मूर्ति का रहस्य चार
गाँव में नया सरकारी हाई स्कूल शुरू हुआ था जिसमें विज्ञान के नये शिक्षक अशोक शर्मा, एक दिन पहले ही उपस्थित हुऐ थे। उस दिन वे विज्ञान के पीरियड में कक्षा में आये। शुरू में छात्रों से परिचय जानने के बाद, वे अपने विषय पर आते हुए बोले-‘‘विज्ञान का अध्ययन हमारे चित्त में जन्मे अन्धविश्वासों को निकाल देता है। विज्ञान के कारण हमारी जो प्रगति हुई है उससे आप सब परिचित ही हैं।
चन्द्रावती ने अपनी सीट से खड़े होकर उत्सुकता प्रगट की-’’सर जी भूत-प्रेतों की बातें विज्ञान की दृष्टि में कितनी सार्थक है।’’
चन्द्रावती की उत्सुकता देखकर उन्होंने मुस्कराते हुए सिर हिलाया और चन्द्रावती को बैठाकर, वे कक्षा को समझाते हुए बोले-‘‘देखों मैंने इस गाँव में आकर ऐसी ही कुछ बातें सुनी हैं। मैं उन्हीं बातों की ओर आप सबका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। विज्ञान का इन बातों में विश्वास नहीं है। अरे! जिस चीज का अस्तित्व जलकर राख हो गया, उसका अस्तित्व स्वीकारना, अंध विश्वास के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं। विज्ञान सिर्फ उस चीज को मानता है , जिसका भौतिक अस्तित्व है, यानी जो महसूस हो सके।’’
रमजान ने इस विषय में अगली बात पूछी-‘‘सर जी, पूरा गाँव भूतों को स्वीकार रहा है और आप हैं कि उसे स्वीकार नहीं रहे हैं। ऐसा क्यों?’’
‘‘छात्रों सुनो, विज्ञान की दृष्टि में ये सब बातें आधारहीन हैं। ऐसी बातें अन्धविश्वासी है जो सत्य नहीं है उसको हम कैसे स्वीकार करें? ...मुझे ऐसा आदमी बताओ जिसने भूत देखा हो।’’
वन्दना ने खड़े होकर कहा-’’सर जी, हमने सुना है कि इस किले में भूतनाथ राजा बदन सिंह का दरबार लगता है और उसमेंउनके समक्ष भूतनी नृत्य करती है।’’
यह सुनकर अशोक ष्शर्मा गम्भीर होते हुए बोले-‘‘ये सब बातें आतंक फैलाने वाली हैं। जिसकी आड़ में वे बेधड़क होकर अपना झाड़फूँक का धंधा कर सकें और सारा गाँव इन बातों को सत्य के रूप में स्वीकार करे। मैं इन बातों को मानने वाला नहीं हूँ।
इसी समय पीरियड बदलने के घन्टे सुनाई पड़े-‘‘टन...टन...टन...।’’
मुस्कराते अशोक शर्मा जी उठे और कक्षा से चले गये। जैसे ही अशोक सर कक्षा से गए रमजान खड़े होकर बोला-‘‘हमारे गाँव के किले में भूतों की जो बातें फैलाई जा रही हैं। वे सब तथ्यहीन और अवैज्ञानिक हैं। ऐसी बातों पर किसी को विश्वास नहीं करना चाहिए। हमारे गाँव के रामचरन ओझा जैसे लोग भूत-प्रेत की बातें अपने धंधे के लिए फैलाते हैं।’’
चन्द्रावती ने रमजान की बात का समर्थन किया-‘‘रमजान ठीक कहता है। हमें ऐसी तथ्यहीन बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।’’
इस विषय में एक लड़की के बहादुरी भरे विचार सुन, लड़कों का विश्वास पुनः जाग गया और उस दिन सारे छात्र नया आत्मविश्वास लेकर घर लौटे।
