मंथन 9 रामगोपाल तिवारी (भावुक) द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मंथन 9

मंथन 9

नौ

सुबह का समय था। कुछ लड़के दौड़ते हुए जा रहे थे। रवि ने उनसे पूछा ‘क्यों दौड़ रहे हो ?‘ वे दौड़ते में ही बोले-

‘गाँव में अंग्रेज क्यों आये हैं?‘ यह बात सुनकर रवि ने सोचा-मुझे भी वहाँ चलना चाहिये। यही सोचकर वह भी चल दिया। जब स्कँूूल पर पहुँचा, दो अंग्रेज वहाँ रूके हुए थे। उन्हें देखने गाँव के लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। कोई विदेशी इस गाँव में पहली बार ं ं ं ? सभी को आश्चर्य हो रहा था। रवि के मन में इस प्रश्न का समाधान आया - ईसाई धर्म का प्रचार करने आये हाँेगे। यही सोचते हुए रवि उनके पास पहुँच गया और भीड़ में सम्मिलित हो गया। लोगों ने रवि को आया देख रास्ता छोड़ दिया। अब उनका और रवि का सामना हो गया। रवि बोला-‘माई सेल्फ डाक्टर रविकान्त‘ रवि की बात सुनकर एक ने हाथ बढ़ाया। दोनांें हाथ मिले।

हाथ मिलाते में वह बोला, ‘मैं स्मिथ। ‘ उसकँूे मुँह से शुद्ध हिन्दी सुनकर रवि समझ गया, ये हिन्दी भी जानते हैं। अब रवि दूसरे की ओर हाथ बढ़ाते हुए दो कदम आगे बढ़ गया।

वह भी हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘मैं जार्ज फ्रोम न्यूयार्क।‘

अब रवि बोला-‘चलिए घर चलकर चाय-नास्ता करते हैं।‘ अब स्मिथ झट से बोला-

‘डाक्टर, हम यहाँ का टेम्पिल देखना चाहता है।‘

‘कौन सा टेम्पिल ?‘

‘महन्त वाला टेम्पिल !‘

रवि बोला- ‘तो चलिए मैं साथ चलता हूँ। अब रवि और वे दोनों मन्दिर के रास्ते पर चल दिये। रास्ता चलते में रवि ने पूछा, ‘आप लोग क्रिश्चियन हाँेगे ?‘

‘नो नो, हम हरे राम हरे कृश्ण !‘

रवि समझ गया इसीलिए ये लोग इसीलिये हिन्दी सीख गए हैं।

रवि ने प्रश्न किया-, ‘तो आप लोग हरे राम हरे कृश्ण मिशन से हैं।’

वे मन्दिर के पास पहुँच गये। उन्होंने मन्दिर पास आते ही बातें बन्द कर दीं, चुपचाप मन्दिर का दरवाजा आ गया। दोनों रूक गये। उसने अपना कैमरा निकाल और दरवाजे का चित्र खींच लिया। रवि को यह बात बर्दाश्त नहीं हुई। वह सोचने लगा, ‘चित्र ही न खींचने दे, पर मना भी तो नहीं किया जा सकँूता।‘

अब जार्ज बोला, टेम्पिल की कन्डीशन बहुत खराब है।‘ रवि यह सुनकर शरम से दब गया। बोला, ‘हमारे महन्त का टेम्पिल है।‘

वह कुछ क्षण रुक कर फिर बोला-‘महन्त इतना पैसे वाला और मन्दिर ं ं ं?‘

अब स्मिथ बोल पड़ा, ‘उसकँूा घर तो बहुत ब्यूटीफुल है !‘

‘रवि क्या कहे ! क्या न कहे ? सोचते हुए घुट रहा था। अच्छा हुआ रवि कुछ कहता तब तक मन्दिर का पुजारी भवानी शंकर आ गया। बेचारे ने भगवान की पूजा में जिन्दगी खपा दी, फिर भी बन्डी फटी हुई पहने था। उसे देख रवि की आंखें झुक गईं। अब भवानी शंकर बोला-‘भगवान की दया से आप सब सकँूुशल आ गए। मार्ग में कोई कश्ट तो नहीं हुआ ?‘

अब जार्ज बोला-‘नहीं नहीं, कोई फील नहीं हुआ, पर गाड़ी बहुत दूर छोड़ना पड़ी। गाँव में ये मिस्टर रविकान्त मिल गये।‘

रवि का नाम भवानी शंकर को खला, पर बोला, ‘महन्त साहब ने खबर भेज दी थी इसलिए मैं आप लोगों की सुबह से ही प्रतीक्षा कर रहा था।‘

अब उन्होंने एक चित्र पुजारी का भी खींच लिया। जिससे पुजारी आनन्द विभोर हो गया।,

अब तक रवि समझ गया था कि ये लोग महन्त के घर से मिलकर आये हैं। रवि का माथा ठनका, जार्ज बोला, ‘हम तुम्हारा भी फोटो खींचेगा।‘ रवि ने सोचा मना कर दूं, पर मन को मसोस कर रह गया। फिर भी बात को टालने के लिए बोला-

‘मेरा चित्र क्या जरूरी है।‘ अब स्मिथ बोला-

‘हम तुमको अपना मित्र बनायेगा।‘ अब रवि मना न कर सकँूा। रवि पेड़ के नीचे खड़ा ही था, उन्होंने उसकँूा भी एक चित्र खींच लिया।

सभी मन्दिर के बाहर ही रह गये। पुजारी ने उन्हंे आने से रोक दिया, पर रवि को न रोक सकँूा, इसलिये रवि भी उनके साथ अन्दर पहुँच गया। वे दोनों भगवान के सामने ‘हरे कृश्ण हरे राम‘ की ध्वनि में कीर्तन करते हुए नाचने लगे। रवि को भी उनके कीर्तन में सम्मिलत होना पड़ा। वह भी गा उठा ‘हरे राम हरे कृश्ण, हरे राम हरे कृश्ण। राम राम हरे हरे, कृश्ण कृश्ण हरे हरे ।। हरे कृश्ण ं ं ं

