बरसा पानी झम झमाझम -6
दूसरे दिन सुनयना का मनपसंद नाश्ता दलिया और ब्रेड आमलेट बना था । आज सुबह से ही बारिश हो रही थी । बाहर कहीं जा नहीं सकते थे अतः नाश्ता करके सुनयना और रोहन घर के ऊपरी मंजिल पर बनी बालकनी से बारिश देखने लगे । बारिश उसके लिये नई नहीं थी । मुंबई में तो हमेशा ही बारिश होती रहती है । उसके लिए नई बात थी चारों ओर दूर-दूर तक फैले हरे-भरे खेतों को देखना जबकि उसके शहर में हरियाली का नामोनिशान नहीं है । चारों ओर घर ही घर...इंसान ही इंसान, किसी अन्य जीवजन्तु के लिये तो मानो कोई जगह ही नहीं है । आज वह बाहर जा नहीं सकती थी अतः वह घर पर ही रोहन के साथ, रोहन के खिलौनों से खेलने लगी । शाम को पानी बरसना बंद हुआ तो वह फिर रोहन के साथ बालकनी में आ गई ।
सुनयना बालकनी में आकर इधर-उधर देख ही रही थी कि एक ओर खेत में मोर नाचता दिखाई दिया । वह पहली बार मोर को नाचते देख रही थी अतः बेहद प्रसन्न थी । अचानक वह दौड़कर अंदर गई तथा अपना बाइनोकुलर लेकर आ गई । बाइनोकुलर से मोर को नाचते देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था ।
‘ दीदी, यह क्या है ?’ रोहन ने पूछा ।
‘ यह बाइनोकुलर है । इससे छोटी चीजें बड़ी दिखने लगतीं हैं। लो तुम भी देखो । ‘ सुनयना ने बाइनोकुलर रोहन को पकड़ाते हुए कहा तथा वह मोर के नाचने का वीडियो बनाने लगी ।
‘ इससे तो मोर बहुत बड़ा लग रहा है । सच दीदी मोर नाचते हुए कितना अच्छा लग रहा है । ‘ रोहन ने बाइनोकुलर से मोर को देखते हुए कहा ।
वह विडियो बना ही रही थी कि उसके पास खड़े रोहन ने एक ओर इशारा करके कहा, ‘ दीदी...वह देखो इंद्रधनुष ।’
आकाश में इंद्रधनुष चमक रहा था...बहुत ही खबूसूरत दृश्य था...ऊपर इंद्रधनुष तथा नीचे नाचता मोर...वह भावविभोर हो गई । वह मोबाइल में इन दृश्यों को कैद कर ही रही थी कि दादाजी आ गये । उन्हें देखकर दोनों एक साथ बोले, ‘ दादाजी, वह देखिये इंद्रधनुष...।’
‘ बहुत सुंदर....बच्चों क्या तुम्हें पता है यह इंद्रधनुष कैसे बनता है ?’ उन दोनों को इन्द्रधनुष को निहारते देखकर दादाजी ने अपना चश्मा ठीक करते हुए वहाँ पड़ी कुर्सी पर बैठते हुये पूछा ।
‘ नहीं दादाजी, आप बताइये ।’ सुनयना ने पूछा ।
‘ बच्चों, जब बरसात होती है तब बरसात की छोटी-छोटी बूंदें वायुमंडल में स्थित हवा में लटकी रह जाती हैं । इन बूंदों पर जब सूरज की किरणें पड़तीं हैं तब इंद्रधनुष का निर्माण होता है ।’ दादाजी ने कहा ।
‘ किंतु इंद्रधनुष में इतने सारे रंग...!!’ सुनयना ने पूछा ।
‘ बच्चों सूरज के प्रकाश में सात रंग होते हैं । ’
‘ क्या सूरज के प्रकाश में सात रंग होते हैं ? हमें तो वह सफेद दिखता है ? ’ सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।
‘ दरअसल सफेद रंग सात रंगों से मिलकर बनता है...।’ दादाजी ने कहा ।
‘ कौन-कौन से सात रंग, प्लीज दादाजी बताइये न ।’ सुनयना ने दादाजी से आग्रह करते हुए कहा ।
‘ बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंग । इन रंगों को एक शब्द ‘ विबग्योर ’ के द्वारा याद कर सकते हो ।’
‘ बिबग्योर...इसका क्या अर्थ है ।’
‘ बेटा, ‘VIBGYOR’ शब्द अंग्रेजी के सात अक्षर से मिलकर बना है जिसका अर्थ है V से Violet (बैगनी), I से Indigo (नीला) , B से Blue (आसमानी), G से Green (हरा), Y से Yellow (पीला), O से Orange (नारंगी) तथा R से Red (लाल ) ।’
‘ लेकिन यह इंद्रधनुष...।’
‘ बेटा जैसा तुम्हें बताया कि सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते हैं । पानी की बूँदों पर सूर्य के प्रकाश का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के इन रंगों का कारण है ।’
‘ आपने क्या कहा दादाजी ? मैं समझ नहीं पाई ।’ सुनयना ने कहा ।
‘ बेटा, हवा में लटकी पानी की नन्हीं-नन्हीं बूँदों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो वह सात रंगों में टूटकर इंद्रधनुष का निर्माण करता है ।
’
‘ ओ.के. दादाजी ।’
‘ अच्छा बताओ इंद्रधनुष में सबसे बाहर कौन सा रंग है ।
‘ लाल रंग दादाजी । ’ रोहन ने इंद्रधनुष को देखते हुये कहा ।‘
‘ वेरी गुड रोहन बेटा, और अंदर...।’ दादाजी ने रोहन को देखते हुये कहा ।
‘ बैगनी रंग...।’ इस बार सुनयना और रोहन दोनों ने कहा ।
‘ ऐसा क्यों होता है ?’
