नई चेतना - 27 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नई चेतना - 27

डॉक्टर माथुर को यह उम्मीद थी कि लालाजी अमर के बारे में पूछ कर उससे मिलने के लिए बेताब हो जायेंगे लेकिन धनिया के बारे में पूछ कर सुशिलाजी ने डॉक्टर माथुर के ह्रदय में अपनी इज्जत बढ़ा दी थी । उन्हें अमर के कथन पर अब यकीन होने लगा था ।

संयत स्वर में माथुरजी ने लालाजी को बताया ” धनिया अब बिलकुल ठीक है लालाजी ! आप चाहें तो अब धनिया से मिल सकते हैं । ”

अभी लालाजी कुछ जवाब देते कि , सुशिलाजी पहले ही बोल पड़ीं ” बहुत बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहब ! ” फिर लालाजी से मुखातिब हुयीं ” चलें वहीँ पर जहां धनिया है । शायद अमर भी वहीं हो क्यूंकि बाहर तो दिखाई नहीं पड़ा ।”

डॉक्टर साहब सुशिलाजी की व्यग्रता के पीछे छिपी ममता को महसूस कर मुस्कुरा उठे थे । लालाजी से हाथ मिलाकर उन्हें छोड़ने कक्ष के दरवाजे तक आते हुए माथुरजी ने उन्हें सामान्य कक्ष तक जाने का रास्ता समझा दिया ।

सीढियों से होकर लालाजी और सुशिलाजी पहली मंजिल पर स्थित सामान्य कक्ष की ओर बढ़ रहे थे । रमेश भी गाड़ी पार्क करके उनके साथ ही आ गया था । पता नहीं कब लालाजी को उनकी जरुरत पड़ जाए ।
लालाजी ने सुशिलाजी के साथ ही सामान्य कक्ष में प्रवेश किया । सीधे चलते हुए नर्सों की मेज के पास पहुंचे और धनिया के बारे में पूछा । नर्स ने अंतिम बेड की तरफ ईशारा कर दिया जहां धनिया अभी अभी आकर लेटी थी ।

एक नर्स उसे दवाई खाने के लिए दे रही थी । दवाई खाने के लिए धनिया जैसे ही उठकर बैठी लालाजी पर नजर पड़ते ही हडबडा कर बेड से नीचे उतरने लगी । नर्स उसे दवाई खाने की हिदायत देकर दुसरे मरीज के पास चली गयी ।

बाबू की चूँकि पीठ लालाजी की तरफ थी वह लालाजी को देख नहीं पाया था । पहले तो उसने धनिया को संभाला और फिर मुड़ते ही उसकी नजर लालाजी पर पड़ गई । लालाजी पर नजर पड़ते ही वह भी सहम कर उठ खड़ा हुआ । धनिया अब तक उठ कर खड़ी हो चुकी थी । आगे बढ़कर उसने लालाजी को नमस्ते कहा और सुशिलाजी के कदमों में झुक गयी ।

सुशिलाजी ने बड़े स्नेह से धनिया के दोनों कन्धों को पकड़ कर उठाया और अपने गले से लगा लिया ।

उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े थे । भर्राए गले से सुशिलाजी ने धनिया से पूछा ” बेटी ! मेरा अमर कहाँ है ? कैसा है ? ठीक से तो है न ? ”

इधर बाबू ने अपनी पगड़ी लालाजी के कदमों में रख दी और रोते हुए बोला ” मालिक ! मैंने पूरी कोशिश की वैसा ही करने की जैसा आपने कहा था । लेकिन मेरे नसीब ने मुझे दगा दे दिया । हम अपने मकसद में कामयाब होने ही वाले थे कि छोटे मालिक वहां पहुँच गए । हमें माफ़ कर दीजिये मालिक । हमें एक मौका और दीजिये । हम यहाँ से निकलकर हमेशा हमेशा के लिए दूर चले जायेंगे । हमें एक मौका और दीजिये मालिक !” बाबू गिडगिडा उठा था ।

आसपास के मरीजों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था । सभी अपनी अपनी जगह से ही उत्सुकता से सब कुछ देख रहे थे और समझने का प्रयास कर रहे थे ।

सुशिलाजी की बात का भला धनिया क्या जवाब देती ? वह खामोश रही । आगे बढ़कर बाबू ने ही बात संभाली ” मालकिन ! छोटे मालिक अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ से निकले हैं । अगर वो यहाँ होते तो मैं शायद बड़े मालिक से किये गए वादे को नहीं निभा पाता । इसीलिए मैंने ही उन्हें यहाँ से जाने के लिए कहा था । मुझे नहीं पता था मालकिन कि आप लोग यहाँ आ रहे हैं । ”

