पहली माचिस की तीली - 15 - अंतिम भाग S Bhagyam Sharma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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पहली माचिस की तीली - 15 - अंतिम भाग

पहली माचिस की तीली

अध्याय 15

सुबह के 7:00 बजे।

तकिए के पास रखा सेल फोन धीरे से बजा, आधी नींद में रहने वाले सरवन पेरूमाल कर बैठे मोबाइल को कान से लगाया।

"कौन...?"

"साहब... मैं सुंदरपंडियन...."

"क्या है..?

"सुरेश, कमल कुमार और एल्बोस के डेड बॉडीयों को डिस्पोज करने की बात बाहर आ गई। पुलिस बॉडी को खोद के निकाल कर मोर्चरी में लेकर गई।"

"यह बात कैसे बाहर आई ?"

"बॉडी को डिस्पोज करते समय कोई शिकारी ने देख लिया। वे एक मिलिट्री के रिटायर्ड आदमी हैं।"

"ऐसा है तो पुलिस इस समय फॉरेस्ट के अंदर चली गई होगी...."

"हां साहब..... अपने आदमियों को बचकर आने में बड़ी परेशानी हो गई...."

"कोई भी पुलिस के शिकंजे में तो नहीं फंसा ?"

"नहीं जी..."

"अपनी कस्टडी में जो कृष्णकांत, मुकुट पति और नवनीत इन लोगों को लेकर आ गए....?"

"नहीं साहब..."

"क्यों....?"

"उनको भी लेकर आएँ तो फिर हम बच नहीं सकते आपके अनुमति के बिना...."

"बोलो..."

"मौत की सजा देकर पेड़ पर ही लटका कर आ गए..."

सरवन पेरुमाल हंसे। "उनको मौत की सजा देने के लिए मेरी अनुमति की जरूरत नहीं। सरकारी करोड़ों रुपयों को डाका डालने वाले ही नहीं वे हत्यारे भी हैं। कल रात को उनको मरना था आज ही मर गए। अपने आदमी ने जो काम किया वह सही है...."

"साहब आपके ऊपर पुलिस को कोई संदेह ना आए इसलिए आपके सामने की दीवार पर रात को एक पोस्टर चिपकायेंगे ।

"क्या पोस्टर...?"

"कल तुमने जो फैसला किया

वह गलत फैसला था - हां आज

हमने दिया

ठीक फैसला।

यह फैसला होते रहेगा

फिर भी तुम नहीं बदले

तुमको हम दंडित करेंगे।

पहली माचिस की तीली

"बहुत अच्छा है....! इसे किसने लिखा?"

"मैंने लिखा साहब..."

"दीवार पर चिपकाते समय देखकर चिपकाना। मेरे घर का सिक्योरिटी देख ना ले...."

"उसके बारे में आप फिकर मत करिए साहब...."

"अब से कुछ दिन हम बिना आवाज के रहेंगे। फिर काम शुरू करेंगे। अपने आदमियों को बता दो।"

"ठीक है साहब....."

दूसरी तरफ से सुंदर पांडियन ने रिसीवर को रख दिया - सरवन पेरूमाल भी अपने सेलफोन को बंद कर अपने बिस्तर पर लेटे। 10 मिनट बाद -

कमरे का दरवाजा खटखटाने की आवाज आई।

"ठोक... ठोक..."

जाकर दरवाजे को खोला।

बाहर -

उनकी पत्नी अमृतम।

हाथ में कॉफी के गिलास के साथ।

उसने चुपचाप कॉफी के गिलास को दिया अमृतम को मुस्कुरा कर सरवन पेरूमाल ने देखा ।

"मुझ से बहुत नाराज हो लगता है....?"

उन्हीं को बिना आंख झपके अमृतम ने देखा।

"क्या है अमृतम.... ऐसे देख रही हो....?"

उसकी आवाज में नमी थी।

"आपके बारे में गलत सोचने के लिए आप मुझे माफ कर दीजिए....."

"गलत समझा...?"

"हां जी....! आप कानून और न्याय को पैसों से खरीद लिया ऐसा मैंने आपके बारे में बुरा सोचा। आप इस तरह के आदमी नहीं हैं कुछ देर पहले ही मुझे पता चला। मुझे माफ कर दीजिए...."

"हमें भी आप माफ कर दो अप्पा" बाहर दरवाजे के पीछे से किशोर और अजंता दिखाई दिए। दोनों की आंखे थोड़ी गीली थी।

किशोर बोलने लगा। "अप्पा.... आप 5 मिनट पहले बात कर रहे थे उसे मैंने कार्डलेस टेलीफोन के द्वारा सुन लिया। पहले आपकी बातें सदमा देने वाली होने पर भी उसके बाद खुशी हुई। मेरे अप्पा कानून और न्याय को बचाने के लिए इस तरह के काम कर रहे हैं मालूम होने पर बहुत खुशी हुई। अम्मा और अजंता को ये बात बताया तो वो भी बहुत खुश हुए।"

उन तीनों को देखकर सरवन पेरूमाल मुस्कुराए।

"मैंने एक अजीब सा फैसला दिया तुम लोगों को पसंद आएगा कि नहीं यह सोचकर डर कर उसके बारे में तुम लोगों से मैंने नहीं बोला। मैंने जो फैसला लिया वह गलत फैसला है। एक कोर्ट के फैसले को कोई दूसरा फैसला नहीं कर सकता। परंतु मुझे फैसला लेने की जरूरत आन पड़ी ! कारण? आज की राजनीति। कोई भी राजनीति दल सरकार में आए तो वे कानून को हाथ में लेकर 'तुम्हें ऐसा ही फैसला देना है' ऐसे न्यायाधीश को आज्ञा देने की क्रूरता हो रही है। उनके आदेश की अवहेलना करो तो न्यायाधीश के जीवन को खतरा हो जाता है। उनके कुटुम्ब में रहने वालों की कोई सुरक्षा नहीं। इस जगह पर ही मैंने सोचा।

