सुलोचना - 5 Jyotsana Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सुलोचना - 5

भाग-५

तीन चार साड़ी लाल और पीले रंग में पसंद कर चुकी तो एम.के.बोला- “आप को बस दो ही रंग पसंद हैं क्या?”

वह सकपका गई रंग के पीछे के छुपे भावों को जानते हुए ही शरारत से बोला था। उसने एक केशरिया रंग की टस्सर सिल्क उठाई और बोला।

यह अष्टमी वाले दिन पहनना नीली मुर्शिदाबाद सिल्क उसके ऊपर डालते हुए बोला-

“सप्तमी वाले दिन इसे पहन शृंगार करना मणि बाबू की नींद उड़ जाएगी।” फिर गारद साड़ी उठाते हुए बोला-

इसके बिना माँ की विदाई कैसे करोगी सूलू और उसी दिन मेरी भी तो विदाई है।”

वह एक-एक साड़ी चुन कर दे रहा था, सुलोचना का चेहरा खिलता जा रहा था। अपनी विदाई की बात बोल उसने सुलोचना के चेहरे की सारी चमक एक बार में ही धूमिल कर दी।

साड़ियों की दुकान से उतर वह जौहरी ज़ेवरात की दुकान में पहुँच ज़ेवर ख़रीदने लगे।इस ख़रीदारी में एम.के.बिलकुल चुप रहा पूछने पर बस हाँ में सर हिला देता जब यहाँ की ख़रीदारी भी पूरी हुई तब सब एक रेस्टोरेंट में खाने पहुँचे तभी एम.के.बोला-

“मणि मुझे एक छोटा सा काम याद आ गाय तुम दोनो बैठो मैं आता हूँ।” कह कर वह हाथ रिक्शा पकड़ कर जाने लगा तो मणि बोला।

“दादा गाड़ी ले कर जाओ न।”

“न,न जहाँ तक मुझे जाना है वहाँ गाड़ी नहीं जा सकती ये रिक्शा ही जाएगा।”

एम.के. चला गया मणि और सुलोचना वहाँ बैठे उसकी बाट जोहते रहे लगभग एक घंटे बाद वह कुछ पैकेट के साथ आय और बोला।

“चलो चलते हैं।”

शाम का धुँधलका सड़क की आवाजाही के बीच दिन की थकान भी थी एम.के. आगे बैठे हुए ऊँघने लगा तो मणि बोला-

“दादा आप को नींद आ रही है आप पीछे आ कर बैठ जाओ मैं आगे बैठता हूँ।”

“न, मै ठीक हूँ।”

कह कर उसने प्रतिवाद किया तो मणि ने ज़ोर दे कर कहा-

“नहीं दादा ड्राइवर के बग़ल में सोना ठीक नहीं है। रात भी घिर रही है और पूजा की भीड़ भी है रास्तों पर।”

गाड़ी रुकी और एम.के. पीछे की सीट पर आ कर एक किनारे पर बैठ गया मणि आगे जा कर बैठ गया।

सुलोचना के इतने क़रीब बैठते ही एम.के.की नींद उड़ गई उसके बदन की भीनी ख़ुशबू में वह मदहोश हुआ जाता था। बंद आँखो में भी वह सुलोचना को ही देख रहा था। सुलोचना को भी उसका इतने पास बैठना बड़ा सुखद लग रहा था पर उनका आँख मूँद कर सोना उसकी इस सुखद यात्रा में व्यवधान डाल रहा था। उसने उसे जगाने के लिए मणि से बात-चीत शुरू करी-

“मणि आज का दिन बहुत अच्छा रहा है न?”

मणि में “हाँ”में सर हिलाते हुए पीछे मुड़ कर अपने होंठो पर उँगली रखते हुए कहा-

“एक टु शांति राखो, दादा सो रहा है।”

वह चुप हो गई और एक नज़र सोते हुए एम.के. पर डाली फिर अपनी भी आँख मूँद ली। तभी एम.के. ने अपना हाथ सीट पर रखे उसके हाथ पर रख दिया और वह चौंक पड़ी।

एम.के. ने हौले से उसकी हथेली दबाते हुए स्पर्श की भाषा में ही उसे चुप रहने का और उसके साथ होने दोनो का एहसास जता दिया।

कार तेज रफ़्तार से सड़क पर दौड़ रही थी एम.के.सुलोचना की नरम उँगलियों को अपनी उँगलियों के बीच में फँसाये हुए इस रास्ते के न ख़त्म होने की दुआ मन ही मन कर रहा था।

जब की वह जनता था कि यह सोचना भी बेवक़ूफ़ी है मुश्किल से दो तीन घंटे का रास्ता है जो आधे से ज़्यादा कट चुका है, उसकी सोच के ख़त्म होने से पहले ही रास्ता ख़त्म हो जाएगा। फिर भी इस वक्त वह इस स्पर्श के सुख का एहसास अपनी हथेलियों में ही नहीं अपनी उँगलियों के हर पोर में बसा लेना चाहता था।

सुलोचना भी अजीब से एहसास से गुजर रही थी उसका मन रोमांचित हुआ जा रहा था। आठ माह के वैवाहिक जीवन में उसकी उँगलियों ने अभी तक ऐसा स्पर्श न पाया था।

उसके मन ने एम.के.की इस धृष्टता का कोई विरोध नहीं किया बल्कि अपनी उँगलियों को उसकी उँगलियों के साथ खेलने की इजाज़त दे दी इस सफ़र के साथ ही वह एक अनजाने सफ़र में चल पड़ी। उसका स्नेह स्पर्श और रोमांस के लिए व्याकुल अतृप्त मन और भी व्याकुल हुआ जाता था। वह दोनो ही बंद आँखो में अपनी खेलती उँगलियों को देख कर एक सिहरन सी महसूस कर रहे थे।

मणि आगे बैठा ड्राइवर को संभल कर गाड़ी चलाने की हिदायत दे रहा था।

************