डकेती! बड़े ही साहसपूर्ण तरीके से किसी ने यह कारनामा कर दिखाया था. चलती ट्रेन को लूट लिया गया था!
ये कैसे हुआ!? किसने किया!? कब किया!? सारे प्रश्न प्रश्न ही बनकर रह गए. किसी के उत्तर नहीं थे. सब की पेंट ढीली और खटिया खड़ी हो चुकी थी. पूरा केस चेन्नई क्राइम ब्रांच को सुप्रत कर दिया गया.
अब तरह तरह की थियरी सामने आने लगी. पहली थियरी यह थी की सैलम से चेन्नई तक की ट्रेन की यात्रा के दौरान यह लूट को अंजाम दिया गया. पर ट्रेन के ऊपर पुरे छब्बीस हजार वाल्ट वाले तार थे. ऐसी परिस्थिति में सोक लगकर मर जाने का पूरा जोखिम था. इसलिए ट्रेन के डिब्बे की छत से छेद कर अन्दर दाखिल होना और लूट को अंजाम देना संभव नहीं. इसलिए इस थियरी को बाई बाई कह दिया गया.
अब दूसरी थियरी सामने आती है. जब ट्रेन सैलम से निकलकर चेन्नई के लिए चली तो बीच में वृद्धाचेलम स्टेशन पर एक घंटे के लिए रुकी थी. यहाँ उसे इंजन बदलना था. अब ट्रेन के साथ यहाँ से इलेक्ट्रीसिटी से चलने वाला इंजन जुड़ने वाला था. वास्तव में सैलम से लेकर वृद्धाचेलम तक का १३८ कीमी का रूट इलेक्त्रिफाइद नहीं था और यहाँ तक ट्रेन डीज़ल से चलती थी. इसी एक घंटे के दौरान जब वृद्धाचेलम स्टेशन पर इंजन बदला जा रहा था, लूटेरों ने ट्रेन के डिब्बे की छत पर चढ़कर इस काण्ड को अंजाम दिया होगा. पर स्टेशन पर पुलिस कर्मी, रेलवे के कर्मचारी और यात्रियों की हाजरी में उनकी नज़रों से बचकर ट्रेन के डिब्बे पर चढना और डिब्बे की छत में छेद कर अन्दर दाखिल होना ही संभव नहीं था. और डिब्बे की छत से किसी प्रकार के फिंगरप्रिंट और फूट प्रिंट के निशान भी नहीं मिले थे. इसलिए यह थियरी भी बेकार साबित हुई.
तीसरी थियरी में यह दावा किया गया की किसी सरकारी आदमी की सहायता से पहले लूटेरे किसी तरह पैसो से भरे डिब्बे में दाखिल हुए और फिर डिब्बे की छत में छेद कर बाहर निकले होंगे. इसके लिए साथ चल रहे निगरानी दल के पुलिस वालों की भी जांच की गई. पर कुछ हाथ नहीं लगा.
क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के दिमाग में एक बात तै रूप से बैठ गई थी की इस लूट को कोई सामान्य लूटेरे अंजाम नहीं दे सकते थे. इसके लिए पहले से ही पूरा प्लानिंग किया गया होगा. और इसमें सिर्फ लूटेरे ही नहीं! रिज़र्व बेंक और अन्य बेंको के कर्मचारी अथवा पुलिस डिपार्टमेंट या रेलवे पुलिस के कर्मचारी भी जरूर मिले हुए होंगे. तभी इतनी बड़ी लूट को अंजाम दिया जा सकता है. इन्ही लोगों ने लूटेरों को सटीक जानकारी दी; वर्ना सामान्य लूटेरे को कैसे पता चलता की इतने बड़े स्तर पर भारतीय रुपियों की हेरफेर होने वाली है और किस दिन होने वाली है? किस तरीके से होने वाली है और ट्रेन से ही होने वाली है तो किस ट्रेन से यह ट्रांसपोर्टेशन होने वाला है? किस डिब्बे को रुपियों से भरे बक्सों के साथ सील कर दिया जाएगा और किस डिब्बे में पुलिस वाले सवार होंगे? क्यूँ वे लूटेरे उसी डिब्बे में पहुंचे जिस डिब्बे में सिर्फ रुपियों से भरे बक्से रखे थे और पुलिस का कोई आदमी नहीं था? वे उस डिब्बे में क्यूँ न पहुंच गए जिस डिब्बे में पुलिस वाले बैठे हुए थे?
इस लूट की तपास करने वाले अधिकारियों ने इस रूट पर पड़ने वाले बारह स्टेशनों के सीसी टीवी केमेरा के फूटेज खंगाल डाले. करीब दो हजार लोगों की पूछताछ की गई. जिसमे पुलिस वाले, रेलवे पुलिस के जवान, रेलवे के अन्य कर्मचारी, प्लेटफोर्म पर काम करने वाले कुली, सामान ट्रांसपोर्टेशन और पार्शल कंपनियों के कर्मचारी, इत्यादि सामिल थे.
जांच कर्ताओं के लिए एक बात साफ़ हो गई थी की इस लूट को सेलम और वृद्धाचेलम के बीच ही अंजाम दिया जा सकता था. क्यूंकि इस दोनों स्टेशन के बीच एक्सो अर्तीस कीमी लम्बे रेलवे मार्ग पर बिजली की सुविधा न होने की वजह से ट्रेन डीज़ल इंजन से डोड़ती थी और सेलम से वृद्धाचेलम तक की इस यात्रा में तीन घंटे लेती है. इसलिए लूटेरों के पास पूरा मौका था कि वे इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सके.
रेलवे पुलिस और क्राइम ब्रांच के अधिकारी पुरे दो साल तक इस केस में अपनी खोपड़ी खपाते रहे पर हाथ कुछ नहीं लग रहा था. आखिर में अमेरिका की नासा की मदद मांगी गई. नासा ने भी भारतीय पुलिस को इस डकैती की घटना को सुल्जाने में पूरी सहायता की और पुरे ट्रेन मार्ग की डकैती के दिन की सारी तस्वीरे उपलब्ध करवाई. तस्वीरों के अभ्यास से पता चला की यह लूट की घटना को सैलम से वृद्धाचेलम के बीच ही अंजाम दिया गया है. जिस डिब्बे में छेद किया गया था उस डिब्बे की छत पर पांच लोगों की धुंधली तस्वीर भी प्राप्त हुई. पर तस्वीर में दिखने वाले ये लूटेरे कौन है; किसी का कोई पता नहीं चल रहा था.
क्रमशः