दूर-घर Deepak sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दूर-घर

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“बेटी-दामाद की चौथी वेडिंग एनिवर्सरी और मेजबानी एक विवाह-समारोह की?” अपने बैच-मेट के ससुर के बँगले का गेट पार करते हुए बी.एल. बोल उठा, “इधर हम हैं जो अपनी पहली वेडिंग एनिवर्सरी तक में चार लोग से ज़्यादा किसी को न बुला पाएँगे.....”

“क्यों नहीं बुला पाएँगे?” बेला अपने चोचलहाई-भरे चुलबुलेपन को प्रयोग में लायी, “पार्टी अपने फ़्लैट में नहीं देंगे, बाहर होटल में दे देंगे.....”

“हें..... हें”, बी.एल. अपनी मोटर बाहर सड़क पर ले आया, “और बिल कौन चुकाएगा?”

“ममा-अम्मा लोग. सिंपल.....” अपने परिवार के नाम पर बेला के पास यही तीन स्त्रियाँ थीं : माँ-ममा, नानी-छोटी अम्मा और माँ की नानी : बड़ी अम्मा.

“हं..... हं..... कहाँ से देंगी?”

“अम्मा लोग की संदूकची में अभी भी बहुत धरा है सोना, चाँदी, रत्न, मणि, जवाहर. देखा नहीं तुमने? मेरे इस रूबी सेट को आज कितने अतिथियों ने सराहा. बल्कि तुम्हारे उस बैच-मेट की सास ही ने तुम्हारे सामने मुझसे कहा था, ऐसे ख़ालिस लाल आजकल देखने को कहाँ मिलते हैं?”

“हुंह्. पनहारे तुम्हारे किसी पूर्वज ने अपनी बेटी की जर ख़रीद में पाए हों.....”

“यू आर हौरिड,” बेला तुनकी. हालाँकि उसकी ममा-अम्मा-लोग के दुश्मन अक्सर यह कहते हुए पाए जाते थे कि उसकी छोटी अम्मा और बड़ी अम्मा पंजाब प्रांत के एक राजदरबार के सफ़री पलंगों की नतोन्नत रखैलें रह चुकी थीं. बड़ी अम्मा एक दासी-पुत्री रही थीं, जिन्होंने अपनी माँ की संगति में ‘मलिका मुक़द्दस’ को नहलाते समय एक जानलेवा गोता दिलाया था और इनाम के रूप में राजा ने उसे अपने दरबार के देवढ़ीदार की पत्नी का दर्ज़ा दिला दिया था. फिर दरबार के अफ़सर कलां से जब उनकी बेटी, बेला की छोटी अम्मा, से भेंट हुई थी तो एक गुप्त प्रेम-सम्बन्ध उनके देवढ़ीदार पति की हत्या का कारण बन बैठा था. ऐसे में अपनी गर्भवती बेटी के साथ बड़ी अम्मा अपना प्रांत छोड़ आयी थीं और उधर कस्बापुर की एक गुमनाम गली में आ बसी थीं. बेला की ‘ममा’ का जन्म फिर वहीं हुआ था. चालीस वर्ष पूर्व. और बेला का भी. अठारह वर्ष पूर्व.

“इतिहास मेरा प्रिय विषय रहा है,” बी.एल. हँसा, “पंजाब का इतिहास मैं पूरा जानता हूँ. उसमें मंगला नाम की एक दासी दर्ज़ है, जिसे सन् अठारह सौ पैंतीस में महाराज रंजीत सिंह की रानी जिंदा ने अपनी सेवा में रखा था और जो अठारह सौ उनतालीस में रंजीत सिंह की मृत्यु हो जाने पर रानी जिंदा के ‘वजीर’ भाई जवाहर सिंह की रखैल बन बैठी थी. उसकी बिचवई का रानी जिंदा को अच्छा लाभ मिला था. और मंगला का बाप रहा कांगड़े का एक पनहारा.....”

“मेरे पिता आज जीवित होते या कोई सगा भाई होता, तो तुम ऐसे कभी न बोल पाते,” बेला रुआँसी हो चली.

“मैं जानता हूँ,” बी.एल. ने चुहल की, “तुम्हारी ममा-अम्मा लोगों ने मुझे इसीलिए तो तुम्हारे लिए चुना, क्योंकि तुम्हारे पिता मर चुके थे और तुम्हारे सौतेले भाइयों को निथारने के लिए उन्हें तत्काल मेरे पुलिस अधिकारों की ज़रुरत आन पड़ी थी.....”

