भाग 5
जल्द ही रीता की शादी ठीक हो गयी. उसकी शादी रांची की फैक्ट्री में कार्यरत एक इंजीनियर से हो रही थी. विदाई के समय रीता की माँ मीरा ने अपने दामाद सोहन से कहा “ पाहुन, हमलोगों की एक प्रार्थना है. रीता को आगे पढ़ने की इच्छा है. सुना है रांची में एम ए पढ़ाई की सुविधा भी है. रीता को आगे पढ़ने का कम से कम एक मौका आप जरूर देंगे. “
सोहन बोला “ हां, हां क्यों नहीं ? मैं भी चाहूंगा रीता आगे पढ़े, मुझे भी अच्छा लगेगा और उस पर गर्व महसूस करूंगा. मेरे घर से रांची यूनिवर्सिटी भी ज्यादा दूर नहीं है. वह चाहे तो रेगुलर कॉलेज जा कर पढ़े या प्राइवेट पढ़े, उसकी मर्जी पर है. पढ़ाई पूरा कर रीता चाहे तो लेक्चरर भी बन सकती है या अन्य कोई नौकरी भी कर सकती है. “
यह उत्तर सुन कर रीता के सभी घर वाले बहुत खुश हुए. शादी के बाद रीता अपने ससुराल रांची आ गयी. यहाँ वह प्राइवेट एम ए की तैयारी करने लगी. इसी बीच मोहन का प्रमोशन हुआ और वह डाक विभाग में सहायक अधीक्षक बना. पर इस प्रमोशन की एक शर्त थी कि उसे बिहार से बाहर उड़ीसा ( अब ओडिशा ) या असम जाना होगा क्योंकि बिहार सर्किल में असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट की कोई वैकेंसी नहीं थी. सभी ने मिल कर फैसला किया कि असम बहुत दूर होगा इसलिए उड़ीसा जाना ठीक रहेगा. उसकी नौकरी सिर्फ दो साल ही बची थी. वह राज्य से बाहर नहीं जाना चाहता था क्योंकि गीता और आकाश दोनों कॉलेज में थे. दूसरे राज्य में भाषा और अलग सिलेबस ले कर कुछ समस्या होगी. पर कमला और रीता दोनों चाहती थीं कि मोहन एक अफसर बने. रीता ने अपने पति से अपने भाई और बहन की समस्या के बारे में बात की.
सोहन ने कहा “ अगर मेरी साली और मेरा साला यहाँ रह कर पढ़ने को तैयार हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है. “
पति की बात से निश्चिन्त हो कर रीता ने अपने पिता से कहा “ गीता और आकाश दोनों रांची आ कर पढ़ सकते हैं. मैंने सोहन से बात कर ली है. उसी ने यह सलाह दिया है. अब आप चैन से उड़ीसा जा सकते हैं. “
मोहन अपनी पत्नी मीरा और माँ कमला के साथ उड़ीसा में सम्बलपुर चला गया. यहाँ उसे एक सरकारी बंगला भी मिला. पहली बार इतने बड़े घर में रहने का मौका मिला था. कमला अपना सिलाई मशीन साथ ले कर उड़ीसा आना चाहती थी पर मोहन ने कहा “ अब उसका क्या काम है ? दो साल बाद रिटायर होने के बाद वापस अपने शहर ही लौटना होगा. वैसे भी अब तुम्हें सिलाई कहाँ करनी है ? “
उड़ीसा आने के पहले मोहन ने अपने घर को एक केयर टेकर के हवाले कर दिया. गीता और आकाश दोनों बड़ी बहन के पास पढ़ने के लिए रांची आ गए. दूसरे राज्य में जा कर बची पढ़ाई पूरी करना कठिन था, भाषा के साथ सिलेबस बदल जाता. गीता स्नातक फाइनल ईयर में थी और आकाश उससे एक साल पीछे था. गीता के बी ए पास करने के बाद रीता ने उसकी शादी तय कर दी. लड़का उसके ससुराल का था और दूर के रिश्ते में उसका देवर लगता था. वह लड़का टाटा की एक फैक्ट्री में चार्जमैन था. टाटा से रांची ज्यादा दूर भी नहीं है, और उड़ीसा भी टाटा और रांची से ज्यादा दूर नहीं है. सभी लोग आसपास ही रहेंगे. मोहन और उसकी माँ कमला दोनों बहुत खुश हुए.