वे दोनों कीर्तन करते हुए दोनों मूर्तियों को बड़े ध्यान से देखते जा रहे थे। दोनों ने मूर्तियों के चरणों में दस-दस रूपये के नोट चढ़ाये। भगवान के चरण छुए। अब उन्होंने कीर्तन बन्द कर दिया। स्मिथ ने पूछा ‘ये मूर्ति तो कापर की होंगी।‘

रवि को उत्तर देना पड़ा, ‘नहीं अश्ट धातु की हैं।‘

आश्चर्य से जार्ज ने दोहराया-‘अश्ट धातु ।‘

‘हाँ‘ रवि कह गया।

अब वह पुनः बोला-‘तब तो बहुत कास्टली हैं।‘

बात काटते हुए स्मिथ बोला-

‘बहुत ओल्ड हैं।‘

रवि को कहना पड़ा। ‘हाँ, यह हमारे गाँव का सबसे प्रगाचीन मन्दिर है।‘

अब वे मन्दिर से बाहर निकलने को हुए। रवि और पुजारी उनके उस-उस चल दिये। सभी मन्दिर के चौक में लौट आये। गाँव के लोगों की भीड़ देखकर वे फिर ‘हरे राम हरे कृश्ण, हरे राम हरे कृश्ण‘ गा उठे। रवि भी कीर्तन करने लगा। सारे गाँव के लोग भी उनके साथ नाचा उठे।

हरे कृश्ण हरे राम हरे कृश्ण हरे राम। एक सुन्दर, मनों को लुभावने वाली यूरोपियन ध्वनि में सभी मस्त हो गये। रवि सोच रहा था -‘यह रहा पूर्व और पाश्चात्य का समन्वय। सभी अब भी ताली बजाते हुए गा रहे थे। रवि के कानों में उनके शब्द गूंज रहे थे- ये मुर्तियातो बहुत कास्टली होंगी, शायद कापर की होंगी।

यह सोचते में वह गाते-गाते रूक गया। उसकँूा ताली बजाने का क्रम जारी रहा उसे सोचने में आता रहाँ इन बातों का मतलब ? कहीं ये लोग मूर्तिचोर तो नहीं हैं। अब वे भी हरे राम हरे कृश्ण गाने से रूक गये तो रवि का सोचना भी रुक गया।

जार्ज और स्मिथ ने अपने बैग खोले और बच्चों को मिठाई बाँटने लगे। धीरे-धीरे क्रम से बड़ों को देते आ रहे थे। रवि को भी देने लगे तो रवि बोला- ‘नो थैंक्स।‘ जार्ज रवि के लिए केक ले आया तो संकोच में रवि को खाना ही पड़ा।

अब पूरा जत्था लौट पड़ा। रवि ने पूछा ‘आप लोग पासपोर्ट से आते होंगे।‘

‘हाँ।‘ झटके के साथ जार्ज ने अपना पासपोर्ट निकाल कर दिखलाया। ‘यह रहा मेरा पासपोर्ट।‘ रवि ने संकोच करते हुए भी उसे देख लिया। ‘रवि पासपोर्ट लौटाते हुए बोला, ‘आप लोग अपना पता दे जाइये, मैं पत्र लिखूंगा।‘

‘हम भी तुमको पत्र लिखेगा। उसी में अपना पता भी भेज देगा, अभी तुम अपना पता लिख दो।‘ रवि ने अपना पता लिख कर तो दे दिया, लेकिन उनका पता न ले पाया। मन में विश्वास हो गया ये लोग पत्र जरूर लिखेंगे। सभी लोग स्कूल पर आ चुके। वे सभी गाँव के लोगों से विदा हो गये। अब रवि उन लोगों के बीच में रह गया। उनके जाते ही लोग उनके बारे में कुछ विना सिर पैर की बातें करने लगे। रवि ने उन्हें समझाना उचित समझा- ‘देखिये ये लोग हमारे विदेशी मेहमान हैं। मेहमानों के साथ हमारा मधुर व्यवहार होना चाहिए। पोथी बोला, ‘ हमें ज समझ होती तो जे बातें हम काये कत्तैये।‘

अब विशुना का भाई सप्पो जो वहीं खड़ा था, बोला-‘डाक्टर साहब वे मन्दिर के बारे में सोऊ कछु कहि रहे थे।‘

‘हाँ वे मन्दिर की दुर्दशा के बारे में हमें शर्मिन्दा कर रहे थे।‘

वह फिर बोला-‘तो जे ज बात की अपने झां पहुँच के बदनामी नहीं करंगे।‘

‘क्यों नहीं करेंगे। मन्दिर का फोटो भी खींच ले गये हैं।‘

अब पोथी बोला- ‘तो डाक्टर साब ज कहा भई।‘

‘उन्हें फोटो लेने की मना भी तो नहीं की जा सकती थी।‘

‘तो अब कहा हो गयो।‘ सप्पो ने प्रश्न कर दिया।

‘होता क्या ? आगे हम महन्त से इस मन्दिर की ठीक व्यवस्था करायें और कभी बिदेशी यहाँ आये ंतो उनके साथ अच्छा व्यवहार करें।‘

अब वह फिर बोला, ‘मन्दिर कुन अपओं है महन्त बामें काऊ ये धसन न देगो।‘

‘मन्दिर तो शासकीय सम्पत्ति है। शासन की ओर से माफी की जमीन लगी है। जिससे मन्दिर की सेवा पूजा चलती रहे।‘

पोथी कहने लगा-‘वे सेवा पूजा कहाँ कत्तैय। वे तो शहर में मौज कत्तैय। झे तो ब पुजाई डुकरा डरो रहतो। अरे काऊ काऊ दिनां तो मन्दिर सूनो डरो रहतो। मन्दिर में झाडू नहीं लगती।‘

