दूर नीड के पक्षी Jai Prakash Pandey द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दूर नीड के पक्षी

एयरपोर्ट के लांज में अखबार के पलटने के साथ आनन्द प्रकाश की आँखे सामने लगी स्क्रीन पर थी | जिस पर दिल्ली एयरपोर्ट पर आने और जाने वाली फ्लाइट्स के बारे में दिखाया जा रहा था | वाशिंगटन जाने वाली फ्लाइट्स का डिटेल अभी दिखाया नही जा रहा था | वे फिर से अखबार के पन्नों में गड़ गये | पांच वर्ष की बच्ची के साथ रेप, एक बड़े अधिकारी की गिरफ्तारी, देश के कोने में बाढ़ पीड़ितो को बांटी जा रही खाद्य सामग्री में कंकर पत्थर की मिलावट आगामी चुनाव की सरगर्मी में कुछ नेताओं द्वारा धडाधड पार्टी बदलने की खबरों से उनका मन अकुलाने लगा | वे चहलकदमी करने लगे किन्तु इस बुढ़ापे में ज्यादा देर घूम भी न सके | वे आकर फिर से मोटे गद्देदार सोफे में समा गये | आँख बन्द कर वे अतीत की गलियों में खो से गये |

आनन्द प्रकाश भारत सरकार में एक बड़े अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति हो चुके थे | एक मध्यम परिवार में जन्मे आनन्द प्रकाश पांच भाई एवं तीन बहनों में पिता की तीसरी सन्तान थे | पिता को छोटा सा व्यापार था | बंटवारे के बाद उनके बाबा जी आकर पानीपत के पास बस गये थे और एक छोटी सी दुकान खोल ली | किसी तरह परिवार का गुज़ारा चल निकला | बाबा जी के देहान्त के बाद पिताजी ने पुश्तैनी काम संभाल लिया था किन्तु पिताजी को इस बात का अंदाज़ा था कि शिक्षा ही प्रगति का सबसे बड़ा माध्यम है | इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को समुचित शिक्षा दिलाने का प्रयास किया | सभी बच्चें पूरी शिक्षा प्राप्त कर अच्छी-अच्छी पोजीशन पर लग गये | कुशाग्र बुद्धि के आनन्द प्रकाश भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास कर अधिकारी बन गये |

मध्यमवर्गीय संस्कारो में पले–बढ़े आनन्द प्रकाश अपने कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित और इमानदार रहे | उनके काम को चारो तरफ प्रशंसा मिलती | समय तेज़ी से निकल रहा था | साथ ही में पोस्टेड रागिनी को देखकर आनन्द प्रकाश कब भावनाओं के जाल में उलझे और आकर्षण के प्रवाह में बहते चले गये, पता ही न चला | रागिनी तेज-तर्राक अधिकारी थी | आनन्द प्रकाश की कर्तव्यनिष्ठा, लोकप्रियता एवं कार्य के प्रति समर्पण से वह भी प्रभावित थी | यद्यपि उन दोनों में ज्यादा मिलना जुलना नही होता था | एक साथ काम करते हुए भी अलग-अलग दफ्तरों में होने के कारण ज्यादा सम्पर्क नहीं था | एक दिन अचानक किसी कार्य के सिलसिले में रागिनी ने आनन्द प्रकाश से कुछ आधिकारिक जानकारी क्या मांगी आनन्द प्रकाश के हृदय के कपाट ही खुल गये जैसे बाढ़ का सैलाब बिना किसी रुकावट के सब कुछ ले लाता है | उसी प्रकार आनन्द के अवचेतन मन में बैठा प्रेमी जग सा गया | धड़कते दिल, कांपती आवाज़ और उमड़ती भावनाओं के साथ उन्होंने रागिनी के प्रश्नों का जवाब तो दे दिया किन्तु अपने आवेग को रोक न सकें | बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और जल्द ही वे विवाह-बंधन के पवित्र-सूत्र में बंध गये |

विवाह के तीन साल बाद अमन का जन्म उनके जीवन में एक बड़ी सौगात लेकर आया | अगले दो सालों में रिया का जन्म हुआ और परिवार पूरा हो गया | बच्चों को बड़े होते देखना, बचपन की किलकारियों में आनन्द और रागिनी की जिन्दगी खुशियों का सागर बन रही थी | जिसमें दोनों पति-पत्नी गोते लगा रहे थे | अमन स्कूल जाने लगा | व्यस्तता बढ़ती चली गयी | बच्चों की अच्छी तरह परवरिश हो इसलिए रागिनी ने नौकरी छोड़ने का निर्णय किया |