‘ आप बताइये न दादाजी । ’ सुनयना ने कहा ।
‘ लाल रंग के प्रकाश में मुड़ने की शक्ति कम होती है अतः लाल रंग इंद्रधनुष में सबसे ऊपर होता है जबकि बैंगनी रंग के प्रकाश मुड़ने की शक्ति अधिक होती है अतः यह सबसे नीचे रहता है ।’
‘ आपके कहने का मतलब है कि रंगों के मुड़ने के अनुसार ही इंद्रधनुष में यह सात रंग क्रमानुसार रहते हैं । ’ सुनयना ने कहा ।
‘ हाँ बेटा, एक बात और इंद्रधनुष सदा सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है । इंद्रधनुष पूरी गोलाई में बनता है पर हमें यह धनुष जैसा नजर आता है ।
थोड़ी ही देर में इंद्रधनुष विलुप्त हो गया तथा सूर्य बादलों के साथ लुका छिपी खेलने लगा । आकाश का रंग बदलने लगा था । सुनयना के लिये नई चीज थी । शहर की आपाधापी तथा ऊँची-ऊँची इमारतों के कारण उसके लिये ऐसे दृश्य दुर्लभ हैं । एक बार फिर सुनयना ने इस दृश्य को अपने मोबाइल में कैद कर लिया ।
‘ अरे, मोर कहाँ गया ? ’ अचानक मोर को न पाकर सुनयना ने पूछा ।
‘ रात हो रही है, वह भी आराम करने गया होगा ।‘ रोहन ने कहा ।
‘ क्या अपने घर ?’ सुनयना ने कहा ।
‘ बच्चो मोर अपने लिए कोई घर नहीं बनाता वह जंगलों में रहना पसंद करता है लेकिन भोजन की खोज उसे इंसानी आबादी तक खींच लाती है ।’ दादाजी ने कहा ।
‘ दादाजी मोर क्या खाता है ?’ सुनयना ने पूछा ।
‘ मोर हानिकारक कीड़े मकोड़ों को जैसे चूहे, छिपकलियाँ ,दीमक के साथ मोर साँप को भी खा तथा पचा भी जाता है इसलिए यह हम किसानों का अच्छा मित्र भी है । जिस लाल मिर्च को खाने से पहले हम इंसान कई बार सोचते हैं, उसे भी मोर बड़े चाव से खाता है जिससे किसानों को थोड़ा नुकसान भी होता है । ‘ दादाजी ने उनसे कहा ।
‘ मोर साँप भी खाता है...।‘ सुनयना ने आश्चर्य से पूछा ।
‘ हाँ बेटा । ‘
‘ बच्चों क्या तुम जानते हो कि हमारे राष्ट्रीय पक्षी का नाम क्या है ?’ दादाजी ने पूछा ।
‘ मोर...। ‘ रोहन ने कहा ।
‘ सही । ‘
‘ पर मोर को ही राष्ट्रीय पक्षी क्यों चुना गया ?’ सुनयना ने फिर पूछा ।
‘ मोर सुंदर तो है ही, साथ ही जैसा मैंने बताया किसानों के लिए लाभदायक भी है ।’ दादा जी ने कहा ।
‘ मोर के पंख इतने सुंदर हैं तभी भगवान कृष्ण इसे अपने मुकुट में लगाते हैं । ‘ सुनयना ने कहा ।
‘ बेटा, इसीलिए मोर को पवित्र मानते हैं । ‘ दादाजी ने कहा ।
‘ दादाजी मैंने पढ़ा है कि जिसके ज्यादा पंख होते हैं वह मोर होता है जिसके कम होते हैं वह मोरनी होती है...ऐसा क्यों ? ‘ सुनयना को कहीं पढ़ी बात याद आई तो वह पूछ बैठी ।
‘ मोर के पंखों के बारे में एक असमिया लोक कथा है । आज तुम दोनों को सुनाती हूँ । सुनोगे...।’ दादीजी ने कहा जो उनकी बातचीत के मध्य आईं थीं तथा बिना कुछ कहे चुपचाप कुर्सी पर बैठकर स्वेटर बुनते हुये उनकी बात सुन रही थीं ।
‘ हम सुनेंगे...बताइये दादी, मोर को पंख कैसे मिले ?’ सुनयना और रोहन ने उत्सुकता से पूछा ।
‘ लेकिन यह एक कहानी है सच्चाई नहीं ।’ दादी ने कहा ।
‘ ठीक है दादी, आप सुनाइये न !’