रवि बोला-‘यह तो पंचायत की गलती है। सरकार को उससूचना देनी चाहिये। सरकार उसे हटा सकती है।

अब सप्पो बोला, ‘हटा कें फिर ?‘

‘किसी दूसरे पुजारी की नियुक्ति कर देगी।‘

‘महन्त वाय माडारेगो।‘ पोथी ने कहा।

रवि ने समझाया-‘किस-किस को मारेगा यार पोथी ? वह हमारी संस्कृति को नश्ट कर रहा है और मार डालेगा। हम अपनी संस्कृति की रक्षार्थ मारे जायेंगे बस यही !‘

सप्पो बोला- ‘तो और कहा ?‘

‘देख सप्पो, मैं यदि संस्कति की रक्षार्थ मारा जाऊं तो मुझे मार डाले। मैं किसी से नहीं डरता।‘

अब पोथी बोला-‘तुम्हाई कहा है डाक्टर, हम तो गरीब आदमी हैं, बाल-बच्चे पालनों है, हमें जे बातिन से कहा करनो है।‘

‘पोथी हम यही तो भूल जाते हैं गाँव के बारे में, अकेले मुझे ही नही,ं सभी को करना है तभी हम सफल हो सकते हैं।‘

‘ठीक है मरन देऊ चलो मोड़े हो, अपनों-अपनों काम देखो। डाक्टर तुम तो जे बातें बशीर मियां से कह दियो वे सब करा दंगे। जब वे जीत गये हैं तो कहा जही कामये नहीं करा पांगे।‘

‘करायेंगे क्यों नहीं ?‘

अब पोथी फिर से बोला-‘बस तो फिर ठीक है, पहले हम सब बिन्हें ही देख लें।‘

अब सभी धीरे-धीरे वहाँ से खिसक गये।

इन तीन चार दिनों में खूब जम कर पानी बरसा। आज सूर्य के थोड़ी देर के लिए दर्शन हुए। वह फिर बादलों की ओट में छिप गया। दोपहर ढल गई।

थोड़ी देर पहले बड़े मन्दिर पर कुछ लोगों को अपने पशु चराते में पुलिस दिखी। बात सारे गाँव में फैल गई। मन्दिर पर पुलिस आई है। उसकँूे चारों ओर चक्कर लगा कर पुलिस देख रही है। लोगों को सही बात का पता नहीं चल पा रहा था।

नाई का लड़का ओमप्रकाश रोज सुबह मन्दिर की झाड़ू-बुहार लगाने जाया करता था। उसे मन्दिर से तो कुछ मिल न पाता था, लेकिन लोगों ने उसमें सेवा भाव कूट कूट कर भार दिया था, इसीलिये वह भगवान की सेवा मानकर मन्दिर की सेवा करने लगा था। वह रोज सुबह वहाँ पहुँच जाता। सुबह से ही पूरे मन्दिर में झाड़ू लगाता, फिर कुएं पर स्नान करता। दण्ड-बैठक लगाता। उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था। गाँव की तीन तेरह से उसे मतलब न था। गाँव में क्या हो रहा है ? उसे पहलवानी का शौक था, राम की भक्ति की धुन में सवार हो गई थी। गाँव की सेवा चाकरी भी कर देता , जिससे उसका उदर पोशण होता रहता था।

अभी वह मन्दिर से लौट कर नहीं आया था। गाँव के लोग उसी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। गाँव के लोगों को उधर जाने की हिम्मत न हो रही थी। सभी चोरी-छिपे पुलिस को इधर-उधर घूमता देख रहे थे। सभी समझ रहे थे या तो रात में डकैत छिपे होंगे या चोरी की घटना हो गई है। मन्दिर में चोरी, पर चोरी जाने लायक मन्दिर में क्या रखा है ? चोरी जाने लायक तो मुर्तियाही हैं, कहीं मुर्तियातो ं ं ं ?ँ

ओम जरा देर से मन्दिर से लौटा। पहले वह स्वयं रंगाराम के यहाँ गया और बोला-

‘पटेल कक्का, आज तो गजब हो गओ !‘

‘काये कहा बात हो गई ?‘

‘कछू मत पूछो, अरे ! भगवान ही चारी जान लगे।‘

‘ऐ ज कहा कहतो रे !‘

‘सच्ची बात है कक्का ! राम लक्ष्मन और सीता मैया की तीनों मूर्ति चोर चुरा ले गये।‘

‘ अब तो भगवान में ही सत् नाने। नही ंतो सारिन यें आंधरों कद्देतये।

व्ह बोला-‘‘जैसो आदमी हो गओ तैसोई भगवान हो गयो है। न तिनमें राम न बिन में कहूँ‘

‘हरे राम राम घोर कलिजुग आ गओ है।‘

‘आई गओ कक्का, ‘महन्त साहब हू तो आये हैं।‘

‘काये रे महन्त काऊ पै शक तो नही कर रहे।‘

‘मैं सामूं तो विन्ने काहू को नाम नहीं लओ। बड़े दुःखी जान पड़ रहे थे।‘

‘दुःखी काये न होगे। तिनको खा रहे हैं वे ही चोरी चले गये।‘

‘जई बात तो वे कह रहे हतैं। थानेदार से विन्ने साफ-साफ कहि दई कै मूर्ति निकन्नो चहियें।‘

‘मोय तो एक बात लगते, पर वैसे बशीर मियां और डाक्टर रवि ऐसे हैं तो नाने।‘

‘अरे ओम कछू मति कहो। आदमी की नियत को कछू ठिकानो नाने।‘

‘नहीं कक्का मोय तो ज लगते कै महन्त की जिनसे चल रही है तईं।‘

‘कहा चल रही है रे ?‘ अनभिज्ञ बनते हुए रंगाराम ने प्रश्न किया तो वह बोला- ‘पहिले तो जिन्ने कक्का बिनके हरिजनन पै कज्जा के रूपया डुब्बा दये और अभै चुनाव में बिनकी भारी बदनामी भई है।‘