आनन्द और रागिनी अमन और रिया के पालन पोषण में व्यस्त हो गये | छोटे बच्चों के नाज़ नखरे, कभी बीमारी तो कभी एडमीशन की चिन्ता में दिन कटने लगे | धीरे-धीरे अमन और रिया ने प्राइमरी के बाद मिडिल की परीक्षा पास कर ली और एक दिन ऐसा आया जब अमन ने इन्टरमीडिएट की परीक्षा में पुरे कालेज में टॉप किया | आनन्द एवं रागिनी की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा | बेटे की प्रतिभा और लगन को देखकर उसे उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने की बात होने लगी | रागिनी के दिल में हूक सी उठी अपने जिगर के टुकड़े को बाहर भेजने की बात वह कैसे सोच सकती है | जिसके लिए उसने अपनी नौकरी छोड़ दी | प्ले स्कूल में पहली बार छोड़ कर आने से लेकर कक्षा आठ तक प्रतिदिन स्कूल छोड़ने तक प्रत्येक दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गया किन्तु अमन के उज्जवल भविष्य और सभी सगे सम्बन्धियों के समझाने पर उसे यह बात माननी पड़ी | आनन्द तो जैसे निःशब्द हो गये थे |

प्रशासनिक मामलो में पल भर में सटीक निर्णय लेने के लिए मशहूर आनन्द किंकर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में थे | सब कुछ त्वरित गति से हो रहा था | अमन ने सैट परीक्षा पास की | जल्द ही उसे स्टैनफोर्ड विश्वविध्यालय में प्रवेश का प्रस्ताव मिल गया | फ़िल्मी पर्दे पर चल रहे सीन की तरह घटनाक्रम बदल रहा था और अन्त में वह दिन आ गया जब दाखिले और वीजा की सभी प्रक्रिया पूरी कर अमन इसी हवाई अड्डे पर विदेश जाने के लिए खड़ा था | रागिनी की आँखों से आंसुओ की धार बह रही थी | विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालय में प्रवेश की ख़ुशी उसके बाद बेहतर कैरियर की आशा से जहाँ आनन्द रोमांचित थे वही जिगर के टुकड़े को दूर भेजने से उसका दिल बैठा जा रहा था | रागिनी को ढाढस बढ़ाने बेटे को समझाने और सारे इंतेजाम की व्यवस्था में वे अपने आवेग को रोकने का प्रयास करते रहे थे किन्तु जैसे ही अमन का विमान रन-वे पर रेंगने लगा | रागिनी और रिया से लिपट कर भभक-भभक कर आनन्द रो पड़े थे | यहाँ तक कि रागिनी भी अवाक् रह गयी थी | आनन्द को इतना भावुक उमड़ते और आवेगमय उसने कभी नही देखा था | दोनों भरे मन से बिना किसी से बातें किए एयरपोर्ट से घर आ गये थे खुद में खुद को सहेजते समेटते और समझाते |

दो साल बाद रिया ने भी इन्टरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली | इस बार रिया को स्नातक कोर्स के लिए दिल्ली में ही पढ़ाने का फैसला किया गया | अमन के बाहर भेजने के निर्णय से वे अभी भी आहत थे | बच्चों की पढ़ाई आगे बढ़ती गयी | अमन ने स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में टॉप किया और वहीं उसे पी० एच० डी० में एडमीशन मिल गया | रिया भी दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद परास्नातक की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का फैसला किया | अबकी बार फिर वही पशो-पेश में कई दिन बीते किन्तु एक बार फिर बच्चों की इच्छा और बेहतर भविष्य के आगे पति पत्नी को वात्सल्य प्रेम की कुर्बानी देनी पड़ी और रिया भी आगे की पढ़ाई के लिए विदेश की धरती के लिए फुर्र हो गयी | बच्चें उन गौरेया के क बच्चों की तरह हो गये थे जो पंख निकलते ही उन्मुक्त गगन में उड़ जाते है, अपने चारे की खोज में नये आशियाने की तलाश में |

