ज़िन्दगी सतरंग.. - 2 Sarita Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ज़िन्दगी सतरंग.. - 2

लोग कोरोना से कम पुलिस के डर से घरों में बैठे थे..इसलिए मौका देखकर बाहर घूम रहे थे और जैसे ही पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई पड़ता, तो दौड़ कर घरों में दुबक जाते..
शाम के 6:30 बजे होंगे थोड़ा अंधेरा सा होने लगा था..कुछ घुम्मककड लोग सड़क पर घूम रहे थे। इधर सड़क से पुलिस की गाड़ी गुज़री। आज पुलिस भी चकमा देकर आयी थी । सायरन की कोई आवाज नहीं हुई ना ही भोपूं पर lockdown के नियम समझाने वाली रिकॉर्ड आवाज , लोगो को आभास भी नही हुआ, इधर एक दो के चलती गाड़ी से डंडे बरसे तो लोगो में हड़कंप मचा। लोगों ने बस कूद फांद कर अपने को किसी ना किसी के घर के अंदर कर लिया..हां उसके बाद भले घरवालों ने गालिया देकर भगाया हो..या घर के वफ़ादार कुत्तों ने भोंक-भोंक कर..
अब सड़क पर अम्मा जी भी थी। उनको अंदेशा तो हो चुका था, पुलिस के आने का। मगर हड़बड़ाहट में किसी के घर की तरफ मुड़ने का सोच ही रही होंगी.. इस उम्र में भागना तो हुआ नहीं.. उससे पहले पुलिस की गाड़ी अम्मा जी के पास आकर रुक गयी..
एक नौजवान पुलिसकर्मी ने गाड़ी से उतरकर पूछा-
अम्मा यहाँ कहां घूम रही हो..घर से बाहर घूमने पर सरकार ने मना किया है..घर में किसी ने बताया नहीं...?
-हैं!!?????.. कु छै तू..! अम्मा ने ये कहकर उसके चेहरे पर हाथ फिराना शुरु कर दिया..
ऐसा तो हो नही सकता कि अम्मा जान ना पाई हो.. पर अम्मा की अदाकारी कमाल की थी.. अगर वो हेरोइन होती तो एक्टिंग में ऑस्कर जरूर ले जाती..
पुलिसकर्मी ने बुजुर्ग महिला जानकर सोचा दिखाई कम देता होगा..उसे थोड़ी दया सी आ गयी..
-"अम्मा घर कहां है आपका.. कोई साथ नहीं है"..
-'अरे बेटा पोता लाया था साथ में.. पता नहीं कहां चला गया। दिखाई भी कम देता है..यहीं पास में घर है"..
पुलिसकर्मी आसपास पूछताछ कर अम्मा को घर तक छोड़ आया..और घरवालों को फ़टकार लगाई की "ध्यान रखा करें घर के बुजुर्ग का..एक तो कोरोना का खतरा है, ऊपर से उन्हें दिखाई भी नहीं देता..ऐसा लापरवाह रवैया फिर से ना हो"...
घरवाले भी क्या करते!.. पुलिस के डर से सब चुपचाप सुन लिया..
पर अम्मा इन सबसे बेपरवाह.. अगले दिन फिर निकल पड़ी गांव में विचरने.. पर ये क्या!! गेट पर तो ताला लगा था?!.. अब तो मुश्किल हो गयी थी..
अम्मा ने घरवालों से गेट खोल देने के लिए कहा। पर किसी ने सुनी नहीं और सुनते भी क्यों? अगली बार अगर अम्मा को पुलिस देख लेती तो घरवालों को जेल की हवा के साथ साथ लाठी डंडे भी फ्री में खाने पड़ते.. उनके पास भी तो अब यही रास्ता बचा था?..
थोड़ा बहुत हो हल्ला मचाने के बाद अम्मा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी..
इसलिए कुछ दिन अम्मा दिखाई नहीं दी..
सोमवार का दिन था। मैं जल चढ़ाने मंदिर जा रही थी। तब मैंने अम्मा जी को गेट से आते जाते लोगो को झांकते हुए पाया.. गेट पर अब हर वक़्त ताला लगा रहता था, जिससे अम्माजी बाहर इधर उधर ना जा सकें.. जिससे वो मायूस सी दिख रही थी...

