कमला ने एक बार फिर आराधना के पैर पकड़ लिये और रो -रो कर माफी माँगती रही।
आराधना तो पत्थर की तरह कठोर हो चुकी थी, उसका मन अंकल और मनीष की यादों मे ही खो गया।
वह कुछ बोलने की स्थिति मे नही थी फिर भी उसने कमला को उठाकर सोफे पर बैठाया जरूर लेकिन उनकी माफी पर उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी शायद उसकी दर्द भरी दास्तान सुनकर उसके होंठ सिले ही रह गये।
कैसे एक बेटा ही अपने पिता की मौत का कारण बन गया? नशे ने एक रात मे ही सबकुछ बदल दिया और सबका जीवन तबाह कर दिया, हे भगवान! आपने उन्हे इतनी बड़ी सजा क्यों दी? अंकल और मनीष जी ने कभी किसी का बुरा चाहा ही नही था फिर क्यों ऐसा हुआ उनके साथ?
" आराधना कुछ तो बोलो, कमला के हालात अब मुझसे देखे नही जाते। तुमसे माफी की उम्मीद लगाये बैठी है बेचारी "
सुनीता ने आराधना से कहा।
" सुनीता इसके लिए मुझे अभी थोड़ा वक्त चाहिये कैसे इतनी जल्दी मै? "
" आई नो आराधना, आप अपनी जगह बिल्कुल सही हो। लेकिन आप कमला के आँसू तो देख रही हैं न? इन्होंने जो भी किया आपके साथ उस पछतावे के कारण ये खुद नजरें नही मिला पाती। अब कोई मकसद ही नही बचा इनके जीने का, हमेशा से ऊँची रुतबे मे रहने वाली अब महीने के 1500 मे अपना गुजारा एक किराये के मकान मे रहकर कर लेती है। कभी भी इन्होंने मेरा कहा टाला नही यकीन मानो, ये बहुत बदल गयी हैं "
सुनीता धीरे से कमला का हाथ पकड़कर उसे आराधना के करीब लेकर आयी।
" शायद सुनीता जी ठीक कह रही हैं आराधना, मानाकि कमला आंटी ने जो किया उसे भुलाया नही जा सकता लेकिन उन्होने जो दर्द सहा वो भी क्या कम है ?
अपने पति और जवान बेटे को खोना, एक बेटी का अपनी ही माँ से मुँह मोड़ लेना और समाज के लोगों से दिन रात ताने सुनना इससे बड़ी सजा और क्या हो सकती है?"
अमित ने आराधना को समझाते हुए कहा।
आराधना ने कमला को करीब से निहारने की कोशिश की और उसकी आँखो मे दर्द का समुन्दर देखा शायद इन बहते आँसुओ की धार के साथ ही उनका ह्रदय पवित्र हो गया हो और पश्चताप की आस लगाये आंटी का दिल नही दुखाना चाहिये। ऐसा सोंचते हुए उसने कमला का हाथ थामा और कहा- " किस्मत का लिखा कोई नही टाल सकता आंटी, शायद हमारी किस्मत मे यही लिखा हो। हो सकता है अब अंकल और मनीष जी की भी यही इच्छा हो मुझे आपसे कोई शिकायत नही है प्लीज अब आप अपना अच्छे से ख्याल रखिये। कोई मदद की आवश्यकता हो तो हमे जरूर बताएँ "
आराधना की इन बातों से कमला ने राहत की साँस ली और उसने कहा कि अब अपनी बची-खुची जिन्दगी वह किसी भी तरह गुजार लेगी अब उसे कोई मलाल तो नही रहेगा।
सुनीता ने भी अब कमला के चेहरे पर सुकून भरा निखार देखा शायद ये आँखे इसी दिन को देखने का इंतजार कर रहे थे।
" देखा कमला मैने कहा था न, आराधना का दिल बहुत बड़ा है वो आपके दर्द को जरूर समझेगी।
तो अब घर चलते हैं मिनी के पापा भी परेशान हो रहे होंगे "
सुनीता ने कमला से कहा।
आराधना और अमित से इजाजत लेने के बाद वे घर के लिये निकल पड़े।
आराधना वंश के कमरे मे गयी उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। उसका मन शांत अनुभव कर रहा था क्योंकि अब किसी सवालों ने उसे घेरा नही था और न ही किसी बात का डर था लेकिन इन सवालों के जवाब इतने दर्द भरे और आत्मा को झकझोर देने वाले होंगे उसने सोंचा ही नही था।
