थी --लगभग 5/6 साल पहले ---"

"आप यहाँ पर ----?" प्रबोध को कुछ आश्चर्य हुआ |

"ओह ! आप नहीं जानते न, मैं छोटी थी उन दिनों अपनी मम्मा-डैड के साथ यहाँ आती थी, हम लोग एक साल में एक बार तो आ ही जाते थे --" स्टैला ने बताया |

"यहाँ ? क्यों?---" प्रबोध को अचानक ही वह लड़की एक कहानी लगने लगी |

"मेरे नाना जी का घर यहीं था न ---? बेग़म बाग़ के पास ----वैसे मेरी मम्मा सरदार थीं, पँजाब की थीं लेकिन नाना जी यहाँ आ गए थे | मेरठ का मेन-मार्किट है न, वहीं नाना जी का एक रेस्टोरेंट था, बेग़म-पुल पर भी कपड़े की एक दुकान थी जो उन्होंने अपने छोटे भाई को दे दी थी ---"

"अरे ! ये तो खूब बोलती है लड़की ---इतनी बढ़िया हिंदी ! मैं सोच रहा था कैसे इतनी अच्छी हिंदी बोलती हो ?" प्रबोध खुलकर हँस दिया, अच्छा लग रहा था उसे स्टैला का साथ और उसका बात करने का सलीका ! सारे बच्चे अपनी ही धुन में आगे निकल गए थे | इतना बड़ा बाज़ार जिसमें मन को आकर्षित करने की अनेकों दुकानें थीं | विंडो शॉपिंग बच्चों का खास शगल था | ऐसे ही घूमते-घामते कोई न कोई नई दुकान या खाने-पीने के ठिकाने ढूँढ लाते थे वो बच्चे !

"आपको नहीं पता न, दादी जी को सब पता है ---" वह धीमे से मुस्कुराई |

"हाँ, आप बेग़म पुल के बारे में बता रही थीं ---"

" इस पुल के नीचे एक अंधी औरत रहती थी जो वहाँ उस कोने पर बैठकर भीख माँगती थी --" स्टैला ने उस बड़े से पुल की ओर इशारा करके एक जगह पर इशारा किया |

"यह कबकी बात है ---?" प्रबोध ने स्टैला से पूछा | वह बचपन से मेरठ आ रहा था लेकिन उसे इस सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी |

"कोई पंद्रह/सोलह साल पहले ---फिर मैं इंग्लैंड चली गई थी |नाना जी, नानी जी के एक्सीडैंट की ख़बर सुनकर मम्मी के साथ आई थी | उनके रेस्टोरेंट में आग लगने से नाना जी, मामा जी और एक वर्कर की डैथ हो गई थी ----"स्टैला की आँखें आँसुओं से भर आईं |

"नाना जी की हालत देखकर नानी जी को हार्ट अटैक आ गया और वो भी चली गईं |"

"ओह ! सॉरी, स्टैला ----" संवेदनशील प्रबोध के मन को एक धक्का सा लगा |

"इट्स ओ.के, लाइफ़ मीन्स एनीथिंग कैन बी हैप्पंड ---" स्टैला ने अपने आँसुओं को पोंछते हुए कहा |

वातावरण भारी होने लगा था , कुछ सहज होने के अंदाज़ में प्रबोध ने पूछा ;

" आप किसी औरत के बारे में कुछ कह रही थीं -----"

"ओ ! दैट ब्लाइंड पूअर वूमैन ! यह भी उतनी ही तकलीफ़ की बात है, उस औरत के साथ कोई भी आकर रेप कर जाता था जबकि इस पुल के नीचे कई लोगों ने अपनी झौंपड़ी बना रखी थीं लेकिन पता ही नहीं चलता था या लोग पता ही नहीं लगने देते थे या फिर वो लोग ही ----जवान माँस की गंध संतों को भी पागल कर देती है --लेकिन जब उस औरत के लगातार दो साल तक बच्चे हुए तब ----" बोलते-बोलते वह रुक गई, एक लंबी आह भरी फिर बोली ;

"जब भी उसके बच्चा होता पूरे बाज़ार में शोर मच जाता 'धूल का फूल हो गया '! उन बच्चों को पालने के झंझट से छूटने के लिए लोग उन्हें किसी अनाथ आश्रम के बाहर छोड़ आते | मैंने सुना, वह चिल्लाती थी 'मेरा बच्चा' --'मेरा बच्चा दो ---'! स्टैला की आँखें फिर से भीग गईं |

"उसकी समस्या से जूझते हुए नाले के नीचे रहने वाले लोगों ने किसीसे मिलकर सरकारी अस्पताल में उसका यूट्रस निकलवा दिया-----काश ! वह बंजर होती ! वैसे भी पूअर वुमैन देख तो पाती नहीं थी और लोग उसके शरीर को नोचने से छोड़ने वाले थे नहीं --- "

"ओह ! ----और ये धूल का फूल --क्या है ?"प्रबोध ने अचकचाकर पूछा, उसका दिमाग़ सुन्न पड़ता जा रहा था |

"मेरी मम्मा ने बताया था कोई एक हिंदी पिक्चर आई थी 'धूल का फूल ' जिसमें हीरोइन के अनमैरिड लाइफ़ में बेबी हुआ था, उसने उस बच्चे को कहीं फेंक या छिपा दिया था | तबसे जब कोई भी ऐसा केस होता लोग 'धूल का फूल' कहकर मज़ाक करने लगते थे ---दादी जी को यह बात मालूम है ---"प्रबोध सन्न रह गया  , कैसे देह को इस प्रकार कुचलना एक आम बात थी !