विद्यालय में चली चर्चा की बात सारे कस्बे में फैल गई। कुछ अन्धविश्वासी लोग सोचने लगे-‘‘रमजान चन्द्रावती और विज्ञान के नये शिक्षक अशोक शर्मा की अब खैरियत नहीं है।’’
दूसरे दिन गाँव मेंहल्ला सा मच गया। बैजनाथ की पुत्री चन्द्रावती को सुबह से ही जाने क्या हो गया है? कुछ कह रहे थे कि वह पागल हो गई है क्योंकि पागलों की तरह वह चीख-चीख कर कह रही है। ‘‘मैं राजधि राज महाराज बदनसिंह की पत्नी हूँ। गाँव के सब मेरे साथ चलो और मान सम्मान से मुझे किले में पहुँचा आओ।’’
ये बातें सुनकर तो सभी भयभीत हो गये। कुछ कह रहे थे-‘‘उस दिन स्कूल में जो चर्चा चली यह सब अब उसी का परिणाम है। अब विज्ञान के शिक्षक आकर इस लड़की का इलाज करें।’’
अशोक शर्मा जैसे बुद्धिजीवियों ने अपनी बात कही-‘‘इस लड़की को पागलपन का दौरा पड़ा है ग्वालियर के मैन्टल हॉस्पिटल में जाकर इसका इलाज कराना चाहिये।’’
उनकी यह बात चन्द्रावती ने सुनी तो बोली, ‘‘अगर तुम लोग मुझे अस्पताल ले गये तो मैं इसकी शिकायत अपने महाराज से करूँगी और महाराज के भूत इनके घर को शमशान बना दंेगे। हा...हा...हा...तुम सब म...रो...गे।’’
अब तो सभी ने अपने मुँह सी लिए। लोग चन्द्रावती के पास जाने में भी डरने लगे।
चन्द्रावती के माँ-बाप रो-रो कर घर आँगन भर रहे थे।
जब से रमजान ने मिडिल पास किया था, वह अपने अब्बाजान की सलाह से हर महीने के आखिरी जुमे के दिन, किले के ऊपर बनी दरगाह पर अगरबत्ती लगाने जाता है। आज भी इस महीने का आखिरी जुमे का दिन है। वह अपनी चाची से बोला-‘‘चाची जान आज इस माह के आखिरी जुमे का दिन है।’’
‘‘तोऽऽ...?’’ चाची ने प्रश्न किया।
‘’अगरबत्ती लगाने किले की दरगाह पर तो जाना ही पड़ेगा कि नहीं।’’
रमजान की बात पर आमना बोली, ‘‘...किन्तु इन दिनों किले पर जाना खतरे से खाली नहीं है। मैं तुम्हें वहाँ न जाने दूँगी।’’
रमजान ने, आमना को समझाया-‘‘चाची जान, आप समझती क्यों नहीं हैं? मैं फौजी बाप का बेटा हूँ। अब्बाजान मुझे फौज में भेजना चाहते हैं और मैं सी.आई.डी. में जाने के सपने देखता हूँ। क्या डरपोक बनकर मैं सी.आई.डी. पुलिस बन पाऊँगा।’’
आमना ने उसे फिर से समझाना चाहा-‘‘...लेकिन बेटा इस किले के भूत बड़े जालिम हैं। उन्हें किसी को, मार कर किले के नीचे फेंक देना सहज बात है।’’
रमजान अपना सीना चाची को दिखाते हुए बोला,‘‘हमारी चाची जान की दुआयें आखिर कब काम आयेगीं । मैं किले में जाकर उन जालिम भूतों का भण्डा फोड़ देना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे आज रात किले में ही रूकना पड़ सकता है?’’
‘‘हाय अल्लाह! आज रात, मेरा क्या होगा?’’
‘‘होगा क्या! उस समय अपने मन को हमारी दुआ के लिए अल्लाह से जोड़े रखना। देखना चाची...तुम्हारा ये बेटा इस किले को फतह करके वापस आयेगा।’’
‘‘लेकिन बेटा ऽऽ ?
‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं। आप चिन्ता न करें, चट गया और पट आया।’’
‘‘कहीं, उन्होंने तुम्हें न आने दिया तो...?’’