‘देख ओम, अपुन तो सीधे सच्चे आदमी हैं जे बातें अपुन कहा जाने। कहूँ जे भये तो पुलिस मार मार के सब निकार लेगी।‘

‘अरे बशीर नेता हैं। पुलिस सोऊ जिनसे डरपते। अब महन्त की व बात नहीं रही। जनता को राज्य है।‘

‘ऐन बनो रहे। महन्त की सोऊ दिल्ली तक चलते।‘

‘तो तो कक्का अब विंधि गई। जे ज्यदा नेतागिरी कत्तैये।‘

‘तो तो अब जिनकी नेतागिरी निकरी जाते।‘

‘अच्छा कक्का चलो, नईं तो वाई हल्ला करेगी।‘

‘रे ओम, देख तें जे बातें काहू से मति कहिये।‘

‘अरे कक्का! व तो मैं तुमसे ही नही कहें चाहतो, पर दाई से कहा पेट छुपतो, तई कह दई। व तो महन्त अपनो जान के मोसे कछू नहीं छिपात। भईं तो पुलिस से हैं जे बातें, मेईं मैं हतो। मैंने तो कहि दईं।‘

‘कहा कह दई तेंने।‘

‘कहि दईं के डाक्टर रवि और बशीर को जे बातिन में हाथ होय तो ऐन होय।‘

‘तो तो रे पुलिस से महन्त ने जिनको नाम ले दओ है।‘

‘और नही ंतो कहाँ पुलिस जिनके बारे में मोसे काहे को पूछती। कक्का डर तो मोय सोउ है। काये कै मैं रोज झाड़ू लगावे चलो जातो। कहूँ मेरो नाम न लग जाय।‘

‘रे कर नाने तो डर नाने। तें काहे को डरपतो। महन्त ताको नाम ले देगो वाकी खेरियत नाने।‘

‘अच्छा कक्का अब चलो।‘ यह कह कर वह चला गया।

अब रंगाराम को चैन न पड़ा। रवि औरा बशीर मियां का हितचिन्तक बनना चाहाँ यही सोचकर वह अस्पताल पर रवि से मिलने चल दिया। रवि भी इसके बारे में जानना चाहता था कि मन्दिर पर क्या बात हो गई ? सुबह से ही मरीजों की सेवा में लग गया था। किसी मरीज ने भी अपने मर्ज के अलावा कुछ न बताया था। आज मौसम की खराबी के बावजूद मरीजों की अधिक भीड़ थी। इसलिए पता चलाने की फुर्सत ही नहीं मिल पाई थी।

रंगाराम के आते ही वह समझ गया कि वे कुछ न कुछ कहने आये हैं। इसलिए रवि पहले से ही बोला-‘आओ पटेल, आज बहुत दिनों में चक्कर लगो।‘

‘हाँ डाक्साब, कछू काम धन्धे में लगे रहे। बहुत दिनन से मिलवे की सोच रहो। आज मन में आ गई सो चलो आओ।‘

अब रवि कुर्सी की ओर इशारा करके बोला-‘आओ पटेल बैठो।‘ अब रंगाराम बैठते हुए बोला-‘डाक्टर, तुम्हें नेक फुर्सत मिलेगी।‘

‘हाँ ं ं ं हाँ, कहो !‘

‘अपये मन्दिर की मूर्ति चोरी हो गईं।‘

‘अरे !‘

‘हाँ !‘

‘कब ?‘

‘आज रात को। पुलिस आई है, जांच कर रही है।‘ अब रवि उनके पास आ गया, रश्मि अपने काम में लगी रही। दोनों में धीरे-धीरे बातें होने लगीं कि मरीज न सुन पायें। रंगाराम कह रहा था, ‘सुनी है कै महन्त ने तुम्हाओ और बशीर मियां का नाम लओ है।‘

‘अरे वाह ! चोरी और सीना जोरी।‘

‘कहा मतलब डाक्टर ?‘

‘मुर्तियाँ तो इसी महन्त ने चुरवाईं होंगी। विदेशों में बेच देगा। लाखों रूपये मिल जायेंगे। हम दोनों इसका विरोध करते तो हमारा नाम पुलिस से ले दिया होगा।‘

‘ज तो परेशानी होयगी।‘

‘पटेल मैं तो परेशानियों के लिए ही पैदा हुआ हूँ।‘

‘लेकिन ज कलंक ?‘

‘चिन्ता न कर पटेल, पुलिस बशीर मियां और मेरे बारे में सब बातें जानती है।‘

‘तोऊ कहा है डाक्टर ज पुलिस है काऊ की नहीं होत, खावे फित्ते।‘

‘तो क्या पुलिस हमसे भी खा जाएगी ?‘

‘सो तो नहीं खा सकत।‘

‘बस फिर क्यों चिन्ता की जाए।‘ कहते हुए रवि फिर मरीजों को देखने में लग गया। अब रंगाराम बोला-

‘भैया, मेरो नाम मति ले दिया।‘

‘अरे पटेल, कैसी बातें करते हो!‘

‘सोई तो कही। अच्छा अब मैं चलो तुम अपयें मरीज निपटाऊ। मोय नेक घरै काम है। राम राम।‘

‘राम राम पटेल।‘ जब पटेल जा चुका तो रवि अपने मरीज देखने में फिर व्यस्त हो गया। मरीज को देखते मे वह यह बात पत्नी को भी नहीं बता पाया। रश्मि चिन्तित सी हो गई तो रवि बोला- ‘चिन्तित हो गई ?‘

‘यही कि मैं आपकी बातें सब सुन रही थी, झूठा कलंक ं ं ं ?‘

‘अरे झूठा ही तो है सच्चा तो नहीं है।‘

‘हाँ यह तो है।‘

‘फिर चिन्ता की बात क्या है ?‘

‘चिन्ता क्या ? यों ही व्यर्थ की परेशानी होगी। पुलिस पूछताछ करेगी, लोग समझेंगे हम्हीं चोर हैं।‘