"मुझे नहीं मालूम, वैसे यहाँ लोगों के पास इन सब बातों के लिए बहुत टाइम होता है ---"वह अनमना हो उठा था |

" एक्चुअली, ओनली कल्चर इज़ डिफ्रेंट ---जहाँ मौका मिल जाए शरीफ़ लोगों की शराफ़त बाहर आ जाती है | सब जगह सब तरह के लोग होते हैं ---आपको क्या लगता है विदेशों में नहीं होते ? इंसान अच्छाई-बुराई से मिलकर ही तो बना है | चाहे कहीं का भी क्यों न हो | यहाँ जो प्यार, लगाव व परवाह है, वह वहाँ और तरह से है लेकिन इंसान सेनज़िटिव तो होता ही है बेशक उसके दिखाने का तरीका अलग होता है | " स्टैला काफ़ी समझदार व गंभीर लड़की थी | कैसी दार्शनिक बातें करती थी |

'समय इंसान के जीवन में कैसे-कैसे परिवर्तन ला देता है' प्रबोध ने सोचा और एक लंबी साँस खींची |

"जीवन को पकड़कर रखेंगे तो डोर छूट जाएगी, ज़ोर से खींचेंगे तो टूट जाएगी, जीवन को समय के साथ बहने देना होगा ---"स्टैला ने दार्शनिक गंभीरता से कहा !

" कितनी पुरानी बातें याद हैं आपको ----" प्रबोध ने यूँ ही कह दिया |

"सर, आदमी कहाँ भूलता है कुछ, वह छिपाने की कोशिश करता है --लेकिन छिपा कहाँ पाता है ? वैसे हर समय मन दुखने वाली बातों को याद करने से भी कोई फ़ायदा नहीं है --है --न ?"

"ये मुझे सर कहना छोड़ो, दोस्ती ही ठीक है ----" प्रबोध ने कहा लेकिन स्टैला ने जैसे कुछ सुना ही नहीं, वह बोलती रही ;

" सुना है, उस औरत को लोगों ने अपनी प्रॉपर्टी समझ लिया था, लोग उसे छेड़ते थे 'बेग़म पुल की बेग़म' जो चीथड़ों में घूमती थी, जो कुछ उसे मिल जाता खा लेती फिर पड़ी रहती पुल के नीचे | वह भी शुरू-शुरू में चीख़ी चिल्लाई, बाद में चुपचाप अपने ऊपर ज़ुल्म सहती रही | एक दिन इसी बेगम पुल पर उसे कोई गाड़ी टक्कर मारकर चली गई |" स्टैला बेहद दुखी हो गई थी |

कमाल है ! उसे इन सब बातों के बारे में कोई सूचना नहीं थी जबकि यह लड़की सारी बातें ऐसे सुना रही थी मानो उसके सामने ही सब घटित हुआ हो |

" लेकिन आपको ये सब बातें कैसे ---?"

" मेरठ सिटी अस्पताल में मेरे दोस्त डॉक्टर हैं, वे सब बातें मुझे बताते रहे हैं ---"

मन में जैसे एक तनाव सा पसर गया था |

बच्चे घूम-घामकर वापिस आ गए थे, इन दोनों को एक कॉफ़ी-कॉर्नर पर खड़े देखकर चिल्लाए ;

"क्या दादा ! आज हम यूँ ही चले जाएंगे ?"जब प्रबोध को मस्का लगाना होता, बच्चे उसे इसी संबोधन से पुकारते |

"नहीं, ये लो ---आइसक्रीम खानी है न ? "प्रबोध ने पूछा |

" हाँ--काम चला लेंगे इसीसे ---" चेहरे पर बेचारगी के से भाव लाकर तनु-मनु एक साथ बोल पड़ीं और प्रबोध के हाथ से रूपये लगभग खींचकर वे सारे बच्चों के साथ आइसक्रीम पार्लर की ओर भागने लगीं | फिर उनमें से किसी ने पीछे मुड़कर पूछा ;

"आप लोग --क्या लेंगे ?"

"नहीं, मैं कुछ नहीं, स्टैला आप ?"

"नो, थैंक्स ----"

दोनों का मन भारी था, कैसा नृशंस है समाज | देह की ज़रूरत जो है तो बहुत महत्वपूर्ण लेकिन मनुष्य को कैसा पशु बना देती है !