कैथार्सिस - 2 Amita Neerav द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कैथार्सिस - 2

अमिता नीरव

2


बाहर निकलकर वह लॉन में टहलने लगा। बस आने में अभी वक्त है। लॉन की क्यारियों में कई रंग के गुलाब गुच्छों में लटक रहे थे। उसने देखा कि धनक उनके फोटो खींच रही है। चलते-चलते वह उसके पास पहुँच गया – ‘यू लाइक फोटोग्राफी?’
‘ऊँ हू... बस हाथ आजमाती रहती हूँ। दो आय हैव ए प्रोफेशनल कैमरा...’ - वो अपने कैमरे को प्यार से सहलाते हुए कहती है। 
‘तो इसमें क्या दिक्कत है, यू कैन लर्न फोटोग्राफी ऑनलाइन...’ - अथर्व उसे सुझाव देता है। 
धनक कहती है – ‘बेसिकली आय हैव नाट एन आर्टिस्टिक टेंडेंसी... फोकस्ड नहीं रह पाती।‘ 
अनायास अथर्व के मुँह से निकल जाता है – ‘बट आई फाउंड यू ए आर्टिस्ट....’ 
वो खिलखिलाने लगती है – ‘कैसे...?’ निराशा में अपने कंधे उचकाती है और फिर छोड़ देती है। - ‘कोई क्रिएटिव काम मुझे आता नहीं है। सिवा प्रोग्रामिंग के.... यू नो... दीस काइंड ऑफ जॉब रुईन ऑर सेल्फ... दे मेक अस लाइक मशीन....’ 
अथर्व का यकीन और पुख्ता हो जाता है, वो उसे आश्चर्य से देखता है। - ‘स्टील यू से यू हैवंट आर्टिस्टिक टेंडेंसी.... ‘
धनक चौंकती है... – ‘या... बट...’ 
मेन गेट से बस कंपांउंड में घुसती है। ‘लेट्स गो....’ - धनक उसकी तरफ सहजता से हाथ बढ़ाती है। 
अर्थव को कुछ लगता है, लेकिन उसे सारे पिछले चित्र एक-एक कर याद आते हैं। धनक सबके साथ इसी सहजता से रहती है। 

एक-डेढ़ घंटे में सारे हँसते-गाते फॉर्म हाउस में पहुँच गए थे। लड़कियों के लिए स्टे करने की व्यवस्था दूसरी बिल्डिंग में लड़कों के लिए दूसरी। हर कमरे में दो-दो बेड लगे थे। एक कमरे में दो लोग ठहर सकते थे। अथर्व के साथ कबीर था। सबने अपना-अपना सामान उतारा और अपने-अपने ठिकाने पर चले गए। लगभग आधे-पौन घंटे बाद सारे मीटिंग हॉल में ब्रेकफास्ट के लिए जमा हुए थे। 
ब्रेकफास्ट और लंच के मीनटाइम में एक मीटिंग... कुछ मोटिवेशनल और कुछ आउटपुट बढ़ाने के उपायों को लेकर। फिर कल शाम तक की मुक्ति, रात को पार्टी, कल आउटिंग... हो गया वीक खत्म। मंडे से फिर वही। 

लंच के बाद सारे अपने-अपने हिस्से में चले गए। लड़के तो ज्यादातर आराम के मोड में आ गए थे, लेकिन लड़कियाँ शायद एक ही जगह जमा थीं, देर तक हँसने-गाने की आवाजें आती रही थी। अथर्व सोचता है, इन लड़कियों में इतनी ऊर्जा आती कहाँ से हैं। ये भी तो हमारी ही तरह सप्ताह भर काम करती हैं। इनके भी अपने रूटीन के काम होते ही होंगे, फिर भी इतनी ऊर्जा बची रह जाती है कि वीकेंड में भी आराम न करे। सोचते-सोचते उसे नींद आ गई। शाम जब चाय ले लिए दरवाजा बजाया गया तब उसकी नींद खुली थी। कबीर तो अब भी सो ही रहा था। अथर्व ने उसे जगाया था। 