आजकल जो राजनीतिक दल है उनसे विरोध का मतलब आत्महत्या करने के समान है। अतः उनके कहे अनुसार ही कर रहे जैसे करके चुप रह जाता और उनके कहे जैसे रह रहा हूं ऐसा नाटक करके पर्दे के पीछे अन्यायों को जलाने वाले माचिस की तीली में बदलने का मैंने निश्चय किया। उसी का परिणाम आज सुरेश, कमल कुमार, एल्बोस, कृष्णकांत, मुकुट पति, और नवनीत जैसे भ्रष्टाचारी आज जिंदा नहीं है।"

सरवन पेरुमाल तेज आवाज में आवेश के साथ बोल रहे थे तभी -

बाहर कॉलिंग बेल बजा।

किशोर ने जाकर दरवाजा खोला।

बाहर पुलिस खड़ी थी।

डी.जी.पी. नायक पहले सामने खड़े थे। उन्होंने किशोर को मुड कर देखा।

"तुम..... मिस्टर सरवन पेरूमाल के बेटे हो ना?"

"हां ... सर..."

"अप्पा अंदर है क्या?"

"हैं सर..."

"उन से मिलना है।"

"अंदर आइए सर…."

डी.जी.पी. नायर अधिकारियों के पूरी पलटन के साथ अंदर आए। सीढ़ियों से उतर रहे सरवन पेरूमाल नायर को देखकर मुस्कुराए।

"आइए मिस्टर नायर.... प्लीज सिट।"

"सॉरी मिस्टर सरवन पेरूमाल....! यहां बैठने नहीं आए। आपको कैद करने आए हैं...."

"कैद...?"

"हां...

"किसलिए कैद....?"

"कुछ भी नहीं मालूम है जैसे पूछ रहे हो मिस्टर सरवन पेरूमाल.... आपके आदमी सुंदर पांडियन को हमने पकड़ लिया।"

सरवन पेरूमाल का चेहरा बदल गया... नायर बोले।

"हमारे हाथ सुंदर पांडियन कैसे आया इसे जानने के लिए आप बड़े उत्सुक होंगे। चंदन के तेल गोडाउन में आग लगे दूसरे दिन सुबह कृष्णकांत स्पाट पर जब आए तब उस समय सुंदर पांडियन उन्हें अलग से ले जाकर उनसे कुछ बात कर रहा था। उसे वहां एक कॉन्स्टेबल ने देखा। उस समय यही सुंदर पांडियन है पता नहीं था। आज सुबह सत्यमंगलम से एक एस.जी. कुछ फोटो को लेकर आए। वह फोटो पूरे के पूरे चंदन के तेल के गोडाउन जलने के बाद लिए लिए हुए थे। उन फोटो में एक में सुंदरपंडियन और कृष्णकांत एक तरफ खड़े होकर बात कर रहे थे। उस फोटो को बड़ा करके देखा। उसके बारे में गुप्त रूप से उस एरिया में पूछताछ करवाई। तब पता चला वह सुंदरपंडियन है पता चला.... मद्रास में एक लॉज में कमरा लेकर ठहरा हुआ है और यह भी पता चला। क्राइम ब्रांच पुलिस को फॉलो किया। थोड़ी देर पहले अर्थात 7:00 बजे के करीब वह लॉज के बाहर एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से आपको फोन किया।"

सरवन पेरूमाल बीच में बोले।

"वह सुंदर पांडियन ने मुझे ही फोन किया आपको कैसे पता..... उसने बात किया उसे आपने सुना?"

"नहीं..."

"फिर..."

"देखा..."

"क्या देखा.....? किसे देखा?"

"सुंदर पांडियन के बाएं हाथ में वॉल पॉइंट पेन से आपका नंबर लिखा हुआ था।"

सरवन पेरूमाल आश्चर्यचकित रह गए तो नायर मुस्कुराते हुए शुरू हुए।

"वही नहीं सर... आपके बारे में हमको संदेह हुआ तो आपके घर के सिक्योरिटी को गुप्त रूप से कांटेक्ट करके पूछताछ की तो कल रात आप बाहर जाकर 3:00 बजे के करीब वापस आए। इसका मतलब... आपके पास कुछ रहस्य है। वह रहस्य क्या है पता लगाना है तो आपको लॉकअप में आना पड़ेगा... यह रहा आपका अरेस्ट वारंट...."

सरवन पेरूमाल मुस्कुराए।

"ऐसा एक कैदी होने का समय कुछ वर्षों बाद आएगा सोचा। जल्दी ही आ गया। इसके लिए मैं फिक्र नहीं कर रहा हूं। कानून न्याय को बचाने के लिए अन्यायों को जलाने के लिए अपने आपको मैंने पहले माचिस की तीली उपयोग किया। यह तीली काली हो जाने पर भी अब भी बहुत सारी माचिस की तीलियां अभी बाकी है। वह माचिस की तीलियां अन्यायों-भ्रष्टाचारियों -बदमाशों के जलाने में काम आएगा....! आइए चलते हैं मिस्टर नायर।"

सरवन पेरूमाल पुलिस के साथ बाहर जाते -

किशोर गर्म सांस लेकर उन्हें देख रहा था।

दूसरी तीली।

समाप्त