‘ एक गाँव में गनेरू नाम का एक व्यक्ति था । वह गाँव का मुखिया था । वह गारो नाम की जनजाति से था ।’
‘ मुखिया...जनजाति हम समझे नहीं...।’ सुनयना ने पूछा ।
‘ बेटा मुखिया वह होता है जिसकी बात सारे गाँव वाले मानते हैं जैसे हमारे गाँव के मुखिया आपके दादाजी हैं तथा जनजाति मतलब पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले लोग जिनका रहने खाने पीने का अपना अलग तरीका होता है ।’
‘ ओ.के. दादी ।’
‘ इस जाति में पिता से भी अधिक माँ को माना जाता है । एक बार गनेरू ने अपने गाँव में एक नृत्य प्रतियोगिता रखी । इस प्रतियोगिता में कई लड़के लडकियों ने नृत्य किया किंतु जयमाला नाम की लड़की तथा जय नाम के लड़के ने बहुत अच्छा नृत्य किया । आयोजकों ने दोनों को ही प्रथम पुरस्कार दिया । पुरस्कार लेते हुये दोनों ने एक दूसरे को देखा । जयमाला की आँखों में अपने लिये प्यार देखकर जय ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।’
‘ फिर क्या हुआ दादी...।’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा । वहीं रोहन दादाजी के मोबाइल में गेम खेलने लगा उसे इस कहानी में कोई मजा नहीं आ रहा था ।
‘ जयमाला ने जय के बारे में अपनी माँ-पापा को बताया तो उसके माँ-पापा जय के साथ उसका विवाह करने के लिये तैयार हो गये क्योंकि उन्हें लगा था कि उनकी बेटी अपने समान नृत्य करने वाले लड़के जय के साथ खुश रहेगी । उन्होंने उसका विवाह धूमधाम से जय के साथ कर दिया । जब वे जयमाला को विदा करने लगे तो उसकी माँ एक चुनरी लेकर आई । नीले, लाल, हरे, पीले रंग की तथा हीरे, जवाहरातों से जड़ी खूबसूरत चुनरी को देखकर, जयमाला बहुत खुश हुई । यह तो बहुत सुंदर है माँ...कहते हुये जयमाला उसे छूने के लिये आगे बढ़ी ।
उसकी माँ तुरंत पीछे हटकर बोलीं…'नहीं, नहीं इसे मत छूना । यह एक जादुई चुनरी है । इसे मेरी परनानी ने मुझे दिया था । '
जयमाला माँ की बात सुनकर रूक गई तथा प्रश्नयुक्त नजरों से उन्हें देखने लगी । तब उसकी माँ ने कहा, ' बेटा जब इसे तुम ओढ़ना चाहो तब इस छूने से पहले यह मंत्र पढना ।' कहकर उन्होंने उसके कान में एक मंत्र पढ़ा । जयमाला ने वह मंत्र पढ़कर अपनी माँ से चुनरी ले ली ।
जयमाला और जय दोनों एक गाँव में रहने लगे । एक दिन जयमाला ने जय से कहा कि मुझे मछली खानी है अतः मैं मछली लेने बाजार जा रही हूँ । जय ने कहा ठीक है । जब वह घर से निकली तो उसने देखा बाहर बरामदे में रस्सी पर उसकी माँ की दी गई वह जादुई चुनरी लटकी है । वह जल्दी में थी अतः उसने चुनरी को उठाकर बक्से में नहीं रखा । उसने जाते हुये जय से कहा चाहे जो हो जाये तुम इस चुनरी को मत छूना । जब मैं आऊँगी तब इसे रख दूँगी । जय ने फिर कहा ठीक है ।
