कुंडलिका नदी के किनारे बसा सावड़ा गांव बड़ा ही प्यारा था। उस गांव और उसके आस-पास के क्षेत्र को मानो प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली का वरदान प्राप्त था। पूरा क्षेत्र समुद्री किनारे से घिरा था। तत्कालीन राजाओं ने सुरक्षा की दृष्टि से तटीय घेराबंदी करते हुए एक समुद्री किला भी बनावाया था। वहां की जमीन बड़ी उपजाऊ थी तथा लोग अपने जीवन में काफी खुश थे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि यहां का दांपत्य जीवन बड़ा खुशहाल था। पति-पत्नी कभी आपस में लड़ते-झगड़ते नहीं थे। लोगों को इस बात का बड़ा आश्चर्य होता था। मगर इसके पीछे एक कहानी थी।
कहते हैं कि उस सावड़ा गांव में कभी महादेव कोली नामक एक मछुआरा अपनी पत्नी सोनाबाई के साथ रहता था। महादेव स्वभाव से बड़ा ही सीधा और भोला-भाला व्यक्ति था। उसकी नेकी और ईमानदारी के कारण पूरे गांव के लोग उसकी इज्जत करते थे। मगर उसकी पत्नी सोनाबाई बहुत ही चतुर और लालची औरत थी।
महादेव बेचारा मच्छीमारी का काम करते हुए अपनी आजीविका चलाता था साथ ही घर के पास स्थित अपनी खेती भी करता था। नदी के किनारे ही उसका अपना छोटा-सा घर था जिसे उसकी पत्नी झोपड़ी कहकर उसे ताने मारती थी। उस घर के चारो ओर उसने नारियल, सुपारी, काजू और आम के साथ अन्य कई प्रकार के पेड़-पौधे भी लगा रखे थे। महादेव को दो लड़के थे पर वे दोनों रोजी-रोटी की खातिर शहर की ओर पलायन कर गए थे।
महादेव धीरे–धीरे बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा था इसलिए अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा था। उसकी पत्नी हमेशा उसे कोसती रहती, जिससे वह बड़ा परेशान रहता था। गरीबी और पत्नी की झिड़कार ने उसे और भी थका दिया था। इससे उसकी तबियत भी खराब रहने लगी थी। पत्नी की रोज कोई ना कोई नई मांग होती या फिर पति द्वारा किए गए कामों को लेकर उलाहना देती, और कुछ नहीं तो अपनी गरीबी का रोना रोती। इस तरह रोज नया बखेड़ा वह खड़ा कर देती थी। महादेव बेचारा चुपचाप सब बर्दाश्त कर लेता था।
रोज सुबह वह जल्दी उठ जाता और घर के छोटे-बड़े काम निपटाकर जाल लेकर नदी की ओर चल देता। फिर देर शाम ढले ही घर वापस लौटता था। पूरा दिन नदी में जाल डाले बैठा रहता। शाम होते–होते जो कुछ मछलियां पकड़ में आतीं उन्हें बाजार में बेच देता और जो बच जाती उसे घर ले जाता। तमाम परेशानियों के बावजूद भी वह अपने इस जीवन से बड़ा संतुष्ट था।
उस दिन भी महादेव हमेशा की तरह सुबह जल्दी उठा और जाल लेकर नदी के किनारे गया। काफी देर तक जाल डालकर बैठा रहा पर उसके हाथ कुछ नहीं लगा। आज उसकी तबियत भी कुछ खराब थी इसलिए थककर वहीं नदी किनारे सो गया। देर शाम को जब उसकी नींद खुली तो देखा कि आज उसके पास एक भी मछली नहीं है। उसकी आंखों के सामने बार-बार पत्नी का वह कसैला चेहरा घूम रहा था। आज तो वह मजबूर था। थका-मांदा जैसे ही वह घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने देखा कि टोकरी तो खाली है। उसने पति की जेब टटोली मगर कुछ नहीं मिला। अब उसका पारा सातवें आसमान पर था। आव देखा ना ताव और उस पर बरस पड़ी।
महादेव ने अपनी पत्नी को समझाने की लाख कोशिश की पर वह एक नहीं मानी। उसने तुरंत उसे नदी किनारे मछली मारने के लिए फिर से भेज दिया। महादेव को लगा कि इस आफत से तो अच्छा है कि नदी किनारे वह सुकून से सो जाए। उदास मन से महादेव नदी के किनारे पहुंचा और जाल डालकर बैठ गया। भूख लगी थी इसलिए आस-पास से फलों को तोड़कर खाने लगा।
