क्यों Shubham Rawat द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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क्यों

पारस आज बहुत खुश हैं। पिछले एक महीने से कुत्ता पालने की जिद कर रहा था। आज जाकर उसके बोज्यू ने उससे कहा,
"ठीक है, पालेंगे।"
"ऊपर भुवन की कुतिया के बच्चे हुए हैं। उसके वहां से लेकर आऊंगा!" सात साल के पारस ने बहुत खुशी के साथ कहा। जैसे उस बच्चे के लिए खुशी के मायने कुछ और है ही नहीं।
"किसके साथ जायेगा कुत्ता लेने।" बोज्यू ने सवाल किया।
"दीदी को साथ लेकर जाऊंगा!" पारस ने उसी खुशी के साथ कहा।
"ठीक है।" बोज्यू ने अपने बेटे की खुशी को देखते हुए पूरी तरह से हामी भरते हुए कहा।
अब पारस को पूरी तरह से यकिन हो चुका था कि कुत्ता पाला जायेगा। इतवार का दिन था, पारस ने अपनी ईजा से कहा,
"मम्मी-मम्मी मुझे फट-फट नहला ले।"
"ठीक है, आजा।" गोशल में कपड़े धोती पारस की ईजा ने कहा।
पारस दौड़ता हुआ गोशल खाने गया। ईजा ने उसे एक दम प्यार से ममता लूटाते हुए नहलाया। नहलाने के बाद उसके पूरे बदन में तेल लगाया, धुले हुए नये कपड़े पहनाये, बालों में तेल लगाकर कंगी करी।
पारस खाना खा पीकर; कुत्ता लाने को एक दम तैयार बैठा था। अपने दीदी से बोला, "चल दीदी, कुत्ता लाने।"
"चल।" दीदी ने भी पारस की खुशी ने भागीदारी लेते हुए कहा।
दोनों जाने को तैयार थे; तभी पारस की बुआ ने कहा, "कै जैन पड़ री कुकुर।"
"होई, कै जैन पड़ री कुकुर।" पारस की अम्मा ने भी बुआ की बात का समर्थन करते हुए वही बात कही।
पारस का खिला हुआ चेहरा एक पल थोड़ा सा मुरझाया पर उसने भी सीधा-सीधा कहा, "चाहिए!"
"हा-हा, जा-जा लेआ।" पारस के ईजा ने उसका पक्ष लेते हुए कहा।
"बेकार होते हैं, पहाड़ी कुत्ते," इस पर बुआ का जवाब आया, "कुत्ता लाना है तो, भोटिया; वो होते हैं कुत्ते चोरदार।"
"तो कहां से आरा भोटिया कुत्ता?" इस पर पारस के बोज्यू का सवाल आया, "जा पारस तु लेआ कुत्ता।"
पारस के चेहरे पे एक मासूम सी खुशी वापस खिल पड़ी। वो अपनी दीदी के साथ कुत्ता लेने के लिए भुवन की घर की ओर चल पड़ा।
भुवन का घर उसी गाँव में पारस के घर से आधे किलोमीटर की दूरी पर है। भुवन, पारस के साथ ही गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ता है। भुवन ने ही उससे कहा था, "मेले घर में कुतिया के बच्चे हुए हैं।"
"मुझे भी एक बच्चा देगा?" इस पर पारस ने भुवन से पूछा था।
"हां, इतवार को आ जाना; घर से ले जाना।"

पारस अपनी दीदी के संग भुवन के घर पहुँच चुका था। उसके घर पहुँचते ही पारस ने भुवन को आवाज दी, "भुबन-भुबन।"
भुवन जो घर के भीतर कारटूंस देख रहा था। वो बाहर खले में आ गया और बोला, "कौन सा वाला कुत्ता ले जाएगा?"
कुत्ते के बच्चे वही खले में घूम रहे थे, उनमे से काले रंग के कुत्ते की तरफ ऊंगली करके पारस कहता है, "ये काले रंग बाला कुत्ता ले जाऊंगा।"
"ठीक है।" भुवन ने भी मासूमियत के संग कहा।
तभी भुवन की ईजा, पारस से कहती है जो बाड़े में फसल गोड़ रही होती है, "दूध रोटी खिलाना हा कुत्ते को।"
"हां।" पारस ने वही मासूमियत से जवाब दिया।
दोनों भाई-बहन, कुत्ते को लेकर अपने घर की तरफ चल देते हैं।