‘‘चाची...यह मुझ पर छोंड़ें। ऐसे मामलों मेें मेरा आला दिमाग बचपन से ही है। यह आप अच्छी तरह जानती हैं।’’
‘‘तुम अपने बाप की तरह जिद्दी हो, जो बात उन्हें जंच गई उसे वे पूरा करके ही मानते। बेटा अभी तेरी उम्र ही क्या है? इस दिसम्बर के महीने में सोलह का हुआ है।’’
‘‘लोग तो कहते हैं कि मैं अट्ठारह वर्ष से कम नहीं लगता।’’
‘‘तेरे अब्बाजान की तरह ही तेरे हाड़मास है। इसीलिए तगड़ा लगता है।’’
इसी समय वसीर खान आये। उन्होंने पूछा, ‘‘आज चाचीजान और भतीजेजान कान लगा कर किस विषय में गुफ्तगू करने में मशगूल हैं।
‘‘रमजान किले में दरगाह पर अगरबत्ती लगाने के लिए जिद् कर रहा है।’’
यह सुनकर वे चहकते हुए बोले-‘‘अरे ! फौजी बाप का बेटा है। अरे। दरगाह पर हर माह की तरह से अगरबत्ती लगाने जाना ही चाहिए। हम या तो कोई उसूल बांधे नहीं , यदि बंध जायें तो जी जान लगा कर उनका पालन करें।’’
‘‘पालन करना तो चाहिए। किन्तु इसे कुछ हो गया तो...।’’
‘‘इसे कुछ नहीं होगा। इसे अंधविश्वास यानी देश के अनदेखे- अदृश्य दुश्मनों से लड़ना सीखने दो।’’
यह सुनकर आमना बोली-‘‘जब तुम दोनों चचा भतीजे मिल गये हो तो कोई क्या जीत पायेगा ? अरे! इसके अब्बाजान भी तो हमारे मना करने पर भी फौज में चले गये थे।’’
यह सुनकर रमजान को लगा - यह तो अप्रत्यक्ष में मुझे जाने की अनुमति मिल ही गयी। यह सोचकर चाची से बोला-‘‘चाचीजान...।’’
‘‘कह बेटा, अब क्या कहना है?’’
‘‘ आप को ज्यादा चिन्ता है तो आप अपने हाथ से मेरी बाँह पर वैसा ही ताबीज बाँध दें, जैसा अब्बाजान के फौज में जाते समय उनकी अम्मीजान ने बाँधा था।’’
यह सुनकर दुखी सी आमना उठी और अन्दर से एक ताबीज और काला धागा ले आयी । उसे रमजान की बाँह पर बाँधते हुए बोली-‘‘जा तेरी चाची जान की दुआयें तेरे साथ है।’’
रमजान अपनी चाचीजान और चाचाजान के चरणों में झुक गया।
...फिर रमजान ने अपनी योजना सुनाना आरम्भ की।
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रमजान चन्द्रावती के घर जा पहुँचा। चन्द्रा के माँ-बाप उसे सभाँलने का प्रयास कर रहे थे। घर में प्रवेश करते हुए रमाजन बोला-‘‘सेठ चाचा आप चिन्ता नहीं करें। चन्दा को मैंने बहन माना है। इसे किले में पहुँचाने से पहले मैं किले की दरगाह पर अगरबत्ती लगाने जा रहा हूँ। आज जुमे का दिन है। वहाँ महाराज बदनसिंह से भी मुलाकात हो जायेगी।’’
सेठ बैजनाथ बोला-‘‘बेटा, तुम हमारे लिए अपनी जान क्यों खतरे में डाल रहे हो ?’’
