दिन बीता, महीने गुज़रे और आज तीन बर्ष हो गए तुमसे बिछड़े हुए..
समय अपने प्रारब्ध गति से आगे बढ़ रहा है, तुम्हारे मेरे अपने..अपनी अपनी ज़िन्दगी की भागादौड़ी में व्यस्त हो गए है, बहुत कुछ बदल गया है..लाज़मी है, परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है, बदलना तो सबको है लेकिन मैं आज भी वही खड़ी हूं, उसी हॉस्पिटल के आईसीयू वार्ड के दरवाज़े पर सिर टिकाएं, तुम्हारी आंखे मुझे देख रही है मैं तुम्हें, असहाय नज़रों से डॉक्टर की तरफ़ देखती हूं और वो मुझसे नज़रे चुराए दूसरे पेशेंट के पास चला जाता हैं..मैं आज भी वही खड़ी हूं, तुमसे दूर होने की कल्पना भी नही कर सकती, विश्वास है तुम पर, तुम्हारे बोले हुए हर एक शब्द पर..क्या कहा था तुमने..याद है?
'पाखी..तुम्हें छोड़ कर मैं कही नही जाऊंगा, तुमसे दूर रहना इस दुनिया में तो मुमकिन ही नही लेकिन इस बात पर विश्वास करना अगर मैं किसी दूसरी दुनिया में भी चला जाऊं तो भी तुम्हारे साथ सदैव रहूंगा'
फ़िर तुम्हीं बताओ..कैसे मान लूं की तुम नही हो?
तुम्हारे बोल मेरे कानो में गूंजते रहते है.
हर आहट तुम्हारी याद लाती हैं
याद के भीतर कोई रात..रात में जागती आंखे
आंखो में दृष्टि..दृष्टि जो मेरी ओर उन्मुख है.
तुमसे बातें करनी है..तुम्हें बताना हैं, मैं सांस कैसे लेती हूं..तुम्हारे बिना मैं हंसती कैसे हूं??
सवालों की पोटली कांधे पर लिए तुम्हारी राह ताकती रहती हूं..क्योंकि मैं सिर्फ़ तुमसे प्रेम करती हूं.
आज भी मेरे हाथों की लकीरों में तुम्हारा चेहरा नज़र आता हैं..डरती हूं..क़िस्मत की तरह लकीरों से ना निकल जाओ इसलिये मैंने मुट्ठी बांध कर रखी है..
ह्रदय का भाव प्रबल है..प्रेम से पूर्ण..लहरों की उन्माद में अपने अस्तित्व को संभाले..जीने की कोशिश करती हूं.
कभी ख़्याल भी नही आया था.. तुम चले जाओगें..
जरा भी अंदेशा होता..सहेज लेती तुमको..अपने आँचल के कोरे से बांध लेती लेकिन तुमको जाने नही देती..
तुम पर अटूट विश्वास था..
तुम मेरे बिना कही रह ही नही सकते..यही झूठा गुमान था
अंतिम वक़्त की वो चंद मिनटों की मुलाकात, तुम्हारे चेहरे के लम्स का अहसास..आज भी मेरी उंगलियां सिहर जाती हैं.तुम्हारे ठंडे पड़े हाथ से अपने चेहरे को एक आख़िरी बार छुवाया था..एक विचित्र अनुभूति थी..अब भी हैं..हमारा सच्चा प्रेम जो लोगो के लिए अनंत अकल्पनीय थी..वो अब जीवन सत्य के अदृश्य शाश्वत रूप में मेरा हमसाया बन कर अनवरत अनंत काल तक मेरे साथ थी...अब लोग कहते हैं..तुम्हारा जैसा प्रेम तो सिर्फ़ कहानियों में पढ़ा था..मैं हंसती हूं.. सोचती हूं.. क्या इन्होंने प्रेम नही किया जो प्रेम के स्वरूप से अपरिचित हैं..बहरहाल...मैं तुम्हारे हर अधूरे कार्यों को पूरा करने की कोशिश करती हूं,
तुम्हारी आख़िरी ख़्वाहिश पर अब मैंने फ़िर लिखना शुरू किया.. पता हैं.. मैंने मौन लिखना सीख लिया हैं.
जानती हूं..तुम्हें मुझ पर गर्व होता होगा.
स्वर्ग में भी अपनी प्रेम कहानियां सबकों सुनाते होंगे..
पाखी और वीर की कहानी..
तुम्हारे जाने के बाद मुझे पता चला था...हमारी कहानियों से कितने लोग रूबरू थे.. यहां तक तुम्हारे ऑफिस में हमारी कहानियां आज भी लोगो के जुबान पर रहती है.
मेरी भी एक ख़्वाहिश हैं..हर जन्म में मुझे तुम ही मिलों और इस जन्म की तरह ही दीवानों की तरह मुझे प्यार करों...
सुनो..कल एक सुखद अनुभूति हुई..
कल सुबह सड़क से गुजर रही थी..तुम्हारे फेवरेट कॉफी हाउस के सामने मेरे क़दम ठहर गए..याद आ गया वो लम्हा..डॉक्टर के पूछने पर तुमने कहा था..तुम्हारी एक ही इच्छा है..पाखी यानी मेरे साथ इसी कॉफी हाउस में कॉफी डेट पर जाने की..
अफ़सोस...इच्छा अधूरी रह गयी..
मैं आगे बढ़ने के लिए ज्यों ही क़दम बढ़ाई.. मुझे लगा तुम सामने टेबल पर बैठे हो..
कानों में आवाज़ आयी..
"साथ ही तो हूं.. हर वक्त..हर पल
तब नही तो अब सही"
सच तो कहा तुमने..तुम्हारी आत्मा मेरा वजूद..चलो कॉफी डेट पर चलतें है.
अनामिका अनूप तिवारी