बेला से पहले बी.एल. उसकी ममा और छोटी अम्मा से मिला था. दोनों बी.एल. से पुलिस सुरक्षा माँगने आयी थीं. उन दिनों बी.एल. उनके कस्बापुर में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात था और उनकी समस्या सुनते ही उसने उन्हें तत्क्षण एक सुरक्षा गार्ड दिला दिया था. समस्या खड़ी की थी बेला के सौतेले भाइयों ने, जिन्होंने पिता की मृत्यु होते ही इस ‘दूसरे परिवार’ को अवैध घोषित कर दिया था. जायदाद के कई झगड़े वे कचहरी में तो ले ही गए थे, साथ ही आये दिन चारों स्त्रियों को धमकियाँ दी जा रही थीं.

“यू आर हौरिड,” बेला ने दोहराया, आँसुओं के बीच.

“मैंने कब कहा वही मंगला तुम्हारी पूर्वजा थी?” बी.एल. ज़ोर से हँसा.

“यू आर हौरिड,” बेला दुगुने वेग से आँसू टपकाने लगी.

पियक्कड़ अवस्था में बी.एल. की चुहलबाजी अक्सर बेलगाम और निर्मम हो जाया करती. बाद में ज़रूर वह एक बच्चे के स्तर पर उतरकर बेला को मना लेता, राजी कर लेता, लेकिन उस अवस्था के दौरान कैसी-कैसी हूक बेला के कलेजे में किसी छुरी की तरह धँस-धँस जाती!

चौराहे से बी.एल. ने अपनी मोटर बन रहे नये पुल की ओर बढ़ा ली.

“अपने ये ख़ालिस लाल ज़ेवर उतारकर इधर ग्लव केस में रख दो,” बी.एल. ने मोटर की गति तेज़ कर दी, “यह पुल जिस गाँव में से निकाला जा रहा है, वह गाँव चोर-उचक्कों के लिए ख़ास मशहूर है.....”

“फिर इधर आना ही क्यों था?” चौराहे की जिस पुरानी सड़क से इस नये पुल को मिलाया गया था, उसकी ऊँचाई ज़रूर उसके बराबर चढ़ा दी गयी थी, मगर वह चढ़ाऊ उछाल अभी किसी अनाड़ी-से तिरछे पाँव लिए रही. बेढंगे किनारों पर काम होना अभी पूरी तरह बाक़ी था और मोटर की हेडलाइट्स की रोशनी में पुल की इस शुरुआती चढ़ाई पर कई झुग्गी-झोपड़ियों की पालथी साफ़ देखी जा सकती थी.

“बीस किलोमीटर के अपने रास्ते में से सात किलोमीटर बचाने,” बी.एल. हँसा, “अपनी चीज़ें इधर ग्लव केस में रख दो. इधर कोई भी हमारी मोटर को रोक सकता है और इन्हें लूट सकता है.....”

“मैं अपना पर्स साथ नहीं लायी हूँ. ऐसे में इन्हें रखूँगी कहाँ? कोई भी चीज़ इधर-उधर हो सकती है.....”

“इधर-उधर कैसे होगी?” बी.एल. का स्वर उग्र हो चला- ठंडा, रुखा और कठोर- “ग्लव केस में इन्हें ध्यान से टिका देंगे और घर पहुँचकर तुम्हारे बक्से में रख देंगे.....”

“लूटनेवाले ग्लव केस छोड़ देंगे क्या?” बेला अड़ गयी, “जिन्हें लूटना है, लूट लें..... घर पर मेरे पास थोड़ा सामान है क्या? ममा-अम्मा लोगों ने मुझे ऐसे-ऐसे जवाहरात दिये हैं कि आज की क़ीमत में वे पाँच लाख से कम के क्या होंगे?”

“तुम बहुत ज़िद करती हो,” मोटर पुल की उच्चतम ऊँचाई छूने जा रही थी, “इन्हें उतार दो अब.....”

“यू आर हौरिड,” बेला ने अपने लाल ज़ेवर उतारकर ग्लव केस में रख दिए.

“मैं हौरिड हूँ?” ग्लव केस के बंद होते ही बी.एल. ने मोटर रोक दी, “उस बूचड़खाने से तुम्हें बाहर निकाल लाया हूँ और हौरिड हूँ? चलो, उतरो नीचे. नीचे उतरो.....”