रमजान बोला,‘‘आप मेरी चिन्ता न करें। ...चाचा, आप किसी से न कहें तो मैं एक बात पूछँू।’’
‘‘ पूछो...पूछा ...मैं तुम्हारी बात किसी से क्यों कहूँगा ? ’’
एक क्षण रूक कर कुछ सोचते हुए रमजान बोला, ‘‘चाचा जी, आपको शायद पता नहीं, मुझे पूर्व जन्म की बातें याद हैं। मुझे इस किले के बारे में कुछ-कुछ बातें याद आ रही हैं। उस समय मैं महाराज की पत्नी का भाई और उनका विश्वासपात्र खजान्ची था। इसीलिए तो मैं महीने में एक बार, आखिरी जुमे के दिन, किले की दरगाह पर अगरबत्ती लगाने जाता हूँ और आज तक मेरा बाल बाँका नहीं हुआ।’’
‘‘...चाचाजी इसीलिए मैं अभी-अभी दिन डूबने से पहले किले की दरगाह पर जा रहा हूँ। ये रहा अगरबत्ती का पुड़ा, माचिस और ये रेवड़ियों का प्रसाद।’’
यह सुनकर तो बैजनाथ गंभीर होते हुए बोले-’’बेटा तुम यहाँ ठहरो।याद आया, मुुुुझे अभी एक काम से जाना है।‘‘
यह कहते हुए वे घर से निकल गये।
रमजान ने सोचा- ये ठीक रहा। अब चन्द्रावती से अकेले में बात करने का अवसर मिल गया। यह सोचकर बोला-‘‘चाची जी...’’
‘‘कहो बेटा...कहो...?
‘‘आज आपके हाथ की चाय पीने की इच्छा हो रही है।‘‘
’’ वाह बेटा ! पहली बार तुमने कोई चीज माँगी । मैं अभी बना लाती हूँ‘‘ यह कहकर वे चाय बनाने रसोई घर में चली गईं तो रमजान ने चन्द्रा से पूछा-‘‘चन्द्रा मैं सब कुछ समझ रहा हूँ फिर भी स्पष्ट कहो तुम्हें ये नाटक क्यों करना पड़ रहा है?’’
चन्द्रावती ने धीमी आवाज में अपनी बात कही-‘‘मेरे पिताजी चार पांच दिन से रात दस बजे घर से निकल जाते हैं और सुबह चार बजे के करीब घर लौटते हैं। इस बारे में मैंने मम्मी से पूछा, तो वे कहती हैं-‘‘किसी काम से जाते हैं कहाँ जाते हैं यह मुझे भी पता नहीं है। कल रात एक आदमी हमारे घर आया था। पिताजी उससे अकेले में बातें करते रहे। रात जब पिताजी घर से चले गये। मम्मी अपने कमरे में चलीं गईं। उनके जाने के बाद वह आदमी मेरे कमरे में घुस आया। उसने तेज धार वाला चाकू मेरे गले से लगाते हुए कहा-‘देख लड़की, तू ज्यादा बोलती है। तेरा गला ही काट देता हूँ । ‘‘
मैं डर गई। फटी-फटी आँखों से उसकी ओर देखने लगी। वह बोला- ‘तू अपने माँ-बाप का हित चाहती है तो गाँव वालों के सामने चिल्ला-चिल्ला कर कहना-मैं पिछले जनम में राजा बदनसिंह की रानी थी, गाँव के लोग चलो और मान-सम्मान से मुझे किले में पहुँचा आओ।‘ तब से भैया डर के मारे मुझे ये नाटक करना पड़ रहा है। मम्मी तो मेरी बातें सुनकर दुःखी हैं। ...किन्तु पिता जी दुखी होने का नाटक कर रहे हैं। सब पिताजी की मिली भगत लगती है।’’ यह कहकर वह रो पड़ी।
रमजान ने उसे साहस बंधाया -‘‘तू चिन्ता न कर मैं तेरे साथ हूँ। चाय पीकर सीधा किले पर जा रहा हूँ। देखूँ तो कैसे हैं हमारे महाराजा बदनसिंह! उनसे बिछुड़े मुझे सैकड़ों वर्ष हो गये।’’
चन्द्रावती ने अपनी व्यथा और प्रगट की, ‘‘मेरे पिताजी ही जब मेरे शत्रु बन गये हैं। मेरी रक्षा कौन कर पायेगा ?’’
रमजान ने उसे फिर साहस बंधाया-‘‘तेरे इस मुँह बोले भाई ने क्या चूड़ियाँ पहन रखीं हैं ?’’
