रहस्यमयी टापू--भाग (६) Saroj Verma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

रहस्यमयी टापू--भाग (६)

रहस्यमयी टापू--भाग (६)

मानिक चंद ने नीलकमल से पूछा __
तुम्हें और क्या क्या पता है चित्रलेखा के बारे में...
बस, जितना मुझे पता है,वो मैं सब बता चुकी हूं, हां एक बात मुझे भी अब पता चली हैं।।
वो क्या? मानिक चंद ने पूछा।।
चित्रलेखा ने किसी इंसान को वहां कैद कर रखा है, जिस गुफा पहले शुद्धोधन रहा करता था, नीलकमल बोली।।
अच्छा मुझे तुम उस जगह का पता बता सकती हो, आखिर वो जगह कहां है?मानिक चंद ने पूछा।।
हां.. हां..क्यो नही, तुम्हें वहां सुवर्ण लेकर जा सकता है,वो तो उड़कर जाएगा तो किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा, नीलकमल बोली।।
हां,ये अच्छा सुझाव है,मानिक चंद बोला।।
हां,तो कल तैयार रहना और यहां जल्दी आना लेकिन चित्रलेखा को ये भनक ना लगने पाएं कि तुम मुझसे मिल चुके हो, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं, नीलकमल बोली।।
अच्छा ठीक है!! और इतना कहकर मानिक चंद चित्रलेखा के ठिकाने की ओर बढ़ चला।।
मानिक चंद जब चित्रलेखा के घर पहुंचा तब तक अंधेरा गहराने लगा था।
चित्रलेखा ने दरवाज़ा खोला और बोली___
आज बहुत देर कर दी!!
हां,आज नाव की मरम्मत करने बैठ गया, सोचा यहां से जाने का कुछ तो जुगाड़ हो,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,ये बताओ कुछ खाओगे या आज फिर से भुनी हुई मछलियां लाए हो, चित्रलेखा ने पूछा।।
नहीं,आज तो समय ही नहीं मिला,नाव की मरम्मत करने में ब्यस्त था,मानिक चंद बोला।।
अच्छा,तो मैं कुछ खाने पीने का प्रबन्ध करती हूं, चित्रलेखा बोली।।
इसी बीच मानिक चंद को मौका मिल गया, उसने पूरे घर की तो नहीं लेकिन इतने कम समय में जितनी भी जगह वो खंगाल सकता था,खंगाल ली और जैसे ही चित्रलेखा की आहट सुनाई दी,वो चुपचाप आकर अपनी जगह बैठ गया।।
चित्रलेखा ने फिर से कुछ भुना मांस और कुछ पत्तेदार चीज़ों के ब्यंजन परोस कर मानिक चंद से बोली__
लो खाओ।।
और मानिक चंद खाने लगा, उसने खाते खाते बातों ही बातों में पूछा__
आप यहां ऐसी जगह कैसे रह लेती है? आपको परेशानी नहीं होती, यहां अकेले रहने में कैसे अच्छा लग सकता है किसी इंसान को ,इस वीरान से सुनसान टापू पर,मेरा तो दम घुटता है लगता है कि कितनी जल्दी यहां से वापस जाऊं।‌‌।
बस, सालों हो गए यहां रहते हुए, मैंने खुद को इस वातावरण में ढा़ल लिया है, मैं यहां से जाने का अब सोच भी नहीं सकतीं, बहुत कुछ जुड़ा है मेरे जीवन का इस जगह से,यह जगह मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है, मरते दम तक मैं यहीं रहना चाहूंगी, चित्रलेखा बोली।।
मानिक चंद बोला, ऐसा भी क्या लगाव है आपको इस जगह से,ना खाने को ना पीने को और ना ही लोग देखने को मिलते हैं,मेरी नाव बन जाए, यहां से जाने का जैसे ही कुछ जुगाड़ होता है तो आप भी मेरे साथ चल चलिएगा, यहां क्या करेंगी अकेले रहकर।।
नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकतीं,अभी बहुत से काम करने हैं, मुझे यहां रहकर, बहुत सी चीजें ठीक करनी हैं, पता नहीं कब कैसे ठीक होगा, चित्रलेखा बोली।।