काफी देर बाद भी जब वह अपने काम में कामयाब नहीं हुआ तो जाल समेटने के लिए आगे बढ़ा। अरे! ये क्या ! जाल में कुछ हलचल महसूस हुई, लगा जैसे कोई भारी मछली उसके जाल में फंस गई हो। उसने जोर लगाकर जाल खींचा। देखा तो वाकई एक बड़ी–सी, सुनहरे रंग की मछली फंसी थी।
उस मछली के मुंह का आकार किसी सुंदर स्त्री जैसा था और शरीर का शेष भाग मछली की तरह था। उसने उसे बाहर निकाला और गौर से देखने लगा। अंधेरे में उस मछली की आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं। महादेव ने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। बड़े प्यार से उसने मछली को जाल से बाहर निकाला और उसे सहलाने लगा।
आहट से वह सोनपरी मछली जाग गई और महादेव से बोली, “हे मानव, मुझ पर दया करो और मुझे छोड़ दो। मैं जल की रानी, जलपरी हूँ। अगर तुम मुझे छोड़ दोगे तो, मैं तुम्हारे मन की हर मुराद पूरी करूंगी।”
महादेव को सुखद आश्चर्य हुआ कि वह मछली बोलती भी है। उसे लगा कि कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा, उसने अपने आपको टटोला फिर उसे यकींन हुआ कि यह एक हकीकत है। सामने वह सोनपरी मछली दया के लिए हाथ जोड़े खड़ी थी।
बूढ़े महादेव को उस पर दया आ गई। मन की मुराद वगैरह की बात पर उसे भरोसा नहीं था पर उसने कहा, “मछली रानी, मैं तुम्हें एक शर्त पर छोड़ रहा हूँ कि जब भी मैं तुम्हें पुकारूं तुम आ जाना। बस इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए।”मछली रानी ने महादेव की पुकार पर हाजिर होने का वादा किया। उसकी बात पर विश्वास कर महादेव ने उसे फिर से नदी में छोड़ दिया। खाली टोकरी लिये वह चुपचाप अपने घर लौट आया। उसकी पत्नी ने देखा कि टोकरी तो खाली है, वह उसे निकम्मा कहकर चिढ़ाते रही और जोर–जोर से चिल्लाने लगी। महादेव ने अपनी पत्नी को धीरज दिया और नदी किनारे घटित वह घटना सुनाई। उसकी बात सुनकर वह उसे कोसते हुए बोली, “तुमने उस मछली रानी से कुछ मांगा क्यों नहीं? अभी फौरन जाओ और उससे कुछ खाने-पीने का सामान मांगकर ले आओ। खाली हाथ मत आना, वरना मैं तुम्हें घर में घुसने नहीं दूंगी।”
पहले तो महादेव जाने को तैयार नहीं था पर जब पत्नी ने जोर से डांट पिलाई तो, दबे पांव वह नदी की ओर चल दिया। नदी किनारे पहुंचकर उसने जलपरी को आवाज दी, “हे नदी की रानी जलपरी, बाहर आओ मैं मजबूर हूँ। जरा मेरी विनती तो सुनो।”
उसकी आवाज सुनकर वह जलपरी तुरंत पानी से बाहर आई। महादेव ने हाथ जोडक़र उससे कहा, “ हे जलपरी, मेरे घर में खाने को कुछ नहीं है इसलिए खाने के लिए कुछ सामान दे दो।”
“ठीक है, अभी तुम घर जाओ, सामान पहुंच जाएगा।” यह कहकर जलपरी नदी में कूद गई।
महादेव जब घर पहुंचा तो देखता है कि खाने का सामान घर के बाहर रखा है। उसने अपनी पत्नी को आवाज लगाई। बाहर ढ़ेर सारा खाने का सामान देखकर उसकी पत्नी खुश हो गई। दोनों ने मिलकर सारी चीजें घर में रखीं। महादेव अभी इस काम को खत्म भी न कर पाया था कि उसकी पत्नी फिर से बोली, “सिर्फ खाने के सामान से काम नहीं चलेगा, जाओ और उस मछली रानी से मेरे लिए अच्छे कपड़े और जेवर मांगकर ले आओ।”
महादेव बोला, “अभी तो इतना सामान मांगकर ले आया हूँ। तुरंत नई मांग रखना, अच्छी बात नहीं हैं। मैं कल जाऊंगा।”
मगर उसकी पत्नी को धीरज कहां था! उसने उसकी एक न सुनी और चिल्लाने लगी। हार मानकर महादेव पुन: नदी के किनारे गया और उसने जलपरी को आवाज दी। जलपरी मचलते हुए पानी से बाहर आई और बोली, “अब क्या चाहिए?”