“तुम क्या कह रहे हो?” बेला रोने लगी, “रात के एक बज रहे हैं, पूरी सड़क ख़ाली और सुनसान है.....”

“नहीं उतरोगी?”

“नहीं उतरूँगी. यह मोटर मेरी है. मेरी ममा-अम्मा लोगों की ख़रीदी.....”

“नहीं उतरेगी?” चीख़कर बी.एल. ने बेला की तरफ़ का दरवाज़ा खोला और उसे बाहर धकेल दिया.

बेला सन्न रह गयी! ऐसा मतवालापन? ऐसी उपेक्षा? ऐसी बेदख़ली?

एक वितृष्णा उसकी नस-नस में भर गयी और वह पीछे पलट ली.....

बेशक बी.एल. लौट रहा था..... मोटर बैक कर रहा था.....

“चल, बैठ अंदर,” बी.एल. मोटर उसके बराबर लौटा लाया.

“नहीं,” वह दौड़ने लगी. सितंबर की उस रात में इधर हवा खुली थी और अँधेरा मीठा.

“चल बैठ अंदर,” इस बार बी.एल. ने गाड़ी कुछ इस तरह से उसके निकट ला पहुँचायी कि अगर उसके बाएँ क़दम पर गाड़ी का दरवाज़ा था तो दाएँ क़दम पर पुल का ऊँचा आख़िरी किनारा!

“नहीं,” अपने क़दम उसने अपनी नाक की सीध में बढ़ा लिए. पूरी खबरदारी के साथ.

बी.एल. के साथ जिंदा रहना भी कोई जिंदा रहना था?

शिकार-पिंजरे की कोई चिड़िया थी वह? या किसी चूहेदानी की चुहिया?

“आज तू मरेगी,” बी.एल. ने मोटर का हॉर्न बजाया. बहुत तेज़. गरज-जैसा. धमकी-भरा. अनुनादी उन ध्वनि-तरंगों ने मानो झक्कड़ का काम किया और बेला के क़दम उखाड़ फेंके. वह निचान में गिर पड़ी.

“बचाओ, बचाओ,” बी.एल. अपनी मोटर से बाहर निकल लिया, “बचाओ, बचाओ.....”

अकेले, सुनसान पुल पर उसकी आवाज़ पोइयों चली और विलोप हो ली.

“इस शहर के ख़ुफ़िया विभाग में मैं एस.पी. हूँ,” निकटतम पुलिस चौकी नज़र आते ही बी.एल. वहाँ पहुँच लिया, “जीप नहीं इधर कोई?”

चौकी के सभी कांस्टेबल और हवालदार बी.एल. के पास चले आये, “आदेश सर?”

मोटर साइकल ही हमें मिली है, सर,” चौकी इंचार्ज-सा दिखाई देने वाला बोला, “आदेश करें. कहाँ जाना है?”

“उधर उस पुल से नीचे.”

“कैसी वारदात है, सर?” चौकी इंचार्ज ने पूछा.

“मैं तुम्हारे कप्तान साहब का बैच-मेट हूँ,” बी.एल. ने अपनी जेब से अपना पहचानपत्र निकाल लिया, “उनकी शादी की आज चौथी वर्षगाँठ थी.....”

“जी सर. उनके ससुरजी के बँगले पर बड़ी दावत थी.....”

“उसी दावत से मैं अपनी मेमसाहब के संग लौट रहा था कि वह पुल से नीचे गिर पड़ी.....”

“आदेश सर?” किसी ने भी “कैसे?” या “क्यों?” न पूछा.

“मोटर साइकल पर तुम उधर पुल के बीच की निचान पर पहुँचो.  जब तक मैं भी पहुँच लूँगा.....”

“बेहतर सर.....”

“इधर महिला कांस्टेबल नहीं कोई?”

“अभी बुलवा लेते हैं, सर. वे यहीं क़रीब ही में रहती हैं और चाय पीने बस अभी-अभी गयी रहीं.....”

“मोटर साइकिलें कितनी हैं?”

“इस समय ड्यूटी पर दो ही हैं, सर..... आदेश सर?”

“बेहतर, सर.....”

दोनों मोटर साइकिलें बी.एल. की मोटर के आगे-आगे चलीं और नये पुल की उस निचान की दिशा में बढ़ लीं, जहाँ भीड़ जमा थी.

जैसे ही भीड़ को पुलिस वर्दियाँ दिखायी दीं, वह तत्काल छितर ली.

बेला अचेत थी.