‘चोर ही चोर हो सकता है, लोगों की समझ को क्या ? कुछ भी समझ सकते हैं।‘ रवि की इस बात की पुश्टि रश्मि ने की।

‘महन्त अपने से बदला लेना चाहता है।‘

‘यही तो चालें चली जा रही हैं इसीलिए तो उसने ं ं ं।‘

दोनों बातें करते-करते चुप हो गये, चालों को नाकामयाब करने की सोचने लगे। रश्मि सोचने लगी, ‘बड़ा कमीना है, यह हमारे उस पड़ा ही क्यों है ? मेरा मौका लग जाए तो सुसरे को ठिकाने ही लगा दूं। जब भी वह सामने आयेगा मैं उसका सामना भी कर करूँगी या नहीं। बड़ी देर तक यही सोचती रही।

गाँव भर में यह चर्चा फैल चुकी थी। बशीर मियां से भी लोग यही कहने पहुँच गये। बशीर ने जब यह बात सुनी तो बोले-‘इसमें चिन्ता की क्या बात है ? मुर्तियाँ जिस पर मिलेंगी वही तो चोर होगा ?‘ पोथी का भाई तुलसी वहाँ बैठा था बोला, ‘जब मिलंगी तब पतो चलेगो वैसे का पतो चलतो।‘

‘अरे मूर्तियों का हम पला चलवायेंगे, वह हमें ऐसे कैसे बदनाम करना चाहता है।‘ बातों के बाद सभी के मस्तिश्क पर चिन्तन की रेखाएं उभर आईं।

दो व्यक्ति हाथों में हसिया लिए अपने पशुओं के लिए चारा लेने जा रहे थे। दोनों में बातें हो रही थीं, एक ने कहा, ‘अब तो ठन गई आदमी मर कें हटेगो। महन्त छोड़वे बारो सोऊ नाने।‘

दूसरे ने कहा-‘ठन तो गई व महन्त है बाने अच्छे-अच्छे ठिकाने लगा दये। जे काये में है।‘ अब पहला बोले बिना न रहा-‘यार कछू कह जिनको हाथ तो ज मामले में हो नहीं सकत।‘

‘ऐन न होय, अब महन्त जिन्हें फसवा के रहेगो।‘

‘बिचारे फसवा ही दये, रे अभैनों जिन्नो पुलिस नहीं आई।‘

‘यार पुलिस कच्ची बात पै नहीं आयेगी, जब पतो चलायेगो तब जिनसे बातें करेगी। पुलिस कच्चो काम नहीं कर सकत। ’

पहले ने बात की पुश्टि की - ‘अरे! जेऊ तो बड़े नेता हैं। जेल में रह आये। पुलिस सोऊ जिनसें डरपत होयगी।‘

‘अरे जनपद अध्यक्ष हैं कछू खेल नाने। सब अपये-अपये ओरे बरकाके काम करेंगे।‘

‘देखो भइया कहा होतो। वैसे भई तो बुरी।‘

‘छोड़ यार, ते करे ते भुगते, अपुन्ने तो मजूरी ही कन्नो है। जल्दी चले चलो नही ंतो रात बैल का खंगे। चारो काटनो हू तो परेगो।‘ कहते हुए दोनों ने अपनी चाल तेज कर दी।

मंथन 10

दस

रवि और बशीर मियां पुलिस के आने की प्रतीक्षा करते रहे। शायद पुलिस को ठोस सबूत नहीं मिले होंगे यही सोचते-सोचते तीसरे दिन की शाम हो गई पर कोई न आया।

दिया बत्ती का समय हो गया। एक दुबला-पतला आदमी साधारण सी वेशभूशा में रवि के सामने आ खड़ा हुआ। रवि देखता रहा यह कौन हो सकता है? वह धीमे से मुस्कराया। रवि पहचान गया और बोला, ‘हलो मिस्टर गुप्ता, आप यहाँ अनायास ?‘

‘हाँ रवि, आज मेरा मन नहीं माना सोचा बहुत दिन हो गए हैं, तुम से मिल आऊं।‘

‘अरे खड़े क्यों हो ? बैठो ना ! यार सतीश, तुम बड़े संकोची हो गए हो। पहले तो ऐसे न थे। जब घर आते थे तो खुले-खुले, पर आज बैठने के लिए कहना पड़ रहा है।‘

‘नहीं रवि, मैं सोच रहा था, इस वक्त मेरा अनायास यहाँ आना तुम्हें खल तो नहीं रहा है।‘

‘अरे हट, तुम आ गए तो मजा आ गया। कितने दिन हो गए यार !‘

‘छः वर्श बाद आ पाया हूँ अब तक भाभी भी आ गई होंगी ?‘

‘हाँ यार, तू तो आ नहीं पाया !‘

‘देख झूठ न बोल, तू भी तो मुझे बुला नहीं पाया।‘

‘तेरा कुछ पता भी था। कहाँ चला गया ? तुम्हारे पापा का इन्दौर ट्रान्सफर हो गया फिर मुलाकात न हो सकी।‘

‘तो आज आने का कारण जानना चाहते हो ?‘

‘नहीं यार, वह तो जानता हूँ कि तू ग्वालियर आया होगा, बस मित्र से मिलने चला आया। जल्दी में पत्र भी न डाल पाया होगा, बोलो।’

‘आप ठीक कहते हैं।’

रवि बोला-‘चलो उठो, पहले तुम्हारी भाभी से मुलाकात कराउंगा।। अभी-अभी घर चली गई हैं।‘

कहते हुए दोनों अस्पताल से निकल पड़े।

रास्ता चलते में सतीश बोला-‘देख रवि, मैं तो यहाँ वहाँ भटकता फिरा हूँ।‘

‘अरे !‘

‘हाँ रवि, ग्वालियर से इंदौर चला गया। बाकी पढ़ाई वहीं चली। अभी शादी हुई नहीं है। हो तो जाती पर किसी ने की ही नहीं है।‘

