रहस्यमयी टापू-भाग(४)
उस जादूगरनी ने बहुत से पुरुषों के साथ ऐसा किया था,सब कहते थे कि उसने अपनी आत्मा को कहीं और कैद कर रखा था,शायद किसी गिरगिट में,उसे ऐसे तहखाने में कैद कर रखा था जहां के दरवाज़े पर कई बड़े सांप उसकी रक्षा करते थे ।।
इस तरह से पुरूषों के गायब होने की ख़बर से लोग परेशान होने लगे थे लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बात क्या है?
नीलगिरी राज्य के लोगों का इस क़दर गायब होना, वहां के राजा को कुछ अजीब लग रहा था, उन्होंने इस विषय में अपने बड़े बेटे राजकुमार शुद्धोधन से चर्चा की, राजकुमार ने कहा पिताश्री आप चिंता ना करें मैं जल्द ही उस कारण का पता लगाकर रहूंगा और एक रोज राजकुमार शुद्धोधन उस कारण का पता लगाने अपने राज्य से निकल पड़ा।।
शुद्धोधन उस जगह एक लकड़हारे का वेष बनाकर पहुंचा, उसने उस जगह का मुआयना किया और जादूगरनी के विषय में कुछ जानकारी हासिल कर ली,अब उसने सोचा कुछ ना कुछ करके जादूगरनी के रहने वाली जगह का पता लगाना होगा।।
शुद्धोधन को ये तो पता चल गया था कि उस जादूगरनी की दो जवान और खूबसूरत बेटियां हैं लेकिन वो उसकी खुद की नहीं है उसके स्वर्गवासी पति की पहली पत्नी से हैं, शुद्धोधन ने सोचा,अगर मैं उनमें से किसी एक से प्रेम का अभिनय करूं तो उनसे कुछ जानकारी हासिल हो सकती है।।
और शुद्धोधन चल पड़ा अपने मक़सद को पूरा करने के लिए, उसने दूर झाड़ियों से छुपकर देखा था एक खूबसूरत सी लड़की हाथों में मटका लेकर चली आ रही थी,शायद वो पास के झरने से पीने का पानी भरने आ रही थी।
शुद्धोधन ने कभी इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी,नीली बड़ी बड़ी आंखें,कमर से नीचे घने बाल,पतली कमर और उजला रंग, शुद्धोधन उसे देखते ही उसकी खूबसूरती का कायल हो गया।।।
और उसे दिखाने के लिए कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने का अभिनय करने लगा,वो लड़की आई उसने भी शुद्धोधन को अनदेखा कर झरने से जल भरा और सामने से एक नज़र शुद्धोधन को देखा और निकल गई।।।
शुद्धोधन को लगा कि लगता है ये तो बात करने वाली नहीं है, मुझे ही इसे टोकना पड़ेगा और उसने उस लड़की को टोकते हुए कहा___
जरा सुनो, शुद्धोधन बोला।।
क्या है? उस लड़की ने शुद्धोधन से पूछा।।
मुझे जरा प्यास लगी है, पानी पिला दोगी, शुद्धोधन बोला।।।
झरना बह रहा है, वहां जाकर पानी क्यों नहीं पी लेते, मुझे क्यो परेशान कर रहे हो,उस लड़की ने उत्तर दिया।।।
पानी तो मैं पी लूंगा झरने से लेकिन तुम्हें देख कर तुमसे बात करने का मन हुआ इसलिए दिमाग में ये बहाना आ गया, शुद्धोधन ने अपने सर पर हाथ फेरते हुए कहा।।।
वो तो मैं जानती थी और ये सुनो...सुनो....क्या लगा रखा है,मेरा नाम नीलाम्बरा है और मुझे मेरा नाम लेकर ही पुकारो,नीलाम्बरा बोली।।
ठीक है,जैसा तुम कहो! शुद्धोधन बोला।।
तुम भी क्या इस जंगल में रहते हो?क्या नाम है तुम्हारा? नीलाम्बरा ने पूछा!!