महिला कांस्टेबलों ने सहारा देकर उसे बी.एल. की मोटर की पिछली सीट पर लिटा दिया.

“आदेश सर?” इंचार्ज ने पूछा.

“इन्हें अस्पताल ले जाएँगे. आप सब लोग भी साथ चलें. ये महिला कांस्टेबल मेरी मोटर में बैठ लें.....”

“बेहतर, सर.....”

सरकारी अस्पताल में बेला ‘ब्रॉट डेड’ का सर्टिफिकेट पाकर डिस्चार्ज कर दी गयी. तत्क्षण. पोस्टमार्टम टाल दिया गया.

“हमें अब कस्बापुर पहुँचना है,” बी.एल. ने उस चौकी के इंचार्ज से कहा, “तुम इधर कोई पुलिस जीप की व्यवस्था कर लाओ. जब तक ये दोनों महिला कांस्टेबल मेमसाहब के पास बैठेंगी. इस बीच मैं अपने घर पर यह मोटर पार्क करके यहीं अस्पताल लौटता हूँ.....”

ख़ालिस, बेशकीमती लाल साथ लिये-लिये बी.एल. कहाँ-कहाँ घूमता?

बेला की मृत्यु की सूचना शहर के सभी नगर संस्करणों में छपी : ख़ुफ़िया पुलिस के एस.पी. श्री बोकेलाल को पत्नी-शोक. मृतका का दाह-संस्कार दूर घर उनकी जन्मनगरी कस्बापुर में होगा. मृत्यु का कारण सड़क-दुर्घटना बताया जाता है.

कस्बापुर का पुलिस अधीक्षक भी बी.एल. का बैच-मेट था. शव के साथ बी.एल. पहले वहीं उसके बँगले पर गया, जिसमें अभी आठ महीने पहले तक बी.एल. की दो वर्षीया अपनी टिकान रह चुकी थी. बेला से उसकी शादी भी इसी बँगले से हुई थी. अपनी शादी में जिस तरह उसने अपने परिवार की भागीदारी न्यूनतम रखी थी, इस बार बेला के दाह-संस्कार में वह उनकी अनुपस्थिति शून्य रखना चाहता था. कहने को तो उसके चार भाई थे, तीन बहनें थीं, लेकिन उनमें से किसी को भी वह अपने ‘सर्कल’ में मिलाने से घबराया करता. उसके सबसे बड़े भाई पुलिस में एक कांस्टेबल की हैसियत से दाख़िल हुए थे, दूसरे नम्बर के भाई गाँव में खेती सम्भालते थे, तीसरे नम्बर पर बी.एल. खुद था, चौथे नम्बर का भाई एकाउण्ट्स विभाग का क्लर्क था और पाँचवे नम्बर का भाई उसी क्लर्क भाई के साथ रहता था और एक पी.सी.ओ. चलाता था. बहनों में सबसे बड़ी गाँव में ब्याही थीं, दूसरी स्कूल टीचरी करती थीं और तीसरी कम्प्यूटर ऑपरेटरी. अपनी शादी में बी.एल. ने इन्हीं तीन बहनों को बुलाया था और भाइयों में से एक को भी नहीं.

बेला को दाह संस्कार के लिए तैयार करने के वास्ते उसकी ममा-अम्मा-लोग के पास जब ले जाया गया, तो बी.एल. संग न रहा. केवल कस्बापुर के मौजूदा पुलिस अधीक्षक की पत्नी ही रहीं.

अलबत्ता बेला के तैयार होते ही बी.एल. को बुला लिया गया.

बेला को बहुत अच्छी तरह से सजाया गया था. उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था उसके प्राण उसे छोड़ चुके थे.

“मालूम भी है, बेटेजी,” बेला की ममा बी.एल. को देखते ही उसे एक कोने वाले कमरे में ले गयीं, “बेला जब आयी थी तो उसके शरीर के सभी ज़ेवर ग़ायब थे.....”

“नहीं,” बी.एल. ने अपने कंधे झटके, “मुझे नहीं मालूम. मैं तो इतने गहरे सदमे में हूँ कि कुछ भी देख-सुन नहीं पा रहा, कुछ भी सोच-समझ नहीं पा रहा.....”

“लेकिन, बेटेजी, यह सब हुआ कैसे?” बेला की अम्मा-लोग भी वहीं चली आयीं. बेला की छोटी अम्मा तो अपनी बेटी की तरह चकाचौंधियानी सफ़ेद शिफ़ान साड़ी में रही और उसकी बड़ी अम्मा के दुपट्टे और सलवार-सूट का रंग भी चकाचौंधियानी सफ़ेद रहा. बिल्कुल फ़िल्मी मातम-सीन में भाग लेती अभिनेत्रियों की तरह.