अभी जयमाला घर से थोड़ी ही दूर गई थी कि अचानक आकाश में बादल छा गये...गरज के साथ बारिश होने लगी । जय बाहर आया उसने देखा कि बाहर रस्सी पर जयमाला की सुंदर चुनरी लटक रही है, कहीं बारिश में यह खराब न हो जाये, सोचकर वह उसे उठाने के लिये आगे बढ़ा । उधर जयमाला को भी लगा कि कहीं जय उसकी चुनरी को न छू ले वह बिना मछली लिये घर की ओर दौड़ी किन्तु उसके लौटने के पहले ही जय ने उस चुनरी को उठा लिया था । उसके चुनरी को छूते ही चुनरी के बेलबूटे उसके शरीर पर लगकर पंख का आकार लेने लगे । जयमाला ने जय के शरीर में पंखों को उगते देखा तो वह घबराकर चिल्लाई...नहीं...नहीं...। उसने चुनरी खींचने की कोशिश की । इस प्रयत्न में बचे बेलबूटे जयमाला के शरीर में पंख बन गये । अब दोनों के शरीर को पंख मिल गये थे । जय के हिस्से में ज्यादा चुनरी आई अतः उसके शरीर में पंख ज्यादा और खूबसूरत हैं जबकि जयमाला के हिस्से में कम चुनरी आई अतः उसे कम पंख मिले । वे दोनों उड़कर जंगल में चले गये । कहा जाता है कि जब आकाश में बादल गड़गड़ाते हैं या बारिश होती है तब मोर मोरनी नृत्य करने लगते हैं ।’
‘ दादी क्या जिसके पंख ज्यादा होते हैं वह मोर है ? ’
‘ हाँ बेटा जय लड़का था अतः वह मोर बना तथा जयमाला मोरनी ।’
‘माँजी बहूरानी पकौड़े बनाय रहीं हैं...आप सबन को बुलावत हैं । गर्म-गर्म खा लेब ।’ ननकू ने आकर कहा ।
‘ चलो बच्चों चलो । ’ दादाजी ने रोहन के हाथ से अपना मोबाइल लेते हुये कहा ।
मोबाइल हाथ से छिनते ही रोहन ने बुरा सा मुँह बनाया । वहीं दादी ऊन और सलाई को बैग में रखकर चलने के उठ गईं । दादी का हाथ पकड़कर चलते हुये सुनयना ने कहा, ‘ दादी क्या ऐसा सचमुच हुआ था ?’
‘ बेटा, मैंने पहले ही कहा था, यह कहानी है ।’
‘ फिर कहानी में झूठ क्यों बताया जा रहा है ।’ सुनयना ने अपनी तर्क बुद्धि का इस्तेमाल करते हुये पूछा ।
‘ बेटा पहले जमाने में लोग ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते थे । उन्हें यह बताना कि मोर के पंख ज्यादा होते हैं जबकि मोरनी के कम या मोर अधिक सुंदर होता है वहीं मोरनी कम सुंदर होती है या वे तभी नाचते हैं जब आकाश में बादल हों, बादल गड़गड़ा रहे हों या पानी बरस रहा हो, उस समय लोगों को इन बातों को ऐसी ही कहानियों के माध्यम से समझाया जाता था । ’
‘ आप ठीक कह रही हैं दादी, मेरी मेम भी यही कहतीं हैं बच्चों को बोरिंग से बोरिंग विषय भी कहानी के माध्यम से समझाया जा सकता है । ’
सुनयना की बात सुनकर दादी सोच रही थीं कितना अंतर आ गया है पहले के समय और आज के समय में, हमें जो बताया जाता था वह हम बिना तर्क वितर्क के स्वीकार कर लेते थे जबकि आज के बच्चे तब तक संतुष्ट नहीं होते तब तक कोई घटना उनके तर्क की कसौटी पर खरी न उतरे ।
‘ दादी मैं तो पूछना ही भूल गई कि आज आप दूसरा स्वेटर बुन रही थीं कल वाला नहीं क्योंकि कल तो ऊन नीली थी जबकि आज की गुलाबी ।’ अचानक सुनयना ने पूछा ।
‘ बेटा तू कह रही थी कि मुझे हाथ का बुना स्वेटर पहनना है अतः आज मैं तेरे लिये स्वेटर बना रही हूँ ।’ दादी ने अपने विचारों को परे ढकेलकर पूछा ।
‘ क्या हमारे जाने तक यह स्वेटर बन जायेगा ?’