शाम की पार्टी में धनक ने फ्लोरल प्रिंट का वैलवेट गाउन पहना था। वाइन कलर की फ्लोरल प्रिंट पर स्टोन वर्क था। एक बार फिर से अथर्व का ध्यान उस पर अटक गया। अथर्व ने महसूस किया कि धनक भीड़ को एंजॉय कर रही है। वो खुद भी बहुत देर तक हॉल में रहा। सब डांस कर रहे थे, थोड़ा बहुत खाना-पीना भी चल ही रहा था। थोड़ी देर बाद उसे हॉल की जलती-बुझती बत्तियां परेशान करने लगी और वो वहाँ से निकल गया। देर तक लॉन के कोने पर लगे सनी यलो बल्बों की रोशनी में टहलता रहा। फिर बेंच पर जाकर बैठ गया। 
वह ज्यादा देर रोशनी को सह नहीं पाता है। उसे लगता है उसके लिए उसे किसी डॉक्टर या फिर किसी साइकियेट्रिक से संपर्क करना चाहिए। ये उसे बहुत अनयूजवल लगता है। खुली हवा और प्राकृतिक रोशनी में वह सहज रहता है। सूरज के डूब जाने के बाद वह अंधेरे के साथ भी रह लेता है, लेकिन लकदक रोशनी उसे अजीब बेचैनी से भर देती है। उस पर शोर से वह बौखला जाता है। 
देर तक वह बेंच पर बैठा रहा था। आसमान के नीचे उसे राहत महसूस हुई थी। हॉल के दूसरी तरफ का दरवाजा खुला था, कोई लड़की वहाँ से बाहर आई थी। उस तरफ उतनी रोशनी नहीं थी कि यह स्पष्ट देखा जा सके कि कौन है बस कोई लड़की है यह स्पष्ट हुआ था। 
वह अपनी जगह स्थिर बैठा हुआ था। वह लड़की हॉल के पीछे की तरफ चली गई थी। अथर्व अपनी जगह बैठा हुआ था। धीरे-धीरे उसे थकान लगने लगी थी। उसने सोचा वह जाकर कमरे में सो सकता है, इतनी भीड़ और उत्तेजना में उसकी अनुपस्थिति किसी को दिखाई ही नहीं देगी। लेकिन एकाएक उसे भूख जैसी लगने लगी। इस विचार ने उसे और डरा दिया कि यदि वह ऐसे ही सो गया और देर रात तक जागा ही नहीं तो उसे भूखा ही सोना पड़ सकता है। 
वह अपनी जगह से उठा और डायनिंग हॉल की तरफ बढ़ गया। क्या पता स्टार्टर सर्व कर दिए गए हों। थोड़ा बहुत स्टार्टर से ही पेट भर ले। हॉल की पूरी लंबाई को पार कर वह डायनिंग हॉल में दाखिल हुआ था। डांसिंग हॉल की आवाजें डायनिंग हॉल में सुनाई दे रही थी, शिद्दत उतनी नहीं थी। हॉल के पिछले हिस्से के आधे अंधेरे आधे उजले कोने में बैठी हुई धनक उसे दिखाई दी थी। 
टेबल पर कुछ स्टार्टर लगा दिए गए थे। पनीर टिक्का प्लेट में लेकर वह धनक की ओर बढ़ा था। वह जैसे सब कुछ से अनजान आँखें मूंदे ध्यान में बैठी थी। अथर्व एक क्षण को ठिठका था, ध्यान भंग करे या न करे। लेकिन तभी उसने आँखें खोल ली थी। ‘अरे! तुम कब से हो यहाँ?’ - उसने पूछा था। 

‘मैं बस अभी ही आया हूँ।‘ 
‘लेकिन तुम बहुत देर से मुझे वहाँ नहीं दिखे।‘ - उसने अपनी आइब्रो सिकोड़कर पूछा। 
‘हाँ, मैं बाहर आ गया था।‘ 
‘क्यों.... नॉट एंजॉयिंग..?’

‘नहीं, ऐसा नहीं है। लेकिन भीड़-रोशनी मुझ जल्दी बेचैन कर देती है।‘ - अथर्व ने प्लेट की तरफ देखते हुए कहा। 

‘ओ... बट आय जस्ट लव दिस... ‘– धनक ने कहा तो। अथर्व ने उसे एक गहरी नजर से देखा। 

‘एक बात कहूँ...’ – अथर्व ने बहुत गंभीर होकर कहा था।

‘प्रपोज करने वाले हो...!’ – कहकर धनक खिलखिलाई थी अथर्व थोड़ा झेंप गया था। फिर संभल कर कहा – ‘नहीं, फील्डिंग कर रहा हूँ।‘ 

वह मीठे से मुस्कुराई थी – ‘यू आर ऑनेस्ट इनफ...’