अमन डाक्टरेट की पढ़ाई कर स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हो गया | रिया कोलम्बिया विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलोजी में परास्नातक कर एक बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में नियुक्त हो गयी | एक तरफ जहाँ बच्चों के अच्छे पद प्राप्त कर लेने और उच्च वेतन की ख़ुशी थी वही एक चिंता दोनों को अन्दर से खाये जा रही थी कि अब बेटे-बेटी के भारत वापस आने की सम्भावना कम हो गयी थी |

अब तक आनन्द अपने विभाग के उच्चतम पद पर पदोन्नत हो चुके थे | पद प्रतिष्ठा एवं ऑफिस की ताम-झाम से घर पहुचते तो घर खाने को दौड़ता | रागिनी इधर-उधर की गतिविधियों में अपने व्यस्त रखने का प्रयास करती | जब भी दोनों पति-पत्नी साथ बैठते तो बच्चों की कितनी ही बातें करते | उनकी छोटी-छोटी हरकतों को याद करते उनके एक-एक खिलौने, कपड़ें और निशानियों को रागिनी ने सम्भाल कर रखा हुआ है | भला हो स्काईप का कि कभी-कभी बच्चों से स्काईप वीडियो कालिंग पर बात हो जाती | यद्यपि दोनों देशों के समय के अन्तर एवं बच्चों के काम पर आधारित व्यस्तता के कारण बात भी अक्सर नही हो पाती |

दोनों बच्चों की शिक्षा पूरी हो गयी है | दोनों की उम्र भी काफी हो गयी थी | स्वाभाविक हैं कि माँ बाप को शादी की चिन्ता सताने लगी थी | रागिनी अक्सर विवाह की बात करना चाहती किन्तु बच्चें बड़ी सफाई से बात को टाल जाते | कभी कोई मीटिंग, कभी कोई कोंफ्रेंस, प्रजेन्टेशन, प्रोजेक्ट और टारगेट के बोझ से ज़िंदगी घिसट रही थी | व्यस्तता का आलम यह कि अमन और रिया फ़ास्ट फूड खाकर जिन्दा थे क्योंकि घर पर खाना बनाने का समय ही नहीं मिलता था | रिश्तें के नाम पर शून्यता थीं | रिश्तेदार और ईष्टमित्र शादी के रिश्ते ले आते किन्तु सात समुंद्र पार बैठे बच्चों के लिए माँ बाप क्या निर्णय लेते | रिश्तेदारी में एक लड़की तो रागिनी ने पसन्द भी कर ली थी | सुन्दर नाक-नक्श और एम० बी० ए० लड़की को देख रागिनी ने बहू के कितने ही सपने बुन लिए थे |

रागिनी ने सोच भी लिया था कि बहू को कौन से गहने देने है | बच्चों की पढ़ाई के बड़े खर्चे और घर-गृहस्थी के नियमित खर्च के बाद बड़े मुश्किल से बचाए पैसों से जो थोड़े से गहनें रागिनी ने बनवा रखे थे उन्हें वह अपनी बहू को देने का मन बना चुकी थी | शादी किस तरह होगी, कौन-कौन से लोग आयेंगे, इस पर पति-पत्नी कई बार विचार और बहस कर चुके थे | किन्तु बेटे के हर बार टाल देने से कोई बात आगे नही बड पा रही थी और रागिनी अपना मन मसोस कर रह जाती | रिश्तेदारी में बात होने पर वह बेटे के ओहदे और उसकी व्यस्तता का हवाला देकर केवल इतना कहकर टाल देती कि अभी उम्र ही क्या है अमन की | और हाँ शादी तो मेरा बेटा अपने माँ बाप की मर्जी से ही करेगा |

रिया की शादी की बात भी उतनी ही संजीदगी से होती | जवान बेटी विदेश में अकेले रह रही है | इस बात पर रागिनी को कई बार जेठानियों एवं देवरानियों के ताने भी सुनने को मिलते थे किन्तु रिया तो सुनने को तैयार न थी | शादी की बात करने पर वह बात को पलट देती और हँस कर कहती “मम्मी जब शादी करनी होगी तो मै बता दूंगी” | माँ- बाप बच्चों से छुट्टियों में घर आने की जिद करते रहते | अमन पिछले नौ वर्षो से केवल दो बार और रिया पांच वर्षो में केवल एक बार भारत आयी थी | एक दिन अचानक रिया ने भारत आने की बात कही और बताया कि वह क्रिसमस की छुट्टियों में वह दिल्ली आयेगी | आनन्द और रागिनी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा | दोनों पुरजोर बेटी की स्वागत की तैयारी में लग गये | एक-एक दिन मुश्किल से कट रहे थे | घर को तो जैसे सजा दिया गया | रिया की पसन्द के पर्दे से लेकर खाने-पीने की सभी वस्तुओं का इंतजाम रागिनी कर रही थी | आखिरकार दिसम्बर का महिना आ गया और आने के एक सप्ताह पहले रिया ने बताया कि उसके साथ उसका दोस्त “पीटर” भी भारत आयेगा | आनन्द और रागिनी को कुछ समझ न आया फिर भी वे खुश थे | इतने बड़े घर में एक तो क्या दो-चार दोस्त भी आ जाए तो कोई समस्या न थी |