"ले आया कुत्ता।" पारस के बोज्यू ने उसके हाथ में कुत्ता देख कर कहा।
"हां, ले आया!" पारस ने खुशी के साथ कहा।
"जा, इसे नहला दे," पारस की ईजा ने उसके हाथ में पिल्ले को देखकर तुंरत कहा, "गरम पानी से नहलाना। पिस्सू वगैरा हो रहे होंगे उसे।
"हां।" पारस ने जवाब दिया।
पारस और उसकी दीदी दोनों मिलकर उस कुत्ते के बच्चे को गरम पानी से नहलाते हैं।
"इछे दूध रोटी दे देता हूँ?" पारस ने अपने बोज्यू से पूछा जो वहीं घर के सामने वाले बाड़े में खुदाई कर रहे थे।
"हां, देदे।" बोज्यू ने जवाब दिया।
पारस अपनी दीदी से कहता है, "जा, दूध रोटी ले आ।"
दीदी अपने भाई के कुत्ते के लिए स्नेह देख कर तुरंत चूल्हे में जा दूध रोटी ले आती हैं। एक कटोरे में पिल्ले को दूध, एक कटोरे में पानी, पिल्ले के सामने रख देते हैं। पिल्ला फटाफट दूध रोटी खा लेता है। फिर पारस कुछ देर पिल्ले के संग खेलता हैं और बाद में दोनों थक कर बैठ जाते हैं।

दो एक दिन और बीत जाते हैं। पारस कुत्ता पाकर बेहद खुश था। स्कूल से आकर कुछ देर उसके साथ खेलता। उसको पिल्ले के तौर पे एक नया दोस्त मिल गया था। रात को जिस चारपाई में पारस सोता, उसी चारपाई की टांग में वह पिल्ले को बाधता। पारस ने पिल्ले का नाम गब्बर रखा था।
गब्बर एक छोटा सा मासूम जानवर; जो रात को अंदर ही शुशु कर देता और कभी-कभी पोटी भी। इस बात से जो सबसे ज्यादा परेशान थे, वे थे पारस की बुआ और अम्मा।
परेशान होने का कारण ये नहीं था- कि गब्बर रात को अंदर ही शुशु कर देता। कारण कुछ और था। कारण था- कि बुआ को कुत्ते पंसद नहीं थे। थोड़े-थोड़े अम्मा को भी। असल में दोनों को बिल्लियाँ पसंद थी। ज्यादा परेशानी कुत्ता पालने की वजह से बुआ को हो रही थी।
घर में दो बिल्लियाँ पहले से पाले गये थे। जो हर वक्त दूध रोटीयां खाते और फिर सो जाया करते। कुत्ता पालने के वजह से जिनको गुस्सा था; वो थी पारस की बुआ। असल में कुत्ता पालने के बाद बिल्लियाे के हिस्से का कुछ दूध कुत्ते को भी देना पड़ता।
बुआ एक तरफ कुत्तो को नापंसद करती तो दूसरी तरफ बिल्लियाे को स्नेह भी करती। वो अक्सर बिल्लियाे को प्यार से कहती, "ओ रे मेरा बच्चा!"
एक दिन बुआ, गब्बर को शाम के वक्त जंगल में छोड़ आती है। जो पिल्ला अभी दो महीने का भी ढंग से नहीं हुआ था, उसे घर से फेंक दिया गया। मात्र किसलिए क्योंकि उन्हें कुत्ते नहीं पंसद थे।
एक पिल्ला जिसे पहले उसकी माँ से अलग किया गया। जिस तरह एक इंसान का छोटा बच्चा शुशु कर देता है उसी तरह वो छोटा पिल्ला भी शुशु कर दिया करता था।
जब पारस ने अपना गब्बर घर में नहीं देखा, तो उसने पूछा, "गब्बर कहां है?"
तो बुआ ने जवाब दिया, "पता नहीं कहां गायब हो गया।"