अंत से प्रारंभ।
माँ का स्नेह
देता था स्वर्ग की अनुभूति,
उसका आशीष
भरता था जीवन में स्फूर्ति।
एक दिन
उसकी सांसों में हो रहा था सूर्यास्त
हम थे स्तब्ध और विवके शून्य
देख रहे थे जीवन का यथार्थ
हम थे बेबस और लाचार
उसे रोक सकने में असमर्थ
और वह चली गई
अनन्त की ओर।
मुझे याद है
जब मैं रोता था
वह हो जाती थी परेशान,
जब मैं हंसता था
वह खुशी से फूल जाती थी,
वह सदैव
सदाचार, सद्व्यवहार और सद्कर्म
पीड़ित मानवता की सेवा,
राष्ट्र के प्रति समर्पण और
सेवा व त्याग की
देती थी शिक्षा।
देते-देते शिक्षा
लुटाते-लुटाते आशीष
बरसाते-बरसाते ममता
हमारे देखते-देखते ही
हमारी आँखों के सामने
हो गई
पंचतत्वों में विलीन।
अभी भी जब कभी
होता हूँ परेशान
बंद करता हूँ आँखें
वह सामने आ जाती है,
जब कभी होता हूँ व्यथित
बदल रहा होता हूँ करवटें
वह आती है
लोरी सुनाती है
और
सुला जाती है।
समझ नहीं पाता हूँ
यह प्रारंभ से अंत है
या अंत से प्रारंभ।
सच्चा लोकतंत्र
पहले था राजतंत्र
अब है लोकतंत्र
पहले राजा शोषण करता था
अब नेता कर रहा है।
जनता पहले भी थी
और आज भी है
गरीब की गरीब।
कोई ईमान बेचकर
कोई खून बेचकर
कोई तन बेचकर
कमा रहा है धन,
तब चल पा रहा है
उसका और उसके
परिवार का तन।
नेता पूंजी का पुजारी है
उसके घर में
उजियारा ही उजियारा है।
जनता गरीब की गरीब और बेचारी है
उसके जीवन में
अंधियारा ही अधियारा है।
खोजना पड़ेगा कोई ऐसा मंत्र
जिससे आ जाए सच्चा लोकतंत्र,
मिटे गरीब और अमीर की खाई
क्या तुम्हारे पास ऐसा कोई इलाज
है मेरे भाई!
नया नेता: नया नारा
जब भी उदित होता है नया नेता
गूँज उठता है एक नया नारा।
आराम हराम है
जय जवान, जय किसान
गरीबी हटाओ
हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं
और शाइनिंग इण्डिया के
वादे और नारे
न जाने कहाँ खो गए,
मानो अतीत के गर्भ में सो गए।
मंहगाई, रिश्वतखोरी, बेईमानी और भ्रष्टाचार
बढ़ते ही जा रहे हैं
और नये नेता
अच्छे दिन आने वाले हैं का
नया नारा लगा रहे हैं।
अच्छे दिन कैसे होंगे?
कब आएंगे?
कोई नहीं समझा रहा,
नारा लगाने वाला
स्वयं नहीं समझ पा रहा।
जनता कर रही है प्रतीक्षा
हो रही है परेशान
वह नहीं समझ पा रही
परिवर्तन ऐसे नहीं होता।
हम स्वयं को बदलें
जाग्रत करें नवीन चेतना
श्रम और परिश्रम से
सकारात्मक सृजन हो
तभी होगा परिवर्तन
और होगा प्रादुर्भाव
एक नये सूर्य का।
तब नहीं होगा सूर्यास्त
उस प्रकाश से
अनीतियों और कुरीतियों का होगा मर्दन।
तभी हम
मजबूर नहीं
मजबूत होकर उभरेंगे।
भारत का नव निर्माण करके
विश्व में स्थापित कर पाएंगे
अपने देश का मान-सम्मान
और तभी होगा सचमुच
भारत देश महान।
राष्ट्र के प्रति जवाबदारी
शून्य भारत की देन रही
पर आज हम
विकास शून्य हो रहे हैं।
प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में
मजबूत नहीं
मजबूर होकर रह गए हैं।
शिक्षक, कृषक, चिकित्सक
उद्योगपति और व्यापारी
इन पर है राष्ट्र के
विकास की जवाबदारी,
इनकी योग्यता
दूर दृष्टि
पक्का इरादा और समर्पण
हो राष्ट्र के लिये अर्पण
तब होगा सकारात्मक विकास के
स्वप्न का सृजन।
ऐसा न होने पर
प्रगति होगी अवरुद्ध
जनता होगी क्रुद्ध
और तब होगा गृह-युद्ध।
अभी भी समय है
जाग जाओ
अपने खोये हुए विश्वास को
वापिस लाओ,
अपनी चेतना को जागृत कर
विकास की गंगा बहाओ।