ऐसा क्या सही करना है आपको इस जगह का,मानिक चंद ने चित्रलेखा से पूछा।।
हैं किसी की जिंदगी और मौत का सवाल,जो मुझे ही ठीक करना होगा, चित्रलेखा बोली।।
ऐसा भी क्या है,मानिक ने पूछा।।
फिर कभी बताऊंगी,अब रात काफ़ी हो चली है,नींद आ रही है और इतना कहकर चित्रलेखा सोने चली गई।।
मानिक चंद को चित्रलेखा की बात सुनकर ऐसा लगा,हो ना हो कोई बात जरूर है, मुझे इन सब बातों का पता लगाना होगा कि आखिर उस गुफा में कौन क़ैद है और किसने उसे क़ैद कर रखा है,क्या चित्रलेखा सच में वही जादूगरनी हैं या वो जलपरी नीलकमल ना होकर कोई और है,इन सब बातों को सोचते हुए मानिक को कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
दूसरे दिन सुबह हुई,मानिक चंद यह सोचकर जागा कि आज पक्का उस गुफा की ओर जाएगा, जहां चित्रलेखा ने किसी को क़ैद कर रखा है, उससे मिलकर ही पता चलेगा कि आखिर क्या माजरा है ?और वो उस दिशा में चल पड़ा।।
नीलकमल ने तो कहा कि पंक्षी बने सुवर्ण को भी साथ ले ले क्योंकि रास्ता बताने में ही वो उसकी मदद कर सकता था लेकिन मानिक चंद ने ऐसा नहीं किया, उससे खुद से ज़्यादा किसी पर भी भरोसा नहीं रह गया था।।
मानिक चंद जिस दिशा में बढ़ा जा रहा था,वो बहुत ही घना जंगल था, इतना घना कि सूरज की रोशनी भी उधर नहीं पड़ती थी,इतने बड़े बड़े मच्छर जैसे कि कोई मधुमक्खी हो,इतने मोटे मोटे तनों वाली लाताएं,ना जाने कौन-कौन से किस्म के पेड़ वहां दिख रहे थे, उसने अपना चाकू भी साथ में ले रखा था, जहां कहीं कोई अड़चन आती तो वो उन्हें काटकर आगे बढ़ जाता।।
इसी तरह वो शाम तक जंगल पार करके गुफा तक पहुंच ही गया, उसने गुफा के पास जाकर देखा तो गुफा का दरवाज़ा दो तीन बड़े बड़े पत्थरों से बंद था,उसको पत्थर सरकाने में बहुत मेहनत लगी,आखिर काफ़ी मेहनत मसक्कत के बाद वो अपने कार्य में सफल हो गया।।
वो धीरे धीरे गुफा के अंदर बढ़ने लगा,अंदर कुछ अंधेरा भी था लेकिन उतना भी नहीं, वो सब साफ़ साफ़ देख पा रहा था, गुफा काफ़ी लम्बी दिख रही थी,वो चलते चला जा रहा था.....वो चलते चला जा रहा था।।
तभी अचानक सामने से उसे एक मर्दाना आवाज सुनाई दी___
कौन है?
कौन हो तुम?
मानिक चंद डर कर बोला__
मैं!!
मैं कौन? उस आवाज़ वाले व्यक्ति ने पूछा।।
मैं!! मानिक चंद,मानिक ने कहा।।
कौन ?मानिक चंद।।,उस व्यक्ति ने पूछा।।
मैं एक व्यापारी हूं,मानिक चंद बोला।।
ठीक है, पहले तुम मेरे नज़दीक आकर मेरी बेड़ियां खोल दो,उस व्यक्ति ने कहा।।
इतना सुनकर मानिक चंद ने अपना चाकू हाथ में लिया और डर डर कर उस आवाज़ वाली दिशा में बढ़ने लगा।।
नज़दीक जाकर देखा कि सच में कोई बेचारा बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।।
मानिक चंद उसके नज़दीक गया , वहीं पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठाकर बेड़ियों में लगा ताला तोड़ा और उसकी बेड़ियां खोलकर पूछा।।
कौन हो भाई?तुम!!
उस व्यक्ति ने अपनी बेड़ियां दूर फेंकते हुए कहा___
मैं नीलगिरी राज्य का छोटा राजकुमार सुवर्ण हूं।।
इतना सुनकर मानिक चंद अचंभित होकर बोला__
तुम सुवर्ण हो तो,वो कौन था?
सुवर्ण बोला__
जरा विस्तार से बताओ,तुम किसकी बात कर रहे हो।।

क्रमशः____
सरोज वर्मा___
सर्वाधिकार सुरक्षित___