“मुझे नहीं मालूम. मैं अपने ध्यान से अपनी मोटर चला रहा था और अचानक उसने कहा मोटर रोको, मेरी अँगूठी खिड़की से नीचे गिर गयी है. मैं मोटर रोकता हूँ. वह कहती है मोटर की हेडलाइट्स इधर किनारे पर लाओ. मैं अपनी अँगूठी ढूँढूँगी. अब रात का एक बज रहा है हम दोनों देर रात की पार्टी से लौट रहे हैं, और वह सड़क के किनारे पर अपनी अँगूठी ही ढूँढे जा रही है, ढूँढे जा रही है. मैं उसे कहता हूँ, भूल जाओ, अँगूठी को भूल जाओ और वह कह रही है, नहीं, मेरी अँगूठी क़ीमती बहुत है.....”

“कौन-सी अँगूठी थी बेटेजी?” किसी एक ने ममा-अम्मा-लोगों में से पूछा. बी.एल. अपनी निगाहें नीची किये बैठा था.

“रुबीज़ के सेट की.....”

“हाय, हाय, हाय,” बेला की बड़ी अम्मा रोने लगी, “कम्बख़्त वे लाल ज़ेवर? मेरी राजकुमारी को ले बैठे!”

“अम्मा,” बेला की छोटी अम्मा ने अपनी माँ को टोक दिया, “बात पूरी तो पहले सुन लेने दो.....”

“हाँ,” बेला की ममा ने जोड़ा, “वह अँगूठी ढूँढ ही रही थी..... फिर क्या हुआ?”

“फिर क्या?” बी.एल. दहाड़ मारकर रोने लगा, “फिर कहर टूटा और वह.....”

“लेकिन जैसे आप बता रहे हो, बेटाजी,” बेला की ममा ने अपना संदेह फिर व्यक्त किया, “चलिये, वह अँगूठी तो गिर गयी सो गयी, मगर वह तो रुबीज़ का पूरा सेट पहने थी. उसके गले और कान की चीज़ें?”

“मैं नहीं जानता,” बी.एल. ने अपने कंधे फिर झटके, “मेरा इधर ध्यान ही नहीं गया. जैसे इधर आया भी हूँ तो आपसे यह भी पूछना भूल गया हूँ वे सौतेले इधर आपको दिक तो नहीं करते?”

“दिक करते हैं, बेटाजी,” बेला की ममा अपनी पुरानी लीक पर दौड़ पड़ी, “बहुत दिक करते हैं, बेटाजी. उन्हें तो आप सीखचों के पीछे भेज कर ही यहाँ से विदा होना.....”

“क्यों नहीं?” बी.एल. ने बेला की ममा की पीठ घेर ली, “मैंने अपने इस बैच-मेट से तो पहले ही कह रखा है कि आपकी सुरक्षा पर पूरा-पूरा ध्यान दे. फिर आप ज़्यादा से ज़्यादा दो या तीन साल अपने मन को काबू में रखें, सब्र में रखें- इधर मेरी अगली प्रमोशन हुई नहीं कि डीआईजी की अपनी तैनाती मैंने इधर ली. यही सौतेले फिर आपके सामने गिड़गिड़ाते नज़र आयेंगे-“

“हम तो सब्र कर भी लें, बेटेजी,” बेला की छोटी अम्मा बोल उठीं, “मगर हमारी इन अम्मा के सब्र का बाँध टूट रहा है. रोज़ उस दिन को कोसती हैं जब अपना घर छोड़-छाड़कर इधर आन बैठीं.....”

“मुझ पर भरोसा रखें, बड़ी अम्मा,” बी.एल. उनके क़दमों पर झुक लिया, “मैं आपके साथ हूँ और हमेशा रहूँगा, जैसे पहले, जैसे अब, वैसे ही आगे भी-”

“हम जानते हैं बेटेजी, बेला की ममा ने आगे बढ़कर बी.एल. का माथा चूम लिया, “इस पूरी दुनिया में अब आप ही हमारे सब कुछ रह गये हो..... लड़की बेचारी इतनी ही अपनी उम्र लिखवाकर आयी थी- सो चली गयी- आपसे हमें उसने बाँधना जो था, सो बाँध गयी.....”