ये कैसी राह - 20 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसी राह - 20

भाग 20

अनमोल का प्लेसमेंट हो गया था। वो बंगलूरू चला गया

था। घर में सभी को उसकी नौकरी की खुशी थी, पर बिना घर आए, बिना सब से मिले चला जाना परिवार के सभी सदस्यों को बहुत ज्यादा अखर रहा था। अरविंद जी किसी से कुछ नहीं कहते पर अनमोल के अंदर जो परिवर्तन आ रहा था वो उन्हे अच्छा नहीं लग रहा था। ये परिवर्तन एक अनजाने डर को जन्म दे रहा था। पर बार बार वो अपने इस अंदेशे को मन से झटकने का प्रयास करते। अरविंद जी खुद को दिलासा देते की नहीं ये सिर्फ और सिर्फ उनके मन का वहम है।

इधर अब तक परी का बी. एड. पूरा हो गया था। वो उसी स्कूल में पढ़ाने लगी थी , जहां उसकी और अनमोल की पढ़ाई हुई थी। वहां की प्रिंसिपल बहुत खुश थी कि उनकी होनहार शिष्या उनके स्कूल में बच्चों को पढ़ाएगी।

अनमोल बंगलूरू में जा कर जैसे सब को भूल गया। खुद तो कभी फोन करता नहीं। घर वाले करते तो व्यस्तता की बात कर जल्दी ही बात समाप्त कर देता। परिवार वाले जब उलाहना देते तो कहता नई - नई नौकरी है समझने और जिम्मेदारी पूरी करने में थक जाता हूं।

बंगलूरू में भी जिस आश्रम से अनमोल जुड़ा था, उसकी ब्रांच थी। सिर्फ बंगलूरू में ही नहीं लगभग देश विदेश सभी बड़े शहरों में उस संस्था की ब्रांच थी। अब जैसे ही समय मिलता आश्रम चला जाता। उसके साथ के योगेश और बाकी लड़कों ने भी बंगलूरू में ही जॉब लिया था। उनका पूरा कानपुर वाला ग्रुप यहां भी आ गया था। सब मिल कर यहां भी पहले आश्रम फिर उसके बाद ही नौकरी में ध्यान दे पाते। उनकी पहली

प्राथमिकता माला जाप और आश्रम में प्रवचन सुनने

जाना ही होता।

अरविंद जी के ऊपर कर्ज का भार बढ़ता ही जा रहा था। उन्हें उम्मीद थी कि अनमोल सैलरी मिलते ही रुपए

भेजेगा । पर इसी इंतजार में धीरे - धीरे कर के तीन महीने बीतने को हुए ना तो अनमोल आया और न ही उसने रुपए भेजे। जब भी मां या और कोई पूछता "कब आओगे ?" तो अनमोल यही कहता काम खत्म होते ही बस अगले हफ्ते आता हूं।

आखिरकार हार कर अरविंद जी ने अनमोल को अपनी

पूरी समस्या बताने की सोची। अब तक वो सोच रहे थे कि जब अनमोल आएगा तब बात आमने सामने होगी तो ज्यादा अच्छा रहेगा पर वो तो आया नहीं। जब अरविंद जी ने एक दिन सोचा की आज तो अनमोल की छुट्टी होगी आज बात करता हूं। वो फोन पर ही उसे समझाने लगे,

"बेटा..! मै कहना तो नहीं चाहता था, पर क्या करूं मजबूर हूं। तुम्हारी पढ़ाई में और हनी, मनी की शादी में बहुत कर्ज हो गया है जिनसे लिया था अब वो और वक़्त देने को तैयार नहीं। वो कहते है ' अब तो बेटा इतना कमाने लगा है अब क्यों नहीं हमारे रुपए चुका देते।' बहुत शर्मिंदगी होती है बेटा उनके सामने पड़ने पर। तुम जल्दी से कुछ प्रबंध कर के भेज दो। वरना मै ही आ जाता हूं।"

अनमोल ने वैसा ही बोला जिसकी अरविंद जी की आशा थी। वो बोला,

"पापा..! आप बिल्कुल भी परेशान ना हो। मै जल्दी ही रुपए भेजता हूं। आप इतनी दूर आने में परेशान हो जायेगे। मै खुद ही आता हूं या रुपए भेजता हूं।"

आश्वासन पाकर अरविंद जी थोड़ा सा चिंता मुक्त हो गए

कि बेटा उनकी समस्या को समझ रहा है। अब वो जान

गया है कि पापा परेशान है ! तो जरूर ही जल्दी आएगा। मेरी मुसीबतों को दूर करेगा।

अरविंद जी की उम्मीदों का सिलसिला चल पड़ा ।रोज

बार बार इंतजार करते की अनमोल फोन करेगा की

' पापा मैंने पैसे भेज दिए है । आप बैंक जाकर निकाल

लो और जिसका भी बाकी हो दे दो।'

