सुलोचना - 9 Jyotsana Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सुलोचना - 9

भाग-९

सुलोचना मदमस्त नार सी तैयार होने के लिए स्नान घर के भीतर चली गई और मणि उसे जाते हुए स्नेह से देखता रहा और सोचता रहा।

“एम.के.दादा और सुनंदा दोनो ही इसकी कितनी प्रशंसा करते हैं और मैं बेकार ही उदासीन सा जीवन जी रहा था। वह अंग्रेज़ी सीख जाएगी फिर उसके मॉर्डन होते ही माँ को भी पसंद आने लगेगी सच में सुलोचना बहुत मासूम है।”

तभी वह स्नान कर के बाहर आई उसके खुले अधभीगे केश और धुला हुआ चेहरा उसकी मासूमियत का क़िस्सा कह रहे थे।

मणि अभी तक अपनी तक़दीर की लकीरें गिन रहा था सुलोचना को आधे भीगे और आधे वस्त्र शृंगार में पा इस वक्त वह मचल उठा और उससे प्रणय निवेदन कर बैठा।

वह तो थी ही प्यासी सरिता उस ने मौन समर्पण कर दिया।

मणि ने जैसे ही उसके भीगे होंठो का रस पान किया उसके मन में दबी ग्लानि बह निकली। वह इस वक्त मिले स्पर्श से अब तक के सुलगते होंठों पर हिम सी शीतलता पा तृप्त हो अपने मन में दबी कुंठा की क्षमा याचना देवी माँ से कर उस युगल पल के युग्म में सराबोर हो गई।

ऐसी सुबह इससे पहले नहीं हुई थी सुलोचना के जीवन की बंद कली खिल उठी थी।

उसका रोम-रोम पुलकित था मणि भी अपने पौरुष का सुख भोग संतुष्ट हो गया था।

कि तभी शंख की आवाज़ सुनाई दी और वह बोला-

“उरी बाबा रे लेट हो गया एक काम करो तुम तैयार हो कर आओ मैं निकलता हूँ।”

सुलोचना ने उसकी नाक पर लगा अपना सिंदूर पोंछते हुए कहा-

“तुम चलो मुझे थोड़ा वक्त लगेगा फिर से स्नान करना होगा माँ को विदा करना है।”

वह उसकी साँसो को महसूस करते हुए फ़्रेश हो तैयार होकर बाहर चला गया सुलोचना फिर से स्नान घर में चली गई।

स्नान घर में जा भोगी हुई अपनी काया को निर्मल करते हुए उसे अपना हर अंग नया लगा वह दर्पण के सामने जा खुद को निहार प्रफुल्लित हो दर्पण से बोली-

“येई तुमी के?”

फिर खुद ही लज्जा से दोहरी हो गई। खुद को सजा तेज़ी से पंडाल जा पहुँची।

आज उसका चेहरा पत्ते पर गिरी ओस सा चमक रहा था। उसे अभी भी अपने तन से मणि की भीनी ख़ुशबू आ रही थी।

सभी महिलाएँ सेंदुर खेला का आनंद ले रहीं थी वह भी सिंदूर में रंगी माँ को प्रणाम कर अगले बरस फिर से आने की विनती पढ़ रही थी। मणि के साथ अपना सात जन्मों तक का साथ माँग रही थी।

तभी सुनंदा उसके क़रीब आ बोली-

“सुलु तुमको पता है तुम बहुत ब्यूटीफ़ुल हो और सिंदूर में नहाई हुई तुम माँ दुर्गा का ही स्वरूप लग रही हो एक बात बोलूँ तुम इतनी ही नेचुरल रहना सच यू आर रियल ब्यूटि।” मणि को पास बुला कर बोली-

“मणि तुम जितने कूल हो ना सुलोचना उतनी ही स्वीट है।”

तभी एम.के. आया और उसकी बात के बीच में ही बोल पड़ा-

“मणि मुझे जाना होगा मेरा बुलावा आ गया है एंड सारी नन्दा अब मैं सुंदर वन न जा सकूँगा।”

मणि कुछ कहने को हुआ तो एम.के.ने उसे रोकते हुए और सुलोचना को देखते हुए कहा-

“मणि उपेक्षित मन आहत हो अक्सर दूसरा सहारा ढूँढने लगता है। तुम्हारी संगनी प्यासी सरिता है उसको उसी के जल से निर्मल करो उसे पहचानो और सराहो क़िस्मत वालों को मिलती है सुलोचना।”

सुनंदा बोली-

“एम.के.मैं भी यही कह रही थी शी इस जस्ट नेचुरल। एंड एम.के. वाट अबाउट योर संगनी?” खिलखिला उठी।

एम.के.ने जेब से एक तस्वीर निकाल कर दिखाते हुए कहा-

“लुक एंड मीट विथ क्रिशटीना शी इस माई ग्रीन कार्ड फ़ॉर अमरीका।”

सुनंदा बोली-

“लुक मणि इट्स योर दादा।” और ज़ोर से हँस दी।

सुलोचना ने बड़े प्यार से सुनंदा से आग्रह किया-

“आप मुझे अंग्रेज़ी सिखा देंगी?”

सुनंदा ने प्यार से उसे देखते हुए कहा-

“ज़रूर और तुम मुझे अच्छी बंगाली।”

दूर खड़ी कुसुम मुखर्जी माँ को बारम्बार धन्यवाद दे रहीं थी कि सुलोचना अंग्रेज़ी सीख अब एडवांस बन जाएगी।

 

 

माँ की प्रतिमा विसर्जन के लिए उठा ली गई थी बाहर का वातावरण भी अचानक हुई बरखा से नम हो गया था। माँ की विदाई से लोगों का मन भी भीग रहा था।

हर्ष और उल्लास के साथ सब माँ से अगले बरस फिर आने का वादा माँग बिदा कर रहे थे।

मणि सुलोचना का हाथ थामे अपनी कार की तरफ़ बढ़ चला था।

एम.के. सुलोचना के पवित्र मन को सोच कर भारतीय नारी को नमन कर रहा था।

माँ की प्रतिमा हुगली की धारा में समाई जाती थी और सुलोचना मणि की बाँह थामे संभल- संभल के रेत में क़दम रख रही थी मणि अपनी क़िस्मत की रेखा आसमान में अभी- अभी निकले इंद्रधनुष की वक्र रेखा में देख कर मग्न हो रहा था।

 

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