मंथन 11 अन्त रामगोपाल तिवारी (भावुक) द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मंथन 11 अन्त

मंथन 11

रश्मि घर लौट आई थी। रवि और रश्मि बैडरूम में दुखित मन से बातें कर रहे थे।

‘रश्मि अब तुम्हारे ऊपर अधिक भार आ गया है।‘

‘हाँ।‘

‘रश्मि एक बात कहूँ।‘

‘कहो।‘

‘तुमने अपने जीवन की घटनाओं को बशीर साहब को तो बता दिया था।‘

‘हाँ, बेटी बाप को सब कुछ कह सकती है जिन्हें पति से छुपाती है।‘

‘वह तो मैं भी समझ रहा हूँ। तभी तो मरते वक्त वह मुझे समझा गए हैं कि कहीं कभी खाई न बन जाए।‘

‘लेकिन अब यह तो बता दो यह हुआ कैसे ?‘

‘पूछ रहे हो।‘

‘हाँ !‘

‘खाई खोदने ?‘

‘नहीं पाटने !‘

‘तो सुनो ! इस महन्त की लड़की सरला उर्फ सल्लो मेरे साथ पढ़ती थी। मेरी पक्की सहेली थी, मैं उसके यहाँ जाया करती थी।‘ वह कहने में कुछ क्षण रूकी।

‘फिर ?‘ रवि ने बात आगे पूछने के लिए प्रश्न कर दिया।

वह कहती गई-

‘एक दिन मैं उनके यहाँ पहुँची, घर सूना था। सल्लो कहीं गई थी। केवल महन्त था। मैंने कहा, ‘सल्लो कहाँ है ?‘

‘बेटी, वह अपनी मम्मी के साथ चली गई है।‘

‘ वह तुम से बेटी कहता था ?‘

‘हाँ !‘

‘फिर ?‘

‘मैंने कहा मैं चलती हूँ।‘ मेरी यह बात सुनकर वह बोला-‘अरे रुको ना, चाय पीती जाओ।‘

‘मैंने कहा, ‘मैं चाय नहीं पीती। पानी पिला दीजिए।‘

वह स्वयं अन्दर गया। पानी ले आया। मैंने गिलास का पानी गटक लिया। मैं नशे में आने लगी, मैं समझ गई कि धोखा हो गया। अब तक पूरा नशा छा चुका था।

‘मैं लुट गई, तभी तो सुहागरात के दिन मैंने शील और मूल्यांकन की बात कही थी।‘

‘हाँ और मैंने पश्चाताप किया था।‘

‘हाँ !‘

‘फिर क्या हुआ ?‘ रवि ने प्रश्न कर दिया।

‘फिर जब मुझे होश आया, वह सांप अभी भी फन फैलाये मेरी खटिया के पास ही बैठा था।‘ अब मैं उठी तो वह बोला-‘कहीं कुछ कहना नहीं, नही ंतो तुम्हारी बदनामी होगी ?‘

मैं चुप रही और उठकर चली आई। जिस दिन आपने इसका पत्र मुझे दिया। मैं समझ गई यह वही चन्दन दास है। जिसने ं ं ं मैं ं ं ं क्रोध में ं ं ं आ गई थी। उन्हीं दिनों मैंने यह घटना बशीर साहब को बता दी थी।

‘हाँ रश्मि, जाते-जाते हमारे आपस के राज खोल गये हैं, जिससे हम मुक्त हो जी सकँूें।‘ और दोनों कहते-कहते आलिंगन में बंध गये।

गाँव में चालीस दिन तक मातम पुरसी का कार्यक्रम चलता रहाँ चालीसवां दिन आ गया।

गाँव के सभी लोग उनकी मजार पर गये। कार्यकम के तहत पहला दीपक रश्मि ने जलाया। उसके बाद सैकड़ों दिये जल उठे।

दीपक प्रज्वलित करने के बाद लोग मजार से अस्पताल की ओर चल दिये। दूर से दिख रहा था ‘बशीर सेवा आश्रम‘। सभी ने अस्पताल में प्रवेश किया, सामने बड़े सुन्दर फ्रेम में मढ़ा हुआ बशीर साहब का चित्र लगा था। सभी बैठ चुके थे। रश्मि खड़े होकर बोली, ‘यहाँ हम सभी लोग बशीर साहब को श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। हम श्रद्धांजलि अर्पित करंे, मौन धारण करें इससे पहले श्री पटेल साहब बशीर साहब को पुश्पांजली अर्पित करंेगे।‘ बात सुनकर चुपचाप रंगाराम उठे। थाली में एक माला रखी थी, वह उठाई और बशीर साहब को अर्पित कर दी और वे बैठ गये।

