धवल शुभी से प्रणय निवेदन कर निर्णय लेने के लिए छोड़ जाता है । अब गतांक से आगे----
शुभी कुछ देेर कर्तत्तविमूढ़ सी बैठी रही , फिर अपने घर की तरफ बढ़ चली। रात को जब वो अपने बिस्तर पर लेटी तो रह -रह कर उसका मन धवल की बातों की ओर ही चला जाता ।अजीब सी उथलपुथल मची है उसके मन मस्तिष्क में।इस कशमकश के बीच शुभी की समझ में नहीं आ रहा कि धवल की बात पर विचार करने के लिए वो कौन सा सूत्र पकड़े ताकि सारी उलझन सुलझा सके।उसने कुछ देर के लिए अपनी आंखें बंद की और कुछ देर सोचती रही ।जब उसे अपना ही चेहरा दिखाई दिया तो उसने स्वंय को केंद्र मानकर ही सारी उलझन को सुलझाने का फैसला किया।
ये तो शुभी ने भी महसुस किया कई बार कि वो अपने परिवार व रिश्तेदारों में उपेक्षित है। माता- पिता भी उसके स्वास्थ्य को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं।जब तक हैं ,तब तक हैं ।उनके बाद,मेरी बीमारी भी ऐसी है कि अचानक कभी भी दौरे पड़ जाते हैं।कहो तो दिन में ही दो- चार बार पड़ जाएं।न हो तो हप्तों निकल जाएं। आखिर मैं भी तो एक इंसान ही हूँ। मैं भी चाहती हूँ कि कोई मुझे भी प्यार करे ।किसी के दिल की धड़कन बनने का स्वप्न तो मेरा भी रहा। भले ही वो स्वप्न पूरा न हो सका।अब यदि किस्मत से मेरे ख्वाब पूरे होने की संभावना नजर आ रही है तो मैं क्यों न करूँ।हां, ये सही है कि धवल मेरी सहेली का पति है।पर मैं स्वयं तो उसके पास नहीं गयी।यदि अंशिका का ख्याल रखते हुए ,मैं भी थोड़ा सुख पा लूँ तो उसमें क्या बुराई है।
ये सोचकर शुभी ने जब धवल के बारे में सोचना शुरू किया तो उसने अपना मन तरंगित सा महसूस किया।धवल के बारे में सोचते हुए वो सो गयी।अगले दिन से ही उसने अपने अंदर परिवर्तन सा महसूस किया। अनायास ही उसके मुरझाए से चेहरे से प्रसन्नता टपकने लगी। ये बदलाव उसकी माँ ने भी देखा ,जब शुभी उठकर माँ के गले लग गयी । उसकी माँ ने पूछा भी, "क्या बात है " ? आज तो मेरी बिटिया बड़ी खुश नजर आ रही है। कुछ नहीं माँ, बस ऐसे ही।ह्म्म्म----- , ऐसे ही खुश रहा करो ।माँ ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।इतना बोलकर माँ अपने काम में लग गईं।
अपने सारे काम निपटा कर शुभी ने अंशिका को फोन लगाया ।हैलो -- अंशिका, कैसी हो तुम।मुझे तुमसे कुछ पूछना है? पर समझ नहीं आ रहा कैसे पूछूँ।अरे यार मैं तेरी बचपन की दोस्त हूँ । मुझसे क्या औपचारिकता ।लगता है प्यार - मोहब्बत का चक्कर है। तू सच में मेरी सच्ची दोस्त है। तभी मेरे बिना बताए ही समझ गयी,इतना बोलकर शुभी चुप हो गयी। ओहो-- हमने तो सिर्फ अंधेरे में ही एक तीर छोड़ा ,पर लगा सीधा निशाने पर।अब सीधे -सीधे सारी बात बता। शुभी ने अंशिका को सबकुछ साफ- साफ बता दिया सिवाय धवल के नाम व पहचान के । यहाँ तक कि उसके शादीशुदा होने का भी।