इधर शादी के एक साल बाद रीता माँ बनने वाली थी. कमला को जब पता चला तो उसने मोहन से कहा “ बेटे, मैंने अपने सभी बच्चों को अपने हाथों से कपड़े सिल कर पहनाये हैं. अब परपोता या परपोती जो भी आने वाली संतान है उसके लिए भी खुद कपड़े सिलने के लिए जी मचल रहा है. तुमने मुझे सिलाई मशीन लाने नहीं दिया, अब मैं कैसे कपड़े सिलूँगी ? “
“ माँ, अब इस उम्र में तुम फिर सिलाई करोगी ? आजकल रेडीमेड का ज़माना है, एक से एक अच्छे कपड़े मिलेंगे. जितना जी चाहे खरीद कर दे देना. तुम्हारी आँखें भी कमजोर हो गयी हैं, अब तो कम से कम सिलाई छोड़ो. तुम्हें जितने कपड़े चाहिए, बाजार चल कर अपनी पसंद के ले लेना. भगवान् की कृपा और तुम्हारे आशीर्वाद से तुम्हारा बेटा अब इस काबिल हो गया है कि तुम्हारी जरूरतें पूरी कर सके. “
“ बात सिर्फ पैसे की नहीं है बेटा. मेरे मन को संतोष नहीं होगा जब तक मैं पहले की तरह परिवार के सभी बच्चों को पहली बार खुद का सिला नया कपड़ा न पहनाऊँ. मेरी मशीन मंगवा दे, वह अभी भी ठीक काम करती है. थोड़ा तेल डालने पर पहले की तरह दौड़ने लगेगा. “
मोहन मशीन वाली बात किसी तरह से टालना चाहता था पर उसकी माँ कमला अपनी जिद्द पर अड़ी थी “ मुझे मेरी मशीन ला दो, मैं अपनी मशीन पर खुद कपड़े सिलूँगी. मैंने कुछ नए कपड़े बचा के रखे हैं. लगभग सभी रंग के इतने कपड़े हैं कि उनसे छोटे बच्चों के दो चार कपड़े बना सकती हूँ. “
“ माँ, मैं यहीं पर एक नयी सिलाई मशीन ले देता हूँ. तुम्हें इतना ही शौक है तो फिर आराम से सिल लेना नयी मशीन पर. “
“ नहीं मुझे मेरी पुरानी मशीन ला दो, मेरे हाथों को उस पर काम करने की आदत भी है. सबसे बड़ी बात वह तेरे बाबूजी की धरोहर है, इसी की बदौलत मैंने तुम लोगों को अपने पाँव पर खड़ा होने लायक बनाया है. इसे मेरी अंतिम इच्छा समझ कर पूरी कर दो. “
“ अच्छा, मैं कोशिश करता हूँ तुम्हारी मशीन मँगवाने की. मैं खुद तो जा नहीं सकता हूँ, देखता हूँ किसी को तैयार करता हूँ घर भेजने के लिए. “
कमला भावनात्मक रूप से उस मशीन से जुडी थी. रीता को फोन पर जब दादी की बात पता चली तो उसने दादी की अंतिम इच्छा पूरी करनी चाही. बिना किसी को बताये तुरंत रांची से एक आदमी को घर भेज कर दादी की मशीन मंगवाने का प्रबंध किया. तीन दिनों के बाद दादी की सिलाई मशीन उड़ीसा पहुंच गयी. अचानक मशीन देख कर वहां सबको बहुत आश्चर्य हुआ. मशीन के साथ रीता ने एक चिठ्ठी भी भेजी थी, जिसे पढ़ कर सारा मामला मोहन और कमला की समझ में आया. तब तक रीता का फोन भी आया, उसने पापा से कहा “ दादी ने हम सभी के लिए इतना कुछ किया है, तो क्या मैं इतना भी नहीं करती अपनी प्यारी पूजनीय दादी के लिए और खास कर जब उन्होंने इसे अपनी अंतिम इच्छा बतायी है. “
फिर रीता ने दादी से भी बात किया “ दादी, मैंने आपकी मशीन भेजी है. छठ्ठी के दिन मेरा बच्चा आपके हाथों का ही सिला नया कपड़ा पहली बार पहनेगा.छठ्ठी के पहले बच्चे को नया कपड़ा पहनाने का रिवाज़ हमारे ससुराल में नहीं है. यह मेरे लिए और उसके लिए बहुत सौभाग्य की बात होगी. मैं आपके सिले कपड़ों का इंतजार करूंगी. आपकी पसंद ही हमलोगों की पसंद है. बचपन से आपके हाथों के सिले कपड़े पहन कर बड़े हुए हैं हम सभी, आपके बच्चे और आपके बच्चों के बच्चे यानि हम तीनों भाई बहन. अब एक और नयी पीढ़ी को आपके सिले कपड़े पहनने का सौभाग्य मिला है. मैं आपके बनाये कपड़े का इंतजार करूंगी “
