संगम--भाग (३) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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संगम--भाग (३)

सुबह के समय___
प्रतिमा नाश्ता लेकर आई, बोली काका नाश्ता कर लो,आज चने की दाल की पूड़ी और लौकी का रायता है साथ में लहसुन की चटनी भी है,रात में खाना तो कम नहीं पड़ा था।
हां, थोड़ा बहुत लेकिन काम चल गया था, दीनू बोला।
ऐ सुनो....
श्रीधर ने नहीं सुना___
प्रतिमा ने आवाज दी,ऐ तुम बहरे हो क्या?
नहीं,मेरा नाम ऐ नहीं है,श्रीधर है,श्रीधर बोला।
अच्छा जो भी तुम्हारा नाम है,तुम मेरे साथ घर के अंदर चलो और तुम खाना वहीं खा लिया करो, काका बेचारे भूखे रह जाते हैं,प्रतिमा बोली।
श्रीधर खड़ा रहा___
अब चलो,मेरा मुंह क्या देख रहे हो,प्रतिमा बोली।
पहले कहो कि खाना खाने अंदर चलो, श्रीधर बोला।
प्रतिमा खीज पड़ी, हां महाराज जी घर के अंदर पधारिए,भीतर नाश्ता आपका इंतजार कर रहा है।
हां,अब ठीक है, श्रीधर बोला।
हां, भाई बहुत एहसान होगा, मुझ पर जो तुम मेरा पकाया हुआ भोजन करोंगे।
श्रीधर अंदर गया,
घर को बहुत ध्यान से देखने लगा,घर अंदर से बहुत सुंदर था,बीच में आंगन और अगल-बगल चारों दिशाओं में कमरे,
प्रतिमा उसे रसोईघर के बरामदे में ले गई और बोली, यहां बैठ जाओ।
तभी दूसरे कमरे से मां की आवाज़ आई, पूछा कौन आया है,प्रतिमा.......
प्रतिमा बोली, मां श्रीधर हैं,शाम को दोनों के लिए खाना कम पड़ गया था तो मैंने श्रीधर को यहीं बुला लिया।
ठीक है, खाना अच्छे से खिला देना, सियादुलारी बोली। सियादुलारी वैसे दिल की बुरी नही है,बस अपने बेटे से परेशान रहती है इसलिए इतना कुड़-कुड़ करती है,आलोक आए दिन चोरियां करता है घर पर, उसकी संगत भी अच्छी नहीं है, अभी सिर्फ सत्रह साल का है लेकिन परसों रात घर आया था तो सियादुलारी को शराब की बू रही थी उससे, लेकिन वो टाल गया, मास्टर जी भी बहुत परेशान हो गये हैं उससे, कभी तो बता देती है और कभी कभी छुपा जाती है,क्या करें मां जो ठहरी, ममता के आगे विवश हो जाती है।
प्रतिमा ने श्रीधर को बिछौना दिया और वो बिछाकर वहीं बैठ गया।
तब तक प्रतिमा नाश्ता ले आई।
लो,खाओ, कुछ जरूरत हो तो बता देना, ज्यादा संकोच मत करना।
प्रतिमा बोली।
जब श्रीधर खा चुका तो प्रतिमा बोली, तुम बहुत अकडू हो, मैं तुमसे बड़ी हूं, और तुम मुझसे कैसे बात करते हो, वैसे तुम्हारी उमर क्या होगी?
मैं सोलह साल का हूं,श्रीधर बोला।
अच्छा जी, मेरी उमर बीस है तो तुम मुझसे चार साल छोटे हो।
तो क्या हुआ? तुम मुझ पर धौंस जमाओगी,श्रीधर ने जवाब दिया।
भलाई का तो जमाना ही नहीं है,क्यो मैं तुमसे अपना सिर फोड़ रही हूं,खाना खा लिया ना,अब जाकर अपना काम करो, प्रतिमा बोली।
और श्रीधर चला गया____
अब रोज का यही क्रम बन गया,श्रीधर आता प्रतिमा उसे खाना खिलाती__
अब मास्टर किशनलाल,श्रीधर को रोज पढ़ाने लगे,श्रीधर सारी चीज़ें आसानी से समझ लेता,दीमाग का तेज था लेकिन उसे संस्कृत में परेशानी होती थी,वो भी संस्कृत व्याकरण में सबसे ज्यादा, खासकर रुप याद करने में,जब बहुत ज्यादा परेशान हो गया तो मास्टर जी से बोला___
मास्टर जी और सब मैं आसानी से पढ़ लेता हूं लेकिन संस्कृत मेरे बस की नहीं है इसका कोई और विकल्प हो तो बताए__
मास्टर जी हंसे और बोले, बेटा संस्कृत तो पढ़नी पड़ेगी,तुम ऐसा करो,प्रतिमा से पढ़ो ,संस्कृत में वो बहुत होशियार थी उसके हमेशा संस्कृत में नब्बे-पंन्चानवे प्रतिशत अंक आते थे।
मास्टर जी ने प्रतिमा को आवाज दी__
प्रतिमा बेटी जरा बाहर तो आना...
प्रतिमा बाहर आकर बोली, जी पिता जी!!
ऐसा करो तुम श्रीधर को अबसे संस्कृत पढ़ा दिया करो, मास्टर जी ने प्रतिमा से कहा__
इसे, पिता जी, बहुत ही सिरफिरा है ये, मैं नहीं पढ़ा सकती इसे,प्रतिमा बोली।
मास्टर जी हंसे और बोले, पढ़ा दे बेटी किसी का भला हो जाएगा, मास्टर जी के समझाने पर प्रतिमा मान गई और पढ़ाने के लिए तैयार हो गई।
अब श्रीधर प्रतिमा से प्रतिदिन पढ़ने आने लगा,इस बार संस्कृत में भी उसके अच्छे अंक आए__
फिर एक दिन श्रीधर, प्रतिमा से बोला,अब हम अच्छे मित्र बन गये__
नहीं, मैं तुमसे बड़ी हूं, तो हमारे बीच मित्रता नहीं हो सकती, मित्रता तो हमउम्र लोगों के बीच होती है,प्रतिमा बोली।
तो क्या हुआ,राधा भी तो कान्हा से बड़ी थी लेकिन उनकी मित्रता को तो लोग आज भी पूजते हैं, उनकी भक्ति करते हैं,आज भी लोग राधा-कृष्ण जपते हैं, मित्रता का रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है जो कि सिर्फ त्याग की बोली बोलता है, अगर मित्रता करके में तुमसे कुछ पाना चाहूं तो कैसी मित्रता और कृष्ण भगवान थे चाहते तो राधा से ब्याह कर लेते लेकिन उन्होंने मित्रता के रिश्ते को कलंकित नहीं होने दिया, हमेशा पवित्र रखा जिसे आज भी संसार पूजता है, कृष्ण की इतनी रानियों को वो स्थान नहीं मिला जो स्थान राधा को मिला क्योंकि वो मित्रता थी जिसमें राधा ने कृष्ण को संसार की भलाई के लिए त्याग दिया और उनके कर्त्तव्यों का निर्वाह करने के लिए कहा तो मित्रता कभी छोटी या बड़ी नहीं होती वो सिर्फ पवित्र और त्यागमयी होती है,अब बोलो मित्र क्या कहती हो.….
और प्रतिमा मुस्करा दी।
इसी तरह दिन गुजर रहे थे, फिर एक दिन बहुत अच्छे घर का रिश्ता आया,प्रतिमा के लिए__

क्रमशः___
सरोज वर्मा___🥀