‘हाँ... इसीलिए कुछ कहना चाहता हूँ।‘ - अथर्व ने कहा।

‘क्या?’

‘मुझे कई दिनों से लग रहा है कि तुम जो हो, एक्चुली तुम वह नहीं हो... यू आर मोर दैन दिस’- कहते हुए वह जरा असहज हो गया था। जाने उस तक क्या और कैसे पहुँचा हो। 

‘अच्छा... लेकिन मैंने खुद को सालों से ऐसे ही जाना है। आय डोंट टेक लाइफ सो सीरियसली...’ – धनक अपनी सफाई में गंभीर हो आई थी। 

‘इट इज नॉट अबाउट सीरियसनेस एट ऑल...’ 

‘फिर...?’ 

‘हो सकता है, मैं गलत होऊं, लेकिन मुझे लगता है कि यू आर नॉट एक्जेक्टली व्हाट यू आर अस्यूमिंग योरसेल्फ।‘ - अथर्व ने बाहर खिड़की की तरफ देखते हुए कहा था।

‘कैसे कह सकते हो...?’ – धनक ने जिद्द में पूछा था जैसे।

‘आय एम आब्जर्विंग यू कंटीन्यूअसली’ – कहते हुए उसके कहने में अपराध-बोध उभर आया। 

उसने समझा, शरारत से उसकी ओर देखा – ‘ओह... नाउ आय अंडरस्टैंड व्हाट फील्डिंग मीन्स...’

‘नो.. नो... डोंट गेट मी रांग’ – अथर्व ने सफाई दी। 

‘ओ कम ऑन यार... तुम बी टाउन लोगों के साथ यही दिक्कत है। जीवन का लंबा समय इफ्स-बट्स में जाया कर देते हो।‘ - उसने थोड़ी सख्ती दिखाते हुए कहा। 

‘ओके सीरियसली बताओ तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं बहुत कुछ छुपा रही हूँ?’ – धनक गंभीर हो गई। 

‘नहीं, मैंने यह नहीं कहा यार। मैं यह कह रहा हूँ, कि यू मस्ट डिस्कवर योरसेल्फ... बीकाज आय फाउंड एनादर धनक इन यू… एंड बिलीव मी, इट्स नाट ए वन टाइम कन्क्लूजन... कंटीन्यूअसली आय फील लाइक दैट’ – अथर्व ने कहा। 

‘यार लेकिन मैं कोई गुम थोड़े ही हो गई हूँ... कहाँ ढूंढू खुद को... ???’ – धनक गंभीर हो आई थी। 

‘आय हैव ए प्रपोजल...’ – अथर्व ने साहस से कहा।

‘व्हाट?’ 

‘आय नीड ए डे विथ यू... लाइक एक चाइल्ड एंड टीचर’ – अथर्व ने बाद वाले वाक्य को ज्यादा जोर से और साफ लहजे में कहा। 

‘और उस एक दिन में तुम मुझे खोज लोगे???’- धनक ने सीधा सवाल किया। 

अथर्व हँसा था – ‘नहीं, तुम्हें छुपी हुई धनक से मिलवा भी सकता हूँ। या फिर तुम्हारी बात मान सकता हूँ कि तुम यही हो जो तुम हो...’ 

‘ओके डन... बताओ कब???’ – धनक ने पूछा था। - ‘लेकिन यदि मैं ही सही हुई तब...!!!’ 

‘जो तुम कहोगी मैं करूँगा।‘ - अथर्व ने बिना कुछ सोचे उससे वादा कर दिया था। धनक मुस्कुराई थी। ‘बहुत जल्दी यकीन कर लेते हो, बहुत जल्दी कमिटमेंट भी। इतना यकीन है अपने कन्क्लूजन पर...’