अपनी पुरानी मशीन देख कर कमला इतनी खुश हुई जैसे कि कोई बड़ी लौट्री लग गयी हो. उसने मशीन में तेल डाल कर उसे चालू किया, शुरू में कुछ नखरे दिखाए मशीन ने. कुछ चें चों की आवाज निकालने के बाद फ्री होने पर मशीन काम करने लगी. फिर कमला ने अपना चश्मा साफ़ किया और कपड़े सिलने बैठ गयी. दो दिन के अंदर बच्चे के लिए अलग अलग साइज के कुछ कपड़े बना डाले. फिर मोहन को दे कर कहा “ इन्हें रीता के यहाँ पार्सल कर दो. बच्चे के जन्म में ज्यादा दिन शेष नहीं हैं. उसके यहाँ छठ्ठी के पहले कपड़े पहुँच जाने चाहिए. “
इधर रीता के यहाँ छठ्ठी का उत्सव था. उसे बेटा हुआ था. इस अवसर पर रीता की माँ और उसके भाई बहन भी टाटा आये थे. उसके पापा नहीं आ सके थे, वे बूढी माँ कमला को अकेले नहीं छोड़ना चाहते थे. रीता का बेटा अपनी परदादी के कपड़े पहने था. कमला फोन पर अपने परपोते को ढेर सारे आशीर्वाद दिए जा रही थी. उसने रीता से कहा “ तू मेरी सबसे प्यारी पोती है. तुमने मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर दी. गीता और आकाश के बच्चों का शायद मुंह भी न देख पाऊं. “
“ नहीं दादी, ऐसा न कहें. आप उनके भी मुंह देखेंगीं और उनके लिए भी कपड़े सिलेंगीं. “
“ मैंने उनके लिए भी एक दो सिल रखे हैं, कुछ और सिलने हैं. उन्हें भी जल्द ही सिल दूँगी. “
“ आप को मशीन मिल गयी अब आपको जो जी चाहे सिलाई करें. पर अपने शरीर को तकलीफ दे कर नहीं दादी. आपका आशीर्वाद हम लोगों के लिए कपड़ों से ज्यादा जरूरी है. “
कमला फिर अपनी मशीन ले कर बैठ गयी और बच्चों के कपड़े सिलने लगी. मोहन ने पूछा “ अब किसके लिए सिल रही हो ? “
“ गीता और आकाश के बच्चों के लिए. रीता ने कहा है कि वे भी मेरे सिले कपड़े पहनेंगे. “
“ माँ, गीता के माँ बनने में अभी बहुत दिन हैं और आकाश की तो अभी शादी भी नहीं हुई है. “
“ फिर भी, मैं सिल देना चाहती हूँ. आँखें भी दिन ब दिन कमजोर होती जा रही हैं और पता नहीं कब बुलावा आ जाए. मैं नहीं चाहती कि गीता या अशोक को शिकायत करने का कोई मौका मिले कि दादी उनके बच्चों के समय परिवार की परम्परा भूल गयी. “
उस रात भी कमला अपनी मशीन खोल कपड़े सिलने बैठ गयी. मोहन ने कहा “ माँ, अब सो भी जाओ. तुम्हें सुबह जल्दी उठ कर सूर्य देव को जल अर्पण करने की आदत जो है. “
“ हाँ, मैं भी थकावट महसूस कर रही हूँ. बस ये वाला ड्रेस जो मशीन पर चढ़ा रखा है उसे खत्म कर लूँ. “
नवजात बच्चे की साइज़ के दो या तीन कपड़े सिले होंगे कि थक कर बिस्तर पर जा गिरी. पर वह अगली सुबह सूर्योदय नहीं देख सकी.घर के लोगों ने देखा कि सुबह अपने बेड पर सिलाई मशीन के बगल में वह शांत पड़ी थी.
मोहन ने कहा “ माँ कितनी खुद्दार थी. जीते जी अपनी मेहनत से बच्चों का पालन पोषण किया. मरी भी इस तरह कि किसी से एक बूँद पानी तक न माँगा. हम में से किसी को सेवा करने का मौका तक न दिया. “