The Author राज कुमार कांदु फॉलो Current Read इंसानियत - एक धर्म - 2 By राज कुमार कांदु हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... आई कैन सी यू - 41 अब तक हम ने पढ़ा की शादी शुदा जोड़े लूसी के मायके आए थे जहां... मंजिले - भाग 4 मंजिले ---- ( देश की सेवा ) मंजिले कहान... पाठशाला पाठशाला अंग्रेजों का जमाना था। अशिक्षा, गरीबी और मूढ़ता का... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास राज कुमार कांदु द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 49 शेयर करे इंसानियत - एक धर्म - 2 (8) 3.6k 9k आलम की गिरफ्त से छूटने के लिए कसमसाती राखी की तरफ बढ़ते हुए मुनीर ने अपनी शंका आलम से साझा की ” लेकिन साहब ! चलो मान लिया कि मुंडा मर जायेगा तो सबूत नहीं रहेगा । लेकिन इस मुंडी का क्या करेंगे ? नहीं साहब ! मैं बाल बच्चे वाला आदमी हूँ । कहीं फंस गया तो ……..? ”उसकी बात सुनकर आलम एक ठहाका लगाकर हँस पड़ा ” अबे साले ! तू बेकार में पुलिस में भर्ती हो गया । न तेरे पास अकल है और न ही हिम्मत । अबे गधे मैं क्या कोई फंसने वाला काम करूँगा ? सुन ध्यान से । समझ मुंडा तो गया । अब रह गयी ये मुंडी । साली का बोटी बोटी नोच के पहले अपनी भड़ास निकालेंगे । इन सालों काफिरों को मालुम भी तो पड़े कि हम मुसलमान भी किसी से कम नहीं हैं । इन काफिरों ने हर दंगों में मुसलमानों पर अत्याचार किया है चाहे 1992 के दंगे हों चाहे गुजरात के चाहे अभी हाल ही में मुजफ्फर नगर के दंगे हों । मेरा बस चले तो एक एक काफिरों को गोलियों से छलनी कर दूँ । लेकिन क्या करूँ देश इनका कानून इनका । मजबूर हूँ । लेकिन आज नहीं । आज मैं इन्हीं के बनाये कानून का फायदा उठा कर गुनाह भी करूँगा और सजा भी नहीं पाउँगा । अपनी मनमानी करने के बाद इस मुंडी को भी हलाक कर देंगे और इन दोनों को ही इनकी ही गाड़ी में डाल कर गाड़ी को किसी पेड़ से भिड़ा देंगे । यह हमारा इलाका है । जांच भी हमको ही करनी है । प्रेस को बुलाकर इसको दुर्घटना बताना अपने लिए कोई बड़ी बात नहीं है । असली कहानी तो तब पता चलेगी जब जांच कोई दूसरा करेगा लेकिन इसकी जांच तो मेरे ही जिम्मे आएगी । अब तसल्ली हुयी या अब भी डर लग रहा है । बहती गंगा में हाथ धोना है तो आ जा नहीं तो हट जा परे । अब ज्यादा समय नहीं है मेरे पास । ” कह कर वह राखी को जबरन घसीटते हुए सड़क के किनारे झाड़ियों के पीछे ले गया और उसे पटक कर उसपर सवार हो गया । मुनीर राखी पर काबू पाने में आलम की मदद करने लगा ।यह सब घटना बड़ी तेजी से घटी थी । यादव एकदम से बदहवास सा हो गया था जबकि असलम राखी की चीखें सुनकर भावुक हो गया था । उसे आलम और मुनीर इंसानी खाल में भेडिये नजर आने लगे थे । एक तेज चीख के साथ रमेश वहीँ गिर गया था । वह गिरते ही बेहोश हो चुका था । राखी ने उसे बस गिरते हुए ही देखा था । उसकी दशा से चिंतित अब उसकी प्रतिरोध करने की क्षमता कम होती जा रही थी ।अचानक जैसे असलम को सही वस्तुस्थिति का भान हुआ । उसके अंतर्मन ने उसे धिक्कारते हुए कहा था ” असलम ! क्या देख रहा है तू ? तेरे सामने ही एक अबला किसी नराधम के सामने गिडगिडा रही है और तू मात्र तमाशा देखते रह जायेगा ? यह मत समझ कि तू इस गुनाह से बच जायेगा । गुनाह करनेवाला गुनाहगार तो है ही लेकिन खामोश रहकर तू भी तो उसकी मदद ही कर रहा है । जरा सोच ! क्या यह औरत किसी की बहन बेटी पत्नी नहीं ? क्या उसके साथ यह आलम सही कर रहा है ? ”अचानक जवाब में उसके मुंह से तेज आवाज निकली ” नहीं ! ”और फिर उसने आव देखा न ताव यादव के हाथों में पकड़ा हुआ पुलिसिया डंडा छीन लिया और उसे सहेजते हुए आलम की तरफ दौड़ पड़ा ।