सुनकर अंशिका कुछ गंभीर हुई।फिर बोली - सुन शुभी,यदि तू मेरी सलाह ले रही है तो मैं एक ही बात कहूँगी ।आम परिस्थितियों में ये करना गलत होता ,पर तेरी स्थिति में ये उतना गलत नहीं है। हाँ, उसकी पत्नी को भी किसी बात की परेशानी न हो। इस बात का हमेशा ख्याल रखना। आखिर तुम भी तो एक इंसान हो ।प्यार करने व प्यार पाने का तुम्हारा भी अधिकार है।यदि ईश्वर ने तुमको औरत बनाया है ,तो औरत होने की संपूर्णता को जीना तुम्हारा भी नैसर्गिक हक है।तुम आगे बढ़ो,मैं तुम्हारे साथ हूँ।शुभी को अंशिका से बात करके बड़ी तसल्ली मिली। अब शुभी पूरी तरह से धवल के ख्यालों में डूब गई। अब उसे उस पल का इंतजार था जब वो और धवल आमने - सामने होंगे । जब वो अपने प्यार का इजहार करेगी।
देखते ही देखते वो घड़ी भी आ पहुंची जिस दिन शुभी को धवल के सवालों का जबाब देना था।आज शुभी पार्क जाने के लिए तैयार होते समय ख़ुद को निहारते हुए सोच रही है क्या पहनूँ, कैसे तैयार होऊं की धवल की नजर न हटे मुझ पर से।वो कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहती आज अपने श्रंगार में। आम दिनों से तीन गुना समय लग गया उसे आज तैयार होने मेंसबसे ज्यादा समय उसे अपना सूट के चयन में लगा।कभी उसे लाल पसन्द आता, कभी पीले पर नजर ठहर जाती।फिर अगले ही पल सोचती नहीं ,ये अच्छा नहीं लगेगा। अंत में उसकी नजर आसमानी रंग के सूट पर जा ठहरी। जब वो तैयार होकर आइने के सामने से हटी ,तो बरबस ही हंस पड़ी।ये सोचकर कि उसे ये क्या हो रहा है । आज से पहले तो कहीं जाने में उसने न तो इतना सोचा ,नही समय लिया।जो हाथ आता था उसे पहन कर दो मिनिट में तैयार हो जाती थी। पर अब तो घण्टों लगा दिए तैयार होने में।
क्या प्यार में ऐसा होता है?मन ही मन सोचते हुए वो पार्क पहुँची । घड़ी देखी ,तो पता चला समय से आधा घण्टा पहले ही पहुंच गई थी वो।एक बार तो मन हुआ कि धवल को फोन करके पूछे - कहाँ है वो, कितना समय और लगेगा आने में।।पर इतना उतावलापन भी ठीक नहीं।ये सोचकर वो चुपचाप बैठ गयी।धवल से मिलकर वो क्या और कैसे कहेगी।इस पर विचार करने लगी।ठीक पांच बजे धवल उसके सामने खड़ा हो गया।जब शुभी ने घड़ी देखी तो उसके मुंह से निकल गया ," समय के बड़े पाबंद हैं आप।" बात समय की पाबंदी की नहीं ,मन की उलझन सुलझाने की है।तो बताइये -आपने क्या विचार किया,बोलते हुए धवल बैठ गया ।आपका फैसला मेरे पक्ष में है या मेरे खिलाफ।शुभी बोली- है तो आप आपके पक्ष में ही,पर मेरे मन में कुछ शंकायें हैं।पहले आप उनका समाधान खोजिये।धवल बोला,"बोलिये आप अपने मन की शंका ।" क्या आप अंशिका के साथ न्याय कर पायेंगे।मेरी वजह से कभी अंशिका को कोई दुख हो,ये मुझे सहन नहीं होगा।
खड़े होते हुए धवल बोला- उठो--- ।क्यों ,शुभी ने प्रतिवाद किया।मुझे तुमको कहीं ले जाना है।जहां तुम्हारी सभी शंकाओं का एक साथ समाधान कर सकूँ।
