Today's Draupadi and Subhadra - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

आज की द्रौपदी और सुभद्रा - 3

शुभी ने कुछ शंकाओं के साथ धवल का प्रेम स्वीकार कर लिया । धवल ने भी शुभी से वादा किया कि वो शुभी और अंशिका दोनों को खुश रखेगा। अब गतांक से आगे-------
दो दिनों की खुमारी में शुभी के दिन - रात कटने लगे। अब शुभी दीन दुनिया को भूल कर अपने में ही मस्त व खुश रहने लगी। उसके दिल ओ दिमाग में धवल ने ऐसा एकाधिकार किया कि उसकी बातों के सिवा शुभी को कुछ और सूझता ही नहीं।चौबीसों घंटे उसके दिमाग में धवल की ही बातें चलती रहती।धवल भी दो दिन में ही उसे अपने प्यार से ऐसा सराबोर करता कि बाकी दिनों में उसकी कमी शुभी को खलती ही नहीं।फ़िल्म देखना, ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों की सैर करना हो या फिर तालाब के किनारे घण्टों बैठकर बतियाना हो, शुभी का पूरा दिन कैसे बीत जाता ,उसे पता ही नहीं चलता। उसका शहर बेशकीमती ऐतिहासिक खजाने से भरपूर है ,उसे तो इस बात की खबर ही न थी।शुभी जब घर वापस लौटती तो एक नयी खुमारी , एक नयी मदहोशी से भरी होती। अपने शहर की सुंदरता का अहसास उसे धवल का साथ घूमने पर ही हुआ। शुभी के चेहरे पर अब एक अलग ही चमक व होठों पर मनमोहक मुस्कान होती।उसकी बीमारी का ख्याल भी अब उसके मन में न आता।
प्रारंभ में तो हप्ते में दो- एक बार दौरे आये भी ,पर जैसे- जैसे धवल के साथ समय बढ़ता गया ।शुभी के दौरे भी न के बराबर होते गए। अब तो हाल ये है कि पिछले तीन माह से एक बार भी उसे दौरा नहीं पड़ा।
ये सब इश्क का ही कमाल था जो शुभी को अपने दौरे भूले से भी याद न आये।पर कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते। ये तो पकवान की वो खुशबू है जो बनने के बाद ,रसोई से हटा देने के बाद भी अपनी सुगन्ध बिखेरकर अपने होने का अहसास करा ही देते हैं।
इसी प्रकार आस -पास के लोगों से होती हुई खबर शुभी के घरवालों तक पहुंची।शुभी की मां ने शुभी को ऊंच - नीच के बारे में बहुत समझाया पर शुभी की समझ में एक भी बात नहीं आयी। जब प्यार की आग लगी हो तो कानों तक कुछ भी कहाँ सुनायी देता है। शुभी ने ये बात जब धवल को बतायी तो धवल ने शुभी को तसल्ली देते हुए कहा - तुम कल माँ को अकेले माता रानी के मंदिर में भेजना । मैं उनसे मिलकर उनको समझाऊँगा।फिर सब ठीक हो जाएगा।
धवल से बात करने के बाद शुभी ने अपनी माँ को उससे मिलने के लिए मना लिया । अगले दिन मंदिर में जब उन्होंने धवल को देखा ,तो देखती ही रह गयीं। उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकीं।मन ही मन सोचने लगीं ," यदि ये शादीशुदा न होता तो मैं एक पल की भी देर न करती । तुरंत ही इससे शुभी की शादी करवा देती, चाहे घर वाले कितना भी विरोध करते । पर अफसोस---- ये शादीशुदा हैं, बस यही इसकी कमी है।
इधर धवल ने जैसे ही मां को देखा,तो झट झुक कर प्रणाम किया ।फिर उनके व शुभी के पापा के स्वास्थ के बारे में व बाकी सदस्यों की कुशलक्षेम के बारे में पूछा। माँ तो पहले ही बाहरी व्यक्तित्व से प्रभावित थीं, आंतरिक गुण व संस्कार देख गदगद हो उठीं। पर शुभी का भविष्य देखते हुए उन्होंने सीधे ही धवल से प्रश्न कर डाला ," बेटा, क्यों तुम दो ज़िन्दगियों को बरबाद करने पर तुले हो। अंशिका भी मेरी बेटी जैसी ही है।