जमीन पर चित्त पड़ी राखी को काबू में करने का प्रयास करते हुए आलम और मुनीर का पूरा ध्यान राखी की तरफ था । दोनों असलम के मनोभावों से बेखबर कसमसाती राखी पर काबू पाने का प्रयत्न कर रहे थे कि तभी उसपर झुके हुए आलम के सर पर असलम ने अपने हाथ में पकड़ी छड़ी से कस कर एक प्रहार किया ।राखी को छोड़ दोनों हाथों से अपना सीर थामते हुए आलम ने गिरते हुए सामने खड़े असलम को देखते हुए अचरज से बोला ” अरे असलम तू ! तूने एक हिन्दू काफिर की खातिर एक मुसलमान पर वार किया । तू होश में तो है ? ”असलम पर तो जैसे जूनून सवार हो गया था । हाथ में पकडे डंडे से उस पर टूट पड़ा और हर वार के साथ उसकी आवाज तेज होती गयी ” थू है तुझ पर । आज मुझे शर्म आ रही है तुझे मुसलमान कहते हुए । मुसलमान के नाम पर तू कलंक है तुझे तो दोजख में भी जगह नहीं मिलेगी । तुझ जैसे चंद मुसलमानों की वजह से आज पूरी दुनिया में लोग हमारी कौम को शक की निगाह से देखते हैं । इसमें लोगों की नज़रों का नहीं तुझ जैसे इंसानियत के दुश्मनों का दोष कहीं ज्यादा है । तू इस पाक धरती पर एक नापाक बोझ है । तुझे तो शायद यह धरती भी कुबूल नहीं फरमाएगी । तू शायद भूल गया होगा जो शपथ हमें यह पाक वर्दी देते हुए दिलाई जाती है लेकिन मैं नहीं भुला हूँ ।तुझ जैसे जुल्मियों की वजह से ही आज देश का माहौल ख़राब हो रहा है । जिस देश की आजादी के लिए हमारे पुरखों ने हिन्दुओं के कंधे से कन्धा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाइयाँ लड़ी वह देश सिर्फ एक खास तबके के लोगों का कैसे हो गया ? अशफाकउल्ला खान ‘ बहादुर गफ्फार खान ‘ मौलाना अबुल कलाम ‘ हमारे प्यारे राष्ट्रपति रहे ए प़ी जे अब्दुल कलाम को कौन नहीं जानता ? 1965 की लड़ाई में अपनी जान देकर भी पाकिस्तानियों के चार टैंकों को उड़ाने वाले अमर शहीद वीर अब्दुल हामिद ने अगर तेरी तरह सोचा होता तो ? लेकिन नहीं उस देश भक्त ने इस पाक देश के लिए नापाक सैनिकों से लोहा लिया और शहीद हो गया । आज पूरा देश इन महान लोगों के आगे सीर झुकाता है । उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है । लेकिन तेरे जैसे कुछ लोगों की घिनौनी हरकतें इन सब महान लोगों का सर भी जन्नत में शर्म से झुका देते होंगे । तुम जैसे सीर फिरों की वजह से कुछ खास लोगों को हमारी पूरी कौम को गाली देने और बदनाम करने का मौका मिल जाता है । आज मैं तुझे छोडूंगा नहीं और सुन मैं खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं करूँगा । मैं पूरी दुनिया को चीख चीख कर यह सब बताऊंगा चाहे मुझे फांसी ही क्यों न हो जाए ………..”लेकिन शायद उसकी पूरी बातें सुनने भर का वक्त आलम के पास नहीं था । उसके प्राण पखेरू कब के उड़ चुके थे लेकिन असलम को शायद इसका भान नहीं था । वह तो बस जुनूनी की तरह वार पर वार किये जा रहा था । मुनीर कब का भाग खड़ा हुआ था । आखिर यादव कब तक मूक दर्शक बन कर तमाशा देखता ? यादव असलम को पकड़ते हुए उसको हकीकत से वाकिफ कराने की कोशिश करने लगा ।क्रमशः ‹ पिछला प्रकरणइंसानियत - एक धर्म 1 › अगला प्रकरण इंसानियत - एक धर्म - 3 Download Our App