क्या हमारी भी आजादी आएगी अर्चना यादव द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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क्या हमारी भी आजादी आएगी

चार तो देखो झूल गए
क्या बाकियों की बारी भी आएगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

लड़ाई है सम्मान की
अस्तित्व की, पहचान की
जो दरिंदे खुले में घूम रहे
उससे खुद के बचाव की
जो रिश्ता ना देखे उम्र ना देखे
क्या उनकी भी सवारी आएगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

कब तक ऐसे यूँ चलेगा
कब तक ये सोच ना बदलेगी
कि पशु नहीं इंसान हो तुम
इंसानियत कब उनकी जागेगी
किस सोच के रहते होंगे वो
किस हद तक बढ़ी होगी मानसिक बिमारी
और जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

हैदराबाद का सबने सम्मान किया
निर्भया को भी इंसाफ मिला
फिर भी हर दूसरे तीसरे रोज़
इसी खबर से छपा अखबार मिला
क्या दो ही थे इंसाफ के हकदार
या बाकियों की बारी भी आएगी
और जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?


हद हो गई अब तो ये देखते सुनते
थक गए हम भी ये गुनते गुनते
सोच क्या हावी होती उन पर
जो सोचते नहीं अपराध करते
क्या वजह है जो ये थम ना रहा
क्या सरकार कभी भी जागेगी
और जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

स्वर्ग में बैठी सोचती होगी आसिफा
इंसाफ मुझे भी मिलेगा जरूर
उम्मीद पाले होंगी बाकी बेटियाँ
क्या इंसाफ मिलेगा जरा बोलो हुजूर
कह दो उनसे उम्मीद ना पालें
यहाँ सिर्फ बातें ही बनाई जाएगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

इस सृष्टि के दो ही आधार
स्त्री और पुरुष हैं सृष्टि के सार
जो रिश्ता प्रेम जरूरत का
उसे नाम कैसे मिला बलात्कार
जोर जबरदस्ती हैवानियत
क्या यही पहचान तेरी बन जाएगी
और जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

हर भूखे की थाली है यहाँ
किसी और की पर झपट्टा क्यों मारते हो
भूख लगी थोड़ा सब्र करो
अपनी थाली का इंतजार करो
क्यों कुत्ते बिल्ली पशुओं से
हैवानियत पर उतर जाते हो
तुम मनुष्य चेतना शून्य नहीं
फिर भी ना समझ क्यों आएगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

अपराधी केवल वो नहीं
जो राजनीति करे अपराधी है
जो कपड़े देखे छोटे बड़े
उसकी दृष्टि अपराधी है
जो सोचते हम हैं पुरुष महान
जो कहतीं हम है सेफ इंसान
जो सोचते वो तो हमारे नहीं
वो लोग सारे अपराधी हैं
सरकारें सोच ना बदलेंगी
परिवर्तन तुम्हीं से आएगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

सरकारें बस कानून बनाएं
तो कानून का डर है किसे धरा
कानून पैसों से बदलते हैं
या समय देता घाव भरा
फिर धधकी आग बुझ जाती है
क्योंकी समय देखो बलवान बड़ा
बड़े से बड़ा घाव भर देता है
तो क्या सबके घाव भर पाएगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

लड़ाई नहीं बस चाहत है
हैवान नहीं इंसान बनो
तुम बाप भाई बेटे हो किसी के
पशुत्व छोड़ अपनी पहचान करो
हम भी रहेंगे तब सेफ हर जगह
तुम राह कोई आसान चुनो
क्या कभी भी ऐसा दिन आएगा
जब बलात्कार खतम हो जायेगी
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?

आखिर में बस इतना ही
चाहे कानून बने चाहे न्याय मिले
चाहे निर्भया हो या हैदरा बाद बने
न्याय चाहिए बस न्याय मिले
फूलन बनो या अरुणा शानबाग बने
जो स्त्री है तो वो न्याय कहाँ पाएगी
सवाल बस यही है कि
जिस सम्मान की नारी लड़ रही
क्या वो सम्मान कभी भी पाएगी...?