सोचते सोचते मैं मंदिर के लिए निकल पड़ी..
सड़क के साथ साथ किनारे पर नहर है, और नहर में कल -कल करता बहता पानी..चारो तरफ पहाड़ों की खूबसूरती... किसी सुबह सूरज की पहली किरणों के साथ बहता पानी..इससे होकर कोई गर्म हवा गुजरे तो वो भी ठंडी फुहार बनकर मन तृप्त कर दे..कभी कभी तो मन करता है किसी ढलती शाम के साथ , बस यही नहर की मुड़ेंर पर बैठकर घण्टो बिता दें यूँही..

रास्ते में नहर के पास मुझे गाय खड़ी दिखी ध्यान से देखने पर पाया कि वो रस्सी से बंधी हुई थी.. सोच रही थी कि किसने बांध होगा सड़क के पास और नहर भी है चोट लग सकती है ..इधर मेरी सोच ने अभी सोचना शुरू ही किया था कि अचानक एक पानी की बौछार गाय की तरफ से आती हुई मेरे ऊपर आ गिरी..मेरा मुह धूल चुका था..कोई गाय नहला रहा था..
मुझे अजीब सा लगा ये सोचकर कि नहर का गन्दा पानी मुझपर आ गिरा है.. गन्दा ही कहेंगे अब फ़िल्टर के ज़माने में.. वरना एकमात्र नदी से आने वाला पानी वही नहरों में वही घरों में.. हां कुछ सालों में थोड़ा हाइटेक हो चुका है गांव..वरना सुना था पहले सब नहरों का पानी घरों में भी इस्तेमाल करते थे.. पर अब तो नहरें ही ज्यादा साफ होंगी घरों में आने वाले पानी से.. बड़ी बड़ी पानी की टँकी सालों में नम्बर आता होगा सफाई का... ओह्ह हां!..सफाई के नाम पर दिखावा कह सकते हैं... जो बहाने के तौर पर सही लगता है सुनने में.. पर असलियत तो जानकर भी अनजान है..खैर ये बात तो केवल मेरे ख़्याल की है.. असलियत से इसका शायद ही कोई लेना देना हो.. और हो भी तो क्या फर्क पड़ता है.. ये तो जंजाल है यूँही चलेगा अनवरत..
********

-"कौन है.." मैंने अपना मुंह पोंछते हुए कहा..
'नहर के पास जाकर देखा तो पड़ोस में रहने वाली दीदी जो अपनी गाय को नहला रही थी.. हाथ मे बाल्टी लेकर..नहर में आधी डूबी हुई..गाय से ज्यादा तो वो पानी से तरबतर थी'..
-"पानी तेरे ऊपर पड़ गया क्या??"..माफ करना...मुझे पता नहीं चला. .
-"कोई बात नहीं दीदी"..
-"मंदिर जा रही है क्या"? उन्होंने मेरे हाथ मे जल देखकर कहा..
-"हांजी.."
-"घर चली जा वापस..वो सनकी महाराज मंदिर के अंदर घुसने नही दे रहा.. अभी कल ही तो बिट्टू की मम्मी और उसकी देवरानी गयी थी "भगा दिया उस सनकी ने"..
"क्या???..क्यों भगा दिया..??? मैंने पूछा..मुझे आश्चर्य हुआ..
-"अरे लोकडौन है ना..?? उन्होंने कहा
-"वापस चली जा वो अंदर जाने नही देंगे.."

'हे रामा'..ये भक्त बनने के चक्कर में तो ये बात दिमाग में आई नहीं कि हमारे गांव का मंदिर भी तो बन्द होगा..मैने मन ही मन सोचा..

-"कोई बात नहीं इतना तो आ चुकी हूँ थोड़ा मंदिर जाकर देख लेती हूं..वापस भेज देंगे तो आ जाऊंगी..
-"अरे वो सनकी है कहीं कुछ बोल ना दे तुझे".. बहुत डांट फटकार के वापस भेज रहा है.."

उनकी बात सुनकर थोड़ा डर सा लगा पर मैं आगे बढ़ गयी..

इधर रास्ते में मुझे गांव की कुछ महिलाएं दिखी..उन्होंने भी यही बात कही कि मंदिर में महाराज जी आने से मना कर रहे हैं..बहुत डाँट डपट के घर भगा रहे है..

