Aapki Aaradhana - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

आपकी आराधना - 15

भाग -15



" अरे! आराधना जी, कहाँ खोयी हो आप? मनीष जी आपको बात करने के लिये तड़प रहे हैं। अपना मोबाइल कहाँ भूल आयी आप?
बाहर से आते हुए अमित ने कहा।

उसकी बातों ने आराधना का ध्यान भंग किया।

" ओ.. मै तो मोबाइल किचन मे ही भूल आयी "
आराधना ने आसपास नजर दौड़ाते हुए कहा।

अमित ने अपना मोबाइल उसे थमाया और कहा कि वो बाहर ही खड़ा है।

" हेलो मनीष जी, सॉरी वो मै मोबाइल किचन मे रखकर..."

" कहाँ खो गयी थी मेरी आरू? मै तो घबरा ही गया था
आखिर कहाँ चली गयी तुम ऐसा सोंचने लगा "

" अच्छा 15 मिनट मे आपकी साँसे फूलने लगी और मै 4 से 5 दिन कैसे गुजारूँगी आपके बिना? ये कभी सोंचा है आपने? मै अकेले कैसे रह पाऊँगी ? "
आराधना ने मनीष को शिकायत भरे अंदाज में जल्दी से जल्दी लौट आने को कहा।

मनीष ने भी उसे समझाते हए कहा कि जब मम्मी उनके प्यार को स्वीकार कर सकती है तो उन्हे भी उनकी बातों को खुशी-खुशी मान लेनी चाहिए और वैसे भी उसके परिवार वाले कुछ अच्छा ही सोंच रहे होंगे। आराधना ने उसकी बातों मे हामी भरते हुए इसे ही ठीक समझा। मनीष ने भी उसका मन बहलाने के लिए उसे एक गाना गाकर सुनाया।

" हो चांदनी जब तक रात
देता है हर कोई साथ
तुम मगर अंधेरो में
ना छोड़ना मेरा हाथ
जब कोई बात बिगड़ जाये
जब कोई मुश्किल पड जाये
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा
ना कोई है, ना कोई था
जिन्दगी में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा "

न जाने क्यों आराधना की आँखे छलकने लगे उसे एक पल ऐसा लगा जैसे वह मनीष के कंधे पर सिर रखकर सो जाये और इसी तरह उसकी बाहों मे सारी उम्र गुजर जाये। एकाकक उसे याद आया अमित तो बाहर ही खड़ा है और वह हड़बड़ाते हुए बाहर गयी। शाम ढल चुकी थी आराधना ने मोबाइल लौटाते हुए अमित को धन्यवाद कहा और अंदर से दरवाजा बंद किया। घर की ये दीवारें सूनेपन का एहसास कराती और ऐसा लग रहा था मानो ये चौखट मनीष के इंतजार मे ही एक जगह स्थिर हो गये हो। आरती का दीया जलाकर वह मन ही मन प्रार्थना करने लगी काश ये 5 दिन कुछ लम्हों मे ही गुजर जाये और वो घड़ी आ जाये जब वो मनीष के साथ अग्रवाल हाऊस की चौखट पर अपने कदम बढ़ाये।

रात के 9 बज रहे थे दोपहर के बचे खाने से ही उसने काम चलाया और याद से कमला आंटी का दिया हुआ काढ़ा उसने पीया। अपने पेट पर हाथ फेरते हुए वह मन ही मन सोचने लगी कितना नसीब वाला है यह नन्हा मेहमान, अग्रवाल हाऊस मे जब इसकी किलकारियाँ गूँजेगी मेरा बचपन तो फिर से लौट आयेगा।

