आज की द्रौपदी और सुभद्रा - (अंतिम भाग) आशा झा Sakhi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आज की द्रौपदी और सुभद्रा - (अंतिम भाग)

अंशिका के मुँह से शुभी के आने की बात सुन धवल व सुमन दोनों की ही नजर दरवाजे पर गयी। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा ,जब शुभी को सच में दरवाजे पर खड़ा पाया।सुमन ने तो भागकर शुभी को गले ही लगा लिया। फिर उलाहना देते हुए बोली- भाभी ,बहुत इंतजार कराया आपने। पर भगवान का लाख - लाख धन्यवाद की आप आयी तो सही अपनी छोटी बहन जैसी ननद को अपना आशीर्वाद देने। वो जैसे ही शुभी को हाथ पकड़ कर अंदर लाने को हुई । अंशिका ने उसे रोका और बोली- अरे सुमन ,नयी भाभी का गृहप्रवेश ऐसे करवाओगी? अरे !भाई - भाभी को एक साथ बुलाओ अंदर।
सुमन की समझ में बात आते ही ,वो भागकर चावल से भरा कलश लेकर आयी और दरवाजे पर रखकर बोली- शुभी भाभी ,इसे दाहिने पैर से अंदर की ओर गिराते हुए भैया का हाथ पकड़कर अपने ससुराल में गृहप्रवेश कीजिये।शुभी ने धवल के कान में कुछ कहा। धवल ने अंशिका को आवाज दी।वो बोला- मैं अपनी दोनों पत्नियों के साथ ही गृहप्रवेश करूँगा।अंशिका तुम भी आओ ,ताकि ये रिश्ता परिपूर्णता के साथ गृहप्रवेश कर सके। बड़ी मुश्किल में तो ये शुभ घड़ी आयी है।धवल ने अंशिका और शुभी दोनों का हाथ पकड़कर गृहप्रवेश किया। शुभी अंशिका के गले लग गयी।अश्रुपूरित नयनों से इतना ही बोल सकी- मुझे क्षमा कर दो अंशिका ।मैंने स्वार्थ में अंधी होकर तुम्हारा अधिकार मार लिया। अंशिका ने उसके आँसू पोछते हुए उसे आराम से बिठाया।उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोली- पागल, ऐसा कभी मत सोचना कि तुमने मेरा अधिकार मारा है। न कभी धवल को ही गलत समझना। उनके बारे में भूल से भी ये मत सोचना कि ये सिर्फ औरत की सुंदरता के पीछे भागने वाले पुरूष हैं। ये तो बहुत ही सत्यनिष्ठ व कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हैं। इन्होंने जो भी किया सब कुछ मेरे कहने और चाहने पर किया।
जब शादी के बाद मैं तुझसे मिलने गयी। तो तुझे देखकर हैरान रह गयी। तेरी हालात देखकर ,तुझसे बात करके मुझे ये तो समझ आ गया कि तेरे मर्ज की दवा क्या है। पार्टी में तुझे अपना दर्द भूल कर एक सामान्य जीवन जीते देख कर मन को बहुत खुशी मिली। वापस ससुराल आने पर जब मैंने धवल से इस बारे में बात की तो वो भी तुम्हारी हालत जानकर बहुत दुखी हुए। तुम्हारे साथ सहानुभूति दिखाते हुए बोले- अंशिका , शुभी को एक पुरुष के प्यार की जरूरत है। जो उसे बहुत प्यार दे । उसका जीवन अपने प्यार से महका दे। उसे इस कदर टूट कर प्यार करे कि उसे प्यार के सिवा कुछ और सूझे ही नहीं। मैंने इनसे बोला- सही कहा आपने। क्या कोई है आपकी नजर में ऐसा इंसान । जो सबकुछ जानकर भी शुभी से सच्चा प्यार करे। उसे अपने स्वार्थसिद्धि का साधन न समझ कर सिर्फ प्रेम दे। धवल बोले- अंशिका सच कहूँ तो ऐसा कोई नहीं मिलेगा। सब लोग सिर्फ उसे एक खिलौने की तरह से ही लेंगे। खेला और छोड़ दिया। हम इस मामले में किसी पर भी विश्वास नहीं कर सकते। तब मैंने धवल से कहा, किसी और की क्या जरूरत है। आप भी तो कर सकते हैं न ये काम। मुझे इस मामले में आपसे ज्यादा किसी और पर विश्वास भी न होगा।