चन्द्रा की मम्मी चाय ले आयी। चन्द्रा और रमजान चाय पीने लगे। रमजान ने जानबूझ कर सेठानी चाची से पूछा-‘‘...चाची जी रोज रात को चाचा जी कहाँ चले जाते हैं ?’’
चन्द्रावती की माँ सकपकाते हुए झूठ बोली-‘‘जाते कहाँ? इन दिनों उनका मन पूजा ध्यान में लग गया है। रात दस बजे साधना में बैठते हैं। वे इन दिनों जाने कैसे हो गये हैं? उनके जाने कोई मरे कोई जिए। उन्हें चन्द्रा की भी चिन्ता नहीं है। अभी यह सत्रह साल की हुई है लेकिन खा-पी कर मस्त दिखती है, सो गाँव वाली औरतें रोज मुझे इसका ब्याह कर देने की बात करती हैं, मैं भी कहती हूँ पर इसके पापा ब्याह की चिन्ता में हैं।’’
‘‘चाची जी आप चिन्ता न करें सब ठीक होगा। हमारे किले की दरगाह के हजरत अली बाबा सब खैर करेंगे।’’
रमजान ने चाय की प्याली समाप्त की और सीधा किले की दरगाह पर अगरबत्ती लगाने चला गया।
रमजान रात को नहीं लौटा उल्टे दूसरे दिन सुबह यह हवा तीव्रगति से गाँव भर में फैल गई कि चन्द्रावती अर्धरात्रि से गायब है। चन्द्रावती की माँ बार-बार बेहोश हो रही थी। जब होश आता तो चिल्लाने लगतीं-‘‘हाय मेरी पुतरिया कहाँ चली गई। हाय मेरी पुतरिया...।’’
गाँव में कई तरह की चर्चायें थीं। कोई कह रहा था,- ‘‘दोनों बच्चे भाई-बहन के रूप में दिखने का नाटक कर रहे हैं। असल बात कुछ और है। सह शिक्षा का नतीजा है यह। गाँव में नया-नया हाई-स्कूल खुला है। दोनों युवा हैं, सुन्दर हैं। क्या पता आँखें लग गई हों?
कोई कह रहा था-‘‘अब तो दोनों निकाह करके ही लौटंेेगे।’’
कुछ इस तरह सोच रहे थे-‘‘रमजान तो किले पर गया ही है क्या पता चन्द्रावती भी वहीं पहुँच गई हो। अब दानों जीवित लौट कर आने वाले नहीं है।’’
हनुमान चौराहे पर सहमे-सहमें लोगों की भीड़ थी। एक बोला-‘‘सेठ जी तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रह गये हैं। इन्हें लड़की के गायब होने की सूचना पुलिस को तो देनी ही चाहिए।’’ दूसरे ने उत्तर दिया-‘‘पुलिस सिटपिटा ही नहीं रही है। कोई रिपोर्ट लिखाने जाता है तो वे उसकी रिपोर्ट ही नहीं लिखते हैं।’’
तीसरा बोला-‘‘...और वशीर मियाँ।’’
चौथे ने बात आगे बढ़ाई -‘‘क्या पता उन्हीं की इच्छा से, रमजान अगरबत्ती लगाने के बहाने पहले से ही किले पर चला गया हो।‘‘
कोई बोला-‘‘चन्द्रावती तो महाराज बदनसिंह का पत्नी है।’’
किसी ने कहा-‘‘रमजान उनकी पत्नी का भाई महाराजा का खजान्ची है। ह...ह...ह...।‘‘
इस तरह दिन भर गाँव मेंअफवाहों का बाजार गर्म रहा।
शाम से ही किले के अन्दर से घुंघुरूओं की आवाजें गाँव भर में स्पष्ट सुनाई पड़ने लगीं।
लोग सोचने लगे-‘‘महाराज बदनसिंह का दरबार लगा होगा। उसमें भूतनी नृत्य कर रही होगी। उन्हीं के घुंघुरूओं की आवाजें सुनाई पड़ रही हैं।
...औरष्शाम से ही लोग सहमे-सहमे से अपने अपने घरों में घुसने लगे।