आखिर वह दिन आ गया जब रिया अपने दोस्त पीटर के साथ दिल्ली पहुंची | आनन्द और रागिनी ने दोनों का पुरजोर स्वागत किया लेकिन पीटर की उपस्थिति से रागिनी असहज हो जाती और बेटी से खुलकर बात न हो पाती जबकि रिया अपना सारा समय पीटर के साथ ही व्यतीत करती | दोनों घुमने-फिरने और मस्ती भरी छुट्टियाँ के दिन व्यतीत करने के मूड में थे जबकि आनन्द और रागिनी भी अपनी बेटी के साथ समय बिताना चाह रहे थे | समझौता तो आखिरकार माँ बाप को ही करना पड़ता है | बच्चों की ख़ुशी में खुश होने वाले माँ-बाप उनकी राह में रोड़ा तो नही बन सकते | रिया के भारत आने की बात सुनकर आनन्द के दफ्तर के दोस्त, रागिनी की सहेलियाँ और सभी नातें-रिश्तेंदार मिलने आ रहे थे किन्तु घर पर पीटर की उपस्थिति सबको असहज कर रही थी | कुछ खुसर-पुसर भी होने लगी थी | रिया के लिए कुछ रिश्तें रागिनी ने भी देख रखे थे उन्हें लेकर एक दिन रागिनी ने अकेले में बात करनी चाही तो रिया ने तो सपाट लफ्जों में कह दिया – “मम्मी मै पीटर को पसन्द करती हूँ और उसी से शादी करूंगी” |

रागिनी के तो पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी | शादी के बाद रिया के भारत आने और आस-पास ही रहने के उनके अरमान चकनाचूर हो गये थे | बुढ़ापे की लाठी टूटती सी नजर आयी | बेचारे आनन्द तो कुछ बोले भी नही और दो दिन के सरकारी दौरे पर बंगलौर चले गये | वे पुनः अपने को सँभालने में लगे थे | बच्चों की ख़ुशी में ही ख़ुशी देखने का माँ- बाप का भाव इतना प्रबल होता है कि रागिनी भी एक दो दिन थोडा अपसेट रहने के बाद सामान्य होने लगी | धीरे-धीरे महीने भर का समय कब व्यतीत हो गया, पता ही न चला और छुट्टियाँ खत्म होते ही रिया और पीटर वापस अमेरिका के लिए रवाना हो गये |

आनन्द और रागिनी पुनः अकेलेपन में डूब गये | रिया के रहते घर में चहल-पहल बनी रहती थी | उसके जाते ही समय फिर खाने को दौड़ता | रिया फिर से इतनी दूर उड़ चुकी थी | बच्चें देश में रहे तो जल्दी मिलने की उम्मीद भी रहती है | सात समुन्दर पार से कौन दो-तीन साल से पहले आता है | यह बात सोच-सोच कर ही पति-पत्नी चुप चुप से बैठे रहते | इंडिया से जाने के दो महीने बाद ही रिया ने फोन करके बताया कि पीटर से शादी के लिए पीटर के माता-पिता राजी हो गये है | शादी तीन महीने के बाद की तय हो गयी हैं |

फोन रखने के बाद तो जैसे रागिनी को चक्कर सा ही आ गया | पूरा ब्रम्हाण्ड आँखों के सामने घूमता नजर आया | वह सिर पकड़ कर बड़ी देर तक बैठी रही | जब तक कि आनन्द ने आकर उसे उठाकर बिस्तर पर नही लिटाया | वह जल्दी से ग्लूकोज का गिलास बनाकर लाये | रागिनी को सहारा देकर बिठाया और अपने हाथों से पानी पिलाया | थोडा स्थिर होकर रागिनी ने रिया की बातें आनन्द को बताई | दोनों पति पत्नी एक दूसरे का हाथ-थामे देर तक बैठे रहे |