‘क्यों झूठ बोलता है। तेरे लिए तो उसी समय जाने कितने लड़कियों के बाप चक्कर लगाते रहते थे।‘

‘तब की बात और थी अब कोई नहीं पूछता।‘

‘क्यों ? क्या आवारागर्दी करने लग गये हो।‘

‘यही समझ लो।‘

‘तो ं ं ं तो मैं तुझे दादा भाई कहूँ।‘

‘नहीं यार, तेरे लिए तो मित्र ही हूँ।‘

‘तब तो तुझे सुधारा जा सकता है। अभी भी तुझ में अच्छी भावनायें मौजूद हैं।‘ अब तक बातों-बातों में घर आ गया। दोनों घर के अन्दर दाखिल हो गय। रवि के पिताजी एवं माताजी से बातें की। उसके बाद दोनों ऊपर पहुँचे। रश्मि रसोईघर में चली गई थी। सतीश खाली कमरा देखकर बोला-‘भाभी जी कहाँ ?‘

‘अभी आती है। हम यहीं बैठे।ं‘

‘एक मिनिट का मौन, रश्मि आ गई, रवि झट से बोला ‘ये हैं मिस्टर सतीश, मेरे साथ बी0 एस-सी0 पार्ट वन तक पढ़े हैं। दोनों ने एक थाली में खाना खाया है।‘

सतीश समझ गया कि एक ही वाक्य में रवि पत्नी को कितना क्या समझा गया। रश्मि ने हाथ जोड़ दिये- ‘नमस्ते‘।‘

‘नमस्ते।‘ दोनों हाथ सतीश के भी उठे फिर झट से बोला, ‘पहले तो रवि को ही कश्ट देता था। आज आपको भी कश्ट उठाना पड़ेगा।‘

‘यह भी कोई कश्ट है ! ये तुम्हारे मित्र हैं और मैं इनकी ं ं ं यानी मैं भी तो आपकी भाभी हुई ना।‘ अब सतीश खुलते हुए बोला-‘अच्छा भाभी जी, अब यह बतलाओ, क्या चल रहा है ?‘

‘चलता क्या ? अभी-अभी अस्पताल से आई हूँ। बस चाय रख आई हूँ।‘ कहते हुए उठी और बोली, ‘पहिले चाय ले आऊं तब बातें होंगी।‘

‘रश्मि चाय लेकर लौट आई। चाय थमा दी और बोली ‘इनके साथ सुबह से अस्पताल निकलती हूँ इनसे थोड़े आगे आगे लौट कर आती हूँ।‘

‘घर का काम ?‘

‘बड़ी भाभी करती हैं। मांजी भी मदद कर देती हैं। सुबह शाम मैं भी मदद कर देती हूँ।

‘मैंने सोचा नौकर होगा।‘

‘नौकर कहाँ ? यह गाँव है ऐसे नौकर कहाँ जो ं ं ं फिर इतने बड़े डाक्टर नहीं हैं। गाँव की सेवा कर रहे हैं।‘

‘कहीं नौकरी नहीं तलाशी ?‘ प्रश्न का उत्तर रश्मि ने ही दिया।

‘नौकरी तो मेरे मन में भी नहीं थी।‘ अब रवि बोल पड़ा, ‘मैं भी नौकरी नहीं करना चाहता। इधर बशीर मियां ने पकड़ लिया। उनके दर्शन में फंस गया।‘

‘मैं समझा नहीं यह भी कोई दर्शन है।‘

‘हाँ सतीश, वे चाहते हैं मैं इसी गाँव की सेवा करूं। फिर नौकरियां मिलती भी कहाँ हैं।‘

‘तो यह बात है।‘

‘ये भी अस्पताल में आ जाती हैं, जरा इन पर भी मेहनत पड़ती है।‘

‘यह तो बहुत अच्छी बात है।‘

रवि बोला-‘यार सतीश, यह मदद न करें तो मरीज से किसी-किसी दिन तो दिन के तीन बजे तक भी न निबट पाया करूं।‘

‘अरे वाह ! भाभी ये रही लाईफ ।‘

‘आप अपनी भी तो कहिये, बच्चे कहाँ हैं।‘

‘भाभी, बच्चे-अच्चे हैं ही नहीं।‘

‘क्यों, शादी नहीं हुई ?‘

‘हाँ।‘

रश्मि ने कहा-‘अरे अब शादी करने की देर न करनी चाहिये।‘

अब रवि बोला-‘अब बातें बन्द करो। पहिले निवृत्त हो लें फिर रात अपनी है।‘ कहते हुए रवि उठ खड़ा हुआ तो सतीश को भी उठना पड़ा।‘

रात्रिके दस बजे दोनों बिस्तर पर पहुँच गये। दोनों एक ही कमरे में सोये थे। रश्मि वहाँ बैठने आ गई थी। वह दूसरे कमरे में सोई थी।

तीनों में बातें होने लगीं। रवि कहने लगा, ‘इन दिनों तो याद बड़ी समस्याओं में फंसे हुए हैं।‘

‘डाक्टर की समस्याये ंतो मरीज का उचित इलाज ही, उस समस्या का हल हो सकती है।‘

‘यार इस सीमा का अतिक्रमण कर गया हूँ। रश्मि की वजह से एवं बशीर साहब की बातों ने मुझे राजनीति की ओर खींच लिया है।‘

‘अरे !‘

‘हाँ यार, बात ये है बशीर साहब बड़े अच्छे आदमी हैं। उनकी गरीबी और ईमानदारी ने मुझे उस ओर आकर्शित किया है। सोचता हूँ अच्छे लोगों का साथ देना नैतिकता है।‘ सतीश ने कहा-‘लेकिन रास्ता मत भूलो।‘

‘कहाँ भूल रहा हूँ ,अभी उनका चुनाव में प्रचार किया था अब फिर अपनी प्रेक्टिस शुरू कर दी है। हाँ रश्मि की आदतें बिगड़ गईं हैं।‘

