रहस्यमयी टापू--भाग (९)..!!
मैं अपने और भी सहयोगियों से इस कार्य के लिए मदद मांगने गया था क्योंकि चित्रलेखा और शंखनाद अब इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि मैं अकेले ही उन दोनों के जादू को नहीं तोड़ सकता, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन अब भी मैं आपके उत्तर से संतुष्ट नहीं हूं,मानिक चंद बोला।।
लेकिन क्यो? मैं सत्य बोल रहा हूं, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन मैं कैसे मान लूं कि आप एकदम सत्य कह रहे हैं,हो सकता है वो नीलगिरी राज्य के महाराज का पत्र झूठा हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,अब आप ही बताइए तो मैं ऐसा क्या कर सकता हूं,आपके लिए जिससे आपको मेरी बात पर विश्वास हो जाए, अघोरनाथ ने पूछा।।
अच्छा तो आप समुद्र तट पर चलकर पहले ये निश्चित करें कि वो जलपरी नीलकमल हैं और वो पंक्षी सुवर्ण है,आप उन्हें ये आश्वासन दे कि आप उनके प्राण बचा लेंगे,आप उनकी रक्षा के लिए ही नियुक्त किए गए हैं,मानिक चंद ने अघोरनाथ से कहा।।
हां.. हां..क्यो नही!!भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है,मेरा तो यही कार्य है, असहाय प्राणियों की रक्षा करना, मैं तो हमेशा ऐसे कार्यों के लिए तत्पर रहता हूं, मैंने तंत्र विद्या केवल इन्हीं कार्यो के लिए ही सीखी थी और आपको विश्वास दिलाने के लिए मैं अवश्य ही उन दोनों से मिलने चलूंगा, अघोरनाथ बोले।।
अघोरनाथ और मानिक चंद समुद्र तट की ओर चल पड़े, दोनों भूखे और प्यासे भी हो चले थे,रास्ते में कच्चे नारियल तोड़कर उन्होंने अपनी प्यास बुझाई, फिर समुद्र तट पर कुछ मछलियां पकड़ कर भूनी, उन्हें खाकर मानिक चंद तृप्त हुआ परंतु अघोरनाथ जी ने मछलियों का सेवन नहीं किया उन्होंने कहा कि मैं मांसाहार अभी नहीं कर सकता,हो सकता है मुझे अभी मंत्रों का उच्चारण करना पड़ जाए और ये निषेध हैं और वैसे भी मैं मांसाहार नहीं करता, इसमें मुझे रूचि नहीं है, मैं कुछ जड़ें भूनकर खा लेता हूं और खा पीकर दोनों लोग उसी जगह नीलकमल की प्रतीक्षा करने लगें, जहां मानिक चंद को नीलकमल मिली थीं।।
कुछ समय के पश्चात् नीलकमल समुद्र में तैरती हुई दिखी,मानिक चंद ने उसे आवाज़ लगाई।।
नीलकमल पत्थरों पर आकर बैठ गई और मानिक चंद से पूछा।।
मैंने आपकी कितनी प्रतीक्षा की, कहां रह गए थे आप, कुछ पता किया आपने, चित्रलेखा के विषय में,कब तक मुझे इस रूप में सुवर्ण से अलग होकर रहना पड़ेगा, बहुत ही विक्षिप्त अवस्था है मेरी,मेरी अन्त: पीड़ा को समझने का प्रयास करें।।
इसलिए तो मैं इन महाशय को आपसे मिलवाने लाया था,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
कौन हैं ये?ये भी चित्रलेखा की तरह कोई मायावी ना हो, आपने कैसे इन पर विश्वास कर लिया, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
नहीं.. नहीं.. वैसे आपका सोचना एकदम सही है, कोई भी होता तो ऐसी ही प्रतिक्रिया देता लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं कभी भी आपको और सुवर्ण को कोई भी हानि नहीं होने दूंगा,मानिक चंद ने नीलकमल से कहा।।
आप कह रहे हैं तो मान लेती हूं, वैसे है कौन ये? नीलकमल बोली।।
ये बहुत बड़े तांत्रिक अघोरनाथ जी हैं,साथ में ये चित्रलेखा के बहुत बड़े शत्रु भी है और सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि चित्रलेखा के पिता भी है,इनकी ख्याति देखकर नीलगिरी के महाराज जोकि सुवर्ण के पिता हैं, उन्होंने ही इन्हें सुवर्ण के प्राणों की रक्षा हेतु नियुक्त किया है,मानिक चंद बोला।।
परंतु इसका क्या प्रमाण हैं कि ये जो बोल रहे हैं,वो सत्य ही होगा,हो सकता है कि ये कोई तांत्रिक ही ना हो,ये तुम्हें रिझाने के लिए कोई मायावी रूप धरकर आए हो, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