मेरी ये बात सुनकर तो धवल एक दम आग बबूला हो गए। आँखें लाल कर चिल्लाते हुये बोले- तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है। किसी के भविष्य के बारे में अच्छा सोचना बहुत अच्छी बात है पर अपना पारिवारिक व सामाजिक जीवन दांव पर लगाकर नहीं। तुमने सोचा भी है इसका परिणाम क्या होगा। मैं शादीशुदा होकर उससे प्यार कर भी लूँ तो ? शादी तो नहीं हो पाएगी न। फिर तो उसकी हालत और भी बिगड़ जाएगी , और इसके जिम्मेदार सिर्फ हम दोनों ही होंगे। फिर क्या तुम अपने को कभी क्षमा कर पाओगी। कभी इस आत्मग्लानि से बाहर आ सकोगी कि अपनी प्रिय सखी की बर्बादी की वजह तुम ही हो।
अंशिका ने प्यार से हाथ थामकर धवल से कहा- जरा शांति से विचार करो स्थितियों का। जिस तरह से शुभी की शादी टूटी है , तो अब तो होना असंभव ही है। जब तक माता- पिता होते हैं तब तक ही लड़की घर पर परिवार की सदस्य की तरह मान्य होती है। उसके बाद की स्थिति आप बेहतर समझ सकते हैं। मैं चाहती हूँ कि वो हमेशा के लिए हम लोगों के साथ रहे। अब इसके लिए उसका इस घर पर अधिकार होना आवश्यक है। अब यदि आप उसके जीवन में प्यार की गंगा बहा दें तो हम लोगों के दोनों ही समस्या का समाधान संभव है। शुभी को उसकी बीमारी से छुटकारा मिल जाएगा। वो हम लोगों के साथ एक सफल व परिपूर्ण जीवन गुजार सकेगी।
आपको उससे वैदिक रीति से विवाह करना है , इसमें मेरी खुशी व सहमति दोनों ही हैं। तो आपको क्या समस्या है। आप तो ये समझिए कि आप किसी को जीवनदान दे रहे हैं। किसी की भलाई के लिए कुछ करना गलत नहीं होता, गलत होता है बेईमानी की नियत से कुछ करना। मेरे इतना समझाने पर धवल ने अपने हथियार डाल दिये पर एक शर्त के साथ कि पहले मैं पापा से इस बारे में बात करूँ ।उनकी आज्ञा दिलवाऊं।
यदि मेरे और तुम्हारे घर पर सब इस बात के लिए तैयार हो गए तब ही मैं आगे बढूंगा वरना नहीं।
अब मुझे धवल की शर्त पूरा करना था। इसके लिए मैंने एक दिन अपने माता- पिता व ससुर जी को एक साथ बिठाकर समझाया। ससुर जी को बहुत मुश्किल से मना पायी। वो इस बात के सख्त विरोध में थे। पर जब उनको ये समझाया कि आप शुभी की जगह सुमन को रख कर देखिये जरा। तब भी आपका विचार यही होगा। तब जाकर ससुर जी ने अपनी स्वीकृति दी। मेरे माता- पिता तो शुभी को बेटी ही मानते हैं तो उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर इतना ही कहा- बहुत बड़ा दिल है तुम्हारा ।पंडित जी ने सच ही कहा था ।तुम दोनों को ईश्वर ने एक ही डोर से बाँधा है। वो डोर कौन सी है ये आज समझ आया। सुमन ने हम लोगों की बातें चुपके से सुन ली थी। वो बहुत समझदार है , उसने भी मुझे गले लगाकर इतना ही कहा - भाभी आप सच में बहुत महान हो। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो ईश्वर ने आपको इस घर में भेजा।
सबकी स्वीकृति मिलने के बाद जब मैंने धवल की ओर देखा , तो मंद-मंद मुस्कुराते हुए वो इतना ही बोले कि तुमने असंभव को संभव किया है । अब मेरी बारी है अपना वादा निभाने की।मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा पर इसमें मुझे तुम्हारा कदम - कदम पर साथ चाहिए। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ अंशिका ने धवल को आश्वासन दिया। फिर आगे का तो तुमको सब पता ही है। एक बात और जब तुमने आंटी - अंकल की चिंता करने वाली बात बताई थी न तब मैंने खुद आंटी को शादी का आश्वासन दिया था इस बात के अनुरोध के साथ कि यदि आपने शुभी को कुछ भी बोला तो जो बातें अभी इसको सुखद अहसास दे रही हैं । वो उसके दुख की वजह न बन जायें। मुझे पता था कि यदि सब लोग या सारी बातें तुम्हारे सामने आ जायें तो शायद तुम हम लोगों को स्वार्थी और खुद को लाचार ,दया की पात्र न समझ लो ।या धवल को चरित्रहीन और उसके प्यार को दिखावा समझने की भूल न कर बैठो।