महादेव ने झिझकते हुए अपनी पत्नी की मांग उसके सामने रखी।
वह बोली, “घर जाओ, सब पहुंच जाएगा।”
महादेव जैसे ही घर पहुंचा, तो चकित हो गया। नए-नए कपड़े और जेवर घर के बाहर रखे थे। उसने अपनी पत्नी को बुलाया। कपड़े और जेवर देखकर तो वह नाचने लगी। कुछ ही देर में उन्हें पहनकर वह ठुमकने लगी। महादेव को लगा कि चलो, अब तो उसे पत्नी के ताने नहीं सुनने पड़ेंगे और वह खुश हो गया। मगर पत्नी भला कहां मानने वाली थी! उसकी मांग तो बढ़ती ही जा रही थी।
अबकी बार वह प्यार से बोली, “ये कपड़े तथा जेवर पहनकर मैं इस झोंपड़ी में कैसे रह सकती हूँ? क्या ये अच्छा लगता है? अभी आराम करो, कल सुबह जाकर मछली रानी से रहने के लिये एक महल मांग लेना। उस महल में हम राजा-रानी की तरह रहेंगे।”
महादेव चुपचाप उसकी बात सुनता रहा पर पत्नी के प्यार को देखकर पिघल गया। सबेरा होते ही उसकी पत्नी ने महादेव को खिला-पिलाकर नदी के किनारे भेज दिया।
महादेव ने फिर से जलपरी को पुकारा।
जब वह आई तो महादेव बोला, “हे जलपरी, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। मेरी पत्नी के कहने पर मुझे बार-बार तुम्हारे पास आना पड़ रहा है। मेरी पत्नी अपनी उस झोपड़ी की बजाय अब एक महल चाहती है। वहां वह बहुत दुख झेल चुकी है इसलिये महल दे दो।”
“जाओ यह भी इच्छा पूरी हो जाएगी।” इतना कहकर वह नदी की लहरों में ओझल हो गई।
महादेव जब घर लौटा तो उसने देखा कि उसके छोटे-से घर के स्थान पर वहां एक महल खड़ा हो गया था। उसकी पत्नी किसी रानी की तरह अंदर बैठी अंगड़ाई ले रही थी। वह बहुत खुश दिखाई दे रही थी। उसकी खुशी में महादेव ने अपनी खुशी मानी और जलपरी को याद करने लगा।
कुछ दिन इसी तरह राजी-खुशी से बीत गये। एक दिन सुबह-सुबह महादेव की लालची पत्नी बोली, “दिन-रात काम करते हुए मैंने अपना सारा जीवन बिता दिया। अब तुम अपनी उस मछली रानी से मेरे लिए नौकर, चाकर तथा अन्य सुख-सुविधाएं मांगकर लाओ। महादेव ने उसे समझाने का काफी प्रयास किया किन्तु वह उसकी एक ना मानी। उसने महादेव को जाने के लिए मजबूर कर दिया।
महादेव पुनः नदी की ओर चल दिया। वहां पहुंचकर उसने जलपरी को आवाज दी और उसके सामने अपनी इच्छा रखी। मछली मुस्कुराकर उसकी दृष्टि से ओझल हो गई। महादेव कुछ समझ नहीं पाया। निराश होकर वह घर लौट आया। घर पहुंचते ही देखा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा। उसकी पत्नी किसी महारानी की तरह महल में बैठी थी और उसके अगल-बगल में दासियां उसकी सेवा में लगीं थीं। महादेव ने सोचा, चलो अब तो मेरी पत्नी संतुष्ट हो गई होगी।
मगर कुछ ही दिनों में महादेव की पत्नी का लालच फिर से सिर उठाने लगा। एक दिन सुबह-सुबह वह अपने पति से लड़ने लगी। तमतमाते हुए बोली, “मैं कितने दिनों तक एक साधारण-सी रानी बनी रहूंगी? अपनी उस जल की रानी से जाकर कहो कि वह मुझे पूरी पृथ्वी की महारानी बना दे।”
महादेव वहां जाने को कत्तई तैयार नहीं था। जब वह नहीं माना तो क्रोध में आकर उसकी पत्नी अपना आपा खो बैठी और नौकरों द्वारा पति को पिटवाकर घर से बाहर निकाल दिया।
बेचारा महादेव किसी तरह रोते बिलखते नदी के किनारे पहुंचा। उसने जलपरी को फिर से याद किया। मुस्कुराते हुए जलपरी ने पूछा, “बोलो, अब तुम्हारी पत्नी की क्या इच्छा है?”