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2 दिन गुजर गये थे और अब तक न तो मनीष का कॉल लगा और न ही किसी जरिये उससे बात हो पायी। आराधना ने अग्रवाल अंकल से ही हाल-चाल जाना और उसे पता चला कि मनीष के मोबाइल मे कुछ खराबी आ गयी है। सगाई की तैयारियों मे व्यस्त होने से ही वे इस ओर ध्यान नही दे पा रहे।
शुक्रवार का दिन दोपहर के 2 बज रहे थे लंच के बाद बिस्तर पर लेटी हुई आराधना के मन मे सब कुछ उथल पुथल ही चल रहा था, न जाने क्यों वह अंदर से खुश नही थी, जब तक मनीष से बात न हो जाये उसे चैन कहाँ। उसने मोबाइल उठाया और मनीष का नंबर डायल ही करने वाली थी कि अचानक उसके पेट मे धीमा-धीमा दर्द उठने लगा। उसे लगा शायद ये गैस्ट्रिक की वजह से हो, किचन मे जाकर उसने ईनो का एक पैकेट खोला और पानी मे घोलते ही उसे गटक गयी।
उस पर कोई प्रभाव न पड़ा दर्द तो अब बढ़ता ही गया और वह बेचैन होते गयी। हड़बड़ाते हुए वह किचन से बाहर आई और जैसे-तैसे उसने अमित को कॉल किया। पहली बार मे तो अमित ने कोई जवाब ही नही दिया शायद किसी मीटिंग मे हो। आराधना का दर्द अब चरम सीमा पर पहुँच गया था और वह बिस्तर पर ही छटपटाने लगी। उसमे इतनी हिम्मत न रही कि वह बाहर निकलकर किसी से मदद की गुहार करें। तभी उसके मोबाइल का रिंगटोन बजा और वह उसे पकड़ने की कोशिश मे बिस्तर से गिर ही पड़ी। दर्द से कराहते और चोटिल अवस्था मे उसने कॉल रिसीव किया

" अमित त.. त.. जी "

" आराधना जी, क्या हुआ ? आप ठीक तो हो ना "

" अमित जी मेरे ..मेरे पेट मे बहुत द.."

" हाँ.. हाँ आपके पेट मे क्या? "

" पेट मे बहुत दर्द हो रहा, प्लीज आप अभी..."

" हाँ ..हाँ मै डॉक्टर के साथ घर आता हुँ डोन्ट वरी "

असहनीय पीड़ा जिसकी वजह से आराधना कभी खड़े होने की कोशिश करती तो कभी जमीन पर छटपटाती। लगभग आधे घण्टे बाद अमित डॉक्टर सिन्हा को घर लेकर आया। उसने पँखे की स्पीड बढ़ाई और उसके लिये ठंडा पानी लेकर आया। डॉक्टर ने तत्काल राहत के लिए उसे इंजेक्शन दिया इस प्रकार आराधना का दर्द अब कम होने लगा। डॉक्टर ने बताया हो न हो ये किसी मेडिसिन की साइड इफेक्ट हो या फिर कोई और वजह। उन्होने समझाते हुए कहा चूंकि ये प्रेग्नेंसी का मामला है इसलिए वे शाम को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल चले जायें वहाँ स्री विशेषज्ञ डॉक्टर लकड़ा उनकी अच्छे से मदद कर पाएँगी। डॉक्टर के जाने के बाद लगभग आधे घण्टे तक अमित आराधना के सिराहने ही बैठा रहा और उसने कई बार अग्रवाल अंकल और मनीष को कॉल करने की कोशिश की लेकिन उसे भी असफलता ही हाथ लगी।

" थैंक यू अमित जी, अगर आप डॉक्टर को नही लाते तो "
आराधना ने नम आँखों से देखते हुए कहा।

" अरे! इसमे थैंक यू वाली क्या बात जी? आप बस अभी रेस्ट कीजिए "

" अग्रवाल हाऊस मे सब कुछ ठीक तो होगा न अमित जी, कोई फोन क्यो नही उठा रहे? "

" डोन्ट वरी आराधना जी, बिजी होंगे न किसी काम मे। आप शाम को रेडी रहना 6 बजे तक हॉस्पिटल पहुँच ही जाना है। एक बार मनीष जी ने बताया था आप चेकअप के लिये डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल ही जाती हैं न ? "

" हाँ अमित जी, लगभग 3 से 4 बार तो वहीं जाना हुआ है "

" वेरी गुड। वैसे डॉक्टर लकड़ा का काफी नाम है गरियाबंद मे, ठीक है फिर चलते हैं और हाँ आप अपनी सारी मेडिसिन साथ ही रख लेना "

ऐसा कहते हुए अमित चला गया।

आराधना के माथे पर चिंता की लकीरें थी रह रहकर उसके मन मे ख्याल आता रहा। मनीष जी ने अब तक उससे बात नही की, हाल- चाल तक नही पूछा, कोई नाराजगी नही फिर भी ऐसा बर्ताव क्यों? और आज फिर अचानक से इस असहनीय पीड़ा का क्या मतलब था? उसने तो कोई नयी मेडिसिन नही ली जिसका कोई साइड इफेक्ट हो।

क्रमशः.......


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