आज तो बुरे फंसे..पूछताछ करके ही घर से बाहर निकलना था..कहीं उनकी डांट से मैं वापस रोते रोते ना आऊं.. सब हसेंगे मुझपर.. वापस घर जाउ या मंदिर.. अन्तर्द्वन्द हो रहा था मन में.. फिर सोचा अब इतने तक आने के बाद वापस जाना ठीक नहीं अब महादेव ही जाने..मुह तो धुला ही चुके है अब वो मुझे गालियां भी खिलाना चाहते हैं तो यही सही...
मंदिर के अंदर अलग ही शांति मिलती है मंदिर के चारो तरफ खिले फूलों की महक.. एक तरफ बेलपत्र का पेड़, एक तरफ पीपल का पेड़, एक तरफ रुद्राक्ष का पेड़ औऱ बीच मे हमारे महादेव..बहुत खूबसूरत.. देखते देखते मंदिर में विचरते महाराज जी भी दिखाई पड़ गए..भगवा कपड़े पहने कड़क आवाज में सेवकों से सामान इधर उधर रखवा रहे थे। मैं अंदर आकर.. हॉल जो काफी बड़ा है, मंदिर में कथा भागवत या भंडारे के लिए एक दो साल पहले बनाया गया था..जिसने भी ये बनाया था बहुत अच्छा काम किया है..आने जाने वाले मुसाफिरों के विश्राम के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है..वैसे हॉल जैसा भी बना हो पर वो बोर्ड जिसमे बनाने वाले का नाम बकायदा एड्रेस औऱ लागत के साथ लिखा होता है उसकी चमक अलग ही होती है..पता नहीं ये भगवान जी की जानकारी के लिए या भक्तों के लिए.. वैसे नाम लिखना फिर भी ठीक है काम का श्रेय तो मिलना ही चाहिए पर एड्रेस और लागत?? ये तो कुछ अलग ही था..पर ये तो केवल एक ख़्याल है, हो सकता इसके पीछे की सोच अलग हो जिसे मैं अभी तक समझ ना पाई हूँ...
हॉल से होती हुई मैं महाराज जी तक पहुची.. उनका ध्यान शायद मुझपर गया नहीं.. मैंने आवाज देकर कहा-
"महाराज जी प्रणाम..क्या मैं मंदिर में जल चढ़ा सकती हूं.." मन मे डर तो लग रहा था क्या कहेंगे पर मैंने बोल ही दिया..
महाराज जी अपने सन्यासी होने से ज्यादा अपने चिड़चिड़े और गुस्सेल स्वभाव से प्रचलित थे। सभी उनसे डरते थे या फिर नाराज़ रहते.. कहीं कोई बात पसन्द नहीं आयी तो फिर गुस्से में डांट देते थे..लगता था शायद वो फौजी रहे होंगे पहले.. एकदम अनुशासन प्रिय...तभी तो इतना कड़क स्वभाव था..
पहले वो थोड़े ख़ामोश रहे.. फिर स्वीकृति दे दी.. पर साथ मे बोले कि मंदिर अब बन्द रहेगा..पुलिस ने सख्त हिदायत दी है..आज कोई बात नहीं पर कल से मत आना..
मैं हांजी कहकर मंदिर के अंदर चली गयी.. उनका ये वाला रूप तो कभी देखा ही नहीं था..हमेशा तो उनको मंदिर में किसी ना किसी को डाँटते देखा था.. शायद मंदिर का नियम न टूटे और साफ सफाई बनी रहे इसलिए कहते थे..हां थोड़ा सख्त रवैये में.. वैसे भी मंदिर तो उनका घर है..अपने घर को हर कोई साफ रखना चाहता है.. मंदिर में गंदगी देखकर लोग मंदिर बदल देते हैं, पर आदतें नहीं बदल पाते.. मंदिर तो सबका ही घर है..कोई थके हारे का आराम है, किसी भटके मुसाफिर की मंजिल है, नाउम्मीद की एक उम्मीद है, एक विस्वास है...जो कहीं नही मिलता वो यहां जरूर मिलेगा..और मेरे लिए तो सुकून है...
वैसे कहते तो है कि गर मन में भक्ति और श्रद्धा है तो भगवान हर जगह ही है.. बात ठीक भी है पर घर मे रहकर तो घर के काम ही नजर आते है हर वक़्त.. यहां आकर लगता है अब कुछ बाकी नहीं बस यही रह जाये..

घर आते वक़्त अम्माजी के घर की तरफ नजरें घुमाई तो देखा अम्मा जी कुर्सी लगाकर दोमंजिले घर की छत पर बैठी थी..छत सड़क के बिल्कुल नजदीक थी तो आने जाने वाले लोग आसानी से देखे जा सकते थे.. हां ये ठीक है गांव का पूरा नज़ारा दिख रहा होगा छत से..कोई भी सीन छूटना नहीं चाहिए गांव में होने वाली घटनाओं का..और कुछ रह जाये तो आने जाने वाले लोगो से पूछ भी सकते है.. जैसे कोई बच्चा कुर्सी लगाकर tv के आगे बेठ जाता है..बिल्कुल अम्माजी भी बैठी थी..

