पहली माचिस की तीली - 3 S Bhagyam Sharma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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पहली माचिस की तीली - 3

पहली माचिस की तीली

अध्याय 3

बाथरूम से बाहर निकले सरवन पेरूमल के पास अजंता जल्दी-जल्दी गई।

"अप्पा..."

"क्या बात है....?"

"आपको देखने कोई आया है जो हाल के सोफे पर बैठ कर आपका इंतजार कर रहा है।"

"कौन....?"

"नाम पंढरीनाथ। उसका चेहरा और निगाहें बिल्कुल ठीक नहीं है...."

"सरवन पेरूमल खुश हुए।

"नाम क्या बताया... पंढरीनाथ...?"

"हां अप्पा..."

"उसके आए बहुत देर हो गई..?."

"अभी आए हैं... 5 मिनट हुआ होगा।"

"अरे बेटी... उनके आते ही बाथरूम की तरफ आकर एक आवाज मुझे देनी चाहिए थी ना?"

"उन्हें देखने से कोई वी.आई.पी. जैसे तो नहीं दिखे... इसलिए...."

"वे वी.आई.पी. नहीं हैं। परंतु बहुत पर्सनल व्यक्ति है...."

कहकर सरवन पेरूमाल जल्दी-जल्दी अपने कमरे के अंदर घुस कर अलमारी में से आयरन किया हुआ धोती और शर्ट जल्दी-जल्दी पहनकर कर हॉल की तरफ गए।

"नमस्कार पंढरीनाथ....! आइए..."

पंढरीनाथ खड़े होकर नमस्कार किया। "नमस्कार जज साहब! सुबह-सुबह आपको परेशान कर रहा हूं।"

"परेशानी...? अरे यह क्या.... आइए ऊपर मेरा पर्सनल कमरा है वहां चलते हैं।” सरवन पेरूमाल बोलते हुए सीढ़ियां की तरफ चलने लगे पंढरीनाथ संकोच के साथ पीछे-पीछे गए।

रसोई के बाहर खड़े अमृतम और अजंता एक दूसरे को देखेने लगे।

"क्या बात है अम्मा...? उस पंडरीनाथ को देखकर अप्पा इतने खुश हो गए....?"

"वही तो....? बहुत-बहुत करीबी होने वाले को भी पर्सनल रूम में तुम्हारे अप्पा लेकर तो नहीं जाते हैं...?"

"अम्मा...."

"क्या...?"

"मैं ऊपर जाकर वहां क्या हो रहा है देख कर आऊं?"

अजंता सीढ़ियों से बिना आवाज किए धीरे-धीरे चढ़ी। कमरे के बरामदे में आते ही बिल्ली जैसे धीरे-धीरे चलते हुए सरवन पेरुमाल के पर्सनल कमरे के सामने जाकर खड़ी हुई।

दरवाजा बंद था।

हाथ से धकेलना चाहा।

अंदर से बंद किया हुआ था।

अजंता वहीं पर घुटने के बल बैठ गई - चाबी के छेद में आंख रखकर देखा। अप्पा और पंढरीनाथ हंस-हंसकर बात कर रहे थे उसे दिखाई दिया।

"यस.जी. कैसे हैं...?" सरवन पेरूमाल हे पूछते पंढरीनाथ में सिर हिलाया।

"उनको क्या है सर.... सेंट्रल में जो दो कैबिनेट मंत्री है उनके जेब में, कोई भी समस्या हो भाग जाएगा .... लड़के के विषय में थोड़े वे परेशान हो गए...."

"अब तो ज्यादा फ़िक्र भी नहीं है।"

"जजमेंट की कॉपी को देखें बिना एस.जी. विश्वास नहीं करेंगे...."

"कॉपी देता हूं! ले जाकर दिखाइए। दोष साबित नहीं हुआ संदेह के नाम पर तीनों लोगों को निर अपराधी मानकर उन्हें रिहा करने का मैंने फैसला दिया है।"

"इस फैसले को जनता मानेगी?"

सरवन पेरूमल हंसे।

"जनता के बारे में क्यों फिक्र कर रहे हो आप? यह फैसला अन्याय पूर्ण है दो दिन लोग बात करेंगे.... फिर नई कोई सिनेमा आए तो इसके बारे में भूल जाएंगे...."

"इस हिम्मत वाले फैसले के लिए एस. जी. आपको पूरे जीवन काल में धन्यवाद देते रहेंगे....?"

"सिर्फ धन्यवाद ही....?"

पंढरीनाथ हाथों को झटकाया। "देखा जज सहाब। बातों में इसे मैं भूल गया।"

"किसे..?"

"यह ब्रीफकेस....!" कहकर पंढरीनाथ ब्रीफकेस को खोलकर 500 के नोटों के गड्डी को निकाल कर तिपाया पर फैलाया।

"एस.जी.ने कितना दिया?"

"पांच "

"दस बोले थे...?"

"बाकी पांच आप कोर्ट में फैसला सुना दोगे उसके बाद...."

"जजमेंट की कॉपी ही आपके पास आ गई। अब क्या है....?

"फिर भी.... कोर्ट में बैठ कर सैकड़ों लोगों के बीच में पढ़ोगे जैसे होगा क्या?"

"ठीक है... एस. जी. को ठीक 11:00 बजे कोर्ट आने को बोल देना। ऐसे फैसले को सुन उनके कानों में ठंडक पहुंचेगी...."

"वे आए बिना रहेंगे क्या...? मैं भी उनके साथ जरूर आऊंगा।"

सरवन पेरूमल के आंखों के सामने पड़ी 500 की गड्डियों को छाती से लगाया और उठाकर अलमारी के अंदर रखा।

पंढरीनाथ उठे।

"फिर मैं चलूँ जज साहब।"

"हां... चलिए। जजमेंट कॉपी को संभाल लीजिए। पत्रकारों को पता चले तो बहुत बड़ी बात हो जाएगी।"

"उसके बारे में फिकर मत करिए जज साहब। वह सब एस.जी. देख लेंगे...."

"मुझे नहीं पता क्या....?"

चाबी के छेद से आंख रखकर अंदर हुए सब बातों को देख अजंता का शरीर कांपने लगा।

'अप्पा ऐसे हैं...?"

पंढरीनाथ दरवाजे की तरफ आने की आवाज सुन अजंता उठकर दौड़ कर सीढ़ियों से उतर रसोई की तरफ भागी।

अलमारी में कुछ ढूंढ रही अमृतम पलट कर लड़की को आश्चर्य से देखी। "क्यों री ऐसे दौड़ के आ रही है?"

"अम्मा...."

अजंता की सांस भर रही थी।

"क्यों री मुंह पसीने से भीग रहा है क्या हुआ?"

"वह... अम्मा...! उस आदमी को पहले बाहर जाने दो फिर बताती हूं।"

"कौन...?"

"वही ए...."

पंढरीनाथ के सीढ़ियों से उतरने की आवाज आई।

अमृतम ने धीरे से झांक कर देखा।

"तुमने बोला वह सही है अजंता.... उसके चेहरे को देखो तो ही कानून का विरोधी जैसे लगता है। तुम्हारे अप्पा ऐसे आदमियों को पास भी नहीं फटकने देते?"

"यह सब रुपए वाला काम है अम्मा..."

"अब मैं बात कर लेती हूं...."

पंढरीनाथ कंपाउंड के गेट को पार करने तक देखती रही अमृतम जल्दी-जल्दी सीढ़ियों की पास गई। अजंता भी पीछे-पीछे गई। तेज चलने से सरवन पेरूमाल का कमरा आया।

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