शादी-विवाह भारतीयों के जीवन का अहम पड़ाव होता है | बेटे-बेटियों की शादी धूमधाम और मन मुताबिक करने का अरमान आदमी उनके जन्म से ही पालता है | पुरे घर-परिवार, नातें-रिश्तेंदारी में यह अहम मुद्दा होता है | ऐसे में बेटी विदेश में ही विदेशी मनपसन्द शादी कर ले तो मन को समझाना बड़ा मुश्किल है |

आनन्द प्रगतिशील विचारधारा के व्यक्ति थे | समय के साथ बदलने में ही भलाई है | इस बात को सकारात्मक लेकर खुद को खुश रखना ही सबसे अच्छा तरीका था | बेटी के विवाह की खबर को सबसे छिपाये वे अमेरिका जाने की तैयारी में लग गये | पीटर अच्छा लड़का था | अमेरिकी होते हुए भी संस्कारवान | उसने आनन्द और रागिनी का पूरा ध्यान रखा | चर्च में शादी की रश्में पूरी की गयी | रिया और पीटर तो पति-पत्नी बन गये और आनन्द और रागिनी अजनबी | दो महीने अमेरिका में रहने के बाद दोनों नई दिल्ली वापस आ गये | बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच छोटे से घर में वह वहाँ काफी बोर हो चुके थे | रिया और पीटर अलग-अलग कम्पनियों में नौकरी करते थे | दोनों के आने जाने का समय अलग-अलग था | मल्टीनेशनल कम्पनियाँ कर्मचारियों को मशीन बना देती है | न जगने का समय, न सोने का ठिकाना | रिया और पीटर की व्यस्तता का आलम यह था कि दोनों शनिवार के डिनर पर ही मिलते थे एक आता तो दूसरा सोता रहता | वह अमेरिका हैं भारत नहीं जहाँ पति को ऑफिस जाने की सारी तैयारी बीबियां ही करवाती है | पति-पत्नी में यदि एक सोकर उठ गया तो दूसरे की सुविधा का ध्यान दिए बिना इतना शोरगुल करेगा कि दूसरे की नींद पूरी हो या न हो दूसरा उठ जरुर जायेगा | अमेरिका में तो लोग एक दूसरे की सुविधाओं का इतना ध्यान रखते है | पति-पत्नी एक दुसरे को डिस्टर्ब करने की जहमत नहीं उठाते | यद्धपि आनन्द एवं रागिनी को वह बात कभी हजम नही होती आखिर इतनी क्या नफासत और एक दूसरे का ध्यान रखना | उन्हें वहाँ की जिन्दगी बड़ी उबाऊ सी प्रतीत होती हैं |

भारत लौटने के बाद आनन्द और रागिनी एक बार तो काफी प्रसन्न हुए | यहाँ यार-दोस्तों, रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों से दिन भर बातचीत एवं चुगलबाजी में दिन कब निकल जाता है पता ही नही चलता | वहाँ तो दिन भर बैठे-बैठे दिन को किसी तरह काटना पड़ता था | आनन्द क्लब जाने लगे | सप्ताह में दो दिन उनका बिलियर्डस का टूर्नामेन्ट होता | वहाँ दोस्तों की महफिले जुटती काफी रिटायर्ड अधिकारी आस-पास ही रह रहे थे सबसे मिलना-जुलना हो जाता | ऑफिस की पूरी बातें, साहबियत के जलवे, घटनाएं और अपनी-अपनी वीर रस की कथाओं का गुणगान कर सभी प्रसन्न हो लिया करते | रागिनी भी सोसाइटी की महिलाओं में खुश रहती | आनन्द के रिटायर्ड होने के बाद से सरकारी अमला खत्म हो गया था | किसी समय में चार-पांच नौकरों वाला घर था | अब वह खाना बनाने से लेकर कपड़े सहेजने तक के सारे काम खुद करती रही | फिर भी उसे कोई परेशानी न थी | सकारात्मक सोच और उर्जावान रागिनी ने अपने को नयी परिस्थितियों में बहुत ही अच्छे तरीके से ढाल लिया था | निराशा के क्षणों में वह शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहारती | पुराने दिन सोचकर मुसकरा देती और पुनः किसी काम में तल्लीनता से जुट जाती |

