औरत (दास्ताये) Surbhi Singh द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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औरत (दास्ताये)

समाज का एक अहम हिस्सा जिन्हें महिला के नाम से जाना जाता है | ये महिलाएँ जो जन्म लेने पर अपने घर की बेटी, बहने बनती हैं, वही शादी के बाद बहु, भाभी, पत्नि का किरदार अदा करती है |
यदि मैं ऐसा कहु की एक नाम में बहुत से किरदार या एक नाम में बहुत से काम तो ये कहना बिल्कुल भी गलत ना होगा पर निश्चिंत ही ये जन्म से ही बहुत सी दिक्कतों का सामना करती है |

हमारे समाज का सबसे बड़ा और दकियानूसी विचार हैं कि घर में बेटा तो होना ही चाहिए, माँ-बाप के देहांत के बाद मुखाग्नि तो बेटा ही देता है | वंश आगे बेटे ही बढ़ाते हैं| बुढ़ा होने पर बेटे ही माँ-बाप की सेवा करते हैं |
ईन सभी बातों का जवाब दे चुकी बेटियों ने खुले में समाज को चुनौती दी है कि वो हर एक काम जो एक बेटा अपने माँ बाप के लिए कर सकता है उसके बराबर और कहे तो उससे और बेहतर काम बेटियाँ कर सकती है | माँ-बाप का बुढ़ापे में सहारा भी बन सकती है और मुखाग्नि देने का भी हक रखती है |
समाज में ऐसे ही बढ़ते कदमों ने रूढ़िवादी सोच को करारा तमाचा दे मारा है |

वैसे तो हम ना जाने क्यूँ ही इतना चिल्लाते हैं, सरकारी मुहिम है "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" बेटी बेटों से आगे हैं ये दोहराना क्या ये सही है, बिल्कुल भी नहीं क्युकि ऐसा कह कर आप बेटी को कमजोर बना रहे हो | बेटी को किसी प्रमाण की जरूरत तो है ही नहीं कि वो कमजोर है या उसे पुरुषों की बराबरी की आवश्यकता है | हमारा बार- बार सिर्फ यही कहना की लड़किया कम नहीं है कहने वाले अपने दिमाग से निकाले की कम कोई नहीं है ना लड़के और ना ही लड़किया |

इस समाज में इतिहास गवाह है कि औरत एक अभिमान हैं घर की शोभा हैं, जिसके रहते ही सुखी संसार चलाना सम्भव है | एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी सौपना की जिम्मेवारी लेने वाली केवल एक महिला ही है |
जितनी पीड़ाओं का सामना एक औरत करती है ना जाने किसी और के पास ऐसी सहनशक्ति हैं भी या नहीं |

ये मासिक धर्म का शिकार हर महिने होती है, उस दौरान होने वालीं पीड़ा बहुत ही दर्दनाक होती है शायद बता पाना भी मुश्किल होगा | इसकी उम्र दस साल से बारह साल तक होती है इस कम उम्र में ही एक लड़की दर्द भरे दिन जीना शुरू कर देती है ये दिन पांच से आठ दिन के बीच होते हैं |
इसके भी घर के मुताबिक अलग-अलग नियम होते हैं | कोई रसोई घर में नहीं जा सकता, तो इस विशाल दर्द रूपी समय में पूजा पाठ से दूरी किसी भी शुद्ध वस्तु को छूने की मनाही होती है, वही पेड़ पौधों से दूरी, घर के अचार, पापड़ को छूने से मना किया जाता है| कहते हैं मासिक धर्म का समय महिला को अशुद्ध कर देता है इस कारण उसे इन सभी चीजों से दूरी बनानी होती है |
इस दौरान बिल्कुल बीमारों जैसी हालत हो जाती है, कमर मे दर्द, पेट दर्द, खाने पीने में कमियां होना, बिस्तर को छोड़ने का मन ना होना ये सब होता है|