” लेकिन वह कहां गया है ? ” सुशिलाजी ने व्यग्रता से पूछते हुए बाबू का गिरेबान पकड़ कर उसे झिंझोड़ डाला था ।

हतप्रभ बाबू के मुंह से धीमे स्वर में आवाज निकली ” मुझे नहीं पता मालकिन छोटे मालिक कहाँ गए ? ”

” क्या ? ” सुशिलाजी के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा , ” तुम्हें नहीं मालूम ? ”

अब सुशिलाजी खुद पर काबू नहीं रख सकीं । उनके पैर शिथिल पड़ गए और इससे पहले कि कोई कुछ समझता वह धडाम से नीचे गिर पड़ीं ।

सुशिलाजी के नीचे गिरते ही नर्सें दौड़ पड़ीं । लालाजी ने नर्सों की मदद से सुशिलाजी को पास ही ख़ाली पड़े बेड पर लिटा दिया । उनकी साँसे तेज हो रही थीं । लालाजी को नजदीक देख सुशिलाजी ने पानी के लिए इशारा किया । एक नर्स दौड़कर पानी ले आई । दूसरी ने नब्ज टटोला । नब्ज उसे डूबती हुयी सी लगी ।

परेशान नर्स ने तुरंत ही डॉक्टर को फोन कर सारा हाल बता दिया । डॉक्टर माथुर और उनके सहयोगी डॉक्टर रस्तोगी ने तुरंत ही कक्ष में पहुँच कर सुशिलाजी का परिक्षण किया ।

डॉक्टर के निर्देश पर आनन फानन सुशिलाजी को गहन चिकित्सा कक्ष में दाखिल करा दिया गया क्योंकि डॉक्टर के मुताबिक उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और ओक्सिजन का इंतजाम सामान्य कक्ष में नहीं था ।

गहन चिकित्सा कक्ष में सुशिलाजी का इलाज चल रहा था और उसके दरवाजे के बाहर सभी खड़े उनकी बेहतरी के लिए इश्वर से प्रार्थना कर रहे थे ।
ड्राईवर रमेश की आँखों में बाबु के लिए रोष स्पष्ट झलक रहा था । जबकि बाबु और धनिया आँखों में आंसू लिए गमगीन चेहरे के साथ दरवाजे पर टकटकी लगाये खड़े थे ।

लगभग आधे घंटे बाद डॉक्टर माथुर कक्ष से बाहर निकले । उन्हें देखते ही लालाजी तुरंत उनकी तरफ बढे । डॉक्टर ने उन्हें धीरज बंधाते हुए चिंता न करने की सलाह दी । उनके मुताबिक सुशिलाजी को जानलेवा दिल का दौरा पड़ा था । और तुरंत ही इलाज शुरू हो जाने जी वजह से स्थिति पर काबू पाया जा सका और अब उनकी हालत खतरे से बाहर थी ।

धनिया आकर अपने बेड पर लेट गयी थी । वह और ज्यादा खड़ा नहीं रह पाई थी और सामान्य कक्ष तक अकेले ही आ गयी थी ।

बाबु और रमेश गहन चिकित्सा कक्ष के सामने ही एक कुर्सी पर बैठे लालाजी के सामने हाथ बांधे खड़े थे ।
लालजी बुरी तरह से टूट चुके थे ।

अमर से मिलने की आस लिए इतनी दूर आये लालाजी के साथ नियति कौनसा खेल खेल रही थी यह लालाजी की समझ से भी परे था । बेटा तो नहीं मीला उलटे अब सुशिलाजी की चिंता ने उनकी हिम्मत को चकनाचूर कर दिया था ।

अपने दिल को समझाते लालाजी मजबूत दिखने का प्रयास करते रहे लेकिन ज्यादा देर तक खुद को संभाल नहीं पाए और उनकी भी पलकें गीली हो गयीं ।

तभी एक जूनियर डॉक्टर कुछ दवाइयां लिखी पर्ची हाथ में थामे बाहर आया और लालाजी को थमाते हुए दवाइयां शीघ्र लाने का अनुरोध किया ।

रमेश को पर्ची के साथ ही नोटों की एक गड्डी देकर जल्दी से दवाइयां खरीद लाने का निर्देश दिया । रात के नौ से अधिक का समय हो चला था । शहर में अब दुकानों के बंद होने समय हो रहा था । अतः लालाजी के हाथ से दवाइयों की पर्ची और पैसे लेकर रमेश तुरंत ही कार की तरफ बढ़ गया । अगले ही मिनट उसकी कार तेजी से शहर के बाजार की तरफ बढ़ी जा रही थी ।