पर इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा था। वो खुद तो फोन

करता ही नहीं। यहां से फोन करने पर भी जल्दी नहीं

बात करता। चार पांच बार फोन करो तो एक बार बात

करता तो बोलता "जल्दी बोलो! बिज़ी हूं बाद में बात करूंगा "

फिर बात कभी होती ही नहीं ।

एक - एक दिन करते - करते दो महीने और बीत गए; परना अनमोल आया ना पैसे भेजे।

अब तो हद ही गई। तीन दिन से उसका फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था। अब अरविंद जी अनहोनी की आशंका से डर गए। तुरंत ही आनन - फानन में तैयारी की और बेंगलुरु के लिए रवाना हो गए।

दो दिन के सफ़र के बाद , वहा पहुंचे तो पूछते - पूछते अनमोल की कंपनी के ऑफिस में पहुंचे। वहां मल्टी -

नेशनल कम्पनी में किसी एक के बारे में पता लगाना

काफी मुश्किल था। बहुत जद्दो - जहद के बाद भी वो

पता नहीं लगा पाए कि अनमोल कहा है। उन्हे परेशान

होते देख वहां के एक कर्मचारी को रहम आ गया ।

वो उन्हें वेटिंग हॉल में बिठा कर बोला,

"आप मेरी प्रतीक्षा करिए बाबूजी यहां बैठ कर । आप थक गए होंगे सुबह से ढूंढते - ढूंढ़ते । मै अभी पता लगा कर आता हूं।"

ये कह कर वो अनजान व्यक्ति वहा से चला गया। थोड़ी

देर बाद वो व्यक्ति आया और बोला,

"बाबूजी..! मैंने पता लगा लिया है अनमोल सर का पर आज वो आए नहीं है। मैंने उनका एड्रेस भी के लिया है। आप के लिए ये अनजान शहर है आप कैसे उनका फ्लैट ढूंढ़ पाएंगे ? मै साथ में आपको लेकर चलता हूं।"

वो व्यक्ति जिसका नाम रंजन था, टैक्सी कर अरविंद

जी को लेकर अनमोल के फ्लैट पर गया।

काफी देर तक बेल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं

खुला तो अरविंद जी घबरा गए । कही तबियत ज्यादा

खराब नहीं हो गई। ये बात दिमाग में आते ही अरविंद

जी बेल की बजाय दोनों हाथो से दरवाजा पीटने लगे।

तभी अचानक दरवाजा खुला और एक युवक हाथ में

जप की थैली लिए निकला ; और इशारा से पूछने लगा

"क्या बात है ?"

रंजन आगे आया और बोला,

"सर..! ये अनमोल सर के पिताजी है उन्हें काफी देर से ऑफिस में खोज रहे थे। मै भी वहीं का इंप्लॉई हूं। जब मैंने इन्हे परेशान देखा तो पता लगा कर अनमोल सर का एड्रेस निकलवाया और इन्हे लेकर यहां आ गया ।"

वो युवक आगे आकर अरविंद जी का चरण - स्पर्श

किया और उन्हें लेकर अंदर आ गया। रंजन ने अपने

काम के नुक्सान का हवाला देकर बाहर से ही चला गया।

अंदर आकर एक कुर्सी पर उस युवक ने अरविंद जी

को बैठने को कहा और खुद अनमोल को आवाज देता

हुआ अंदर चला गया।

कुछ पल बाद ही अनमोल आ गया। सामने पापा को

देख अनमोल आश्चर्यचकित रह गया।

"अरे!!! पापा आप अचानक कैसे?"

कहता हुआ चरण - स्पर्श किया। उसे सही सलामत देख अरविंद जी की जान में जान आ गई । झटके से उठ कर भावा तिरेक अनमोल को गले लगा लिया। उसे चिपटा कर उनके कलेजे को ठंडक पड़ गई। देखने के पहले तक जाने कैसे कैसे बुरे ख्याल आ रहे थे।

अलग कर जब अरविंद जी की निगाह अनमोल की वेश

भूषा पर गई तो वो दंग रह गए। पीले धोती - कुर्ता और

कंठी पहने अनमोल उन्हे अपना बेटा लग ही नहीं रहा था। उन्हें अचंभित छोड़ अनमोल अंदर चला गया ।

थोड़ी देर बाद अनमोल गुड़ और पानी लेकर आ गया।

और बोला,

"पापा..! आप पानी पीजिए। फिर हम बाहर चलते है। यहां आपको परेशानी होगी। पास में ही अच्छी सा होटल है। आप की व्यवस्था वहीं करवा देता हूं ।"

अरविंद जी कहते रह गए कि

"बेटा मुझे तुम सब के साथ कोई परेशानी नहीं होगी" पर अनमोल पापा की बात को अनसुना कर के उनको पानी पिलाने के बाद उन्हे लेकर होटल चला गया।

होटल के कमरे में पहुंच कर क्या बातें हुईं पिता पुत्र में?

क्या हुआ जब अनमोल से अरविंद जी ने उसकी इस स्थिति के बारे में पूछा? जानने के लिए अगला भाग।

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