यदि ऐसा होता तो फिर तुम अपनी बीमारी से कभी बाहर नहीं आ पातीं। इसलिए हम लोगों ने हर बात, हर निर्णय तुम्हारे ऊपर छोड़ा। ताकि तुम हर परिस्थिति के साथ सामंजस्य बिठाते हुए हर बात को स्वाभाविक तरीके से स्वीकार करो। हर वो बात जो हमारा ह्रदय स्वंय स्वीकारता है , वो ही हमारी वास्तविक खुशी का कारण बनता है। यही खुशी हमें जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण देती है। यही हमें जीवन से लड़ने के लिए आत्मबल प्रदान करती है समझी तुम मेरी प्यारी सखी और भोली सी बहन। तुम्हारी बीमारी की भी यही दवा है।
शुभी जोर से अंशिका का हाथ पकड़कर बोली- ये तो सब ठीक है। पर मेरे इस तरह से यहॉं आने से सुमन की शादी पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा न। कहीं उसके ससुराल वाले न समझ पाये ये बात तो? यदि कुछ भी गड़बड़ मेरे कारण हुई तो मैं कभी क्षमा नहीं कर पाऊँगी अपने आप को। अंशिका ने अपना सिर पकड़कर बोला - हे राम! इस लड़की को इतना समझाया पर इसकी सुई वहीं की वहीं अटकी है और फिर धवल को बाहर जाने का इशारा किया। अगले ही पल धवल जब लौटा तो साथ में सुमन के होने वाले ससुर जी व पति थे और साथ में धवल के पिता जी भी । इन सबके पीछे ही अंशिका और शुभी के माता - पिता को भी खड़े पाया।
अंशिका सबको संबोधित करते हुए बोली - यहॉं उपस्थित सभी आदरणीय व सम्मानीय परिजनों से अनुरोध है कि शुभी के लिए अपने ह्दय में जो भी भावना हो उसे अभिव्यक्त कर इसके मन की दुविधा को दूर करें। सबसे पहले सुमन के ससुर जी बोले- शुभी बेटा, तुम सुमन की चिंता मत करो । वो हमारे घर पर वैसा ही प्यार व सम्मान पाएगी , जैसा इस घर में अंशिका और तुमको मिला है। सुमन के पति - भाभी मैं भी सुमन को वैसा ही प्यार व सम्मान देने की कोशिश करूंगा जो धवल भाई साहब आप दोनों को देते हैं। अंशिका ने माहौल को थोड़ा हल्का करने के उद्देश्य से कहा - सिर्फ कोशिश , तो सुमन के पति ने जबाब दिया- हम भाईसाहब की तरह होशियार थोड़े ही हैं। लोग तो एक को खुश नहीं रख पाते ,भाईसाहब दो - दो खुश रखे हुए हैं। ये सुनकर सब हँस पड़े। धवल के पापा बोले- शुभी बेटा , बहुत इंतजार करवाया तुमने और ये कहकर उसके सिर पर अपना आशीर्वाद भरा हाथ रख दिया। अब शुभी व अंशिका के माता- पिता ने अपनी दोनों बेटियों के सिर पर स्नेह का हाथ रखते हुए इतना ही कहा- आपस में प्रेम व स्नेह की डोर को कभी कमजोर मत पड़ने देना। अंशिका ने शुभी शुभी की ओर देखते हुए कहा- कोई और भी संदेह है बाकी या 😉🤔🤔😊😊😊। शुभी ने अंशिका को गले लगाते हुए इतना ही कहा- जिसके ह्रदय में तुम जैसी सखी रहती हो ,वहाँ संदेह टिक सकता है भला। फिर सबने मिलकर शादी के रस्मों रिवाज को आगे बढ़ा कर सुमन को विदा किया और दोनों सखी द्रौपदी और सुभद्रा की तरह ही एक साथ रहकर हँसी -खुशी जीवन गुजांरने लगी।
💐💐 समाप्त💐💐