धवल शुभी को लेकर माता रानी के मंदिर पहुँचा।माता रानी के सामने उसने शुभी से कहा," मैं,माता रानी को साक्षी मानकर तुमसे एक वादा करता हूँ।मैं तुम दोनों को हमेशा खुश रखूँगा। तुम दोनों का हमेशा ख्याल रखूँगा।कभी कोई दुख नहीं होने दूँगा।चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े।" अब तो खुश हो न तुम। शुभी-- हां---- बहुत ज्यादा----।शुभी ने भी अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा। चलो इसी खुशी में अपना हाथ आगे बढ़ाओ।जैसे ही शुभी ने हाथ आगे बढाया,धवल ने उसे एक खूबसूरत अंगूठी पहना दी। ये है मेरे प्यार की निशानी ।माता रानी के दर्शन के बाद दोनों पास के तालाब के किनारे बैठ कर बातें करने लगे।धवल -शुभी ,तुम खुश तो हो न मेरे साथ।शुभी- हां, बहुत ----। मैंने कभी सोचा भी न था कि मेरे जीवन में भी ये दिन लिखा है भगवान ने।तुम्हें पता है,मेरी बीमारी की बातें इस तरह से फैली हुई हैं कि लोगों की नजर में मुझे सिर्फ लाचारी व दुआयें ही दिखाई देती हैं।पीठ पीछे लोग इस तरह की बातें करते हैं- बेचारी इतनी सुंदर लड़की, पर भगवान को भी देखो ,ऐसी बीमारी देकर जीवन बर्बाद कर दिया। इसलिए मैं सामाजिक जीवन से कतराती हूँ।न कहीं जाती हूँ ,न किसी से मिलती हूँ।
पर आज तो मैं खुशी के मारे आसमान में उड़ रही हूँ।खुशी के इन पलों के अहसास कराने के लिए तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया।ओहो--- आप से तुम ,क्या बात है शुभी। तो तुम्हारे दिल में मेरी दस्तक हो ही गयी। धवल ने कुछ गंभीर अंदाज में शुभी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा- शुभी सारी पुरानी बातें भूल जाओ। आज से एक नयी शुरुआत करो।सपनों की एक नई दुनिया बसाओ मेरे साथ। धवल ने कुछ शरारतपूर्ण लहजे में कहा," वैसे मेरे पास एक और नजराना है तुम्हें खुशी देने का।यदि तुम हाँ कहो तो दूँ।ठीक है दो।इतना सुनते ही धवल ने शुभी का चेहरा दोनों हाथों से उठाया और उसकी आँखों में आंखे डालकर अपने होंठ धीरे से उसके होंठों पर रख दिये।आंख बंद कर शुभी उस अनोखे अहसास का आनंद लेती रही।दोनों सबकुछ भूल कर होंठों के मिलन की उस जुगलबंदी में, उस लड़ाई में ऐसा डूबे कि जब तक थक न गए,अलग ही न हुए एक दूसरे से। धवल ने उससे पूछा- कैसा लगा? शुभी ने शर्माते हुए अंगूठी की तरफ हाथ दिखाते हुए कहा," इससे भी ज्यादा अच्छा व रोमांचक। अब घर चलें,बहुत देर हो गयी है।तुम्हारे प्यार के चक्कर में एक जरुरी बात बताना तो भूल ही गया। सप्ताह के पांच दिन अंशिका के और दो दिन तुम्हारे।अब तो खुश हो। ह्म्म्म, तो अब मैं तुम्हें अगले हप्ते मिलूँगा।
इतना कहकर धवल ने शुभी को उसके घर से कुछ दूर छोड़ा और अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया।
क्रमशः