तो आपको मेरी बातों पर अब भी संदेह और अगर मैं आपको पुनः आपके वहीं पहले वाले रूप में लाने में सफल हो जाऊं तो क्या तब भी आपको किसी प्रमाण की आवश्यकता होगी, अघोरनाथ बोले।।
जी,अगर आपका प्रयास सफल हो तो मुझे और सुवर्ण को नया जीवन मिल जाएगा,हम आपका यह आभार जीवन भर नहीं भूलेंगे, नीलकमल बोली।।
तो ठीक है, कहां है सुवर्ण? उन्हें भी बुलाए, मैं अभी आप लोगों के पुराने रूप में लाने का प्रयास करता हूं,मेरे कारण आप लोग अपने पुराने रूप में आ गए तो सबसे ज़्यादा प्रसन्नता मुझे ही होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली, मैं अभी सुवर्ण को आवाज लगाती हूं
और नीलकमल ने सुवर्ण को जोर जोर से आवाज़ लगाई__
सुवर्ण.... सुवर्ण... कहां हो? यहां आओ,ये लोग तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाएंगे,मेरी बात पर विश्वास रखों,इन महाशय को आपके पिताश्री ने ही आपकी रक्षा हेतु नियुक्त किया है,आप तनिक भी भयभीत ना हो।।
और थोड़ी देर बाद सुवर्ण वहां उड़ते हुए आ पहुंचा__
अघोरनाथ ने एक जगह बैठकर अग्नि जलाई,उस अग्नि के चारों ओर कुछ चिन्ह अंकित किए, तत्पश्चात् अपने नेत्र बंद करके कुछ मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया, अपने कमण्डल से जल लेकर अग्नि पर जल का छिड़काव करते, बहुत देर की तपस्या के बाद उन्होंने अब की बार जल का छिड़काव नीलकमल और सुवर्ण पर किया और देखते ही देखते दोनों अपने पुनः वाले रूप में आ गए।।
नीलकमल अत्यधिक प्रसन्न हुई, उसने अघोरनाथ जी के चरणस्पर्श करते हुए कहा कि___
क्षमा करें!! बाबा,जो मैंने आप पर संदेह किया, बहुत बहुत आभार आपका, आपने हमें नया जीवन दिया है।।
सदा प्रसन्न रहो, पुत्री!! और आभार किस बात का तुम तो मेरी पुत्री समान हो,ये तो मेरा कर्त्तव्य था,ये तो मैंने मानवता वश किया, किसी की सहायता कर सकूं,ये तो मेरे लिए बड़े गौरव की बात होगी, अघोरनाथ बोले।।
नीलकमल बोली और मानिक भाई आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद,आज से आप मेरे बड़े भाई हुए,अगर आप ना होते तो हम दोनों कतई भी अपने पहले वाले रूप नहीं आ पाते,आप ही बाबा को यहां लाए और उन्होंने हमारी सहायता की, नीलकमल ने मानिक चंद से कहा।।
ऐसा ना कहो, नीलकमल बहन,ये तो मेरा धर्म था,अपनी बहन की सहायता करना तो मेरा कर्तव्य है,मानिक चंद बोला।।
और उस दिन सब बहुत प्रसन्न थे,मानिक चंद की उलझन खत्म हो चुकी थीं, उसे अब अघोरनाथ पर संदेह नहीं रह गया, नीलकमल भी अपने पहले वाले रूप में आ चुकी थीं लेकिन अब यह सबसे बड़ी उलझन थी कि चित्रलेखा और शंखनाद का क्या किया जाए।।
बस,इसी बात को लेकर उन सब में वार्तालाप चल रहा था।।
मैं अभी तक शंखनाद की शक्तियों का पता नहीं लगा पाया हूं कि वो कितना शक्तिशाली हैं, उसके साथ चित्रलेखा भी है, चित्रलेखा को भी कम नहीं समझना चाहिए, अघोरनाथ बोले।।
लेकिन बाबा कुछ तो ऐसा होगा जो उन दोनों के जादू को तोड़ सकता हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा, भइया,आप चित्रलेखा के घर में रूके, आपको वहां कुछ भी ऐसा आश्चर्यजनक प्रतीत नहीं हुआ कि ये कैसे हो सकता है, सुवर्ण बोला।।
नहीं, सुवर्ण, ऐसा तो कुछ नहीं लगा,मानिक चंद बोला।।
परन्तु, कुछ ना कुछ तो ऐसा अवश्य होगा जो आपको लगा हो कि यहां नहीं होना चाहिए था,या ऐसी कोई घटना जो कुछ विचित्र प्रतीत हुई हो, नीलकमल बोली।।
नहीं ऐसा तो कुछ,याद नहीं आ रहा लेकिन याद आते ही बताऊंगा, मस्तिष्क पर जोर डालना पड़ेगा,मानिक चंद बोला।।
ऐसा कुछ तो अवश्य ही होना चाहिए, जिससे चित्रलेखा की दुर्बलता का पता चल सकें,ये तो वहीं जाकर ज्ञात हो सकता है, अघोरनाथ जी बोले।।
लेकिन ऐसा साहस कौन कर सकता है भला, क्योंकि अब तक तो मेरी सच्चाई भी चित्रलेखा को शंखनाद ने बता दी होगी और वो अत्यधिक सावधान हो गई होंगी, मानिक चंद बोला।।
हां,ये भी सत्य है, अघोरनाथ बोले।।
अब इसका क्या समाधान निकाला जाए, सुवर्ण बोला।।
क्रमशः___
सरोज वर्मा__
सर्वाधिकार सुरक्षित__