हां, मैं यही जंगल में रहता हूं, शुद्धोधन नाम है मेरा, लकड़ियां काटकर पास वाले गांव में बेचता हूं, शुद्धोधन बोला।।
अरे,नाम तो ऐसा है तुम्हारा, जैसे कि तुम कोई राजकुमार हो,नीलाम्बरा बोली।।
बस, ऐसा ही कुछ समझ लो, शुद्धोधन बोला।।
अच्छा, तो तुम खुद को किसी राजकुमार से कम नहीं समझते, है ना!नीलाम्बरा बोली।।
और क्या?इस जंगल में मैं अकेला लकड़हारा,तो हुआ मैं यहां का राजकुमार, शुद्धोधन बोला।।
हां.. हां.. बड़े आए राजकुमार,कभी शकल देखी है,नीलाम्बरा बोली।।
हां,देखी है ना !!शकल, मुझे पता है मैं सुंदर हूं, शुद्धोधन बोला।।
वाह!!अपने मुंह से खुद की तारीफ,बड़े ही घमंडी लगते हो और इतना कहकर नीलाम्बरा जाने लगी।।
अरे,प्यासे को पानी तो पिलाती जाओ,भला होगा तुम्हारा, शुद्धोधन बोला।।
झरने से पी लो,नीलाम्बरा बोली।।
तुम पिला देती तो बात ही कुछ और होती, शुद्धोधन बोला।।
इतना कहने पर नीलाम्बरा बोली__
अच्छा!!लो पिओ पानी और बेमतलब की बातें मत करो।।
नीलाम्बरा ने अपने मटके से शुद्धोधन की अंजलि में पानी डाला, शुद्धोधन ने पानी पीकर कहा___
धन्यवाद!!प्यासे को तृप्ति मिल गई।।
नीलाम्बरा मुस्कराई, फिर से मटका भरा और जाने लगी।।
शुद्धोधन बोला___
कल फिर मिलोगी।।
नीलाम्बरा मुस्कराते हुए बोली__
कह नहीं सकती!!
और नीलाम्बरा चली गई।।
शुद्धोधन के गुप्तचर भी उस जंगल में थे जो समय समय पर शुद्धोधन को सभी आने जाने वालों की सूचना देते रहते थे, शुद्धोधन ने अपने रहने के लिए एक गुप्त गुफा भी ढूंढ ली थी जहां जीवन यापन के साधन भी थे,उसके सैनिक भी समय समय पर उसके राज्य में सूचनाएं पहुंचाते रहते थे।।
उस रात शुद्धोधन आराम करने अपनी गुफा में पहुंचा लेकिन उसकी आंखों से तो जैसे नींद ही गायब थीं,बस एक ही चेहरा उसकी आंखों में घूम रहा था,वो नीलाम्बरा को पसंद करने लगा था और यही हाल नीलाम्बरा का भी था, सालों बाद उसके चेहरे पर आज मुस्कुराहट आई थी, शुद्धोधन को देखकर।।
नीलाम्बरा को देखकर उसकी छोटी बहन ने पूछा भी__
कि दीदी बड़ी खुश नजर आ रही हो ।।क्या बात है?
लेकिन नीलाम्बरा हंसते हुए टाल गईं।।
रात भर नीलाम्बरा और शुद्धोधन सुबह होने का इंतज़ार कर रहे थे, दोनों की ही आंखों से नींद गायब थीं।।
अगले दिन दोनों ही उस जगह पहुंचे, शुद्धोधन तो पहले से ही नीलाम्बरा का इंतज़ार कर रहा था,नीलाम्बरा को दूर से देखते ही पेड़ को काटने का बहाना करने।।
नीलाम्बरा भी शुद्धोधन को अनदेखा कर झरने की ओर बढ़ गई, मटके में पानी भरकर जाने लगी।।
शुद्धोधन ने सोचा नीलाम्बरा तो कुछ बोली ही नहीं, मैं ही कुछ बात करूंगा तभी बोलेगी, शायद।।
शुद्धोधन ने नीलाम्बरा को टोकते हुए कहा___
ऐसे ही निकल जाओगी,इस प्यासे को पानी नहीं पिलाओगी।।
नीलाम्बरा ने भी अभिनय करते हुए कहा___
अरे, तुम!!माफ करना मैंने देखा ही नहीं।।
अच्छा!!सच बोल रही हो या ना देखने का अभिनय कर रही हो,
शुद्धोधन ने नीलाम्बरा से कहा।।
लेकिन तुम अभी तक प्यासे क्यो बैठे हो, झरने से पानी पी सकते थे ना,नीलाम्बरा बोली।।
लेकिन तुम्हारे हाथों से ही पानी पीने से ही मेरी प्यास बुझेगी, शुद्धोधन बोला।।
ऐसा भी क्या है,नीलाम्बरा बोली।।
पता नहीं,कौन सा जादू है तुम में और तुम्हारे मटके के पानी में कि देखकर ही प्यास बुझ जाती है, शुद्धोधन बोला।।
चलो हटो!! ज्यादा बातें मत बनाओ, मुझे जाना है देर हो रही है और इतना कहकर नीलाम्बरा चल दी।।
शुद्धोधन ने नीलाम्बरा को जाते हुए देखा तो बोला__
कल फिर से आओगी..!!
नीलाम्बरा ने भी जाते हुए बिना मुड़े जवाब दिया__
पक्का नहीं कह सकती__
और नीलाम्बरा चली गई__
नीलाम्बरा को जाते हुए शुद्धोधन देखता रहा,जब तक वो बिल्कुल ओझल ना हो गई।।
क्रमशः____
सरोज वर्मा___