महादेव बोला, “हे जलपरी, अब मैं तंग आ चुका हूँ। आज तक अपनी पत्नी के कहने पर ही मैं सब कुछ मांगता रहा किन्तु अब मेरी एक इच्छा है।”
जलपरी मुस्कुराकर बोली। “कहो, नि:संकोच होकर बोलो क्या चाहिए तुम्हें? वह इच्छा भी पूरी हो जायेगी।”
महादेव ने हिम्मत की और बोला, “मेरी तो अब बस इतनी-सी इच्छा है कि ये धन दौलत, नौकर-चाकर, महल इत्यादि सब कुछ तुम वापस ले लो और मुझे इस माया से मुक्त कर दो। मुझे मेरी पहले वाली वह झोपड़ी तथा जाल लौटा दो। इस धन ने मेरे जीवन का सारा सुख-चैन छीन लिया है। मेरी पत्नी का लालच दिन–प्रतिदिन इसी तरह बढ़ता ही जाएगा और मैं आत्मिक रूप से कंगाल हो जाऊंगा। संभव हो तो उसे सुधार दो और मेरे परिवार के साथ ही साथ इस नगर वासियों को भी सुख-शांति से जीवन जीने का वरदान दो।”
जलपरी सारी बात समझ गई और बोली, “ठीक है, यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो ऐसा ही होगा। साथ ही मैं तुम्हारी इस समझदारी की दाद देती हूँ।”
महादेव अपने घर लौट आया। उसने देखा कि महल के स्थान पर उसका वही छोटा-सा घर मौजूद था जिसे उसकी पत्नी झोपड़ी कहती थी। अंदर जाने के बाद उसने देखा कि उसकी पत्नी आराम से सो रही है, उसने उसे जगाया। उसकी पत्नी आंखें मलती हुई उठी और चकित होकर चारो ओर देखने लगी। महादेव ने उसे समझाया “जिस व्यक्ति को जीवन में सन्तुष्टि नहीं होती, वह कभी सुखी नहीं हो सकता।”
पत्नी की आंखें खुल गई थीं। उसे अपनी भूल का अहसास हो गया था और वह पछताने लगी। अपने पति से क्षमा मांगते हुए बोली, “जलपरी मेरे सपने में आकर बोली कि तुम्हारा पति महान है। वह चाहता तो तुम्हें ठुकराकर अपने लिए नया जीवन मांग सकता था मगर उसने ऐसा नहीं किया। तुम्हें उस पर गर्व होना चाहिए। बदले में उसने घर-परिवार तथा नगर वासियों के लिए सुख-शांति और सम्पन्नता मांगी। अत: आज से तुम लोगों का यह नगर प्राकृतिक सौन्दर्य और धन-धान्य से परिपूर्ण होगा। यहां के लोगों का जीवन खुशहाल होगा। सारे पति-पत्नी प्रेम से रहेंगे और उनका आपस में कभी कोई झगड़ा टंटा नहीं होगा। मेहनत करने वाला यहां कभी भूखा नहीं सोएगा।”
महादेव ने उसे गले से लगा लिया इसके बाद वे दोनों अपना उर्वरित जीवन सुखी दांपत्य के रूप में जीते रहे। महादेव के मासूमियत की मिसाल उस क्षेत्र के लोग आज भी देते हैं, जिसने उनके जीवन की एक नई कहानी लिखी थी।