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2 दिनों बाद कोरबा के ही पुरानी बस्ती इलाके मे अमित, आराधना और वंश कमला के किराये का मकान ढूँढ रहे थे।
तंग गलियों के बीच कुछ सटे हुए मकानों के बीच यह भी एक मकान था जिसकी चौखट पर बैठकर कमला चावल चुन रही थी।
उसे देखते ही आराधना मन ही मन सोंचने लगी अग्रवाल हाऊस के वो आलीशान कमरे, खूबसूरती मे चार चाँद लगाता गार्डन और कहाँ ये किराये का छोटा सा मकान। नौकरों चाकरों से घिरी रहने वाली कमला आंटी आज दूसरों के घर जाकर काम करती है सही मे किस्मत कब पलट जाये पता ही नहीं।
अमित और आराधना को इस तरह अचानक देख कमला चावल से भरी हुई थाली छोड़ चौखट के बाहर आयी।
" आओ अमित बेटा अंदर आओ,
आराधना बेटी मुझसे कोई भूल हो गयी क्या? "
कमला ने सकुचाते हुए कहा।
" नही आंटी ऐसी कोई बात नही, वंश बेटा नानी को नमस्ते बोलो "
आराधना ने वंश का हाथ पकड़ते हुए कहा।
नानी...ये शब्द सुनकर कमला को थोड़ा अजीब लगा, फिर भी हल्की मुस्कुराहट और सकुचाहट के साथ उन्होने वंश के हाथों को स्पर्श किया।
" आंटी हम सब कुछ भूलाकर एक नई शुरुआत करते हुए आपको अपने घर ले जाना चाहते हैं, प्लीज आप ना मत कहियेगा "
अमित ने कमला से कहा।
" लेकिन बेटा, मै तो सुनीता मेडम के घर काम करती हूँ और फिर मै तुम लोगो पर कोई बोझ नही बनना चाहती "
कमला ने अपना सिर नीचे झुकाते हुए कहा।
" एक माँ कभी बेटी पर बोझ बनी है क्या? हम पहले ही सुनीता से बात कर आये हैं और वो तो खुद चाहती हैं कि आप अपनी आगे की जिन्दगी हमारे साथ ही बिताएं। मैने तो हमेशा ही आपको एक माँ के रुप मे देखा है, वो माँ जो मुझे खूब सारा लाड़ करे, मेरे हर फैसले मे मेरा साथ दे और जिसके ममता के आँचल मे मुझे सुकून का एहसास हो,बस आंटी इतनी सी ख्वाहिश है मेरी।
क्या आप मुझे अपनी बेटी नही मानती?
आप वंश को उसकी नानी बनकर प्यार नही देंगी "
ऐसा कहते हुए आराधना भावुक हो गयी।
" एक बेटी से भी ज्यादा मानती हुँ मेरी लाडो, तुम तो मेरी बेटी ही नही जीने का सहारा हो अब "
ऐसा कहते हुए कमला ने आराधना को गले से लगा लिया।
" देखिए न आंटी, कल तक मै एक परिवार के लिये तरसती रही, बिखर गयी थी पूरी तरह और उस वक्त मुझे अमित जी के परिवार ने अपना बनाया। मेरा अतीत जानकर भी कभी उन्होंने मुझे ये अहसास नही कराया कि मै तो एक अनाथ लड़की हुँ जिसकी जिन्दगी कभी बेरंग हुआ करती थी,
और आज देखिये मुझे दो-दो माँ का प्यार नसीब हो गया, सच मे कितनी खुशनसीब हूँ मै "
" माँ भी माना है तो फिर बार-बार आंटी क्यों?
आराधना अब मुझे और न तरसाओ बस कह दो तुम मेरी लाडली बेटी हो, एक बार मुझे पुकारो माँ..."
" माँआआआआ...
आप फिक्र न करिये, मै तो अब आपकी ही बेटी हूँ, आपकी गुड़िया, आपकी आराधना।
ऐसा कहते हुए आराधना की आँखो मे चमक थी और वह कमला की गोद मे अपना सिर रखकर एक नन्ही गुड़िया की तरह लेटी रही।
अमित वंश को अपनी गोद मे उठाये ये सब देखता रहा, उसे भी तो कमला के रूप मे एक सास मिल गयी जिन पर वह अपना प्यार लूट सकता था।
🌿समाप्त🌿
सभी पाठकों को प्यार भरा अभिवादन👏
इस तरह से मेरी धारावाहिक कहानी आपकी आराधना पूरी हुई। ये कहानी आपको कैसी लगी?
कोई ऐसी बात जो आपको कहानी मे सबसे ज्यादा अच्छी लगी हो या फिर किसी भाग से आप सन्तुष्ट न हुए हो। उचित समीक्षा देकर मुझे मेरी कमियों से अवगत करायें।
मिलते है फिर किसी कहानी के साथ....
धन्यवाद।
आपका अपना✍️
पुष्पेन्द्र कुमार पटेल