सबसे बड़ी वेदना जिसे एक औरत का नया जन्म कहा जाता है जब वह माँ बनती है | प्रसव के समय एक औरत इतना दर्द सहती है जितना हमारे शरीर की सारी हड्डियां टूट जाने पर होगा |
माँ ना बन पाना हमारे समाज के लिए एक अभागापन है| समाज में एक औरत का माँ न बनाना एक बहुत ही बड़ा मुद्दा है यहाँ भी दोष का पोटला औरत के सर ही रखा जाता है | परिवार के साथ-साथ समाज के लोगों के ताने उस औरत को दिमागी तोर पर हिला कर रख देते हैं | हमारे समाज में इस कारण भी कई पुनर्विवाह हुए है जिसमें एक औरत का प्रेम,सत्कार, अधिकार दूसरी औरत के साथ बाँटा गया है |

हमारे यहाँ महिलाओं ने सती प्रथा, बाल विवाह, कम उम्र में माँ बनना, दहेज प्रथा और ना जाने कितनी ही रीतियों का सामना किया | महिलाओं को एक मुख्य दर्जा मिला |
इस 21वीं सदी में भी बेटियों को एक अमूल्य हिस्सा बताया गया है पर बढ़ते बलात्कार और ना खत्म हुई दहेज प्रथा ने पुरानी सदियों की चादर लपेट रखी है |
देश में कानून व्यवस्था भी इन पर कोई लगाम नहीं लगा सकीं है |

इस व्यंग कथन को आगे बढ़ाते हुए आप सभी का रुख एक ओर तरफ ले चलते हैं | हमने बहुत सी सुविधाओं से महिलाओं बेटियों को लाभान्वित किया है, लड़किया आगे बढ़े, तरक्की करे ये सभी चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ लड़कों से उनका अधिकार छिन लेना ये कहा का बड़प्पन है | गलती हर जगह लड़के की ही नहीं होती, मान्यवर हम जानते हैं कि यदि एक लड़की किसी लड़के पर कोई आरोप लगाए तो ताज्जुब की बात नहीं होगी कि लोग केवल लड़की की बातों का भरोसा करेंगे पर इतने कानून और इतना अधिक महत्व होने की वजह से इस समय महिलाएँ /लड़किया इसका गलत फायदा भी उठाती है |उनके केवल एक बयान से लड़के का पूरा जीवन खराब हो जाता है | हम ये नहीं कह रहे की हर लड़की जो आवाज उठाती हैं वो गलत है पर इस आवाज का गलत फायदा उठाने वाले बहुत गलत है |

इस ऊँच नीच में हम लड़कों या लड़कियों को बराबरी ही नहीं दे पाए किसी को विशेष तो किसी का मोल ही ना होना हमेशा यहि चलता रहा और चलता आ भी रहा है | इस समय में हम सभी की सोच बस उसी ओर होना चाहिए जिसमें ना लड़कियों को झुकाया जाए और ना ही लड़कों को क्युकि ये दोनों ही अमूल्य हिस्सा है हमारे समाज का एक के गिर जाने से रास्ते की डगर पार करना उतना ही मुश्किल होगा जितना बिना पटरी के ट्रेन |

इस व्यंग्यात्मक कथन का उद्देश्य मॉडर्न समाज को पारदर्शिता देना था, जिसमें महिला एक संवेदनशील विषय है जिसके बारे में बताना बहुत कठिन है | रोज मर्रा की जिंदगी में महत्वपूर्णता कम है पर अंदरुनी तोर पर महत्व व एहसास दोनों ही खत्म नहीं किए जा सकते |
इसके साथ ही महत्वपूर्णता बढ़ने से किसी और का विकास रुक जाना इन्साफ की गुहार हैं |

वेदनाओं और उल्लास का स्वरूप, कोशिशों और श्रेष्ठताओ में सर्वोपरि, महिला श्रेष्ठ थीं... हैं और रहेगी |