- "आ गयी मंदिर से" .. छत से अम्माजी की आवाज आई..एकदम जोरदार आवाज.. लगता ही नहीं कि वो इतने उम्र की हो गई है..
-"हांजी.." मैन जवाब दिया..
-"वापस लौटा दिया होगा..??
भले ही घर से बाहर नही जा पा रही हों पर खबर सारे जहां की है...अभी मैं सोच रही थी कि इसके जवाब में बोला क्या जाए..हां कहती हूँ तो कहेगी गयी क्यों थी?..ना कहती हूं तो तो कहीं अम्माजी मंदिर ना पहुच जाए महाराज जी से लड़ने..
मैंने बस सर हामी में हिला दिया और इससे पहले कुछ सवाल करें फटाफट घर चली गयी..

वैसे तरीका बढ़िया था अम्माजी का..पर ऐसा कितने दिन चलता...लोगो ने घरों से निकलना बंद कर दिया था..
कुछ दिन बाद पता चला अम्माजी की तबियत खराब है जिसके कारण उन्हें पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है..

बहुत मुश्किल होता है हमेशा अकेले एक बन्द चारदीवारी में रहना..और इससे ज्यादा मुश्किल तब जब साथ तो बहुत हो पर फिर भी अकेले हो.. lockdown में इतना वक़्त घर पर रहकर बिताया है तो सबको समझ आ ही गया होगा.. कभी tv देख लिया, कभी फोन पर बातचीत, गेम, वीडियो, या song सुन लिए..गिल्ली डंडा से लेकर क्रिकेट, फुटबॉल तक एक छोटा सा आँगन भी स्टेडियम बन गया..कौन जानता था कि घर वो छोटी सी छत भी सुबह शाम टहलने का पार्क बन सकती है...कभी बावर्ची कभी धोभी, कभी सफाई कर्मी बन गए..फिर अगर टाइम बचा तो घरवालों से बातचीत ..थोड़ा छत पर टहले थोड़ा आँगन में..कभी इधर लटके कभी उधर..समय गुजार ही दिया किसी ना किसी बहाने से..
मगर हमारी अम्माजी इस उम्र में ना वो tv देख सकती थी ना कुछ सुन सकती थी ध्यान से..फ़ोन चलाना तो कहा था.. बातचीत जो शायद ही कोई करता..स्मार्टफोन के दौर में छोटे छोटे बच्चे भी खेल अब फ़ोन में खेलते है.. जिसे देखकर ही कोई मन को बहला ले.. घर का कोई काम कर सकने की इच्छा तो थी पर शरीर भी एक समय तक ही ये सब काम कर सकता है। इन डगमगाते हाथों से अब केवल छड़ी का बोझ ही सम्भाला जाए इतना ही काफी है..ले देकर एक सहारा गांव में घूम घूमकर अपना टाइम पास करने का वो भी कोरोना की वजह से छीन चुका था..एक बन्द चारदीवारी में केवल बिस्तर पर लेटे रहना कोई कितने दिन खुश रह सकता है?.. कोई कितने दिन खुद में ज़िन्दगी को ज़िंदा रख सकता है..तबियत तो बिगड़नी ही थी..लेकिन सोचती हूं ज़िन्दगी जीने की ललक जो बाकी थी वो अब भी कहीं बाक़ी थी अम्माजी में..पर सवाल ये था कि कब तक..?? हां काफी लोग ये सोचते है इतनी उम्र हो गयी है अगर अब उनको कुछ हो भी जाये तो ठीक ही है.. ज़िन्दगी के सप्त रंग तो देख ही चुकी थी अम्माजी.. पर बात ये है कि ये जो अंतिम सफर है मुश्किल बहुत होता है..ना कहा जा सकता ना लिखा जा सकता है..ये वही जान सकता है जो ये पल जीता है..हां कोई महसूस कर सके तो अलग बात है..


....क्रमशः

ये कहानी कोई रोचक कहानी नहीं है.. पर फिर भी लिखूंगी यूँही.. कहीं कोई बात अच्छी ना लगे तो बताना जरूर... कहानी को पढ़कर प्रतिक्रिया अवश्य दें..धन्यवाद🙏