‘नहीं, तुम पर।‘ - जाने कैसे अथर्व यह कह गया था। एकाएक माहौल बहुत गंभीर हो गया था। धनक असहज हो आई थी। ऐसा नहीं था कि उसके जीवन में ऐसे मौके नहीं आए हों, लेकिन अथर्व की डीसेंसी और सेंसेटिविटी से वह मुतास्सिर हुई, इसलिए उसे खतरे का आभास होने लगा था। 

उस शाम धनक के वॉट्स एप में बहुत सारे वॉटर ड्रॉप में से एक वॉटऱ ड्रॉप अथर्व का भी था। ‘मीटिंग टूमारो... लाइक किड एंड टीचर... शार्प 8 एएम’ धनक देखकर चौंक गई थी। उसे शर्त याद आ गई थी। कल सटरडे था... इस बार कोई गेट-टूगेदर नहीं था। उसने मैसेज का जवाब देने की बजाए कॉल ही कर लिया था। 

‘सुबह 8 बजे... इत्ती सुबह तो कभी उठी ही नहीं यार...।’ – उसने अनुनय किया था।

अथर्व हँसा था जोर से – ‘गनीमत समझो आठ कहा है, मैं तो छ बजे ही सोच रहा था।’

‘ओ कमऑन... ये एक्सप्लोर करना है या एक्ज़ॉम देना है!’ – धनक ने थोड़ा गुस्से में कहा था।

‘मिल रहे हैं सुबह 8 बजे... नो इफ्स एंड बट्स... आई विल बी देयर एट 7.45 शॉर्प।’ – अथर्व जैसे अभी ही टीचर हो गया था। 

‘ओ हलो... लेकिन हम करने क्या वाले हैं???’ – धनक ने उसका आदेश मानकर उसके टीचर होने को रिक्गनाइज कर दिया था। 

‘टूमारो... नाउ गुड नाइट’ – और अथर्व ने फोन रख दिया था। 
धनक देर तक अनुमान लगाने की कोशिश कर रही थी कि आखिर अथर्व का कल का प्लान क्या है??? लेकिन उसने कोई सुराग ही नहीं दिया। 

ठीक पौने आठ बजे धनक का फोन बजा था। वह तैयार थी। उसने फोन से ही पूछा था – ‘चाय पियोगे या वो भी नहीं...?’

अथर्व ने हँसते हुए कहा था – ‘आ जाओ... सब करेंगे, लेकिन अभी नहीं।’ 

धनक हँसते हुए उतर आई थी...। उसने देखा था अथर्व का ड्रेसिंग एकदम अलग था। उसने यलो कलर की टी-शर्ट और बेसिक डेनिम पहना था। धनक ने एक नजर खुद को देखा था। उसने ग्रीन-यलो लिरिल प्रिंट का स्कर्ट और ग्रीन टॉप पहना था। वह उसे देखकर मुस्कुराई थी... उसने भी धनक को मुस्कुरा कर देखा था। 

‘लुकिंग प्रिटी...’ – पहली बार उसने प्रिटी शब्द को ऐसे उच्चारा था, ये अनायास ही था। उसने धनक को इस तरह के कलर्स और आउटफिट में देखा ही नहीं था। 

‘ओ हो... थैंक यू’ – उसने बैठते हुए कहा था। 

‘यू आर लुकिंग डिफरंट...।’ – धनक ने तारीफ करते-करते भी कुछ छोड़ दिया।

‘यू केन से.. लुकिंग डेशिंग’ – अथर्व मुस्कुराया था। 

धनक खिलखिलाकर हँसी थी। ‘इतनी आसानी से तारीफ नहीं करती मैं...’ – कहकर अपने पर्स से मोबाइल निकाल लिया। अथर्व ने उसे देखा...। धनक मोबाइल में व्यस्त थी, तभी गाड़ी रूक गई। उसने सिर उठाकर अथर्व को देखा। उसने कहा – ‘ब्रेकफास्ट...’

सड़क किनारे के एक साफ-सुथरे रेस्टोरेंट के सामने अथर्व ने गाड़ी रोककर कहा। दोनों अंदर गए थे। साधारण-सा कंस्ट्रक्शन था। आगे बस रिसेप्शन और किचन था, एक चौड़े कॉरिडोर से एक रास्ता पिछले हिस्से में खुला जो नर्सरी बना हुआ था। वहीं, उसने कुर्सी-टेबल लगा रखे थे। एक छोटा तालाब जैसा बना हुआ था, जिसमें कमल खिल रहे थे। दोनों उस तालाब के पास वाली टेबल पर जाकर बैठ गए। अथर्व ने मैन्यूकार्ड खुद उठाया और बिना धनक से पूछे ऑर्डर दिया। धनक उसे आश्चर्य से देखती रही।