ये कैसी राह - 19 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसी राह - 19

भाग 19

आपने अभी तक पढ़ा की अनमोल हॉस्टल छोड़ कर अपने ही बैच के योगेश के साथ शिफ्ट हो गया। जब परीक्षा खत्म होने के बाद भी अनमोल नहीं आया तो अरविंद जी को थोड़ी सी फिक्र होने लगी की आखिर अनमोल आ क्यों नहीं रहा है ?

अब वो बिल्कुल भी इंतजार के मूड में नहीं थे । उन्होंने अनमोल को फोन किया और कहा की तुरंत घर आओ दादी तुम्हारे लिए परेशान है; वरना मै वहां खुद ही आ जाता हूं। फिर तुम्हे लेकर आता हूं। अनमोल अब विवश था । उसे घर जाना ही होगा। पापा से अनमोल ने कहा, "आप मत आइए पापा मै आ जाता हूं।"

इसके बाद अनमोल कुछ सामान लेकर घर आ गया। मां ने इतने समय बाद अपने लाल को देखा था। आंखे स्वतः ही डबडबा गई उसे गले लगाते ही।

परी भी भाई को देख कर बेहद खुश हुई। घर पहुंचने में ही अनमोल को देर शाम हो गई थी। अनमोल के आने की सूचना ससुराल में रह रही हनी और मनी को भी हो गई। वे भी भाई को देखने और मिलने के लिए परेशान थी।

हनी ने जवाहर से कहा,

"पापा..! अनमोल आया है कल बुला लेते है।"

पर जवाहर जी ने ये राय दी और कहा,

"बेटा..! अनमोल को फिर कभी बुला लेना कल तुम दोनों बहन बाल और गोविन्द को साथ लेकर चली जाओ। सभी से मुलाकात हो जाएगी। तुम दोनों को मां - पापा से मिले भी काफी दिन ही गया है।"

हनी और मनी दोनों खुश हो गई मायके जाने के नाम से।

दूसरे दिन सुबह ही जल्दी - जल्दी सारे काम निपटा कर हनी और मनी तैयार हो गई। बाल और गोविन्द ने छुट्टी ले ली। चारो खुशी - खुशी अरविंद जी के घर पहुंच गए।

बिना किसी सूचना के बेटी - दामाद को देख कर अरविंद और सावित्री खुश हो गए। पूरे घर में जैसे त्योहार का माहौल हो गया। हनी और मनी अनमोल के लिए गिफ्ट में ब्रांडेड घड़ी ले आई थी। सब बहुत खुश थे। शादी के बाद पहली बार सब इक्कठा हुए थे।

अरविंद जी ने जवाहर जी को फ़ोन कर उलाहना दिया कि तेरा भी तो बेटा आया है तुम दोनों क्यों नहीं आए?

जवाहर जी ने कहा,

"अभी तो बेटा है ना आता हूं किसी दिन और हां याद रख अनमोल के जाने के पहले एक दिन तुम सब को मेरे यहां खाने पर आना है।"

अरविंद जी ने हामी भर दी कि जरूर आयेंगे।

इन सब के बीच अनमोल बहुत खुश नहीं दिख रहा था। वो बस एक फॉर्मेलिटी कर रहा था सब के साथ। उसका पूरा ध्यान अपने आश्रम और गुरुजी पर था। पर वो जाहिर नहीं होने देना चाह रहा था।

रात में हनी मनी अपने ससुराल चली गई। अनमोल की दिन - चर्या पूरी तरह बदल गई थी। अब वो सुबह पढ़ने की बजाय माला जपने बैठ जाता। हमेशा शांत रहने वाला अनमोल अगर कोई शोर करता या टोक देता तो नाराज़ हो जाता। उसे अच्छा नहीं लग रहा था।

जब अरविंद जी ने मां को गांव से बुलाने को कहा तो वो खुद तैयार हो गया दादी को लेने जाने के लिए।

अनमोल गांव गया तो था दादी को लेने पर उसे वापस

घर आने का दिल नहीं किया। वो दादी के ले कर आने

कि जगह खुद ही वहीं रुक गया।

अनमोल को दादी के पास रहना हमेशा ही अच्छा लगता

था। पर अब यहां की शांति कुछ ज्यादा ही भा रही थी।

यहां दादी उसे रोकती - टोकती नहीं थी। उसकी सुबह

जप से शुरू होती, और जप से ही ख़तम होती। दादी प्रसन्न होती की उनका पोता धर्म - कर्म के रास्ते पर चल रहा है। भोली - भाली दादी को ये आभास भी नहीं था कि ये रास्ता उसे सब से दूर ले जाने वाला है।