रश्मि बिगड़ी-‘क्या बिगड़ गई हैं ?‘ बात को रश्मि का पक्ष लेकर सतीश ने बढ़ाया।

‘आपको भाईजान ऐसे न कहना चाहिए, हमारी भाभीजी में ं ं ं।‘

‘अरे तुम देवर-भाभी दोनों ही मुझसे लड़ने लगे। कहो तो ढंग से कह तो तो मैं अस्पताल पर जा सोता हूँ।‘ बात सुनते ही सतीश घबरा गया, बोला-‘फिर मजा न आयेगा।‘ अब रश्मि फिर बोली-

‘बताओ न क्या बिगड़ गई हूँ ?‘ अब सतीश ने फिर साथ दिया बोला, ‘कहो भाई जान डर क्यों रहे हों।‘

‘देख सतीश, मैं डाक्टरी करता हूँ। ये नेतागिरी करती है। भई पत्नी है कोई खेल नहीं है, इनका साथ तो देना ही पड़ेगा। इसी कारण कभी-कभी इनके साथ भी जाना आना पड़ता है। वैसे तुम लोग इजाजत दे दो तो अब न जाया करुंगा।‘

‘तुम जाते ही क्यों हो, भाभी कोई कम है जो तुम साथ जाते हो। रखवाली करने जाते होंगे, नारी है कहीं ं ं ं।‘

‘यह बात नहीं है सतीश ं ं ं!‘

‘तो कौनसी बात है।‘

‘देख मेरा काम ऐसा है, जिसमें भी ये मदद कर देती हैं इसलिए इनकी बातों में भी मैं शरीक हो जाता हूँ।‘

‘अरे भाभी के लिए इतना काम, घर का काम, अस्पताल का काम, फिर राजनीति ?‘

‘काय की राजनीति है बशीर मियां के साथ चली जाती हूँ।‘

‘इतना अच्छा आदमी मानती हो बशीर को ?‘

‘यार सतीश, चार दिन रह के देख ले, अच्छा न हो तो चाहे जो कर लेना।‘

‘तभी भाभी को भेज देते हो।‘

‘मैं इतना संकोची नहीं हूँ।‘

‘तब तो यार तुम प्रगति कर गए हो।‘

‘काये प्रगति हुई है, हमारे गाँव में एक मन्दिर है। उसकी मुर्तियाँ चोरी चली गई हैं। महन्त मेरा और बशीर मियां का नाम लगा रहा है। तुम प्रगति की बात करते हो, यहाँ बदनामी हो रही है।‘

‘तब तो तेरे से यार मेरी पट जाएगी। मैं दादा हूँ तू तस्कर ?‘

‘यही तो दुःख है।‘

‘क्या दुःख है ? मैं भी तो सुनूं।‘

‘यही कि मैंने यह काम किया ही नहीं है।‘

‘फिर किसने किया है ?‘

‘मेरा शक तो महन्त पर ही है। एक दिन दो विदेशी मन्दिर देखने आये थे।‘

‘इसका क्या सबूत है कि तुम ऐसा नहीं कर सकते, जब महन्त नाम ले रहा है तो उसका शक का प्रश्न पुलिस पहले तुमसे करेगी।‘

‘मैं तो पुलिस का दो दिन से इन्तजार कर रहा हूँ।‘

स्तीस ने पूछा-‘ पर ऐसा सबूत तो सोच लो जिससे पुलिस विश्वास कर ले।‘

‘बशीर साहब जनपद अध्यक्ष हैं। वे ईमानदारी के लिए सारे क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं।‘

अब रश्मि बोली-‘अरे पुलिस यह नहीं देखती। उसे तो सबूत चाहिए।‘

उत्तर में रवि बोला-‘नहीं जी , पुलिस सब जान जाती है। इसीलिए तो अभी तक आपके यहाँ नहीं आई।

‘भाई जान पुलिस जरूर आएगी।‘

‘सबूत दे दूंगा !‘

सतीश ने प्रश्न कर दिया-‘क्या सबूत दोगे ?‘

‘उन विदेशियों को पकड़ा जाए।‘

‘उन्हें, मूर्तियाँ तुम्हीं ने बेची होंगी ?‘

‘नहीं !‘

‘कौन मानेगा ?‘

‘विदेशी झूठ नहीं बोल सकते। उन्हें महन्त का भी क्या डर है ? वे मन्दिर देखने भी आये थे। नैतिकता की पुश्टि से मैं भी उनके साथ चला गया था। वे मेरे बारे में सब कुछ जान गए हैं। मेरा झूठा नाम नहीं ले सकते।‘

‘हाँ, यह बात तो हो सकती है।‘ रश्मि ने सपोर्ट किया तो सतीश बोला- ‘माना वे झूठ न भी बोलें, लेकिन वे अब पकड़े नहीं जा सकते। क्या तुमने उनका पासपोर्ट देखा था ?‘

‘देखा तो था ! वे मूर्तियों को बड़े घूर-घूर कर देख रहे थे। उस वक्त भी मुझे उन पर सन्देह हुआ था।‘

‘यदि उनके हाथ में मूर्तियाँ पहुँच गई तब तो विदेश पहुँच चुकीं। घटना को कितने दिन हो गए ?‘

‘मूर्ति चोरी की तीसरी रात है।‘ रवि ने उत्तर दिया-‘कुछ भी हो भाईजान ! बिना सबूत के किसी भी विदेशियों को नहीं पकड़ा जा सकता है।‘

‘विदेशी को नहीं पकड़ा जा सकता तो सच्चे और ईमानदार लोगों की इज्जत लूटी जा सकती है। उन्हें भी बिना सबूत के बन्द नहीं किया जा सकता !‘

‘भाईजान, कुछ भी तर्क दो पुलिस परेशान तो कर ही सकती है।‘

‘करे या न करे ! हमने तय कर लिया है कि मन्दिर की मूतिर्याँ वापिस आनी ही चाहिए ?‘

‘अगर न आई तो !‘

‘यार उन विदेशियों के अलावा मूतिर्याँ कहीं नहीं जा सकतीं। पुलिस को उनका पीछा करना चाहिए।‘