‘ हाँ मेरी लाढ़ो ।’
‘ आप बहुत अच्छी हो दादी ।’ कहकर सुनयना ने दादी की ओर देखा ।
सुनयना की बार-बार प्रशंसा करने की आदत ने दादी को भी इस बात का एहसास हो चला था कि तारीफ इंसान का मनोबल बढ़ाती है न कि उसे बिगाड़ती है जबकि हमारे समय मे माता-पिता बच्चों की तारीफ इसलिये नहीं करते थे कि कहीं ज्यादा तारीफ से बच्चा बिगड़ न जाये ।
बातें करते-करते वे नीचे डायनिंग हाल में पहुँच गये । उनके बैठते ही माँ और चाची ने उन्हें प्याज और गोभी के पकौड़े परोस दिये ।
‘ क्या चटनी नहीं बनाई ? ’ दादाजी ने कहा ।
‘ बनाई है पिताजी...ननकू चटनी नहीं दी ।’ चाची ने ननकू से कहा ।
‘ बस मालिकिन, पिस ही गई है ।’ ननकू ने कहा ।
‘ मैं चटनी लेकर आती हूँ ।’ ननकू की आवाज सुनकर सुनयना चटनी लाने किचन में पहुँच गई । उसने देखा कि ननकू नीचे बैठा एक कटोरी में कुछ डाल रहा है ।
‘ अंकल यह आप क्या कर रहे हैं ?’ सुनयना ने ननकू के पास जाकर पूछा ।
‘ बिटिया, चटनी पीसी है उसे ही कटोरी में डाल रहा हूँ । ’
‘ चटनी...इस पर...यह क्या है ? ममा तो मिक्सी में चटनी पीसती हैं ।’
‘ बेटा, यह सिल बट्टा है । पहले घरों में मिक्सी नहीं होती थी तब इसी पर चटनी, मसाले इत्यादि पीसे जाते थे ।’ ननकू की बजाय चाची ने उत्तर दिया ।
‘ पर चाची आपके पास तो मिक्सी है फिर इस पर क्यों ?’
‘ आपके दादाजी को मिक्सी में पिसी चटनी अच्छी नहीं लगती अतः हमारे घर अभी भी चटनी सिल बट्टे पर ही पीसी जाती है ।’
‘ क्या सिल बट्टे पर पिसी चटनी और मिक्सी में पिसी चटनी का टेस्ट अलग होता है ?’
‘ आप खाकर देखो और बताओ ।’ चाची ने कहा ।
ननकू चटनी देकर आ गया । वह सिल उठाने जा रहा था कि सुनयना ने उससे कहा,‘ अंकल बताइये इस पर चटनी कैसे पीसी जाती है ? ’
ननकू थोड़ा सा धनिये के पत्ते सिल पर रख दिये तथा बट्टे को धनिये के ऊपर रखकर आगे पीछे करने लगा ।
‘ अंकल मैं करके देखूँ ।’
‘ ठीक है बिटिया ।’ कहकर ननकू हट गया ।
सुनयना उसके हाथ से बट्टा लेकर ननकू की नकल करने लगी ।
‘ आजकल के बच्चे भी...उन्हें अपने हर प्रश्न का उत्तर चाहिये ।’ नलिनी ने कहा ।
‘ दीदी, इसमें बुरा क्या है ? अच्छा ही है, कम से कम कूपमंडूक तो नहीं रहेंगे ।’
‘ सुनयना कहाँ हो ? पकौड़े ठंडे हो रहे हैं । बहू तुम दोनों भी आ जाओ ।’ दादी ने कहा ।
‘ आई दादी ।’ सुनयना ने कहा ।
सिल बट्टा छोड़कर वह भी सबके साथ खाने बैठ गई । उसके साथ ममा और चाची भी आ गईं ।
‘ मेरी प्रकाश से बात हो गई है । वह कह रहा है कि अगर शुगर फैक्टरी देखना चाहते हो तो कल आ जाओ । परसों से वह छुट्टी पर जा रहा है । कल दस बजे चलना होगा ।’ खाते-खाते चाचा ने कहा ।
‘ शुगर फैक्टरी मैं तो अवश्य चलूँगी ।’
‘ आपके लिये ही तो चाचा ने शुगर फैक्टरी देखने का कार्यक्रम बनाया है ।’ चाची ने कहा ।
..
सुधा आदेश
क्रमशः