अरविंद जी और सावित्री के बार - बार फोन करने के बाद भी अनमोल दादी को लेकर नहीं आया । आज - कल करते करते लगभग पूरी छुट्टी समाप्त हो गई। हनी और मनी इस इंतजार में ही रह गई की भाई गांव से आए तो उसे अपने पास बुलाए। सावित्री की ममता हिलोरें लेती रह गई कि बेटा पास रहता तो उसे अपने हाथ से बना खिला कर अपनी ममता को संतुष्ट कर पाती।

कानपुर जाने के दो दी पहले अनमोल दादी को लेकर आया। आते ही अपनी जाने की तैयारी में लग गया।

अरविंद जी के लिए यही समय सबसे कठिन होता। फिर

से फीस की व्यवस्था करनी थी। अनमोल के आने की सुन कर हनी मनी ने फोन कर भाई को बुलाया पर समय ना होने का वास्ता दे कर अनमोल मिलने नहीं गया। बोला,

"दीदी..! मुझे अपने जाने की ढेर सारी तैयारी करनी है आप दोनों ही आ जाओ।

भाई से मिलने का लोभ दोनों बहने संवरन ना कर सकी

और मिलने आ गई। उन्हे भाली - भांति अपने पिता की

आर्थिक स्थिति का भान था। वो साल भर में थोड़ा थोड़ा

बचा कर जो रकम इक्कठा की थी बड़ी मान मन्नोवल के

बाद पिता को दी।

अरविंद जी ने भी इस शर्त पर लिया की जैसे ही अनमोल की पढ़ाई पूरी हो जाएगी । ये पैसा सूद समेत उन्हे वापस लेना होगा। इस कठिन समय में बेटियो के द्वारा किया गया मदद माता पिता के दिल को छू गया।

अरविंद जी ने फोन कर जवाहर जी से बात कर

हनी,मनी को रोक लिया। बोले जब अनमोल चला जाएगा तब इन्हे भी मै पहुंचा दूंगा।

जवाहर जी सहर्ष तैयार हो गए। "इसमें कौन सी पूछने वाली बात है। तेरी ही तो बेटियां है। मुझसे पहले तेरा हक़ है। जब तक जी चाहे तब तक रख। "

तीनों बहनें अपने प्यारे भाई के साथ बेहद खुश थी बचपन की सारी यादे ताजा की जा रही थी। चारो साथ साथ ही सोए। सुबह जाना था।

अरविंद जी भी साथ में जाने को तैयार थे कि हॉस्टल शिफ्ट करना होगा। तू परेशान हो जाएगा। अनमोल

पापा को कैसे बताता की अब वो हॉस्टल में नहीं रहता।

वो साथ जाते तो उन्हे पता चल जाता । इसलिए जोर

देकर अनमोल ने पापा को जाने से रोक दिया । बोला,

"वहां दोस्त है कोई प्राब्लम नहीं होगी।"

इस पर पापा ने हंस कर कहा,"तेरे दोस्त..! तू किसी से बात भी करता है जो तेरे दोस्त है।

अनमोल ने कहा,

"हां पापा ..! साथ रहते रहते कुछ लड़को से परिचय हो गया है।"

अनमोल सब को उदास कर चला गया।

कानपुर पहुंच कर अनमोल योगेश और बाकी साथियों के रंग में पूरी तरह रंग गया। समय बीतता रहा ।अब उसका रुझान पढ़ाई से ज्यादा आश्रम और जप में हो गया था। कुशाग्र बुद्धि का अनमोल थोड़े समय पढ़ कर भी अच्छे मार्क्स ले आ रहा था।

इन दो सालों में अनमोल पढ़ाई के नाम पर एक दो बार

घर गया वो भी बस दो चार दिन के लिए। अरविंद जी को कानपुर नहीं आने दिया ये कह कर की, "पापा अब मै बड़ा हो गया हूं । आप क्या करेंगे आ कर । यहां किसी के पापा नहीं आते आप भी मत आइए।"

पढ़ाई का आखिरी सेमेस्टर था। अब प्लेसमेंट की बारी

थी अरविंद जी सारे अरमां अब पूरे होने वाले थे। वर्षों की तपस्या अब पूरी होने वाली थी। वो सोच रहे थे अच्छा पैकेज मिल जाएगा तो जो कर्ज उन्होंने पढ़ाई के लिए लिया है वो अदा हो जाएगा। रोज ही बड़ी - बड़ी कंपनिया आती और लाखो के पैकेज पर लड़को को सेलेक्ट कर लेती।

पर अनमोल को इन सब से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था । वो हर ऑफर को ये कह कर ठुकरा देता की अभी उस इससे भी ज्यादा का पैकेज मिलेगा।

अब ज्यादा कंपनिया नहीं आ रही थी। अरविंद जी की

चिंता बढ़ती जा रही थी।

लास्ट में उसे एक मल्टी नेशनल कंपनी ने सेलेक्ट कर लिया। अच्छी सैलरी भी दे रहे थे। अनमोल वहीं से बैंगलोर चला गया ।

 

अनमोल की आगे की जीवन यात्रा पढ़िए अगले भाग में।