दिन तेज़ी से गुजर रहा था | बच्चों के प्रत्येक दूसरे-तीसरे दिन फोन आ जाता | स्काइप के वीडियो काल पर बच्चें दिख जाते तो पति-पत्नी का दिन बन जाता | एक दिन अमन का फोन आया | वह जैसे कुछ बताना या छुपाना चाह रहा था | आनन्द तो भांप गये | रागिनी नही समझ रही थी | उसने अमन से पूछा | अमन जिस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था वहीं उसे अपने डिपार्टमेन्ट की रशियन प्रोफेसर लड़की से प्यार हो गया था और वह जल्द ही विवाह बन्धन में बंधकर ताशकन्द शिफ्ट होना चाहते थे | शादी अगले महीने ही रखनी पड़ी थी |

रागिनी का सारा धैर्य जवाब दे रहा था | जिन बच्चों के लिए उसने नौकरी छोड़ी उनकी एक-एक जरूरत का ध्यान रखा जो हर समय उसकी जिन्दगी और सम्पूर्ण दुनिया ही थे वे अब अजनबी से लगने लगे थे | विदेश में बैठे वे अपनी जिन्दगी, कैरियर और भविष्य की चिन्ता में माँ-बाप को भुला बैठे थे | वह बीमार रहने लगी थी | उसका रक्तचाप बढ गया था | शुगर लेवल भी बढ़ चला था | वह बिस्तर पर ही गुमसुम पड़ी रहती | शहर के बड़े अस्पताल में आनन्द ने उसे दिखाया | डाक्टर ने कहा कि अधिक चिंता करने से उनका स्वास्थ्य गिर रहा है | आनन्द उसे समझाने की कोशिश करते कि देखो बच्चें अपनी-अपनी जिन्दगी में कितने खुश है | उन्हें पढ़ा-लिखाकर हमने अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर लिया है | रागिनी बड़ी कातरता से आनन्द के हाथ पकड़ उनकी आँखों में देखकर रूआंसे स्वर में बोली – हमें क्यूँ समझा रहे हो | क्या आपका मन नही होता कि बच्चें हमारे पास रहें | इतना सुनते ही आनन्द की आँखें डबडबा गयी थी | इन्हीं बच्चों की परवरिश में पूरी जिन्दगी लगा दी और अब उन्हीं के बिना जिन्दगी अकेलेपन में काटनी पड़ रही थी | आखिर इतना पढ़ाते-लिखाते नही तो यही आस-पास ही रहते और हमारा ध्यान भी रखते | पहली बार बच्चों के पढ़-लिख लेने और उच्च कैरियर के प्रति एक अफ़सोस सा मन में पहली बार आया पर जल्द ही आनन्द ने यह विचार मन से झटक दिया | रागिनी अकेलेपन की गहरी काली बदली से घिरी सी जा रही थी | इससे निकलने का कोई प्रयास सफल नही हो रहा था | वह इसी उधेड़बुन में बिस्तर पर ही पड़ी रहती |

समय भागता जा रहा था और पता ही न चला कि अमन की शादी की तारीख नजदीक आ गयी | रागिनी तो बीमारी के कारण जाने की हालत में नहीं थी | उसने आनन्द को शादी में जाने के लिए तैयार किया | उसके बिना आनन्द भी जाना नही चाहते थे किन्तु रागिनी के हट के आगे उनकी एक न चली | वह नही जा सकती तो क्या आनन्द को तो जाना ही चाहिए | उसका बेटा अकेले क्या-क्या करेगा | उसे बुरा न लग जाये | उसने बड़ी मशक्कत के साथ मुश्किल के दिनों में बनवाया हीरे का हार आनन्द को दिया जिसे वह पुत्र-वधु को उपहार में देंगे |

आनन्द एयरपोर्ट लांज में बैठे अपनी पिछली चालीस वर्षों की जिन्दगी का भ्रमण कर आये थे | जैसे उनकी तंद्रा टूटी | वे काउंटर की तरफ भागे | पूछताछ करने पर पता चला कि वाशिंगटन की फ्लाईट आधे घंटे पहले अपने नियत समय पर टेक आफ कर चुकी है | आनन्द ने राहत की साँस ली | टैक्सी पकड़ी और घर की राह ली | वे कौन सा अपनी बीमार पत्नी को छोडकर जाने में खुश थे | अमन की शादी तो हो ही जायेगी | उसके बिना भी किन्तु रागिनी का ध्यान रखने को तो वे अकेले ही थे |

***

जे० पी० पाण्डेय

दिल्ली