‘तुमने पुलिस को यह सूचना दी ?‘

‘नही ंतो !‘

‘फिर मूूर्तियँं कैसे मिल पायेंगी !‘

‘मैं पहल तो तब करूं जब स्थिति स्पश्ट हो जाए। पुलिस भी तो कुछ कर ही रही होगी।‘

‘देखो भाईजान, तुम्हें इस मामले में रुचि लेनी चाहिए। यदि तुम्हारा नाम झूठा न लिया गया होता तो कोई बात नहीं थी। क्यों भाभीजी, ठीक बात है ना।‘ रश्मि ने बात का समर्थन किया- ‘हाँ ये ठीक कहते हैं।‘

अब रवि बोला-‘ठीक है, आप लोगों की यह राय है तो सुबह से ही मैं आगे आ जाता हूँ।‘

अब उसने घड़ी की ओर नजर डाली बारह बज चुके थे। यह बात रश्मि ने महसूस कर ली तो बोली-‘अब बातें कल होंगी। आप भी थके होंगे, सो लीजिए।‘ कहती हुई उठ खड़ी हुई। दोनों मित्र चुपचाप पड़ गये, रश्मि वहां से चली गई।

रवि सोच रहा था- इस चक्कर में फंस गया हूँ तो स्पश्टीकरण तो देना ही पड़ेगा, मूर्तियांे को निकलवा कर छोड़ेगा तभी तो जनता की आंखें खुलंेगी।

दोनों मित्र सुबह के पांच बजे ही उठ गये। नित्य कर्म से निवृत्त होकर दोनों अस्पताल में आ गये। मरीज आने लगे। पुलिस की गाड़ी अस्पताल पर आकर रुकी। दारोगा जी और दो सिपाही गाड़ी में से उतरे। रवि समझ गया कि ये लोग मेरे पास ही आये हैं। दोनों अन्दर आकर कुर्सियों पर बैठ गये।

सतीश ने रवि की ओर इशारा कर के कहा- ‘डाक्टर तैयार हो जाओ, अब तो छोड़ो मरीज, आपको पुलिस स्टेशन चलना पड़ेगा ?‘

‘कौन मना करता है चलने को !‘

‘चलना ही पड़ेगा ?‘

‘बशीर साहब को तो बुलवा लूं।‘

अब दारोगा जी बोले, ‘आप चिन्ता न करें। हमारे एस0 पी0 साहब उन्हीं से मिलने गये ह।ैं‘

अब रवि बोला, ‘अरे! वो आ गये।‘ पुलिस की गाड़ी देखकर गाँव के लोगों का जमघट शुरू हो गया। बात फैलती गई। लोग तमाशा देखने आने लगे। बशीर मियां का भी चेहरा मुरझा गया था। वे भी आकर बैठ गये। रश्मि सब कुछ जान रही थी। चाय बनाकर ले आई। सभी ने चाय पी। रवि बातों का इन्तजार कर रहा था। चाय पिला दी गई। अब सतीश बाहर निकल आया। जहाँ सारा गाँव खड़ा था। सतीश के साथ पुलिस वाले भी निकल आये। रवि भी बिना कहे वहंा आ गया। वह नहीं समझ पा रहा था कि पुलिस मुझ से कुछ भी क्यों नहीं पूछ रही है।

‘अब सतीश रवि को सम्बोधित करके बोला-‘अच्छा रवि, अब मैं चलता हूँ, वैसे तो तुम्हें भी साथ ले चलता, पर तुमने मुर्तियाँ नहीं चुरवाई हैं यह सबूत मुझे मिल गया है।‘

‘कैसे ?‘

‘तुमसे बातें करके ! मैं सी0 आई0 डी0 इन्स्पेक्टर मिस्टर गुप्ता।‘

‘तुम सी0 आई0 डी0 पुलिस में हो ? तुम तो यहाँ चार-पांच दिन रुकने की कह रहे थे।‘

‘चार दिन का काम एक रात में हो गया।‘ कहते हुए वह पुलिस की गाड़ी में जा बैठा। उसे पुलिस की गाड़ी में बैठा देखा तो सभी पुलिस वाले गाड़ी में आ बैठे। गाड़ी स्टार्ट हो गई। रवि और बशीर साहब गाड़ी के पास पहुँचे गये। बशीर मियां पुलिस वालों से कहने लगे-‘कुछ भी हो मुर्तियाँ तो मिलनी ही चाहिये। लोगों की आंखें तो तभी खुल सकेंगी।‘ सी0 आई0 डी0 इन्स्पेक्टर सतीश बोला, पुलिस कोशिश तो कर रही है। भगवान चाहेगा तो मुर्तियाँ मिल ही जायंेगी।‘

गाड़ी चल पड़ी। सभी घटना के बदलाव की नई-नई कहानी गढ़ रहे थे। कई मामलों में कई मत थे, पर मूर्तियों के इस बारे में सभी एक मत थे कि मुर्तियाँ रवि और बशीर साहब ने नहीं चुरवाईं। ना ही इनका इसमें हाथ है।

‘भीड़ में से पोथी निकल कर बोला, ‘बशीर मिया‘, अपने मन्दिर की मूर्तियाँ निक्कनों चाहियें।‘

अब कैलाश बोला,- ‘देखो, तुम मूर्ति न निकरवा पाये तो तुम्हाओ चुनाव जीतवो बेकार है।‘

बशीर मियां ने उत्तर दिया-‘मैं वादा करता हूँ कि मुर्तियाँ निकलवा कर ही दम लूंगा। मैंने ही सी0आई0डीं0 को बुलवाया है, लेकिन तुम सब को मेरा साथ देना पड़ेगा ?‘ सभी के मुँह से निकला-‘देंगे साथ, काये न देंगे, धर्म को काम है।‘

‘उसके बाद भीड़ छटने लगी।