मेरी बेटी का भविष्य व तुम्हारी घर - गृहस्थी दोनों ही बरबाद हो जाएंगे। मत करो ऐसा।एक बार तो परिवार की प्रतिष्ठा ,मान- सम्मान पर आंच आ ही चुकी है। तुम्हारा मेरी बेटी के साथ बिना किसी संबन्ध के खुलेआम यूँ साथ घूमना ,मेरे परिवार व शुभी के चरित्र पर दाग लगा जाएगा। फिर हम लोगों के जाने के बाद ,मेरी बेटी अकेले कैसे जियेगी इस दाग के साथ समाज के भूखे भेड़ियों के बीच।धवल ने हाथ जोड़कर बोलना शुरू किया - माँ, मैं आपको माँ ही कहूँगा।आपने ये कैसे सोच लिया कि मैं आपके परिवार की प्रतिष्ठा को दाग लगाऊँगा।या मैं शुभी को अकेला छोड़ दूंगा।हाँ, ये सत्य है कि मैं शादीशुदा हूँ , पर मैं शुभी के साथ भी शादी करूंगा ।उसे पूरे सम्मान व प्रतिष्ठा के साथ अपने घर में ही रखूँगा।आपने शायद ये ध्यान नहीं दिया , शुभी अब कितना खुश रहने लगी है। उसे अब अपनी बीमारी से भी छुटकारा मिल ही गया समझो।माँ ,आप सिर्फ अपनी शुभी की खुशयों के बारे में ही सोचिये।किसी और के बारे में नहीं। धवल की बातों से शुभी की माँ की सारी चिंता मिट गई और वो धवल के सिर पर ममता भरा हाथ रख कर वहाँ से चली गयीं।
कुछ दिनों बाद शुभ मुहूर्त देख धवल व शुभी विवाह बंधन में बंध गये। विवाह के समय मंदिर में धवल व शुभी दोनों के ही परिवार से कोई भी शामिल न हुआ। विवाह के बाद दोनों ही शुभी के माता- पिता से आशीर्वाद लेने गये , पर उन्हें मौन आशीर्वाद ही मिला।
वहां से निकल धवल शुभी को लेकर अपने हनीमून रिसोर्ट चला गया। दोनों ने मिलकर उन अनमोल पलों का भरपूर आनंद लिया।उन्हीं खुमारी भरे पलों में धवल की बाहों में सिमटे हुए ,अपने सुखद भविष्य की योजना बनाते हुए शुभी ने धवल से पूछा- हमने शादी तो कर ली।अब आगे क्या,कैसे करना है ,सोचा है कुछ।करना क्या है , यहॉं से सीधे घर चलेंगे।तुम और अंशिका दोनों ही साथ - साथ रहना प्यार से।
नहीं,मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ।मैंने अपनी सहेली को धोखा दिया है , कैसे सामना करुँगी उसका।शुभी को अपनी बाहों में भरकर उसके बालों से खेलते हुए धवल शुभी को समझाने लगा-शुभी ,ऐसा मत सोचो।मैं हूँ न तुम्हारे साथ। अंशिका बहुत समझदार है। तुमको शायद पता नहीं ,अंशिका तुमको सिर्फ खुश देखना चाहती है।तुम एक बार घर चलो तो सही , तुम्हारी सब परेशानियां चुटकियों में हल हो जाएंगी , विश्वास करो मेरा।अचानक ही धवल को शुभी में घबराहट के साथ - साथ दौरे पड़ने के लक्षण दिखायी दिए ।उसने तुरंत बात संभाली अरे यार ! तुम भी कहाँ रोमांस के बीच में टेंशन ले आयीं। अभी सिर्फ मुझे प्यार करो और मुझे करने दो बस।इतना बोलते हुए धवल ने शुभी के लवों पर कब्जा कर लिया और उसे दूसरी दुनिया में ले गया।कुछ समय बाद ,जब कमरे में उठा तूफान शांत हुआ तो उसने शुभी को प्यार से समझाया ।तुम अपने को समझा लो ।जितना भी समय चाहिए लो ।जब मन करे ,बता देना।रहना तो साथ में ही है।तुम्हारा ससुराल तुम्हें बुला रहा है।
जब तक तुम अकेले रहोगी , मुझे तुम्हारी चिंता ही बनी रहेगी। यदि तुम्हारे साथ रहूंगा तो ये अंशिका और परिवार वालों के साथ अन्याय होगा।शुभी धवल की बातों को समझते हुए बोली- ठीक है।मैं बहुत जल्द तुम्हें इस परेशानी से निकाल दूँगी।बस थोड़ा समय दो।
धवल ने अपने ही शहर में एक फ्लैट लेकर शुभी को दे दिया। साथ ही देखभाल के लिए एक विश्वनीय महिला का इंतजाम भी कर दिया।ताकि शुभी को अकेलापन न लगे ।साथ ही कभी जरूरत पड़ने पर मदद मिल सके। मिलने का नियम दोनों के बीच वही रहा दो दिन शुभी और पांच दिन अंशिका और परिवार।
क्रमशः


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