अब रश्मि फिर बोली, ‘अब मैं चाहती हूँ कि बशीर साहब जीवन पर कुछ प्रकाश डाला जाए, जो भी सज्जन बशीर साहब के बारे में कुछ भी जानते हों, यहाँ आकर कहें।‘

अब रंगाराम उठ खड़ा हुआ औॅर बोलने लगा, ‘मियां बशीर मुसलमान होते हुए भी हमारे धर्म के लिए अपने को बलिदान कर गये। ऐसे आदमी हमाये देश में बहुत कम देखबे मिलंगे।‘

इतना कहकर वे बैठ गये तो रश्मि फिर उठ खड़ी हुई और बोली- ‘वे न तो हिन्दू थे न मुसलमान ! वे पक्के भारतीय थे। तभी तो भारतीय संस्कृति को बचाने में अपने को शहीद कर गये। चाहे कोई हिन्दू हो, चाहे मुसलमान। हम सबको मिलकर अपने देश व संस्कृति की प्रतिश्ठा का, उसके सम्मन का खयाल रखना ही चाहिए।’

‘मूर्ति चोरी की बात हमारी संस्कृति से जुड़ी है। हमारी आत्मा से जुड़ी है। कोई विदेशी इस पर अंगुली उठाये, हम सहन नहीं कर सकँूेंगे। अब रवि बोला, ‘हम सब यही भूल जाते हैं कि मूर्तियों की बात केवल हिन्दू धर्म से ही नहीं हमारी संस्कृति से जुड़ी है। एक बार रश्मि ने ऐसा ही प्रश्न बशीर साहब से किया था, उन्होंने उत्तर में कहा था, ‘कुछ बातें आज धर्म नहीं रह गई हैं। धर्म होता तो लोग धर्म को बेचते नहीं। यह हमारी संस्कृति है हम इसकी रक्षा करेंगे।‘

अब रश्मि पुनः उठी और बोली, ‘यह बड़े दुःख का अवसर है, कहते हैं कोई सुख में साथ न दे, पर उसे दुःख में साथ अवश्य देना चाहिए। हमें इस अवसर पर प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम अपने गाँव व देश की प्रगति में हाथ बंटायेंगे। तभी बशीर साहब को सच्ची श्रृद्धांजली होगी।

‘हम उन्हें मौन श्रृद्धांजली अर्पित करेंगे। उसके पहले हमें यह विचार करना चाहिए कि हमारे गाँव की कौन-कौन सी समस्याएं हैं।‘ समस्याओं की बात सुनकर विशुना खड़ा हो गया और बोला, ‘यहाँ समस्यान की कौन सी कमी है। पहले तो सड़क बननो है, बिजली लानो हैं, नल लगनो हैं।‘

बात सुनकर रश्मि फिर उठी और बोली-, ‘तो इस मंजिल को पाटने के लिए हमें कल से ही कुदाली उठानी पड़ेगी। हमारी पहली समस्या सड़क है तो सभी लोग कल सुबह सड़क पर काम करने चलें। हम उठें और खड़े होकर अपनी श्रृद्धांजली इस प्रतिज्ञा के साथ करें कि हम सुबह छः बजे सड़क बनाने जा रहे हैं।‘

अब सभी खड़े हो गये। सभी ने मौन श्रृद्धांजली अर्पित की और चुपचाप अपने-अपने घरों को चले गये।

सुबह के छः बजे थे। सभी लोग विद्यालय के पास इकट्ठे हो गये। सभी कुदाली और फावड़े लिए थे। रवि ने कुछ तस्सल और मंगवा लिये। सभी तैयार हो गये।

अब सभी चले जा रहे थे पूर्व की ओर, सुबह को लेने और उधर से सूर्य चला आ रहा था उन सबका अभिनन्दन करने। गाँव के बूढ़े और बच्चे खडे़-खड़े अपलक दृश्टि से उन सबके गाँव की सड़क बनाते हुए देख रहे थे।

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